UG 3rd Sem AEC 3 Disaster management Questions Papper 2025 | CBCS BA/Bsc/Bcom 3rd Sem Exam 2023-27 | Disaster management Original Question paper | By Madhav sir

UG 3rd Sem AEC 3 Disaster management Questions Papper 2025 | CBCS BA/Bsc/Bcom 3rd Sem Exam 2023-27 | Disaster management Original Question paper | By Madhav sir 

 

 

UG Sem-3, Session 2023-27 Examination Related Notice for AEC-03

विश्विद्यालय द्वारा जारी रूटीन के अनुसार 03/06/25 और 04/06/25 को AEC-03(Disaster Risk Management) की परीक्षा आयोजित होगी, जिसके प्रश्नपत्र का पैटर्न MJC/MIC/IDC से अलग होगा, जो निम्नलिखित हैं:-👇

Total Questions 70[Only Objective (केवल वस्तुनिष्ठ)]

Time:- 2 Hours
1st sitting:- 10:00 Am to 12:00 Pm
2nd Sitting:- 02:00 Am to 04:00 Pm

Routine:-👇

03/06/25 1st Sitting:- History(MJC), L.S. W.(MJC), Persian(MJC), English(MJC), H.R.M.(MJC), Political Science(MJC), Sanskrit(MJC), Maithili(MJC) के सभी स्टूडेंट्स का Disaster Risk Management की परीक्षा 03/06/25 को प्रथम पालि में आयोजित होगीI

03/06/25 2nd Sitting:- Geography(MJC), Philosophy(MJC), Economics(MJC), Hindi(MJC), Sociology(MJC), Urdu(MJC), R. Economics(MJC), A.l.H. &C(MJC) के सभी स्टूडेंट्स का Disaster Risk Management की परीक्षा 03/06/25 को द्वितीय पालि में आयोजित होगीI

04/06/25 1st Sitting:- Psychology(MJC), Anthropology(MJC), Music(MJC), Dramatics(MJC), Home Science(MJC) के सभी स्टूडेंट्स का Disaster Risk Management की परीक्षा 04/06/25 को प्रथम पालि में आयोजित होगीI

04/06/25 2nd Sitting:- Science[Mathematics(MJC), Chemistry(MJC), Physics(MJC), Botany(MJC) Zoology(MJC)] और Commerce के सभी स्टूडेंट्स का Disaster Risk Management की परीक्षा 04/06/25 को द्वितीय पालि में आयोजित होगीI

Science और Commerce के सभी स्टूडेंट्स का AEC-03(Disaster Risk Management) की परीक्षा 04/06/25 को द्वितीय पालि में ही आयोजित होगीI

 

 

 

 

 

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Disaster management Original Question paper | By Madhav sir

 

UG 3rd Sem Exam 2023-27 | 3rd Sem Arts & Science MJC/MIC/MDC-3 सभी Subjects Guess Question Pepper Download PDF | CBCS 3rd Sem सभी विषय का ओरिजिनल जैसा प्रश्न पत्र यहां से डाउनलोड करें 100% यहीं से प्रश्न परीक्षा में पूछेगा

 

 

Subjective Questions Papper | Confirm paper 

 

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1. पर्यावरण प्रदूषण और आपदा

पर्यावरण प्रदूषण और प्राकृतिक आपदाओं के बीच एक महत्वपूर्ण संबंध है। प्रदूषण, खासकर वायु और जल प्रदूषण, जलवायु परिवर्तन को उत्पन्न करता है। जलवायु परिवर्तन, जिसमें ग्लोबल वार्मिंग एक प्रमुख तत्व है, प्राकृतिक आपदाओं की संभावना को बढ़ाता है। गर्म होते वातावरण के कारण, बर्फ और ग्लेशियर तेजी से पिघलते हैं, जिससे समुद्र स्तर बढ़ता है और तटीय क्षेत्रों में बाढ़ का खतरा बढ़ जाता है। साथ ही, अधिक गर्मी और असामान्य मौसमी परिस्थितियाँ अधिक तीव्र तूफान, हीटवेव और सूखा ला सकती हैं।

वायु प्रदूषण में मौजूद जहरीले कण और गैसें मौसम के पैटर्न को प्रभावित कर सकती हैं, जिससे अत्यधिक बारिश या सूखा हो सकता है। भूमि उपयोग परिवर्तन और वनों की कटाई भी मिट्टी के कटाव और भूस्खलन जैसी आपदाओं को जन्म देती हैं। इन सभी कारणों से प्रदूषण और प्राकृतिक आपदाएँ आपस में जुड़ी हुई हैं और इनसे निपटने के लिए ठोस पर्यावरणीय संरक्षण और प्रदूषण नियंत्रण की आवश्यकता है।

उदाहरण :

1. वायु प्रदूषण अम्लीय वर्षा

2. जल प्रदूषण जलीय जैव विविधता का संकट एवं आहार श्रृंखला पर नकारात्मक प्रभाव

3. मृदा प्रदूषण अनुचित प्रबंधन के कारण भूस्खलन की समस्या

4. जलवायु परिवर्तन बाढ़, हीट वेव, सूखा……….आदि।

5. ध्वनि प्रदूषण अनिद्रा, तनाव आदि मानसिक बीमारियाँ।

2. वायु प्रदूषण

वायु प्रदूषण का अर्थ है-वायु में एक या कई प्रदूषकों का काफी मात्रा में विद्यमान होना। मनुष्यों, पशुओं तथा पौधों के लिए नहीं, मानव संपत्ति के लिए भी हानिकारक है। वायु प्रदूषण तभी उत्पन्न होता है, जब वायुमंडल इन प्रदूषकों को तनूकृत करने में अक्षम होता है-यानी प्रदूषकों को कम करना उसकी क्षमता के परे हो जाता है।

वायु के मुख्य प्रदूषकों में CO, CO, SO, जैसी गैसें, राख, धुआँ के अलावा विभिन्न उद्योगों से निःसृत भारी धातुएँ सम्मिलित रहती हैं।

औद्योगिकीकरण के फलस्वरूप वायु प्रदूषण में वृद्धि हुई है। फलस्वरूप देश भर के 90 शहरों में 295 वायु गुणवत्ता मॉनीटरिंग स्टेशन स्थापित किए गए हैं। यह कार्य Central Pollution Control Board तथा State Pollution Control Board के संयुक्त प्रयास से किया जा रहा है। इसमें SO,, NO, निलंबित कणों (SPM) तथा श्वसनीय निलंबित कणों की नियमित मॉनीटरिंग की जाती है। इनके अलावा श्वसनीय लेड (Pb) तथा अन्य विषाक्त धातुओं एवं पालीसाइक्लिक ऐरोमैटिक हाइड्रोकार्बनों (PAH) की भी मॉनीटरिंग बड़े शहरों में की जाती है। इस मॉनीटरन के फलस्वरूप प्राप्त आँकड़ों से पता चलता है कि अधिकांश स्थानों में SO₂ का स्तर स्वीकृत मानक के भीतर है।

वायु प्रदूषण से बचने एवं रोकने के उपाय:

(1) प्रदूषण के बारे में जनता को जानकारी देकर इसे कम’ किया जा सकता है।

 

3. परमाणु आपदा प

परमाणु विध्वंस (Nuclear Holocaust) : से आशय वृहत् स्तर पर परमाणु हथियारों के ऐसे दुरुपयोग से है जिसके फलस्वरूप समस्त मानव जाति का इस पृथ्वी से विनाश हो गया। इन परमाणु हथियारों के इस प्रकार के दुरुपयोग का खतरा विश्व में भविष्य में होने वाले सम्भावित विश्व युद्ध से सर्वाधिक है। यदि भविष्य में ऐसा होता है तो यह समस्त पृथ्वी को जीवधारियों के लिए एक अनिवासित क्षेत्र के रूप में बदल देगा। वैज्ञानिकों का मानना है कि भविष्य में होने वाले किसी परमाणु युद्ध का परिणाम होगा-परमाणु विकिरण जनित दुष्प्रभावों से पृथ्वी से आधुनिक सभ्यता की समाप्ति तथा आधुनिक तकनीक का विलोपन ।

रेडियोधर्मी प्रदूषण तथा आतंकवाद (Radio-active Pollution and Terrorism): रेडियोधर्मी प्रदूषण एक ऐसा विनाशकारी प्रदूषण है जो पृथ्वी पर मानव जाति सहित सम्पूर्ण जैव

जगत् के अस्तित्व को ही गम्भीर चुनौती देने की क्षमता रखता है। पिछले तीन दशकों में विश्व के विभिन्न भागों में आतंकवादी गतिविधियों में तेजी से बढ़ोतरी देखी गयी है। वर्तमान में अनेक आतंकवादी संगठन परमाणु हथियारों को प्राप्त करने के लिए प्रयासरत हैं। यह आशंका है कि यह आतंकवादी संगठन परमाणु हथियारों के प्राप्त होने पर कहीं भी कभी भी इन परमाणु हथियारों का खुलकर प्रयोग कर किसी बड़ी आपदा का कारण बन सकते हैं। यदि भविष्य में ऐसा कहीं होता है तो यह मानव द्वारा मानव के लिए किया गया एक ऐसा विनाशकारी संहार होगा जिसकी क्षतिपूर्ति सम्भव नहीं होगी। आज विश्व के अधिकांश राष्ट्रों की यह चिन्ता है कि परमाणु हथियार आतंकवादी प्राप्त करने में सफल न हो जाएँ। यही कारण है कि आज विश्व स्तर पर कट्टरपंथी तथा कमजोर शासक वर्ग वाले राष्ट्रों को परमाणु कार्यक्रमों से दूर करने का प्रयास किया जा रहा है। वर्तमान में मध्य एशिया विशेषरूप से सीरिया तथा इराक में आई.एस. की आतंकी कार्यवाहियाँ तेजी से बढ़ी हैं। जिसके कारण सैकड़ों व्यक्ति मारे जाते हैं तथा अन्य सैकड़ों घायल हो जाते हैं।

4. बाढ़ प्रबन्धन

बाढ़ आपदा प्रबन्धन हेतु निम्नलिखित योजनाओं का क्रियान्वयन आवश्यक है-

1. नदी पर निर्मित जलाशय के ऊपरी प्रवाह में मृदा संरक्षण के प्रभावी उपाय करना आवश्यक है, क्योंकि इससे जलाशय में गाद निक्षेपण की दर कम रहती है तथा जलाशय की जल संग्राहक क्षमता धीमी गति से कम होती है। भारत में नदियों पर निर्मित अधिकांश जलाशयों की आयु गाद निक्षेपण की दर अधिक होने के कारण कम होती जा रही है।

2. प्रभावी बाढ़ नियन्त्रण हेतु नदियों पर बाढ़ नियन्त्रक जलाशयों का निर्माण ऐसे स्थानों पर किया जाये |

 

3. तदियों के जल-संग्रह क्षेत्र में वनों के काटने पर पूर्णतया प्रतिबन्ध लगाया जाये तथा इस क्षेत्र में सघन वृक्षारोपण कराया जाये।

4. बाढ़ नियन्त्रण जलाशयों के आकार का निर्धारण नदी में अधिकतम जल प्रवाह को दृष्टिगत रखकर किया जाना चाहिए।

5. नदी के किनारों पर तटबन्ध निर्मित करते समय नदी के जल प्रवाह की चौड़ाई ध्यान रखना आवश्यक होता है। इसके लिए बाढ़ मैदान कटिबन्धीय विधि का उपयोग किया जाता है।

6. बाढ़ लाने वाली नदियों के ऊपरी जल ग्रहण क्षेत्रों में निर्माण कार्यों पर प्रतिबन्ध लगाना।

7. बाढ़ के सम्बन्ध में आवश्यक सूचनाएँ प्राप्त कर उनकी भविष्यवाणी करना।

8. बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में भूमि उपयोग का निर्धारण प्राथमिकताओं के आधार पर किया जाय। उदाहरण के लिए, आवासीय क्षेत्र, चिकित्सालय, शिक्षण संस्था, बस स्टैण्ड, रेलवे स्टेशन तथा हवाई अड्डों की स्थापना अपेक्षाकृत ऊँचे भूभागों में की जाय जबकि खेल का मैदान, कार पार्किंग तथा पार्कों की स्थापना आदि निचले भूभागों पर की जा सकती है।

नदी में बाढ़ आने पर नदी का जल इस बाढ़-मैदान को घेर लेता है। बाढ़ के प्रभावी नियन्त्रण हेतु इस बाढ़-मैदान को तटबन्धों के माध्यम से कई कटिबन्धों में विभक्त कर देते हैं। यह कटिबन्ध 1, 2, 5, 10, 15 या 100 वर्षों की बाढ़ों को दृष्टिगत रखकर विभक्त किये जाते हैं। इसके लिए बाढ़-मैदान के कटिबन्धों का सीमांकन आवश्यक होता है।

5. आतंकवाद आपदा (Terrorism Disaster)

बीसवीं सदी के अन्तिम दशक के प्रारम्भ से आतंकी गतिविधियां तथा क्रियायें मानव जनित आपदाओं में सर्वाधिक भयावह एवं आपदापन्न हो गयी हैं। वास्तव में आतंकवाद किसी जाति, समुदाय, सम्प्रदाय तथा क्षेत्र की परवाह नहीं करता है, क्योंकि इसका कोई धर्म नहीं होता है। आतंकवाद व्यक्ति या व्यक्तियों के समूह के उस अनैतिक तथा गैर-कानूनी विध्वंशक कार्य को कहते हैं जो निम्न अवैध कृत्यों से सम्बन्धित होता है :

आतंक का डर तथा मनोवैज्ञानिक सदमा (trauma) पैदा करना,

सामूहिक संहार एवं विनाश के हथियारों (WMD. Weapons of Mass Destruction) के प्रयोग से निहत्थे एवं निर्दोष नागरिकों, सुरक्षा कर्मियों, सेना एवं पुलिस के जवानों की हत्या करना,

सम्पत्तियों तथा अवस्थापना (infrastructure) की सुविधाओं को नष्ट करना,

समाज या देश को अव्यवस्थित करना,

किसी संस्कृति को समाप्त करना, आदि।

आतंकी उपर्युक्त अनैतिक एवं अवैध कार्य धार्मिक, राजनीतिक या वैचारिक उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए करते हैं।

विश्व के विभिन्न भागों में आतंकियों द्वारा की जाने वाली दुर्घटनाओं के निम्न स्त्रोत तथा प्रकार होते हैं

1. राष्ट्रवादी/अलगाववादी आतंकवाद

2. राज्य द्वारा प्रायोजित आतंकवाद

3. धार्मिक आतंकवाद

4. वामपंथी आतंकवाद (left-wing terrorism)

5. दक्षिणपंथी आतंकवाद (right-wing terrorism)

6. अराजकतावादी / विप्लवकारी आतंकवाद (anarchist terrorism)

7. सीमापार आतंकवाद (cross-border terrorism)

8. साइबर आतंकवाद

9.. नार्को आतंकवाद

 

. आपदा योजना (Disaster Plan)

यह पूर्व निर्धारित कार्यवाही की दिशा है, जो सामाजिक-आर्थिक समस्याओं की प्रकृति तथा विस्तार से जुड़ी है। योजना अँधेरे में तीर चलाना नहीं है। यह भविष्य के प्रति उदार दृष्टिकोण है।

आयोजन (Planning) एक व्यवस्थित, सचेष्ट एवं सतत प्रयास है। यह आपदाओं की तैयारी के लिए उपलब्ध सर्वश्रेष्ठ विकल्प चुनने का प्रयास है। सामान्यतया किसी दीर्घकालीन योजना में लक्ष्य तैयार किए जाते हैं। ये हैं-

क्या प्राप्त किया जाना है?

किस हद तक प्राप्त किया जाना है?

कितनी जनसंख्या पर लागू होना है?

भौगोलिक क्षेत्रफल कितना है, जिसमें कार्यक्रम को चालू करना है?

लक्ष्यों को पूरा करने में कितना समय लगेगा?

सन्नद्धता के लिए जो आपदा योजना की जाती है, वह भौतिक योजना या पक्ष समर्थन आयोजना (Advocacy Planning) के रूप में होती है। भौतिक योजना के अंतर्गत शहरों तथा ग्रामों में निर्माण कार्य हेतु भवनों की ऊँचाई, पुलों के निर्माण हेतु नियम बनाने होते हैं।

पक्ष समर्थन योजना के अंतर्गत विभिन्न गैर-सरकारी संगठनों से सहायता ली जाती है, निर्देश दिए जाते हैं।

आपदा प्रबंधन पर राष्ट्रीय नीति मसौदे (Draft National Policy)-

आपदा प्रबंधन के लिए निवारण, न्यूनीकरण तथा सन्नद्धता हेतु एक समग्र दृष्टि अपनाई जाएगी।

केंद्र/राज्य सरकार का प्रत्येक मंत्रालय/विभाग विशिष्ट कार्यक्रमों हेतु धन की एक निश्चित मात्रा अलग रखेगा।

न्यूनीकरण को प्राथमिकता दी जाएगी।

आपदा-उन्मुख हर क्षेत्र में प्रत्येक प्रोजेक्ट में विचारार्थ न्यूनीकरण का एक विषय होगा।

टिकाऊ आपदा खतरा न्यूनीकरण हेतु समुदायों (पुरुष तथा महिला दोनों ही) को सम्मिलित किया जाएगा।

निगमित संक्टर, गैर-सरकारी, संगठनों तथा मीडिया (Media) के बीच घनिष्ठ परस्पर संवाद होगा।

सभी स्तरों पर उपयुक्त प्रशिक्षण दिया जाएगा।

आयोजना तथा सन्नद्धता संस्कृति विकसित की जाएगी।

राज्य तथा जिला स्तर पर एवं संबद्ध केंद्रीय सरकार के विभागों द्वारा अपनाए जानेवाले नियम बनाए जाएँगे।

जो निर्माण कार्य हो, उसकी डिजाइन भारतीय मानकों के अनुरूप हो।

भूकंपीय क्षेत्र III, IV तथा V की सारी इमारतों-अस्पताल, रेलवे स्टेशन, हवाई अड्डे, दमकल केंद्र, बस स्टैंड का पुनर्मूल्यांकन (Revaluation) हो।

राज्यों की वर्तमान राहत संहिता (Code) को संशोधित किया जाएगा |

 

7. जन-सहभागिता (People’s Participation)

आपदा कार्यों के नियोजन, कार्यान्वयन तथा मॉनीटरन में समुदायों के सदस्यों का शामिल होना समुदाय सहभागिता (Community Participation) है। इसमें हर व्यक्ति या परिवार स्वतः कोई-न-कोई जिम्मेदारी लेता है। चूँकि समुदाय के व्यक्ति ही अपनी स्थिति को बेहतर ढंग से समझते हैं, अतः वे अपने विकास के स्वयं एजेंट बन जाते हैं। इसके लिए उनमें यह क्षमता होनी चाहिए कि वे स्थिति को भाँप सकें, तमाम संभावनाओं को तौल सकें और निजी योगदान का अनुमान भी लगा सकें। इसे समुदाय आधारित आपदा प्रबंधन (Community based Disaster Management) नाम दिया गया है। जब तक स्थानीय प्रशासन स्थानीय लोगों को शरीक नहीं करता, उनका सहयोग नहीं लेता तब सफलता संदिग्ध है।

8. पूर्वावस्था पुनःप्राप्ति (Recovery)

जिसे पहले पुनर्वास कहा जाता था, वही अब पूर्वावस्था पुनःप्राप्ति के रूप में परिभाषित है। आपदा प्रभावित लोगों का घटना क्षेत्र से जीवित निकल आना परमावश्यक है। एक बार जीवन सुरक्षित हो जाए, तब प्रश्न उठता है कि इन्हें कहाँ बसाया जाए? लोगों को ऐसे घर प्रदान किए जाएँ, जो उन्हें प्राकृतिक प्रकोप से बचा सकें। इसे आश्रय (Shelter) प्रदान करना कहते हैं। इसके बाद उस आजीविका की वापसी (पुनः प्राप्ति); जिससे प्रभावित लोग आत्मनिर्भर बन सकें, जिसे पुनर्वास (Rehabilitation) कहा गया है, वही नए रूप में पूर्वावस्था पुनः प्राप्ति (Recovery) है।

इस पूर्वावस्था पुनः प्राप्ति के तीन आयाम हैं

स्वास्थ्य

आवास

आजीविका ।

9. आपदा निवारण/न्यूनीकरण (Disaster Prevention/Mitigation)

अधिकांश प्राकृतिक आपदाएँ ऐसी हैं, जिन्हें घटित होने से रोका तो नहीं जा सकता, किंतु उनके क्षतिकारी प्रभावों को न्यून करना या उन्हें क्षीण करना संभव है (यथा इमारतें बनाने के लिए नियम बनाकर)। किंतु कुछ मामलों में क्षीणन उपाय आपदा के आयाम को कम करने का प्रयास करते हैं (यथा नदी के प्रवाह को मोड़कर भीषण बाढ़ से बचाव)। इसे न्यूनीकरण कहते हैं। इमारतों के निर्माण के समय यदि निर्माण संहिता का पालन किया जाए तो भूकंपों से क्षतियाँ कम की जा सकती हैं। इसी तरह समुदायों की भागीदारी से भी क्षतियाँ कम की जा सकती हैं।

आपदा निवारण का अर्थ है कि किसी आपदा से होनेवाली क्षति का पूर्णतया विलोपन (Elimination), किंतु ऐसा व्यावहारिक नहीं है। यदि बाढ़ पीड़ितों को ऐसे स्थानों पर ले जाकर बसाया जाए, जहाँ बाढ़ की पहुँच नहीं है तो आपदा सुभेद्यता शून्य हो जाती है। इसी को निवारण कहते हैं।

घरों, स्कूलों तथा अन्य सार्वजनिक इमारतों की संरचनात्मक गुणवत्ता सुधार लाकर दुर्घटनाएँ कम की जा सकती हैं। यह भी न्यूनीकरण है।

अनुमान है कि विगत बीस वर्षों में लैटिन अमरीका तथा कैरेबियन देशों में लगभग 100 अस्पताल तथा 500 स्वास्थ्य केंद्र क्षतिग्रस्त हुए हैं। इनमें से कई अस्पताल धराशायी हो गए, जिससे तमाम बीमार तथा मेडिकल स्टाफ मारे गए। इस तरह समुदाय के लिए सेवा कार्य बाधित हुआ और कुछ मामलों में घटना के वर्षों बाद तक इमारतों की मरम्मत नहीं हो पाई। जल आपूर्ति बाधित होने से सार्वजनिक स्वास्थ्य बुरी तरह प्रभावित होता है। ऐसी क्षतियों से पुनर्वास पर अत्यधिक खर्च पड़ता है।

 

10. पुनर्वास (Rehabilitation)

पुनर्वास का अर्थ हैं आपदा से घायल, दुखी, अशक्त स्त्री, पुरुष एवं बालकों को सुरक्षित स्थानों पर पहुँचाने तथा अस्थायी रूप से कैंपों आदि में उनके भोजन, स्वास्थ्य की देखरेख करने के बाद उस समुदाय को उनके पहलेवाले कार्य उपलब्ध कराना, उनके लिए सुरक्षित आवास उपलब्ध कराना एवं उन्हें पूर्ण स्वास्थ्य प्रदान कराना है।

भारत में संयुक्त राष्ट्र की एजेंसियों का जाल फैला है। संयुक्त राष्ट्र पुनर्वास के मुद्दे पर स्थानीय जनता को भी सम्मिलित करना चाहता है। W.H.O. भी यूनिसेफ के साथ मिलकर संक्रामक रोगों की निगरानी तथा चेतावनी प्रणाली पर कार्य करता है। यहं स्त्रियों तथा बच्चों को विटामिन-ए पूरक देता है। UNDP बेघर वालों को आवास तथा 50 हजार परिवारों को Survival Kit देगा। इसकी टीमें घूम घूमकर फिर से मकान बनाने को कहेंगी, जिनमें भूकंप-रोधी भवन सामग्री का इस्तेमाल हो।

समुदायों के अंतर्गत रहनेवालों के अलावा मकान, दुकान, पुल, सिनेमा घर, सड़कें, रेल मार्ग, वायु मार्ग आते हैं, यानी पूरा स्थानीय पर्यावरण। जब तक ये सारी चीजें अपेक्षित गुणवत्ता की नहीं होंगी, सुरक्षा सदैव संदेहास्पद बनी रहेगी। यदि इनका निर्माण बड़े-बड़े ठेकेदार कराते हैं तो प्रयुक्त होनेवाली सामग्री प्रमाणित कोटि की होनी चाहिए; किंतु विकासशील देशों में इस ओर ध्यान नहीं दिया जाता। फलस्वरूप गलत निर्माण कार्यों से काफी जानें चली जाती हैं। एक तरह से निर्माण उद्योग तथा ठेकेदार राष्ट्र और लोगों का शोषण करते हैं। वे भ्रष्ट तरीकों से घूस द्रेकर ठेका लेना, निर्माण सामग्री का निम्न कोटि का होना, पुरानी प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल, निर्माण कार्य के नियमों का अभाव तथा राजनीतिक दबाव का इस्तेमाल करते हैं।

अब वह समय आ गया है कि भारत के शहरों का हर निवासी जागरूक बने और वह यह जान सके कि कोई मकान सुरक्षित है या नहीं।

* सरकारी अनुदान का उपयोग कामचलाऊ ढाँचे खड़े करने के बजाय आपदा आयोजन क्रियाविधि स्थापित करने में किया जाए। Indian Bureau of Standards ने मकान बनाने के जो नियम बनाए हैं, उनका भूकंप-उन्मुख क्षेत्रों में अवश्य पालन किया जाए।

11. भविष्यवाणी एवं चेतावनी (Forecasting and Warning)

सन्नद्धता के अंतर्गत दो महत्त्वपूर्ण कार्य करने होते हैं-एक तो भविष्यवाणी करना/पूर्वानुमान (Forecasting) और दूसरा चेतावनी (Warning)

भविष्यवाणी करना : प्राकृतिक आपदाओं के घटित होने में पूर्वानुमान की संभावना निहित रहती है, अतः आपदा प्रबंधन में पूर्वानुमान या भविष्यवाणी का महत्त्व है। किंतु पूर्वानुमान या भविष्यवाणी को सिद्ध वैज्ञानिक सिद्धांतों तथा, संक्रियात्मक रूप से सिद्ध तकनीकों पर आधारित होना चाहिए।

भत्रिप्यवाणी करनेवाले को दक्ष होने के अलावा कोई अधिकृत एजेंसी या व्यक्ति होना चाहिए। भविष्यवाणी अत्यंत स्पष्ट शब्दों में होनी चाहिए और तेजी से प्रचारित की जानी चाहिए। इसके लिए सूचना प्रौद्योगिकी का सहारा लिया जा सकता है। ध्यान रहे कि यदि वह भविष्यवाणी एक बार गलत होती है तो जनसामान्य का इस पर से विश्वास उठ जाता है और दुबारा वह ऐसी भविष्यवाणी पर विश्वास करने को तैयार नहीं होता।

चेतावनी : संभावित आपदा के विषय में भविष्यवाणी हो जाने के बाद इसे क्षेत्र विशिष्ट (Area Specific) तथा समय विशिष्ट (Time Specific) चेतावनी के रूप में तुरंत रूपांतरित करना होगा। चेतावनी को उपयोक्ता विशिष्ट (User Specific) भी होना चाहिए, क्योंकि विभिन्न उपयोक्ताओं की आपदा सहन क्षमता भिन्न-भिन्न होती है। समय से दी गई चेतावनी आपदा के कुप्रभावों को कम करती है।

 

12. आपदा राहत प्रबंधन

आपदा राहत प्रबंधन एक ऐसा क्षेत्र है जो आपदाओं के पूर्वानुमान, तैयारी, प्रतिक्रिया, और पुनर्वास के विभिन्न चरणों को शामिल करता है। इसका मुख्य उद्देश्य लोगों की जान बचाना, संपत्ति का संरक्षण करना, और आपदा से प्रभावित क्षेत्रों में सामान्य जीवन को बहाल करना है।

आपदा राहत प्रबंधन के प्रमुख चरण निम्नलिखित हैं:

1. आपदा की तैयारी (Preparedness): इसमें आपदा की संभावनाओं का आकलन करना, जोखिम को कम करने के उपाय अपनाना, और समुदाय को जागरूक करना शामिल है। इसमें आपदा प्रबंधन योजनाओं का निर्माण और आपातकालीन अभ्यास भी शामिल होते हैं।

2. प्रतिक्रिया (Response): आपदा के दौरान तत्काल राहत और बचाव कार्य करना। इसमें आपातकालीन सेवाएं, चिकित्सा सहायता, भोजन और आश्रय की व्यवस्था करना शामिल है।

3. पुनवीस (Recovery): आपदा के बाद प्रभावित समुदायों को पुनः स्थापित करना। इसमें पुनर्निर्माण, मानसिक स्वास्थ्यः सेवाएं, और सामाजिक-आर्थिक पुनर्वास शामिल होते हैं।

4. प्रत्युपाय (Mitigation): भविष्य में आपदा के प्रभाव को कम करने के उपाय अपनाना। इसमें संरचनात्मक सुधार, नीतिगत बदलाव, और समुदाय की सुदृढ़ता बढ़ाना शामिल है।

आपदा राहत प्रबंधन में सरकार, गैर-सरकारी संगठन, और समुदाय की सक्रिय भागीदारी होती है। सफल आपदा प्रबंधन के लिए सभी स्तरों पर समन्वय और योजना की आवश्यकता होती है।

13. आपदा पूर्व अवस्था पुनः प्राप्ति प्रबंधन

आपदा पूर्व अवस्था पुनः प्राप्ति प्रबंधन (Disaster Recovery Planning) वह प्रक्रिया है जिसके माध्यम से संगठन और समुदाय आपदा के बाद सामान्य स्थिति में लौटने की तैयारी करते हैं। यह योजना सुनिश्चित करती है कि आपदा के बाद भी महत्वपूर्ण सेवाएं और संचालन यथासंभव जल्दी बहाल हो सकें। প্রবালদহ সাদালোন

यह प्रबंधन मुख्य रूप से निम्नलिखित चरणों में विभाजित किया जा सकता है:

1. जोखिम आकलन (Risk Assessment): यह चरण संभावित खतरों की पहचान और उनका आकलन करने पर केंद्रित होता है। इसमें यह निर्धारित करना शामिल है कि कौन-कौन से खतरे क्षेत्र के लिए प्रासंगिक हैं और वे किस हद तक नुकसान पहुंचा सकते हैं।

2. महत्वपूर्ण संसाधनों की पहचान (Identification of Critical Resources) : यह सुनिश्चित करना कि कौन-कौन सी सेवाएं और संसाधन अत्यावश्यक हैं और उन्हें प्राथमिकता के आधार पर बहाल किया जाना चाहिए।

3. पुनप्राप्ति रणनीति (Recovery Strategy) : यह उन रणनीतियों और उपायों को विकसित करने पर केंद्रित है जिन्हें आपदा के बाद लागू किया जाएगा। इसमें बैकअप सिस्टम, वैकल्पिक कार्यस्थल, और आवश्यक संसाधनों की त्वरित उपलब्धता सुनिश्चित करना शामिल है।

4. प्रशिक्षण और जागरूकता (Training and Awareness): कर्मचारियों और समुदाय के सदस्यों को आपदा के बाद के कार्यीं के लिए प्रशिक्षित करना। इसमें नियमित अभ्यास और ड्रिल्स शामिल होते हैं ताकि सभी लोग आपदा ‘के समय तैयार रहें।

14. आपदा खतरा (Disaster Risk)

 

आपदा खतरा (Disaster Hazard) किसी भी प्राकृतिक या मानवजनित घटना को संदर्भित करता है जिसमें संभावित रूप से जानमाल का नुकसान, संपत्ति का विनाश, और पर्यावरणीय और सामाजिक व्यवधान हो सकता है। ये खतरे विभिन्न प्रकार के हो सकते हैं, जिनमें प्राकृतिक, तकनीकी, और मानवजनित खतरें शामिल हैं।

 

प्रमुख प्रकार के आपदा खतरे

 

1. प्राकृतिक खतरे (Natural Hazards):

 

– भूकंप भूकंप की तीव्रता के कारण इमारतों का गिरना और जानमाल का नुकसान हो सकता है।

 

– बाढ़ : अत्यधिक वर्षा या नदियों के उफान के कारण पानी का स्तर बढ़ जाता है, जिससे बाढ़ आती है।

 

चक्रवात और तूफान : तेज हवाएं और भारी वर्षा व्यापक विनाश कर सकती हैं।

 

सूखा : लम्बे समय तक पानी की कमी के कारण फसलें सूख जाती हैं और पानी का संकट पैदा हो जाता है।

 

–ज्वालामुखी विस्फोट लावा और राख के कारण आसपास के क्षेत्रों में विनाश होता है।

 

– सूनामी : समुद्र के नीचे भूकंप या ज्वालामुखी विस्फोट के कारण विशाल समुद्री लहरें उत्पन्न होती हैं।

 

2. मानवजनित खतरे (Man made Hazards):

 

रासायनिक आपदाएं : रासायनिक संयंत्रों में दुर्घटनाओं के कारण विषैले पदाथीं का रिसाव।

 

परमाणु आपदाएं : परमाणु संयंत्रों में दुर्घटनाओं के कारण विकिरण का फैलाव।

 

औद्योगिक दुर्घटनाएं : उद्योगों में आग, विस्फोट, या अन्य दुर्घटनाएं।

 

परिवहन दुर्घटनाएं : सड़क, रेल, या हवाई यात्रा के दौरान दुर्घटनाएं।

 

आतंकवादी हमले : जानबूझकर हिंसक कृत्य, जैसे बम विस्फोट या गोलीबारी।

 

3. तकनीकी खतरे (Technological Hazards):

 

साइबर हमले : कंप्यूटर सिस्टम और नेटवर्क पर हमले।

 

बिजली कटौती : लंबे समय तक बिजली का न होना।

 

संरचनात्मक विफलता इमारतों, पुलों, या बांधों का ढहना।

 

15. भूकम्प आपदा प्रबन्धन (Earthquakes Disaster Management)

 

प्राकृतिक आपदाओं में भूकम्प सर्वाधिक हानिकारक व विनाशकारी माने जाते हैं। भूकम्प के आने से पूर्व न तो कोई चेतावनी मिलती है और न ही इनके आने के समय के बारे में वैज्ञानिक कोई स्पष्ट

भविष्यवाणी कर सकते हैं। इसी कारण भूकम्प आपदा से होने वाली हानियों से बचने के लिए मानव के पास समय नहीं रहता। भूकम्प से होने वाले विनाशकारी प्रभावों को भूकम्प आपदा कहा जाता है।

 

भूकम्प से जन-धन की अपार क्षति होती है। भूकम्प का सर्वाधिक प्रभाग मानवीय बस्तियों पर पड़ता है। भूकम्प आने से कुछ मिनट के अन्दर ही भवन खण्डहरों में बंदल जाते हैं अनेक लोग काल-कवलित हो जाते हैं या घायल हो जाते हैं। करोड़ों रुपए की सम्पत्ति क्षण भर में पूर्णतया नष्ट हो जाती है। रेल की पटरियाँ उखड़ जाती हैं। सड़कों में जगह-जगह दरारें पड़ जाती हैं। दूरसंचार सेवाएँ भी भंग हो जाती हैं। वस्तुतः प्राकृतिक आपदाओं में भूकम्प एक ऐसी प्राकृतिक आपदा है जो सर्वाधिक विनाशकारी होती है। इस सन्दर्भ में यह भी उल्लेखनीय है कि भूकम्प से हमेशा सर्वाधिक हानि उन्हीं क्षेत्रों में होती है जहाँ मानव द्वारा अनियोजित ढंग से अपने रहन-सहन तथा आवास विकास के रास्ते बनाए हैं।

 

इस आपदा के प्रबन्धन के द्वारा भूकम्प के आने को तो नहीं रोका जा सकता, लेकिन भूकम्प से होने वाली हानियों को कम अवश्य ही किया जा सकता है। भूकम्प आपदा प्रबन्धन का क्रियान्वयन निम्नलिखित दो चरणों में किया जाता है-

 

1. आपदा पूर्व अवस्था (Predisaster Stage)

 

2. आपदोपरान्त अवस्था (Postdisaster Stage)

 

16. पर्यावरण संरक्षण (Environment Conservation)

वे भौतिक एवं रासायनिक परिवर्तन जो पर्यावरण में अवांछनीय परिवर्तन कर देते हैं, पर्यावरण प्रदूषण कहलाते हैं। पर्यावरण से तात्पर्य भौगोलिक पर्यावरण से है जिसमें सभी प्राकृतिक शक्तियाँ आती हैं जिन पर मनुष्य का कोई नियंत्रण नहीं होता। मनुष्य अपनी बुद्धि और बल के द्वारा जिन प्राकृतिक दशाओं में कुछ परिवर्तन या संशोधन कर लेता है वे भौगोलिक पर्यावरण का अंग नहीं रह जाती जैसे जोती गई जमीन, नदियों पर बनाये गये बांध, पहाड़ों को काटकर बनायी गयी सड़कें, जंगलों एवं पेड़ों को काट कर बनाये गये रिहाइशी स्थल, कारखानों एवं नगरों के गंदे जल एवं कचड़े को नदियों में बहाना इत्यादि।si Tansiy

मनुष्य के जीवन पर पर्यावरण की विभिन्न दशाओं का बहुत गहरा प्रभाव पड़ता है। जैसे-मैदानी मरूस्थलीय, पर्वतीय, नदी एवं समुद्र तटों के क्षेत्रों में रहने वाले मनुष्यों का पर्यावरण में भिन्नता होने के कारण उनके जीवन के स्वरूप में भिन्नता नजर आती है। पर्यावरण के प्रभाव को निम्नलिखित बिंदुओं से दर्शाया जा सकता है

1. सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक तथा राजनीतिक संस्थाओं पर प्रभाव।

2. मानव व्यवहारों पर प्रभाव। जैसे आत्महत्या, अपराध, मानसिक योग्यता तथा कार्यक्षमता।

3. सांस्कृतिक जीवन पर प्रभाव-इसके अन्तर्गत प्रौद्योगिकी, कला एवं साहित्य, वेशभूषा एवं खान-पान पर प्रभाव।

4. जनांकीकीय प्रभाव-इसके अन्तर्गत जनसंख्या के आकार, जन्मदर एवं मृत्युदर तथा प्रवासी प्रवृत्ति पर वातावरण का प्रभाव पड़ता है। दुनिया की महत्वपूर्ण सभ्यताओं का जन्म एवं विकास संतुलित जलवायु के कारण ही हुआ और उनका विनाश असंतुलित जलवायु के कारण हुआ। अतः पर्यावरण संरक्षण नितान्त आवश्यक है।

सरकार ने पर्यावरण संरक्षण के लिए विशेष नीति अपनाई है, संविधान के अनुच्छेद 48-क में संरक्षण को नीति निर्देशक तत्वों के रूप में सम्मिलित किया गया है तथा यह अभिलिखित किया गया है कि “राज्य देश के पर्यावरण की सुरक्षा तथा उनमें सुधार करने का और वन एवं वन्य जीवों की रक्षा का प्रयास करेगा।” इसी प्रकार संविधान के अनुच्छेद 51-क में पर्यावरण संरक्षण को नागरिकों का मूल कर्त्तव्य मानते हुए यह प्रावधान किया गया है कि “भारत के प्रत्येक नागरिक का यह कर्त्तव्य होगा कि वह प्राकृतिक पर्यावरण की जिसके अन्तर्गत वन, झील, नदी और वन्य जीव हैं, रक्षा करें और उनका संवर्द्धन करें तथा प्राणी मात्र के प्रति दया भाव रखें।”

 

17. विश्व पर्यावरण दिवस (World Environment Day)

 

विश्व पर्यावरण दिवस प्रत्येक वर्ष 5 जून को बेहतर भविष्य के लिए पर्यावरण को सुरक्षित, स्वस्थ और सुनिश्चित बनाने के लिए नई और प्रभावी योजनाओं को लागू करने के द्वारा पर्यावरण मुद्दों को सुलझाने के लिए मनाया जाता है। इसकी घोषणा 1972 में संयुक्त राष्ट्र महासभा के द्वारा पर्यावरण पर विशेष सम्मेलन ‘स्टॉकहोम मानव पर्यावरण सम्मेलन’ के उ‌द्घाटन पर हुई थी। यह पूरे संसार के लोगों के बीच में पर्यावरण के बारे में जागरुकता फैलाने के साथ ही पृथ्वी पर साफ और सुन्दर पर्यावरण के सन्दर्भ में सक्रिय गतिविधियों के लिए लोगों को प्रोत्साहित और प्रेरित करने के उद्देश्य से हर साल मनाया जाता है। यह साल के बड़े उत्सव के रुप में बहुत सी तैयारियों के साथ मनाया जाता है, जिसके दौरान राजनीतिक और सार्वजनिक क्रियाओं में वृद्धि होती है।

 

विश्व पर्यावरण दिवस (डब्ल्यू.ई.डी) की स्थापना इस ग्रह से सभी पर्यावरण संबंधी मुद्दों को हटाने और इस ग्रह को वास्तव में सुन्दर बनाने के लिए विभिन्न योजनाओं, एजेंडों और उद्देश्यों के साथ हुई है। पर्यावरण संबंधी समस्याओं पर ध्यान केन्द्रित करने और पर्यावरण के मुद्दों पर लोगों को एक चेहरा प्रदान करने के लिए पर्यावरण के लिए इस विशेष कार्यक्रम की स्थापना करना आवश्यक था। यह समारोह स्वस्थ्य जीवन के लिए स्वस्थ वातावरण के महत्व को समझने – के साथ ही विश्वभर में पर्यावरण के अनुकूल विकास को निश्चित करने के लिए लोगों को सक्रिय प्रतिनिधि के रुप में प्रेरित करने में हमारी मदद करता है। यह लोगों के सामान्य सूझ को फैलाता है कि, सभी राष्ट्रों और लोगों के सुरक्षित और अधिक समृद्धशाली भविष्य की उपलब्धता के लिए पर्यावरण मुद्दों के प्रति अपने व्यवहार में बदलाव के लिए यह आवश्यक है।

 

विश्व पर्यावरण दिवस का संचालन संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूएनईपी) के द्वारा किया जाता है। इसका मुख्यालय नैरोबी, केन्या में है, हालांकि, यह विश्वभर के लगभग 100 से भी अधिक देशों में मनाया जाता है। इसकी स्थापना 1972 में हुई थी, तथापि, इसे सबसे पहले वर्ष 1973 में मनाया गया था। इसका सम्मेलन प्रत्येक वर्ष अलग-अलग शहरों के द्वारा (जिसे मेजबान देश भी कहा जाता है) अलग थीम या विषय के साथ किया जाता है। यह लोगों के अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग के माध्यम से मनाया जाता है। 2016 के विश्व पर्यावरण दिवस का विषय या थीम जीवन के लिए वन्यजीवन में गैरकानूनी व्यापार के खिलाफ संघर्ष’ था, जिसकी मेजबानी अंगोला देश के द्वारा की गई थी। यापार के खिलाफ संघर्ष’ था, जिसकी

 

इस सम्मेलन का उद्देश्य सभी देशों के लोगों को एक साथ लाकर जलवायु परिवर्तन के साथ मुकाबला करने और जंगलों के प्रबंध को सुधारने के लिए समझौता करना था। यह बहुत सी क्रियाओं, जैसे-वृक्षारोपण, पर्यावरण सुरक्षा से संबंधित विषयों पर विद्यार्थियों के द्वारा सांस्कृतिक कार्यक्रम, कला प्रदर्शनी, चित्रकला प्रतियोगिता, प्रश्नोत्तरी प्रतियोगिता, वाद-विवाद, व्याख्यान, निबंध लेखन, भाषण आदि के साथ मनाया जाता है। युवाओं को पृथ्वी पर सुरक्षित भविष्य के लिए पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन के मुद्दों पर प्रोत्साहित करने के लिए ‘निश्चित योजना प्रबंध के संदर्भ में’ कार्यशालाओं का भी आयोजित किया जाता है।

18. नैनो टेक्नोलॉजी (Nano Technology)

 

‘नैनो’ शब्द ग्रीक भाषा के ‘नैनोज’ से बना जिसका अर्थ होता है-“बौना” लेकिन विज्ञान की अन्तर्राष्ट्रीय मापन प्रणाली के अन्तर्गत ‘नैना’ से तात्पर्य एक अरबवें भाग से होता है। जैसे एक मीटर का एक अरबवाँ भाग एक नैनोमीटर कहलाता है।

 

वैज्ञानिक नैनो स्तर पर ही सूक्ष्म युक्तियों के निर्माण की दिशा में प्रयासरत है क्योंकि स्थल स्तर से सूक्ष्म स्तर तक जाने में पदार्थों के गुण में परिवर्तन आ जाता है। पदार्थों के स्थूल गुण का परमाण्विक गुण में परिवर्तन नैनोमीटर स्तर ही होगा। इस स्तर पर परमाणु cluster का निर्माण करते हैं। इस प्रकार के बने clusters को नैनोकण, क्यूकण, ववाण्टम डॉट, कृत्रिम परमाणु आदि कहते हैं। नैनो कणों से बने पदार्थ को नैनो पदार्थ कहते हैं।

 

नैनो विज्ञान में सबसे बड़ी समस्या परमाणु को देखने की है। अतः वैज्ञानिकों ने विशेष प्रकार के सूक्ष्मदर्शी बनाये हैं जिनका नाम ‘स्केनिंग टनलिंग माइक्रोस्कोप’ दिया गया है। इस सूक्ष्मदर्शी को 1981 में जर्ड के बिनिंग तथा हेनरिक रोहटर ने बनाया था जिसके लिए 1986 में उन्हें नोबल पुरस्कार दिया गया।

 

यह बहुत ही उपयोगी सूक्ष्मदर्शी है। इससे अणुओं और परमाणुओं को न केवल देखा जा सकता है बल्कि इसकी मदद से परमाणु को एक जगह से उठाकर दूसरी जगह पर रखा जाना भी संभव हो गया है। इस तरह नैनो संरचनाओं की दृष्टि करने में यह सूक्ष्मदर्शी बहुत कारगर सिद्ध हो सकता है। इसके अलावा एक और माइक्रोस्कोप का निर्माण किया गया है जिसे एटॉमिक फोर्स माइक्रोस्कोप कहते हैं। इसकी सहायता से चित्र भी लिया जा सकता है और नैनो संरचनाओं की सृष्टि करने में भी यह मददगार है।

 

19. ग्लोबल वार्मिंग

 

अथवा, वैश्विक उष्णता (भूमंडलीय ताप में वृद्धि)

 

57% तक ग्लोबल वार्मिंग कार्बन डाइऑक्साइड गैस के कारण होती है।

 

ग्लोबल वार्मिंग में 25% तक की भागीदारी क्लोरोफ्लुओरो कार्बन यौगिकों (CFCs) की है।

 

मेथेन गैस के कारण लगभग 12% तक ग्लोबल वार्मिंग और नाइट्रोजन के ऑक्साइडों के कारण लगभग 6% तक ग्लोबल वार्मिंग होती है।

 

ग्लोबल वार्मिंग, अर्थात् भूमंडल के ताप में वृद्धि की प्रक्रिया यूरोप में औद्योगिक क्रांति के बाद शुरू हुई।

 

वर्तमान में जीवमंडल पूर्व औद्योगिक काल की तुलना में 0.6°C अधिक उष्ण है।

 

ग्लोबल वार्मिंग का प्रभाव ग्लोबल वार्मिंग के कारण बाढ़, सूखा जैसी गंभीर प्राकृतिक आपदाएँ आएँगी। इससे जीवमंडल की जलावायु प्रभावित होगी। इसका मानव जीवन और मानव जनसंख्या पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा।

 

भोजन की कमी एक गंभीर समस्या का रूप धारण कर लेगी, क्योंकि ग्लोबल वार्मिंग का खाद्यान्न उत्पादन और संपूर्ण कृषि पर अत्यधिक प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा।

 

इसका जलीय और स्थलीय दोनों प्रकार के जीवों पर अत्यधिक प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। अतः अब यह उचित समय है जबकि विश्व समुदाय द्वारा ग्लोबल वार्मिंग की विकरालता से बचने के लिए सभी स्तर पर गंभीर प्रयास आरंभ किए जाएँ।

 

20. जैव-विविधता (Biodiversity)

 

सामान्यतः जैव विविधता (Biodiversity) को विज्ञान की क्लिष्ट शब्दावली में परिभाषित करना कठिन प्रतीत होता है। फिर भी “किसी स्थान, प्रदेश या देश के नैसर्गिक परिवेश में पाये. जाने वाले जीव-जन्तुओं एवं पेड़-पौधों की प्रजातियों को सामूहिक रूप से उस स्थान विशेष की जैव विविधता कहा जाता है।”

22. सूचना का अधिकार अथवा, जनसूचना अधिनियम, 2005

 

सरकार और अधिकारियों के कामकाज में पारदर्शिता लाने और भ्रष्टाचार को नियंत्रित करने के उद्देश्य से संसद द्वारा पारित ऐतिहासिक सूचना पाने का अधिकार का कानून 12 अक्टूबर, 2005 से देश में लांगू हो गया। इस कानून के अंतर्गत जीवन और स्वतंत्रता से जुड़े विषय की सूचना पाने के आवेदनों पर अधिकारियों को 48 घंटे के भीतर उत्तर देना होगा।

 

विश्व में भारत ऐसा 55 वाँ देश बन गया है, जिसकी जनता को सरकार से सूचना पाने का अधिकार दिया गया है। इस कानून का उद्देश्य सरकार में विभिन्न स्तरों में व्याप्त भ्रष्टाचार और अकुशलता को नियंत्रित करना है। इस अधिनियम के अंतर्गत केन्द्र और प्रदेश के प्रशासनों के अलावा पंचायतों, स्थानीय निकाय और सरकार से धन पाने वाले गैर सरकारी संगठन भी आयेंगे। यह अधिनियिम जम्मू-कश्मीर छोड़कर सारे देश में लागू हो गया है। अधिनियम के अंतर्गत केन्द्र को केन्द्रीय सूचना आयोग गठित करना होगा। इस आयोग के एक मुख्य सूचना आयुक्त के अलावा अधिक से अधिक दस केन्द्रीय सूचना आयुक्त होंगे।

 

प्रधानमंत्री की अध्यक्षता करने वाली एक समिति की सिफारिश पर राष्ट्रपति मुख्य सूचना आयुक्त और अन्य सूचना आयुक्तों की नियुक्ति करेंगे। इस समिति के अध्यक्ष स्वयं प्रधानमंत्री होंगे। इसके सदस्यों में लोकसभा में विपक्ष के नेता प्रधानमंत्री द्वारा मनोनीत केन्द्रीय मंत्रिमंडल का एक मंत्री होगा। इस सूचना आयोग के आम कामकाज की देखरेख, दिशा-निर्देश और प्रबंधन जैसे मामलों की शक्तियाँ मुख्य सूचना आयुक्त के पास होंगी, जिसे अन्य सूचना आयुक्त मदद करेंगे। मुख्य सूचना आयुक्त के रूप में जम्मू कश्मीर के अवकाश प्राप्त वरिष्ठ आई० ए० एस० अधिकारी वजाहत हबीबुल्ला को देश का प्रथम मुख्य सूचना आयुक्त नियुक्त किया गया है।

 

देश में सूचना के अधिकार का कानून लागू होने के साथ ही अब देशवासियों को किसी विभाग, केन्द्र अथवा परियोजना से जानकारी प्राप्त करने का अधिकार मिल गया है। एक पृष्ठ की सूचना के लिए आवेदनकर्ता को मात्र 12 रुपये व्यय करने होंगे जिसमें 10 रु० आवेदन शुल्क भी शामिल है। लेकिन यह आवश्यक नहीं है कि सारी सूचनायें शुल्क अदा करने पर मिल ही जायेंगी क्योंकि इस कानून में देश की एकता, अखंडता और सुरक्षा सहित कई विशेष परिस्थितियों में ऐसी सूचना उपलब्ध नहीं कराने की छूट है।

 

23. आपदाओं का आर्थिक पहलू

 

आपदाओं का आर्थिक पहलू अत्यंत महत्वपूर्ण और जटिल होता है, जो समाज और अर्थव्यवस्था पर गहरे प्रभाव डालता है। आपदाएँ-चाहे वे प्राकृतिक हों जैसे भूकंप, बाढ़, तूफान या मानव निर्मित हों जैसे युद्ध, प्रदूषण विभिन्न आर्थिक चुनौतियों को जन्म देती हैं।

पहला पहलू है सीधा आर्थिक नुकसान, जिसमें बुनियादी ढाँचे, आवास और उद्योगों की क्षति शामिल होती है। उदाहरण के लिए भूकंप से इमारतें ढह सकती हैं, बाढ़ से फसलें नष्ट हो सकती है |

 

24. वन संरक्षण

 

पिछली कई शताब्दियों से जनसंख्या वृद्धि के साथ-साथ मानव द्वारा वनों की कटाई अधि क मात्रा में होती रही है। वनों को काटकर कृषि के लिये भूमि साफ की जा रही है। मकान बनाने के लिये, पुलों और नावों के लिये, घरेलू और कारखानों के ईंधन के लिये, पशु पालन के लिये तथा औद्योगिक निर्माण के लिये प्रत्येक देश में वन काटे जाते हैं।

 

वनों की अत्यधिक कटाई (deforestation) के चार मुख्य दुष्परिणाम हो रहे हैं-

 

(1) वनों के अधिक कटने से भूस्खलन (land sliding) और भूमि कटान तथा मृदा अपरदन (soil erosion) हो रहा है। इससे मानव निबास की भूमि कम होती जा रही है, कृषि करने की भूमि कम होती जा रही है। कृषि के उत्पादनों के लिये मिट्टियों की उर्वर शक्ति घटती जा रही है।

 

(2) बाढ़ों का प्रकोप बढ़ता जा रहा है। इससे जन-धन का ह्रास बढ़ रहा है। मानवीय बस्तियों के बढ़ने के साथ पशुधन और मनुष्यों की भी क्षति हो रही है।

 

(3) जो लकड़ी निर्माण उद्योगों में कागज की लुगदी, नकली रेशम, प्लास्टिक, आदि के लिये कच्चे मालों (raw materials) की तरह प्रयुक्त होती है, वह दिनों-दिन कम होती जा रही है। वनों से प्राप्त होने वाले अन्य कच्चे मालों में भी दिनों-दिन कमी होती जा रही है, जबकि इन कच्चे मालों की आवश्यकता प्रतिदिन बढ़ती जा रही है।

 

(4) वनों के द्वारा पृथ्वी की जलवायु स्वास्थ्यवर्धक रहती है। वनों के अधिक काटने से मानवीय स्वास्थ्य के लियं उपयुक्त जलवायु नहीं मिलेगी। महामारी जैसे रोग बढ़ेंगे और मानवीय स्वास्थ्य खराब होता जायेगा।

 

अन्तर्राष्ट्रीय संस्थाओं ने मानवीयं जगत, जन्तु जगत और वनस्पति जगत के इस सहजीव सन्तुलन (symbiotic ecologic balance) को नष्ट होता हुआ देखकर, अब इन जीवधारी संसाधनों (living resources) के समुचित विकास, सन्तुलन और संरक्षण पर चल देना आरम्भ कर दिया है।

Confirm Question Pepper By Madhav sir 

 

Q.!. आपदा से क्या तात्पर्य है? आपदा के प्रकारों का विवेचन करें। (What is meant by disaster? Describe the different types of kinds or disaster.) Ans. हिंदी का ‘आपदा’ शब्द अंग्रेजी के Disaster का पर्याय है। Disaster फ्रेंच भाषा

 

के Disaster से बना है, जिसका अर्थ है ‘बुरा तारा’। अंग्रेजी में Disaster के ही तुल्य अन्य शब्द हैं Hazard, Calamity, Risk, Peril आदि। हिंदी में भी आपदा के तुल्य अन्य कई शब्द हैं; यथा-आपत्ति (आफत), विपत्ति, विपदा, प्रकोप, महासंकट, संकट, खतरा आदि। किंतु चाहे अंग्रेजी हो या हिंदी, इन विभिन्न शब्दों में कुछ-न-कुछ भिन्नता है, जो परिमाण या उग्रता को समाहित किए हुए हैं और वे ‘दैव योग’ से जुड़े हुए हैं। आपदा ऐसी घटना है, जो सामान्य स्थितियों को भंग करके इस हद तक कष्टों को उत्पन्न करती है कि प्रभावित समुदाय की सहन-शक्ति के परे हो जाती है, जिससे बाह्य सहायता की जरूरत पड़ती है।

 

आपदा प्रबंधन बिल 2005 में आपदा की परिभाषा निम्नवत् है-” आपदा महाविनाश, कोई दुर्घटना, कोई गंभीर घटना, जिसमें तमाम जानें जाएँ, मनुष्यों को यातनाएँ सहनी पड़ें, उनकी संपत्ति को क्षति पहुँचे, पर्यावरण बिगड़े और लोगों या समुदाय के सामान्य कार्य-कलापों में बाधा पड़े।” आपदा प्राकृतिक कारणों से या मानवकृत कारणों या दुघर्टना या लापरवाही से उत्पन्न हो सकती है। इस बिल में Disaster . के लिए Calamity शब्द भी आया है। किसी भी आपदा के चार लक्षण बताए गए हैं। ये हैं-

 

1. सामान्य जीवन का अस्त-व्यस्त हो जाना। यह आकस्मिक तथा इतना व्यापक होता है कि इसका प्रभाव दीर्घकाल तक अनुभव किया जाता है।

 

2: शारीरिक व मानसिक क्षतियाँ-जान-माल की क्षतियाँ तथा मनोवैज्ञानिक प्रभाव।

 

3. घरों, इमारतों, यातायात के साधनों का क्षतिग्रस्त होना, परिणामस्वरूप नाना प्रकार की कठिनाइयाँ उपस्थित होना।

 

4. एकाएक भोजन, वस्त्र, आश्रय, चिकित्सीय तथा सामाजिक सहायता की आवश्यकता आ पड़ना। आपदाएँ दो प्रकार की हो सकती हैं- (1) प्राथमिक (Primary) तथा (2) द्वितीयक (Secondary)

 

-प्राथमिक आपदाएँ: प्राथमिक आपदाओं का संबंध जल, स्थल तथा वायु तीनों से होता है-

 

वर्षा, बाढ़ें, लहरें, सुनामी आदि जल से संबद्ध आपदाएँ हैं।

 

भूस्खलन, अपरदन, नदी मार्ग परिवर्तन, समुद्र द्वारा अतिक्रमण-ये स्थल संबंधी आपदाएँ हैं। चक्रवात, झंझा, हरीकेन आदि वायु से संबंधित आपदाएँ हैं।

 

द्वितीयक आपदाएँ : प्राथमिक आपदाओं के फलस्वरूप जो क्षतियाँ होती हैं और जिनका कुप्रभाव दीर्घकाल तक अनुभव किया जाता है, वे द्वितीयक आपदाएँ हैं; यथा स्वास्थ्य खतरे. खाद्य आपूर्ति में बाधा, आवासों का विनाश, आर्थिक क्षतियाँ, जलापूर्ति का विध्वंस, क्षरण एवं भूमि-विनाश तथा दाय का विनाश

 

किंतु आपदाओं का एक अन्य वर्गीकरण भी है, जो अधिक प्रचलित है। इसमें आपदाओं को दो वर्गों में रखा जाता है

 

(i) प्राकृतिक आपदाएँ (Natural Disasters): ये व आपदाएँ हैं, जो किसी एक प्राकृतिक कारण या कारणों से उत्पन्न होती हैं और जिनसे बहुत बड़ी संख्या में मनुष्य एवं पशु-पक्षी मरते – या घायल होते हैं या घर-वार से रहित हो जाते हैं, जिनसे पर्यावरण को गंभीर क्षति पहुँचती है। यथा भूकंप, बाढ़, चक्रवात तथा सुनामी। सूखा को भी प्राकृतिक आपदा भानते हैं, क्योंकि वर्षा के अभाव से यह उत्पन्न होती है। प्राकृतिक आपदाएँ भौतिक पर्यावरण के वं तत्व हैं, जो मनुष्य के लिए हानिकर होते हैं और ऐसी शक्तियों द्वारा उत्पन्न होते हैं, जो मनुष्य के लिए बाहरी हैं।

Q.2. चक्रवात किसे कहते हैं? चक्रवातों के कारण और प्रबंधन के उपाय बतायें। (What are cyclones? Discuss their causes and measure to manage cyclone effects.)

 

Ans. मौसमीय प्रकोप तथा आपदाएँ वायुमण्डलीय घटनाओं का प्रतिफल होते हैं। इसी कारण उन्हें वायुमण्डलीय प्रकोप या आपदा कहा जाता है। मौसम के अस्थिर पहलुओं का सीधा सम्बन्ध वायुमण्डलीय चरम घटनाओं, प्रकोपों तथा आपदाओं से होता है जिनमें प्रमुख रूप से वायुमण्डलीय विक्षोभ सम्मिलित होते हैं।

 

चक्रवात वायु की वह राशि है जिसकी समदाब रेखाएँ गोलाकार या अण्डाकार होती हैं एवं जिसके मध्य में न्यून वायुदाब होता है तथा बाहर की ओर यह वायु दबाव बढ़ता जाता है।

 

पी. लेक के अनुसार, “चक्रवात उस कम भार वाले क्षेत्र का नाम है जो कि चारों ओर से सामान्यतया अण्डाकार आकृति की वायुदाब रेखाओं से घिरा होता है।”

 

इसी प्रकार जब कोई वायु राशि किसी न्यून वायुदाब की ओर चक्राकर रूप में प्रवाहित होती है तो वह चक्रवात के रूप में जानी जाती है।

 

सामान्यतया चक्रवात की निम्नलिखित विशेषताएँ होती हैं-

 

1. चक्रवात का समभार रेखाओं की आकृति. अण्डाकार, गोलाकार अथवा V आकार की होती है।

 

2. केन्द्र में सबसे कम वायुदाब होता है तथा बाहर की ओर जाने पर क्रमशः वायुदाब में वृद्धि होती जाती है।

 

3. इन चक्रवातों में वायु बाहर से केन्द्र की ओर चलती है। पृथ्वी की दैनिक घूर्णन गति से उत्पन्न कोरिओलिस बल के प्रभाव से चक्रवात में अन्दर की ओर चलने वाली हवाएँ समदाब रेखाओं को न्यूनकोण पर काटती हुई चलती हैं, लेकिन फैरल के नियम के अनुसार उत्तरी गोलार्द्ध में वायु चलने की दिशा वामावर्त (Anticlockwise) तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में वायु चलने की दिशा दक्षिणावर्त (Clockwise) हो जाती है।

 

4. चक्रवातों में वायु लम्बवत् रूप में ऊपर उठती है तथा उपयुक्त दशाएँ मिलने पर वर्षा करती है।

 

5. स्थायी हवाओं में विशेष रूप से व्यापारिक हवाओं तथा पछुआ. हवाओं में चक्रवात भली-भाँति विकसित होते हैं और प्रायः अस्थिर होते हैं।

 

6. सामान्यतया चक्रवात के दक्षिणी भाग में वायु का तापमान अधिक रहता है जबकि उत्तरी भाग की वायु ठण्डी होती है।

 

उष्ण कटिबन्ध में उत्पन्न न्यून वायुदाब वाले उग्र मौसम तन्त्र उष्ण कटिबन्धीय चक्रवात – कहलाते हैं। ये चक्रवात कर्क रेखा तथा मकर रेखा के मध्य क्षेत्र में मिलते हैं। शीतोष्ण कटिबन्धीय चक्रवातों की तरह इन चक्रवातों की केवल एक ही रूप और संरचना नहीं होती है। विभिन्न स्थानों पर इनके रूप, आकार, गति तथा मौसमीय तत्वों में विभिन्नता मिलती है।

 

चक्रवात के कारण चक्रवात, जिसे साइक्लोन, हरीकेन या टाइफून के रूप में भी जाना जाता है, एक बड़े पैमाने पर वायुमंडलीय विक्षोभ है जो गर्म, नम हवा के उठाव और संवहनी गतिविधियों के परिणामस्वरूप उत्पन्न होता है। चक्रवात के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं :

 

1. गर्म समुद्री सतह तापमान (Warm Sea Surface Temperature) : चक्रवात के निर्माण के लिए, समुद्र की सतह का तापमान सामान्यतः 26.5 डिग्री सेल्सियस या उससे अधिक होती हैं |

 

Q. 03. राष्ट्रीय आपदा मोचन बल (NDRF) की संरचना एवं कार्यों का मूल्यांकन करें। (Evaluate the structure and functions of the National Disaster Response Force.)

 

Ans. राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल (NDRF) भारत में प्राकृतिक और मानव निर्मित आपदाओं के दौरान त्वरित और प्रभावी प्रतिक्रिया के लिए एक प्रमुख एजेंसी है। इसका गठन 2006 में किया गया था और तब से यह आपदाओं से निपटने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है।

 

NDRF की संरचना NDRF का गठन और संचालन राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) के अधीन होता है। NDRF की संरचना को समझने के लिए इसके विभिन्न घटकों पर विचार करना आवश्यक है:

 

1. बटालियन : NDRF में कुल 12 बटालियन हैं, जिनमें से प्रत्येक बटालियन में लगभग 1,149 कर्मी होते हैं। ये बटालियन अर्धसैनिक बलों जैसे कि BSF, CRPF, ITBP, CISF और SSB से गठित होती हैं। हर बटालियन को विभिन्न राज्यों में तैनात किया गया है ताकि आपातकालीन स्थिति में त्वरित प्रतिक्रिया सुनिश्चित की जा सके।

 

2. क्षेत्रीय तैनाती : हर बटालियन को एक विशिष्ट क्षेत्र में तैनात किया जाता है ताकि वे स्थानीय भौगोलिक और जलवायु परिस्थितियों को समझ सकें और तदनुसार अपनी तैयारी कर सकें। यह क्षेत्रीय तैनाती सुनिश्चित करती है कि आपदा प्रभावित क्षेत्रों में त्वरित और प्रभावी प्रतिक्रिया दी जा सके।

 

3. विशेष प्रशिक्षण और उपकरण : NDRF के कर्मियों को विशेष प्रशिक्षण दिया जाता

 

है जिसमें खोज और बचाव, चिकित्सा सहायता और आपदा प्रबंधन के अन्य महत्वपूर्ण पहलू शामिल हैं। इसके अलावा, NDRF के पास अत्याधुनिक उपकरण और प्रौद्योगिकी होती है जो आपदा प्रतिक्रिया कार्यों को प्रभावी ढंग से संचालित करने में मदद करती है।…

 

NDRF के कार्य NDRF का मुख्य उद्देश्य आपदाओं के दौरान राहत और बचाव कार्यों, को संचालित करना है। इसके अलावा, इसके अन्य प्रमुख कार्य निम्नलिखित हैं:

 

1. खोज और बचाव कार्य: NDRF के प्रमुख कार्यों में खोज और बचाव कार्य शामिल

 

हैं। भूकंप, बाढ़, चक्रवात, भूस्खलन जैसी आपदाओं के दौरान NDRF त्वरित प्रतिक्रिया देता है और प्रभावित क्षेत्रों में फंसे लोगों को सुरक्षित बाहर निकालता है।

 

2. चिकित्सा सहायता: आपदाओं के दौरान, NDRF चिकित्सा सहायता भी प्रदान करता है। इसमें घायल लोगों को प्राथमिक चिकित्सा, चिकित्सा निकासी और अस्पतालों में भर्ती करना शामिल है। NDRF के पास प्रशिक्षित मेडिकल टीम और आवश्यक चिकित्सा उपकरण होते हैं।

 

3. आपदा प्रबंधन शिक्षा और जागरूकता : NDRF आपदा प्रबंधन शिक्षा और जागरूकता फैलाने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह स्कूलों, कॉलेजों और समुदायों में जागरूकता कार्यक्रम आयोजित करता है ताकि लोग आपदाओं के लिए तैयार रहें और आपदाओं के दौरान सही कदम उठाएं।

 

Q.4. पुनर्वास से आप क्या समझते हैं? इसकी अवधारणा और प्रकारों की चर्चा कीजिए। (What do you understand by rehabilitation? Explain its concept and various types.)

 

Ans. आपदा के पश्चात् किए गए प्रयासों का सबसे महत्त्वपूर्ण पहलू है पीड़ित समुदायों का पुनर्वास। पुनर्वास का अभिप्राय है, आपदा के बाद बुनियादी सेवाओं को पुनः चालू करना, रोगियों की मदद करना, आसपास हुई भौतिक क्षति की भरपाई करना और मनोवैज्ञानिक सहारा प्रदान करने, सामाजिक सुरक्षा तथा रोगियों को आराम प्रदान करने के लिए आर्थिक कार्यों को पुनः आरंभ करने के लिए आवश्यक कार्रवाई करना। यह कार्रवाई प्रभावित लोगों को जीवन के नियमित सामान्य कार्य पुनः आरंभ करने के लिए की जाती है। इसे दीर्घकालीन विकास और वर्तमान राहत्त के बीच की स्थिति के रूप में समझा जा सकता है। इस प्रकार पुनर्वास का मुख्य

 

उद्देश्य रोगियों को सामान्य जीवन में पुनः प्रवृत्त करना होता है। किसी भी आपदा के होने के बाद उपलब्ध पुनर्वास को इस प्रकार विभाजित किया जाता है-(1) भौतिक पुनर्वास : भौतिक पुनर्वास के अंतर्गत हम मकान, भवन, रेल मार्ग, सड़कें,

 

जल आपूर्ति, संचार नेटवर्क संबंधी जैसे भौतिक साधनों के पुनर्निर्माण पर ध्यान केंद्रित करते हैं। इसमें पर्यावरण संरक्षण, रोजगार सृजन, नौकरियों की उत्पत्ति, जल प्रवाह प्रबंध, वैकल्पिक फसल उगाने की तकनीकें, नहर सिंचाई संबंधी कार्य नीतियों को भी शामिल किया जाता है। पशुपालन, कृषि, खेती के उपकरण, बाढ़ के समतल जोन बनाना, भू-उपयोग, योजना एवं मकानों की पुनः फिटिंग (Retrofitting) करना भौतिक पुनर्वास के कुछ संबंधित अन्य कार्य है।

 

(2) सामाजिक पुनर्वास सामाजिक पुनर्वास का उद्देश्य दुखी व्यक्तियों को सहारा प्रदान करना है। इसमें निम्नलिखित गतिविधियाँ की जाती हैं-

 

(क) शैक्षणिक समितियाँ बनाई जाती हैं जो दुखी व्यक्तियों को नियमित रूप से परामर्श प्रदान करती हैं।

 

(ख) शैक्षणिक गतिविधियाँ संचालित करने के लिए व्यक्तियों की तलाश की जाती है तथा बच्चों को पुस्तकें और लेखन सामग्री दी जाती है।

 

(ग) शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य, तनाव प्रबंधन, पौष्टिकता और स्वच्छता आदि से संबंधित विभिन्न कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं।

 

(घ) सीमित अवधि के लिए दुखी व्यक्तियों के लिए देखभाल और वृद्धाश्रम सुविधा प्रदान की जाती है।

 

(ङ) बहुउद्देशीय सामुदायिक केंद्रों की स्थापना की जाती है और स्वयं सहायता समूहों (Self Help Groups) को बढ़ावा दिया जाता है।

 

(च) वृद्धों, महिलाओं और बस्ती जैसे दुखी व्यक्तियों के लिए स्वाभाविक वातावरण की तलाश की जाती है।

 

(3) आर्थिक पुनर्वास सामान्यतः समूचे क्षेत्र की आर्थिक स्थिति को फिर से आपदा पूर्व स्तर पर लाना आपदाग्रस्त क्षेत्रों के आर्थिक पुनर्वास का मुख्य ध्येय होता है। आपदा के कारण उत्पन्न आर्थिक हानि की प्रतिपूर्ति के लिए आर्थिक पुनर्वास की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। इसमें निम्नलिखित के आधार पर रोगियों को प्रतिपूर्ति प्रदान करने की कोशिश की जाती है-

 

(क) पीड़ित समूहों के वर्तमान और भावी खतरों एवं विवशताओं की व्यापक जाँच की जाती है।

 

(ख) वर्तमान आजीविका योजना और व्यवसाय की जाँच की जाती है।

 

(4) मनोवैज्ञानिक पुनर्वास मनोवैज्ञानिक पुनर्वास बहुत ही महत्त्वपूर्ण तथा संवेदनशील विषय है। आपदा के सदमे आघात का पीड़ित की मनोदशा से प्रत्यक्ष संबंध होता है। पीड़ित व्यक्तियों पर प्रायः कई प्रकार के शारीरिक और मानसिक दबाव होते हैं। आपदा से पीड़ित व्यक्ति विशिष्ट प्रकार की भावनात्मक अवस्थाओं से गुजरता है। मनोवैज्ञानिक पुनर्वास मीड़ित व्यक्ति की भावात्मक असंतुलन के साथ अनुकूलन के लिए उपचार पर ध्यान केंद्रित करता है।

 

 

 

 

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