Class 12th, hindi पाठ- 9 प्रगति और समाज SUBJECTIVE- प्रश्न उत्तर, inter hindi subjective- question answer

Class 12th, hindi पाठ- 9 प्रगति और समाज SUBJECTIVE- प्रश्न उत्तर, inter hindi subjective- question answer

 

हेलो दोस्तों आप सभी का स्वागत है इसमें पोस्ट दोस्तों आज के इस पोस्ट में आप जानने वाले हैं कक्षा 12 हिंदी 9 प्रगति और समाज का महत्वपूर्ण सब्जेक्टिव प्रश्न और उत्तर बता दी है।

सारांश भी दिया गया है -अगर आप इस आर्टिकल को पूरा पढ़ लेते हैं तो यह पाठ आपका पूरी तरह से तैयार हो जाएगा फिर आपको किताब पढ़ने की कोई जरूरत नहीं है। 

 

Class 12th, hindi पाठ- 9 प्रगति और समाज SUBJECTIVE- प्रश्न उत्तर, inter hindi subjective- question answer

 

09. प्रगीत और समाज| नामवर सिंह | निबंध

पाठ के सारांश

कविता संबंधित सामाजिक प्रश्न- कविता पर समाज का दबाव तीव्रता से महसूस किया जा रहा है। प्रगीत काव्य समाज शास्त्रीय વિશ્લેષણ સૌર સામાઽિ ારા > તિ સનસે તિન યુનૌતી રસાતા હૈ લેવિન પ્રીતધર્મી તિતાણં સામા યથાર્થ ી अभिव्यक्ति के लिए पर्याप्त नहीं समझी जाती है। आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने भी प्रबंधकाव्य को ही अपना आदर्श माना है। वे प्रगीत मुक्तकों को अधिक पसंद नहीं करते थे इसलिए आख्यानक काव्यों की रचना से संतोष व्यक्त करते थे।

मुक्तिबोध की कविताएं- नई कविता के अंदर आत्मपरक कविताओं की ऐसी प्रबल प्रवृत्ति थी जो या तो समाज निरपेक्ष थी या फिर जिसकी रामाजिक अर्थवता समिति थी। इसलिए व्यापक काव्य सिद्धांत की स्थापना के लिए मुक्तिबोध की कविताओं का समावेश आवश्यक था। लेकिन मुक्तिबोध ने केवल लंबी कविताएं ही नहीं लिखी उनकी अनेक कविताएं छोटी भी हैं जो कि कम सार्थक नहीं है मुक्तिबोध का समूचा काव्य मूलतः आत्मपरक हैं। खना विन्यास में कहीं वह पूर्णतः नाटयधर्मी है। कहीं नाटकीय का लाभ है कहीं બાગીય પ્રીત હૈ ૉર હી શુદ્ધ પ્રગીત કી હૈ મધ તથા ાતમા મુનિયોથી શહૈિંખો હીરો હિતા મે गति और ऊर्जा प्रदान करती है। IIĂપર પ્રમીત-પ પ્રચીત થી નારાથીં તંતી ઋતિોંતે સમાન ટી રાથાર્થ તમે પ્રતિધ્વનિત રતે હૈં ઃ પ્રમીતથીં

कविता में वस्तुगत यथार्थ अपनी चरम आत्मपरकता के रूप में ही व्यक्त होता है। त्रिलोचन तथा नागार्जुन का काव्य- त्रिलोचन ने कुछ चरित्र केंद्रित लंबी वर्णनात्मक कविताओं के अलावा ज्यादातर छोटे-छोटे गीत ही लिखे हैं। लेकिन जीवन जगत और प्रकृति के जितने रंग-बिरंगे चित्र त्रिलोचन के काव्य संसार में मिलते हैं वह अन्यत्र दुर्लभ है वही नागार्जुन की आक्रामक काव्य प्रतिभा के बीच आत्मपरक प्रगीतत्मक अभिव्यक्ति के क्षण कम ही आते हैं। लेकिन जब आते हैं तो उनकी विकट तीव्रता प्रगीतों के परिचय संसार को एक झटके में छिन्न-भिन्न कर देती है। प्रगीत काव्य के प्रसंग में मुक्ति को त्रिलोचन और नागार्जुन का उल्लेख एक नया प्रगीतधर्मी कवि- व्यक्तित्व है।

विभिन्न कवियों द्वारा प्रगीतों का निर्माण- यद्यपि हमारे साहित्य काव्योत्कर्ष के मानदंड प्रबंध काव्य के आधार पर बजे हैं। लेकिन

यहां की कविता का इतिहास मुख्यतः प्रगीत मुक्तकों का है। कबीर सूर मीरा नानक रैदास आदि संतों ने प्रायः दोहे तथा गेय पद ही

વિસને હૈં વિદ્યાપતિ તો હિંટી વગ પહતા તિ માના પ્રાણ તો ટિંટી હિા હા ઉદ્દેશ્ય ગીતોં સે હુા હૈ તો મળ્યા તો સા-સુથરી

प्रगीतात्मकता का यह उन्मेष भारतीय साहित्य की अभूतपूर्व घटना हैं।

प्रगीतात्मकता का दूसरा उन्मेष प्रगीतात्मकता का दूसरा उन्मेष रोमांटिक उत्थान के साथ हुआ इस रोमांटिक प्रभीतात्मकता के मूत में एक नया व्यक्तिवाद है। जहां समाज के बहिष्कार के द्वारा ही व्यक्ति अपने सामाजिकता प्रमाणित करता है। इन रोमांटिक प्रागीतों में आत्मीयता और ऐन्द्रियता कहीं अधिक है। इस दौरान राष्ट्रीयता संबंधी विचारों को काफी रूप देने वाले मैथिलीशरण गुप्त भी हुए। आलोचकों की दृष्टि में सच्चे अर्थों में प्रगीतात्मकता का आरंभ यही है। जिसका आधार हैं समाज के विरूद्ध व्यक्ति इस प्रकार

प्रगीतात्मकता का अर्थ हुआ एकांत संगीत अथवा अकेले कंठ की पुकार लेकिन आगे चलकर स्वयं व्यक्ति के अंदर ही अंतः संघर्ष पैदा हुआ।

विद्रोह का स्थान- आत्मविडंबना ने ले लिया और आत्मपरकता कदाचित बढ़ी।

સમાગ પર ાધારિત ગ. પ્લેન તે વા; તુક લોો ને બંનતા ી સ્થિતિ બે ગ ગ ાર વનાના ખિસસે વિતા નિતાંત समाजिक हो गई। इस कारण यह कवित्व से भी वंचित हो गई। फिर कुछ ही समय में नई कविता के अनेक कवियों ने हदयमत स्थितियों का वर्णन करना शुरू किया। इसके बाद एक दौर ऐसा आया जब अनेक कवि अपने अंदर का दरवाजा तोड़कर एकदम बाहर निकल आए और व्यवस्था के विरुद्ध के जुनून में उन्होंने ढेर सारी सामाजिक कविताएं लिख डाली लेकिन यह दौर जल्दी समाप्त हो गया।

नई प्रणीतात्मकता का उभार युवा पीढ़ी के कवियों द्वारा कविता के क्षेत्र में कुछ और परिवर्तन हुए। यह एक नई प्रगीतात्मकता का • भार है। आज कवि को अपने अंदर झांकने या बाहरी यथार्थ का सामना करने में कोई हिचक नहीं है। उसकी नजर हर छोटी से छोटी घटना स्थिति वस्तु आदि पर हैं। इसी प्रकार उसने अपने अंदर आने वाली छोटी से छोटी लहर को पकड़कर शब्दों में बांध लेने का उत्साह भी है कभी अपने और समाज के बीच के रिश्ते को साधने की कोशिश कर रहा है। लेकिन यह रोमांटिक गीतों को समाप्त करने या वैयक्तिक कविता को बढ़ाने का प्रयास नहीं है अपितु इन कविताओं से यह बात पुष्ट होती जा रही हैं मिनकथन में अतिकथन से अधिक शक्ति होती है और कभी-कभी ठंडे स्वर का प्रभाव गर्म होता है यह एक नए ढंग की प्रगीतात्मकता के उभार का संकेत है।

 

सब्जेक्टिव-

1. आचार्य रामचंद्र शुक्ल के काव्य आदर्श क्या थे पाठ के आधार पर स्पष्ट करें ?

उत्तर- आचार्य रामचंद्र शुक्ल के काव्य सिद्धांत के आदर्श प्रबंध काव्य थे। प्रबंध काव्य में मानव जीवन का पूर्ण दृश्य होता है उसमें घटनाओं की संबंध श्रृंखला और स्वाभाविक क्रम से ठीक- ठाक निर्वाह के साथ हृदय को स्पर्श करने वाले उसे नावा भावों को रसाफक अनुभव करानेवाले प्रसंग होते हैं। यही नहीं प्रबंध काव्य में राष्ट्रीय प्रेम जातिय-भावना धर्म-प्रेम या आदर्श जीवन की प्रेरणा देना ही उसका उद्देश्य होता है। प्रबंध काव्य की कथा चुंकि यथार्थ जीवन पर आधारित होती है इससे उसमें असंभव और काल्पनिक कथा का चमत्कार नहीं बल्कि यथार्थ जीवन के विविध पक्षों का स्वभाविक और औचित्यपूर्ण चित्रण होता है। शुक्ल को सूरसागर इसलिए परी सीमित लगा क्योंकि वह गीतिकाव्य है। आधुनिक कविता से उन्हें शिकायत थी कि ‘कला कला के लिए की पुकार के कारण यूरोप में प्रगीत मुक्तकों का ही चलन अधिक देखकर यहां भी उसी का जमाना यह बताकर कहा जाने लगा कि अब ऐसी लंबी कविताएं पढ़ने की किसी को फुर्सत कहां जिनमें कुछ दतिवृत भी मिला रहता हो। इस प्रकार काव्य में जीवन की अनेक परिस्थितियों की ओर ले जाने वाले प्रसंगों या आख्यानों की उदभावना बंद सी हो गई।

शुक्ल के संतोष व्यक्त करने का कारण है कि प्रबंध काव्य में जीवन का पूरा चित्र खींचा जाता है कवि अपनी पूरी बात को प्रबलता के साथ कह पाता है यही कारण है कि रामचंद्र शुक्ल को काव्य में प्रबंध काव्य प्रिय लगता है।

2. कला कला के लिए सिद्धांत क्या है?

उत्तर- कला कला के लिए सिद्धांत का अर्थ है कि कला लोगों में कलात्मकता का भाव उत्पन्न करने के लिए है इसके द्वारा रस एवं माधुर्य की अनुभूति होती है। इसलिए प्रगीत मुक्तकों (लिरिक्स) की रचना का प्रचलन बढ़ा है। इसके लिए यह भी तर्क दिया जाता है कि अब लंबी कविताओं को पढ़ने तथा सुनने की फुर्सत किसी के पास नहीं है ऐसी कविता है जिसमें कुछ इतिवृत्त भी मिला रहता है उबाऊ होती है विशुद्ध काव्य की सामग्रियां आदि कविता का आनंद दे सकती है यह केवल प्रगीत मुक्तकों से ही संभव है।

3. प्रगीत को आप किस रूप में परिभाषित करेंगे? इसके बारे में क्या धारणा प्रचलित रही है?

उत्तर- अपनी वैयक्तिकता और आत्मपरकता के कारण “लिरिक” अथवा “प्रगीत” काव्य की कोटि में आती है। प्रगीतधर्मी कविताएं न तो सामाजिक यथार्थ की अभिव्यक्ति के लिए पर्याप्त समझी जाती है। न उनसे इसकी अपेक्षा की जाती है आधुनिक हिंदी कविता में गीति और मुक्तक के मिश्रण से नूतन भाव भूमि पर जो गीत लिखे जाते हैं उन्हें ही प्रगीत की संज्ञा दी जाती है। सामान्य समझ के अनुसार प्रगीतधर्मी कविता नितांत वैयक्तिक और आत्मपरक अनुभूतियों की अभिव्यक्ति मात्र है यह सामान्य धारणा है इसके विपरीत अब कुछ लोगों द्वारा यह भी कहा जाने लगा है कि अब ऐसी लंबी कविताएं जिसमें कुछ इतिवृत्त भी मिला रहता है इन्हें पढ़ने तथा सुनने की किसी को फुर्सत कहां है अर्थात नहीं है।

4. हिंदी की आधुनिक कविता की क्या विशेषताएं आलोचक ने बताई है?

उत्तर- हिंदी की आधुनिक कविता में नई प्रगीतात्मकता का उभार देखता है। वह देखता है आज के कवि को न तो अपने अंदर झांक कर देखने में संकोच हैं न बाहर के यथार्थ का सामना करने में हिचक अंदर न तो किसी और संदिग्ध विश्व दृष्टि का मजबूत खूंटा गाड़ने की जिद हैं और न बाहर की व्यवस्था को एक विराट पहाड़ के रूप में आंकने की हवस बाहर छोटी से छोटी घटना स्थिति वस्तु आदि पर नजर हैं और कोशिश है उसे अर्थ देने की इसी प्रकार बाहर की प्रतिक्रिया स्वरूप अंदर उठने वाली छोटी से छोटी लहर को भी पकड़ कर उसे शब्दों में बांध लेने का उत्साह हैं। एक नए स्तर पर कभी व्यक्तित्व अपने और समाज के बीच के रिश्ते को साधने की कोशिश कर रहा है और इस प्रक्रिया में जो व्यक्तित्व बनता दिखाई दे रहा है वह निश्चय ही नए ढंग की प्रगीतात्मकता के उभार का संकेत है।

> ऑब्जेक्टिव-

1. नामवर सिंह के गुरु कौन थे ?

उत्तर- हजारी प्रसाद द्विवेदी

2. नामवर सिंह ने बी.ए एवं एम.ए की शिक्षा कहां से प्राप्त की?

उत्तर- काशी हिंदू विश्वविद्यालय (BHU)

3. प्रगीत कैसा काव्य हैं ?

उत्तर- प्रबंध काव्य

4. दुनिया को हाथ की तरह गर्म और सुंदर होना चाहिए यह किस कवि की कविता का अंश है?

उत्तर- केदारनाथ सिंह

15. आचार्य रामचंद्र शुक्ल के काव्य का सिद्धांत का आदर्श कौन है ?

उत्तर- प्रबंध काव्य

6. सहर्ष स्वीकारा है कविता के रचयिता है?

उत्तर- मुक्तिबोध

7. सच्चे अर्थों में प्रगीतात्माकता का आधार क्या है ?

उत्तर- समाज के विरुद्ध व्यक्ति

8. नामवर सिंह को कविता के नए प्रतिमान पर साहित्य अकादमी पुरस्कार कब मिला ?

उत्तर- 1971

9. तन गई रीढ़ किसकी कविता है?

उत्तर- नागार्जुन

 

 

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