Class 12th, hindi पाठ- 11 हंसते हुए मेरा अकेलापन SUBJECTIVE- प्रश्न उत्तर, inter hindi subjective- question answer
हेलो दोस्तों स्वागत है आप सभी का इस नये आर्टिकल में दोस्तों आज की इस आर्टिकल में हम बात करने वाले हैं । कक्षा 12 हिंदी पाठ-11 हंसते हुए मेरा अकेलापन, का सभी महत्वपूर्ण सब्जेक्टिव प्रश्न सारांश सहित किताब पढ़ने की कोई जरूरत नहीं है ।
इस आर्टिकल को पढ़कर आप पूरी तरह से तैयारी कर सकते हैं।
Class 12th, hindi पाठ- 11 हंसते हुए मेरा अकेलापन SUBJECTIVE- प्रश्न उत्तर, inter hindi subjective- question answer
11. हंसते हुए मेरा अकेलापन|
मलयज भरतजी श्रीवास्तव
| डायरी
पाठ के सारांश
हंसते हुए मेरा अकेलापन शीर्षक डायरी मलयज की एक उत्कृष्ट रचना है। मलयज अत्यंत आत्मसजन किस्म के बौद्धिक व्यक्ति थे। डायरी लिखना मलयज के लिए जीवन जीने के कार्य जैसा था। यह डायरी मलयज के समय की उथल-पुथल और उनके निजी जीवन की तकलीफों बेचैनियों के साथ एक गहरा रिश्ता बनाते हैं। इस डायरी में एक औसत भारतीय लेखक के परिवेश को हम उसकी समस्त जटिलताओं में दे सकते हैं।
पाठ्य पुस्तक में प्रस्तुत डायरी के अंश की प्रथम डायरी में मलयज ने प्राकृतिक एवं मानव के बीच समन्वय स्थापित करने का प्रयास किया है। मिलिट्री की छावनी में वृक्ष काटे जा रहे हैं लेखक वृक्षों के एक गिरोह में उनकी एकात्मता का संकेत देता है वृक्षों का चित्रण करते हुए मलयज लिखते हैं वह जब बोलते हैं तब एक भाषा में गाते है तो एक भाषा में रोते हैं तब भी एक भाषा में लेखक ने जाड़े के मौसम में घने कोहरे का सजीव चित्र अपनी डायरी में प्रस्तुत किया है। साथ ही ऐसे ठंडे मौसम में भी कलाकार के हृदय में आग है लेकिन उसका दिमाग ठंडा है डायरी में लिखा हैं एक कलाकार के लिए यह निहायत जरूरी हैं कि उसमें आग हो और वह खुद ठंडा हो।
दूसरे दिन की डायरी में लेखक ने मनुष्य के जीवन की तुलना खेती की फसलों से की है मनुष्य का जीवन कौशल के समान बढ़ना एकता एवं कटता दिखाई देता है। तीसरे दिन की डायरी में लेखक ने चिट्ठी की उम्मीद में और चिट्ठी नहीं आने पर अपनी मनोदशा का वर्णन किया है। चिट्ठी नहीं आने पर एक अजीब सी बेवेंनी मन में आती हैं चौथी डायरी में लेखक ने लेखक बलभद्र ठाकुर नामक एक लेखक का चित्रण किया है और बताने का प्रयास किया है कि एक लेखक कितना सरल एवं मिलनसार ● होता है अपनी रचनाओं पर लेखक को गर्व होता है उसका सचित्र इस डायरी में प्रस्तुत है। कौसानी में कुछ दिनों तक लेखक •का प्रवास बड़ा ही आनंददायक रहा दो शिक्षकों का चित्रण उनके सहज एवं समाजिक स्वभाव को दिखाया गया है पांचवी • डायरी में भी लेखक ने कौसानी के प्राकृतिक एवं शांत वातावरण का चित्रण किया है।
• छठी डायरी में मलयज ने एक सेब बेचने वाली किशोरी का चित्रण बड़ी ही कुशलतापूर्वक किया है। किशोरी इतनी भोली थी कि इसे बेचने में उसका भोलापन परिलक्षित होता है सातवीं डायरी में मलयज यथार्थवादी दिखाई देते हैं उनके अनुसार मनुष्य यथार्थ को रखता भी हैं और यथार्थ को जीता भी हैं उनके अनुसार रखा हुआ यथार्थ भोगे हुए यथार्थ से अलग है। बाल बच्चे रखे हुए यथार्थ है। वे सांसारिक वस्तुओं का भोग करते हैं। मलयज ने लिखा हैं हर आदमी इस संसार को रचता है जिसमें वह जीता है और • भोगता है आदमी के होने की शर्त यह रचता जाता भोगा जाता संसार ही है। उनके अनुसार रचने और भोगने का रिश्ता एक द्वन्द्वात्मक रिश्ता है।
•आठवीं डायरी में लेखक ने शब्द एवं अर्थ के बीच निकटता का वर्णन किया है। लेखक का कहना हैं शब्द अधिक होने पर अर्थ कमने लगता है और अर्थ की अधिकता में शब्दों की कमी होने लगती है। अर्थात शब्द अर्थ में और अर्थ शब्द में बदले चले आते हैं नवीं डायरी में लेखक ने सुरक्षा पर अपना विचार व्यक्त किया है। व्यक्ति की सुरक्षा रोशनी में हो सकती हैं अंधेरे में नहीं अंधेरे में सिर्फ छिपा जा सकता है। सुरक्षा तो चुनौती को झेलने में ही है बचाने में नहीं अतः आक्रामक व्यक्ति ही अपनी सुरक्षा कर सकता है बचाव करने में व्यक्ति और सुरक्षित होता है तो उसी डायरी में लेखक ने रचना और दस्तावेज में भेद एवं दोनों में पारस्परिक संबंध की चर्चा की है लेखक के अनुसार दस्तावेज रखना का कच्चा माल है दस्तावेज रखना रूपी करेंसी के वास्तविक मूल्य प्रदान करने वाला मूलधन है ग्यारहवीं डायरी में लेखक ने मन में पैदा होने वाले डर का वर्णन किया है। लेखक अपने को भीतर से भरा हुआ व्यक्ति मानता है मन का हर तनाव पैदा करता हैं संशय पैदा करता है। किसी की प्रतीक्षा की घड़ी बीत जाने पर मन में डर पैदा होता है डर कई प्रकार के होते हैं मनुष्य जैसे जैसे जीवन रूपी समस्याओं से घिरता जाता
है उसके मन में डर की मात्रा भी बढ़ती जाती हैं।
अंतिम डायरी में लेखक ने जीवन में तनाव के प्रभाव का वर्णन किया है मनुष्य जीवन में संघर्षों का सामना करते समय तनाव से भरा रहता है।
इस प्रकार प्रस्तुत डायरी के अंश में मलयज ने अपने जीवन के संघर्षों एवं दुखों की ओर इशारा करते हुए मानव जीवन में पाए जाने वाली समस्याओं का चित्रण बड़ी ही कुशलता से किया है एक व्यक्ति को कितना खुला ईमानदार और विचारशील होना चाहिए इस भाव का सहज चित्रण लेखक ने अपने डायरी में प्रस्तुत किया है व्यक्ति के क्या दायित्व है और अपने दायित्व के प्रति कैसा लगा वह कैसी सान्निध्यता होनी चाहिए ये सारे भाव प्रस्तुत डायरी में स्पष्ट रूप से चित्रित हैं।
सब्जेक्टिव-
1. डायरी क्या है ?
उत्तर- डायरी किसी साहित्यकार या व्यक्ति द्वारा लिखित उसके महत्वपूर्ण दैनिक अनुभवों का ब्यौरा है | जिसे वह बड़ी ही सच्चाई के साथ लिखता है। डायरी से जहां हमें लेखक के समय कि • उथल-पुथल का पता चलता है तो वही उसकी निजी जीवन की कठिनाइयों का भी पता चलता है।
2. डायरी का लिखा जाना क्यों मुश्किल है ?
उत्तर- डायरी जीवन का दर्पण है। डायरी में शब्दों और अर्थों के बीच तटस्था कम रहती है। डायरी में व्यक्ति अपने मन की बातों को कागज पर उतारता है। वह अपने यथार्थ को अपने ढंग से अपने समझने योग्य शब्दों में लिखता है। डायरी खुद के लिए लिखी जाती है दूसरों के लिए नहीं डायरी लिखने में अपने भाव के अनुसार शब्द नहीं मिल पाते हैं यदि शब्दों का भंडार है भी तो उन शब्दों के लायक के भाव ही न होते हैं डायरी में मुक्ताकाश भी होता है तो सूक्ष्मता भी। शब्दार्थ और
भावार्थ के आंशिक मेल के कारण डायरी का लिखा जाना मुश्किल है।
3. किस तारीख की डायरी आपको सबसे प्रभावी लगी और क्यों?
उत्तर- 10 मई 1978 ईस्वी की डायरी अतुलनीय है। यह डायरी मुझे बड़ी प्रभावी नजर आती है इस डायरी में लेखक ने अपने यथार्थ के बारे में लिखा है। उन्होंने जीवन की सच्चाई उसे अपने को रूबरू बखूबी करवाया है उन्होंने इस डायरी में स्पष्टतः यह दिखलाया है कि मनुष्य यथार्थ को जीता भी है और इसका स्वीयता भी वह स्वयं ही है इसमें उन्होंने यह भी बताया है कि रखा हुआ यथार्थ भोगे हुए यथार्थ से बिल्कुल भिन्न है। हालांकि दोनों में एक तारतम्य भी है इसमें उन्होंने संसार को यथार्थ के लेन-देन का एक नाम दिया है। इस संसार से जुड़ाव को रचनात्मक कर्म कहते हैं जिसके ना होने पर मानवीयता ही अधूरी है। इस डायरी की एक मूल बात जो बड़ी • गहराइयों को छूती है वह है रखे हुए यथार्थों का स्वतंत्र हो जाना
4. सप्रसंग व्याख्या करें
1. आदमी यथार्थ को जीता ही नहीं, यथार्थ को रास्ता भी है ?
उत्तर- प्रस्तुत पंक्ति मलयज लिखित हंसते हुए मेरा अकेलापन शीर्षक डायरी से ली गई है। प्रस्तुत पंक्तियों में समर्थ लेखक मलयज के 10 मई 1978 की डायरी की है। जीवमात्र को जीने के लिए हमेशा संघर्ष करना पड़ता है वह इन संघर्षो को जीता है यदि संघर्ष ना रहे तो जीवन का कोई मोल ही ना हो। मनुष्य इन यथार्थों के सहारे जीवन जीता है। वह इन यथार्थ का भोग भी करता है और भोग करने के दौरान इनकी सर्जना भी कर देता है संघर्ष संघर्ष को जन्म देती हैं कहा गया है गति ही जीवन है और जड़ता मृत्यु। इस प्रकार आदमी यथार्थ को जीता है।
भोगा हुआ यथार्थ दिया हुआ यथार्थ है हर एक अपने यथार्थ की सर्जना करता है। और उसका एक हिस्सा दूसरे को दे देता है इस तरह यह क्रम चलता रहता है इसलिए यथार्थ की रचना सामाजिक सत्य की सृष्टि के लिए एक नैतिक कर्म है।
2. इस संसार से संपृक्ति एक रचनात्मक कर्म है इस कर्म के बिना मानवीयताता अधूरी है?
उत्तर- प्रस्तुत पंक्ति मलयज लिखित हंसते हुए मेरा अकेलापन शीर्षक डायरी से ली गई है। प्रस्तुत पंक्ति के समर्थ लेखक मलयज के अनुसार मानव का संसार से जुड़ा होना निहायत जरूरी है। मानव संसार के मानव का उपभोग करता है और उसकी सर्जना भी करता है मानव अपने संसार का निर्माता स्वयं है। वह ही अपने संसार को जीता है और भोगता है। संसार में संपृक्ति ना होने पर कोई कर्म ही ना करें। कर्म करना जीवमात्र के अस्तित्व के लिए बहुत ही आवश्यक है उसके होने की शर्त संसार को भोगने की प्रवृत्ति ही है। भोगने की इच्छा कर्म का प्रधान कारक है इस तरह संसार में संपृक्ति होने पर जीवमात्र रचनात्मक कर्म की और उत्सुक होता है। इस कर्म के बिना मानवीयता अधूरी है क्योंकि इसके बिना उसका अस्तित्व ही संशयपूर्ण है।
5. धरती का क्षण से क्या आशय हैं ?
उत्तर- लेखक कविता के मूड में जब डायरी लिखते हैं तो शब्द और अर्थ के मध्य की दूरी अनिर्धारित हो जाती है। शब्द अर्थ में और अर्थ शब्द में बदलते चले जाते हैं एक दूसरे को पकड़ते छोड़ते हुए शब्द और अर्थ का जब साथ नहीं होता तो वह अकाश होता है। जिसमें रचनाएं बिजली के फूल की तरह खिल उठती हैं किंतु जब इनका साथ होता है तो वह धरती का क्षण होता है। और उसमें रचनाएं जड़ पा लेती है प्रस्फुटन का आदिप्रोत पा जाती है। अतः यह कहना उचित है की शब्द और अर्थ दोनों एक दूसरे के पूरक है।
6. रचे हुए यथार्थ और भोगे हुए यथार्थ में क्या संबंध है?
उत्तर- भोगा हुआ यथार्थ एक दिया हुआ यथार्थ है। हर आदमी अपना-अपना यथार्थ रचता है और उस रचे हुए यथार्थ का एक हिस्सा दूसरों को दे देता है। हर आदमी और संसार को लगता है जिसमें वह जीता है और भोगता है रखने और भोगने का रिश्ता एक द्वंद्वात्मक रिश्ता है एक के होने से ही दूसरे का होना है। दोनों की जड़े एक दूसरे में हैं और वही से वह अपना पोषण रस खींचते हैं। दोनों एक दूसरे को बनाते तथा मिटाते हैं।
7. लेखक के अनुसार सुरक्षा कहां है वह डायरी को किस रूप में देखना चाहता है?
उत्तर- लेखक मलयज डायरी लेखन को सुरक्षित नहीं मानता है। लेखक इस बात से सहमत नहीं कि हम यथार्थ से बचने के लिए डायरी लिखें और अपने कर्तव्य का इतिश्री समझे यह तो • वास्तविकता से मुंह मोड़ना हुआ। यह पलायन है कायरता है हम यह नहीं कह सकते कि हम अपनी गलतियों अपनी पराजय को डायरी लिखकर छुपा सकते हैं या एक छद्म आवरण की भांति होगा जिसे रोशनी की एक लकीर भी तोड़ सकता है।
लेखक के अनुसार सुरक्षा इन चुनौतियों को जीने में है जीवन के खट्टे स्वादों से बचने के लिए हम अपनी जीभ काट लें यह कहां की चतुरता है। इससे तो हम मोटे स्वाद से भी वंचित हो जाएंगे सुरक्षा कठिनाइयों का डटकर मुकाबला करने में है अपने को बचाने में नहीं लेखक डायरी को मुसीबतों से बिना लड़े पलायन किए जाने के रूप में देखता है।
18. चित्रकारी की किताब में लेखक ने कौन सा रंग सिद्धांत पढ़ा था ?
उत्तर- चित्रकारी की किताब में लेखक ने यह रंग सिद्धांत पढ़ा था कि शोक और भड़कीले रंग
संवेदनाओं को बड़ी तेजी से उभारते हैं। उन्हें बड़ी तेजी से चरम बिंदु की ओर ले जाते हैं और उतनी ही तेजी से उन्हें ढाल की ओर खींचते हैं।
9. रचना और दस्तावेज में क्या फर्क है ? लेखक दस्तावेज को रचना के लिए कैसे जरूरी बताता है ? उत्तर- दस्तावेज रखना के लिए जरूरी कच्चा माल है दस्तावेज वे तथ्य हैं जिनके आधार पर किसी
रचना का जन्म होता है वह सारी घटनाएं परिस्थितियों हमारे जीवन का भोग अनुभव दस्तावेज के घटक हैं और रचना के कारक बिना दस्तावेज के रचना का हमारा जीवन से कोई सरोकार ही नहीं है इसलिए रचना का कोई मोल नहीं है। इस तरह रचना के लिए दस्तावेज बहुत जरूरी है। रचना हमारी सोच की एक क्षितिज प्रदान करती हैं। ये एक माध्यम है उन परिस्थितियों से जूझने का दस्तावेज परिस्थितियों घटनाएं या अनुभव होती है। इसलिए इन्हें केवल परिष्कृत दिमाग की पहचान पाता है लेकिन जब यही रचना का रूप ले लेता है तब यह जन के लिए हो
जाता है।
10. लेखक अपने किस डर की बात करता है ? इस डर की खासियत क्या है अपने शब्दों में लिखें? उत्तर- लेखक डायरी में दो तरह के डर की बात करता है पहला डर आर्थिक और दूसरा डर सामाजिक प्रतीक्षा का डर लेखक अपने प्रियजनों को खोने का डर आर्थिक तंगी की वजह से •बताने के लिए बड़ी चतुराई से बीमारियों का सहारा लिया है वह कहता है कि मन अपने प्रियजनों के बीमार हो जाने के बाद सोचकर भय से कांप उठता है। इलाज की व्यवस्था का उसे भयानक तनाव में ला देता है। दूसरे डर में लेखक ने चतुरतापूर्वक समाज में बढ़ते अपराधों का जिक्र किया है। वह कहता है कि यदि कोई प्रियजन संभावित घड़ी तक नहीं लौटता है तो मन अनजानी अप्रिय • आशंकाओं से उठता है इसकी खासियत यह है कि मन की कमजोरी इस डर का कारक है मन की कमजोरी ही सामाजिक और आर्थिक अपराधों की जड़ है।
> ऑब्जेक्टिव-
1. मलयज का जन्म कहां हुआ था ?
उत्तर- महुई, आजमगढ़, उत्तर प्रदेश
2. मलयज का मूल नाम क्या था ?
उत्तर- भरतजी श्रीवास्तव
3. मलयज ने किस विशेषांक का संपादन किया ?
उत्तर- लहर एक कविता विशेषांक
4. हंसते हुए मेरा अकेलापन किसकी कृति है ? उत्तर- मलयज
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