Class 12th, hindi पाठ- 10 जूठन SUBJECTIVE- प्रश्न उत्तर, inter hindi subjective- question answer
हेलो दोस्तों आज के इस आर्टिकल में हम लोग को जानने वाले हैं कक्षा 12 हिंदी का पाठ-10 जूठन का सभी महत्वपूर्ण ऑब्जेक्टिव सब्जेक्टिव प्रश्न उत्तर. बता दे सारांश सहित बताया गया है .किताब की जरूरत आपको बिल्कुल नहीं पड़ेगा .इसी प्रकार आप अन्य चैप्टर भी पढ़ सकते हैं।
Class 12th, hindi पाठ- 10 जूठन SUBJECTIVE- प्रश्न उत्तर, inter hindi subjective- question answer
10. जूठन | ओमप्रकाश वाल्मीकि | दलित आत्मकथा
पाठ के सारांश
• ओमप्रकाश वाल्मीकि जब बालक थे उनके स्कूल में हेडमास्टर कालीराम उनसे पढ़ने के बदले झाडू दिलवाते हैं नाम भी इस तरह से हेडमास्टर पूछता था कि कोई बाघ गरज रहा हो। लेखक से सारा दिन झाड़ू दिलवाता है। दो • दिन तक दिलवाने के बाद तीसरे दिन उसके पिता देख लेते हैं लड़का फफक कर रो उठता है। और पिता से सारी बात बताते हैं पिताजी मास्टर पर गुस्साते हैं।
• ओमप्रकाश वाल्मीकि बताते हैं कि उनकी मां मेहनत मजदूरी के साथ आठ दस तगाओं के घर में साफ सफाई करती थी और मां के इस काम में उनकी बड़ी बहन बड़ी भाभी तथा जसबीर और जेनेसर दोनों भाई मां का हाथ • बंटाते थे। बड़ा भाई सुखबीर तगाओं यहां वार्षिक नौकर की तरह काम करता था इन सब कामों के बदले मिलता • था दो जानवर पीछे फसल तैयार होने के समय पांच सेर अनाज और दोपहर के समय एक बची खुची रोटी जो रोटी खासतौर पर चूहड़ों को देने के लिए आटे भूसी मिलाकर बनाई जाती है। कभी-कभी जूठन भी भंगन की कटोरी में डा दी जाती थी दिन-रात मर-खप कर भी हमारे पसीने की कीमत मात्र जूठन फिर भी किसी को कोई शिकायत नहीं कोई शर्मिंदगी नहीं पश्चाताप नहीं यह कितना क्रूर समाज है। जिसमें श्रम का मोल नहीं बल्कि निर्धनता को बरकरार रखने का एक षड्यंत्र ही था सवा
• ओमप्रकाश के घर की आर्थिक स्थिति इतनी कमजोर थी कि एक एक पैसे के लिए प्रत्येक परिवार के सदस्य को काटना पड़ता था यहां तक कि लेखक को भी मरे हुए पशुओं के खाल उतारने जाना पड़ता था। यह समाज की • वर्ण व्यवस्था एवं मनुष्य के द्वारा मनुष्य का किया गया शोषण का ही परिणाम हैं। कि एक और व्यक्ति के पास धन की कोई कमी नहीं तो दूसरी और हजारों हजार को दो जून की रोटी के लिए निकृष्ट कार्य करने पड़ते हैं। • भोजन की कमी और मन की लालसा को पूरी करने के लिए जूठन भी काटनी पड़ती हैं लेखक को एक बात का बहुत गहरा असर होता है उसकी भाभी द्वारा कहा गया कथन कि इनसे यह न कराओ…… भूखें रह लेंगे इन्हें इस गंदगी में न घसीटो। ये शब्द लेखक को इस गंदगी से बाहर निकाल लाते हैं।
• भाभी के कहे यह शब्द आज भी लेखक के हृदय में रोशनी बनकर चमकते हैं क्योंकि उस दिन लेखक उनकी • भाभी और मां के साथ संपूर्ण परिवार पर ऐसा प्रभाव पड़ा कि लेखक ओमप्रकाश वाल्मीकि धीरे-धीरे किंतु हढ़ संकल्प से पढ़ाई में ध्यान लगाता है। और हिंदी में स्नातकोत्तर करने के पश्चात आप अनेक सामान जैसे डॉ अंबेडकर राष्ट्रीय पुरस्कार प्रवेश सम्मान जयश्री सम्मान कथाक्रम सम्मान से विभूषित होकर सरकार के ऑर्डिनेंस फैक्ट्री में अधिकारी पद को भी विभूषित किया। इसके साथ ही उन्होंने आत्मकथा कहानी संग्रह कविता संग्रह आलोचना आदि पर अनेक रचनाएं भी लिखी महाराष्ट्र में मेघदूत नामक नाट्य संस्था स्थापित कर उसके माध्यम से उन्होंने अनेक अभिनय और मंचन का निर्देशन भी किया।
इस प्रकार लेखक ओमप्रकाश वाल्मीकि ने एक चूहड़ (दलित) के घर में जन्म लेकर जीवन में सफलता के उच्च
सोपान तक पहुंच करिया सिद्ध कर दिया कि जहां चाह है वहां राह है। ओमप्रकाश वाल्मीकि इस आत्मकथा ने अनेकानेक पाठकों पर भारी असर डाला है क्योंकि इनके लेखन में इनके अपने जीवनानुभवों की सच्चाई और वास्तव बोध से उपजी नवीन रचना संस्कृति की अभिव्यक्ति का • एहसास होता है। दलित जीवन के रोष और आक्रोश को वे अपने संवेदनात्मक रचनानुभवों की भट्ठी में गला कर एक नये अनुभवजन्य स्वरूप में रखते हैं जो मानवीय जीवन में परिवर्तन करने की क्षमता रखता है गाढ़ी संवेदना और मर्मस्पर्शिता के कारण उपयुक्त आत्मकथा पढ़ने पर मन पर गहरा प्रभावकारी असर होता है।
सब्जेक्टिव-
1. विद्यालय में लेखक के साथ कैसी घटनाएं घटती है ?
उत्तर- जूठन शीर्षक आत्मकथा में कथाकार ओमप्रकाश के साथ विद्यालय में लेखक के साथ बड़ी ही दारुण घटनाएं घटती हैं। बाल सुलभ मन पर बीतने वाली हृदय विदारक घटनाएं लेखक के मनः पटल पर आज भी अंकित है। विद्यालय में प्रवेश के प्रथम ही दिन हेडमास्टर बड़े बेदब आवाज में लेखक से उनका नाम पूछता है। फिर उनकी जाति का नाम लेकर तिरस्कृत करता है हेडमास्टर लेखक को एक बालक नहीं समझ कर उसे नीची जाति का कामगार समझता है और उससे शीशम के पेड़ की टहनियां का झाडू बनाकर पूरे विद्यालय को साफ करवाता है बालक की छोटी उम्र के बावजूद उससे बड़ा मैदान भी साफ करवाता है जो काम चूहाड़े जाति का हो कर भी अभी तक उसने नहीं किया था। दूसरे दिन भी उससे हेडमास्टर वही काम करवाता है तीसरे दिन जब लेकर कक्षा के कोने में बैठा होता है। तब हेडमास्टर उस बाल लेखक की गर्दन दबोच लेता है तथा कक्षा से बाहर लाकर बरामदे में पटक देता है। उससे पुराने काम को करने के लिए कहा जाता है लेखक के पिताजी अचानक देख लेते हैं उन्हें यह सब करते हुए बेहद तकलीफ होती हैं और वह हेडमास्टर से बकझक कर लेते हैं।
2. पिताजी ने स्कूल में क्या देखा उन्होंने आगे क्या किया पूरा विवरण अपने शब्दों में लिखें? उत्तर- लेखक को तीसरे दिन भी यातना दी जाती है और वह झाडू लगा रहा होता है तब अचानक उसके पिताजी उन्हें यह सब करते देख लेते हैं वह बाल लेखक को बड़े प्यार से मुंशी जी कहा करते थे। उन्होंने लेखक से पूछा मुंशी जी यह क्या कर रहा है उनकी प्यार भरी आवाज सुनकर लेखक फफक पड़ता है वे पुनः लेखक से प्रश्न करते हैं मुंशी जी येते क्यों हो ठीक से बोल क्या हुआ है लेखक के द्वारा व्यक्त घटनाएं सुनकर वे झाडू लेखक के हाथ से छीन कर दूर फेंक देते हैं।
अपने लाडले की यह स्थिति देखकर वे आगबबूला हो जाते हैं वे तीखी आवाज में चीखने लगते हैं कि कौन सा मास्टर है जो मेरे लड़के से झाडू लगाता है उनकी चीख सुनकर हेड मास्टर सहित सारे मास्टर बाहर आ जाते हैं। हेडमास्टर लेखक के पिताजी को गाली देकर धमकाता है। लेकिन उसकी धमकी का उन पर कोई असर नहीं होता है आखिर पुत्र तो राजा का हो या रंक का पिता के लिए तो एक समान अपना जिगर का टुकड़ा ही होता है। उसकी बेइज्जती कैसे सही जा सकती है यही बात लेखक के गरीब पिता पर भी लागू होती है उन्होंने भी अपने पुत्र की दुर्दशा पर साहस और हौसले के साथ हेड मास्टर कालीराम का सामना किया।
3.किन बातों को सोचकर लेखक के भीतर कांटे जैसे उगने लगते हैं?
उत्तर- जूठन शीर्षक आत्मकथा के लेखक जब अपने बीते जीवन में किए जाने वाले काम और उस काम के बदले मिलने वाले मेहनताने को याद करता है। अपने कांटों भरे बीते दिनों को सोचता है तो लेखक के भीतर कांटे जैसे उगने लगते हैं।
दस से पंद्रह मवेशियों की सेवा और गोबर की दुर्गंध हटाने के बदले केवल पांच सेर अनाज दो जानवरों के पीछे फसल तैयार होने के समय मिलता था। दोपहर में भोजन के तौर पर बची खुची
•आटे में भूसी मिलाकर बनाई गई रोटी या फिर जूठन मिलती थी। शादी विवाह के समय बरात खा चुकने के बाद जूठी पतलों से उनका निवाला चलता था| पतलों में पूरी बचे खुचे टुकड़े एक आध • मिठाई का टुकड़ा या थोड़ी बहुत सब्जी पतलों पर पाकर उनकी बांछें खिल जाया करती थी। पूरियों को सुखाकर रख लिया जाता था और बरसात के दिनों में इन्हें उबालकर नमक और बारीक मिर्च के साथ बड़े चाव से खाया जाता था। या फिर कभी कभी गुड डालकर लुगदी जैसा बनाया जाता था जो किसी अमृतपान से कम न्याय न था ।
कैसा था लेखक का यह वीभत्स जीवन जिसमें भोजन के लिए जूठी पतलों का सहारा लेना पड़ता था। जिसे आम जनता छूना पसंद नहीं करती थी वही उनका निवाला था।
4. सुरेंद्र की बातों को सुनकर लेखक विचलित क्यों हो जाते हैं?
उत्तर- सुरेंद्र के द्वारा कहे गए वचन भाभी जी आपके हाथ का खाना तो बहुत जायकेदार हैं हमारे घर में तो कोई भी ऐसा खाना नहीं बना सकता है लेखक को विचलित कर देता है सुरेंद्र के दादी और पिता के जूठों पर ही लेखक का बचपन बीता था। उन जूठों की कीमत थी दिनभर की हाड़- तोड़ मेहनत और भन्ना देने वाली गोबर की दुर्गंध और ऊपर से गालियां धिक्कार
सुरेंद्र की बड़ी बुआ शादी में हाड़ तोड़ मेहनत करने के बावजूद सुरेंद्र कि दादाजी ने उनकी मां के द्वारा एक पतल भोजन मांगे जाने पर कितना धिक्कारा था। उनकी औकात दिखाई थी यह सब लेखक की स्मृतियों में किसी चित्रपट की भांति पलटने लगा था। आज सुरेंद्र उनके घर का भोजन कर रहा है और उसकी बड़ाई कर रहा है सुरेंद्र के द्वारा कहा वचन स्वतःस्फूर्त स्मृतियों में •उभर आता है और लेखक को विचलित कर देता है।
5. घर पहुंचने पर लेखक को देख उनकी मां क्यों रो पड़ती है ?
उत्तर- जूठन शीर्षक आत्मकथा में लेखक ने एक ऐसे प्रसंग का भी वर्णन किया है। जो नहीं चाहते हुए भी उसे करना पड़ा क्योंकि लेखक की मां ने लेखक को उसके चाचा के साथ एक बैल की खाल उतारने के सहयोग के लिए पहली बार भेजा था। उनके चाचा लेखक से छूरी हाथ में देकर बैल की खाल उतरवाने में सहयोग लेता है। साथ ही खाल का बोझा भी आधे रास्ते में उसके सर पर दे देता है गठरी का वजन लेखक के वजन से भारी होने के कारण उसे घर तक लाते लाते लेखक की टांग जवाब देने लगती हैं और उसे लगता था कि अब वह गिर पड़ेगा सर से लेकर पांव तक गंदगी से भरा हुआ था। कपड़ों पर खून के धब्बे साफ दिखाई पड़ रहे थे। इस हालत में घर पहुंचने पर उसके मां रो पड़ती है।
6. सप्रसंग व्याख्या करें
1. कितने क्रूर समाज में रहे हैं हम, जहां श्रम का कोई मोल नहीं बल्कि निर्धनता को बरकरार रखने का षड्यंत्र ही था यह सब ?
उत्तर- प्रस्तुत पद्यांश सुप्रसिद्ध दलित आंदोलन के नामवर लेखक ओमप्रकाश वाल्मीकि द्वारा रचित जूठन शीर्षक से लिया गया है। प्रस्तुत गद्यांश के माध्यम से लेखक ने माज की विद्रूपताओं पर कटाक्ष किया है लेखक के परिवार द्वारा श्रम साध्य कर्म किए जाने के बावजूद दो जून की रोटी भी नसीब न होती थी। रोटी की बात कौन कहे जूठन नसीब होना भी कम मुश्किल
न था। विद्यालय का हेडमास्टर चूहड़े के बेटे को विद्यालय में पढ़ा नहीं चाहता है। उसका खानदानी काम ही उसके लिए है चूहड़े का बेटा है लेखक इसलिए पत्तलों का जूठन ही उसका निवाला है।
इस समाज में शोषण का तंत्र इतना मजबूत है कि शोषक बिना पैसे का काम करवाता है। अर्थात बेगार लेता है। श्रम साध्य के बदले मिलती है गालियां। लेखक अपनी आत्मकथा में समाज की क्रूरता को दिखाता है कि लेखक के गांव में पशु मरता है तो उसे ले जाने का काम चूहड़ो का ही है। ये काम बिना मूल्य के यह तंत्र का चित्र है जिसने में जनता को बरकरार रखा जाए।
> ऑब्जेक्टिव-
1. जूठन पाठ के लेखक कौन है ?
उत्तर- ओमप्रकाश वाल्मीकि
2. जूठन कहानी में हेडमास्टर का नाम क्या था ?
उत्तर कालीराम
3. जूठन कहानी में लड़के का नाम क्या है ?
उत्तर- ओम प्रकाश
4. लेखक उन दिनों किस कक्षा में पढ़ते थे ?
उत्तर- नौवीं कक्षा
5. बैल की खाल उतारने के लिए लेखक के साथ कौन गया था ?
उत्तर- चाचा जी
6. लेखक को झाड़ू लगाते किसने देखा था ?
उत्तर- पिताजी ने
7. हेडमास्टर कालीराम लेखक से कौन सा काम करवाया करता था ?
उत्तर- स्कूल में झाडू लगवाना
8. जूठन के मुख्य पात्र के अनुसार पशु की खाल से अमूमन कितने रुपए मिल जाते थे?
उत्तर- 20-25 रुपए
9. लेखक के बड़े भाई का नाम क्या है ?
उत्तर- जनसर
10. मुख्य पात्र की बहन का नाम क्या था ?
उत्तर- माया
11. मेरे हुए पशुओं का खालल कहां बिकता था ?
उत्तर- मुजफ्फरनगर
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