UG 3rd Sem SEC 3 Communication in Professional life Original Questions Papper 2025
UG Sem-3, Session 2023-27 Examination Related Notice for AEC-03
विश्विद्यालय द्वारा जारी रूटीन के अनुसार 03/06/25 और 04/06/25 को AEC-03(Disaster Risk Management) की परीक्षा आयोजित होगी, जिसके प्रश्नपत्र का पैटर्न MJC/MIC/IDC से अलग होगा, जो निम्नलिखित हैं:-👇
Total Questions 70[Only Objective (केवल वस्तुनिष्ठ)]
Time:- 2 Hours
1st sitting:- 10:00 Am to 12:00 Pm
2nd Sitting:- 02:00 Am to 04:00 Pm
Routine:-👇
03/06/25 1st Sitting:- History(MJC), L.S. W.(MJC), Persian(MJC), English(MJC), H.R.M.(MJC), Political Science(MJC), Sanskrit(MJC), Maithili(MJC) के सभी स्टूडेंट्स का Disaster Risk Management की परीक्षा 03/06/25 को प्रथम पालि में आयोजित होगीI
03/06/25 2nd Sitting:- Geography(MJC), Philosophy(MJC), Economics(MJC), Hindi(MJC), Sociology(MJC), Urdu(MJC), R. Economics(MJC), A.l.H. &C(MJC) के सभी स्टूडेंट्स का Disaster Risk Management की परीक्षा 03/06/25 को द्वितीय पालि में आयोजित होगीI
04/06/25 1st Sitting:- Psychology(MJC), Anthropology(MJC), Music(MJC), Dramatics(MJC), Home Science(MJC) के सभी स्टूडेंट्स का Disaster Risk Management की परीक्षा 04/06/25 को प्रथम पालि में आयोजित होगीI
04/06/25 2nd Sitting:- Science[Mathematics(MJC), Chemistry(MJC), Physics(MJC), Botany(MJC) Zoology(MJC)] और Commerce के सभी स्टूडेंट्स का Disaster Risk Management की परीक्षा 04/06/25 को द्वितीय पालि में आयोजित होगीI
Science और Commerce के सभी स्टूडेंट्स का AEC-03(Disaster Risk Management) की परीक्षा 04/06/25 को द्वितीय पालि में ही आयोजित होगीI
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BA 3rd Sem SEC 3 Communication in Professional life Original Questions Papper 2025
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1. संप्रेषण के तत्व
वर्तमान युग आर्थिक क्रियाओं का युग है। आर्थिक क्रिया में गतिशीलता होती है। इसमें सूचनाओं का आदान-प्रदान एक अपरिहार्य कार्य है। संप्रेषण एक सामाजिक प्रक्रिया है जिसके द्वारा व्यक्ति अथवा व्यावसायिक संस्था अपने विचारों, भावनाओं. प्रतिक्रियाओं, तथ्यों अथवा डाय. का आदान-प्रदान करता है। संप्रेषण शीर्ष, मध्यम एवं निचले सभी स्तरों पर किया जाता है। संप्रेषण आधुनिक व्यावसायिक समाज की एक महत्वपूर्ण कड़ी है। संप्रेषण के अन्तर्गत एक विभाग दूसरे विभाग को विचारों, सूचनाओं एवं भावनाओं का आदान-प्रदान किया जाता है। संगठन के सामुहिक निर्णयों का आधार तथा सफल संचालन संप्रेषण पर निर्भर करता है। संप्रेषण में निम्न तत्व होते हैं- संदेश, प्रेषक, संकेत भाव, माध्यम; निहितभाव, प्राप्तकर्ता तथा क्रियान्वयन ।
1. विचार योजना प्रत्येक संवाद एक विचार से ही शुरू होता है और प्रत्येक विचार
किसी-न-किसी सन्दर्भ में ही शुरू होता है। प्रत्येक व्यवसाय इस विचार को सुनियोजित ढंग से प्राप्त करता है। यह इस व्यवसाय की आंतरिक व्यवस्था होती है। किसी व्यक्ति के मस्तिष्क में एक विचार उत्पन्न होता है फिर उसको योजनाबद्ध तरीके से व्यावहारिकता का स्वरूप देने की कोशिश की जाती है।
2. प्रेषक – संचार प्रक्रिया का प्रारंभ प्रेषक के द्वारा ही किया जाता है। यह विचार को संदेश के रूप में या किसी विशेष भाषा व संकेतों में परिवर्तित करता है। प्रेषक वक्ता भी हो सकता है यदि वह स्वयं विचारों को बोलता है।
3. प्राप्तकर्त्ता – जो व्यक्ति संदेश प्राप्त करता है अर्थात संदेश सुनता है उसे संदेश प्राप्त करने वाला या श्रावक भी कहा जाता है।
4.
सन्देश प्रेषक द्वारा भेजे गए तथ्यों या विचारों को सन्देश कहते हैं।
5. प्रतिपुष्टि सम्प्रेषण एक द्विमार्गी (Two Way) प्रक्रिया है जिसमें संदेश प्रेषक एक निश्चित माध्यम (सम्प्रेषण के विभिन्न माध्यमों में से एक) के द्वारा सन्देश प्राप्तकर्ता को सन्देश का सम्प्रेषण करता है। जब सन्देश प्रापक द्वारा सन्देश को मूल रूप से अथवा उसी दृष्टिकोणानुसार समझ लिया जाता है जैसा कि सन्देश प्रेषक सम्प्रेषित करता है। तब सन्देश प्राप्तकर्ता द्वारा सन्देश के सम्बन्ध में की गई अभिव्यक्ति को ही प्रतिपुष्टि (Feedback) कहते हैं। अभिव्यक्ति लिखित, मौखिक, शाब्दिक, अशाब्दिक अथवा सांकेतिक हो सकती है।
सन्देश प्राप्तकर्ता द्वारा उचित प्रतिपुष्टि के लिए आवश्यक है कि सन्देश को प्रभावशाली ढंग से सुना जाए तथा उसी दृष्टिकोण से समझा जाए जैसा कि सम्प्रेषित किया जाए।
प्रतिपुष्टि प्रक्रिया में जब सन्देश प्रेषक सन्देश का सम्प्रेषण करता है तो वह सन्देश वाह्य तत्वों तथा आन्तरिक प्रोत्साहन जैसे-अनुभव, विचार, कौशल, भावनाएं, रुचि अथवा अरुचि आदि पर निर्भर करता है। सन्देश लिखित अथवा मौखिक, शाब्दिक अथवा अशाब्दिक हो सकता है। जब सन्देश प्रापक के पास पहुंचता है तो वह उसे अपनी क्षमताओं के अनुसार ग्रहण करता है। उसका सन्देश ग्रहण करना पुनः वाह्य पर्यावरण तथा आन्तरिक प्रोत्साहन पर निर्भर करता है। तत्पश्चात् प्रापक सन्देश से सम्बन्धित प्रतिपुष्टि करता है।
2. सम्प्रेषण कौशल
अथवा, संचार कौशल
संचार कौशल (Communication Skills) दो शब्दों-संचार एवं कौशल से मिलकर बना है। संचार या सम्प्रेषण वह प्रकिया है जिसके द्वारा संदेश स्रोत से श्रोता की ओर हस्तांतरित होता है। जबकि कौशल (Skills) से आशय उस योग्यता से है जो प्रशिक्षण से प्राप्त होती है तथा किसी समस्या का समाधान करती है।
इस प्रकार, संचार कौशल किसी अन्य व्यक्ति तक सूचना के प्रभावी एवं दश्क्षतापूर्ण सम्प्रेषण की योग्यता है।
3. संचार कौशल का महत्व/आवश्यकता
संचार कौशल के निम्नलिखित महत्व एवं आवश्यकता है :
1. एक छात्र के सफल भाती करियर (भविष्य) हेतु संचार कौशल की आवश्यकता होती है। पढ़ने, लिखने, सुनने, व्यक्तिगत प्रस्तुतिकरण देने तथा लोगों के बीच प्रभावी उद्द्बोधन देने आदि हेतु कुछ महत्वपूर्ण संचार कौशल हैं।
2. प्रभावी संचार कौशल कर्मचारियों को सफल कार्य करने हेतु प्रेरित करने में मदद करता है। संचार के उपयुक्त तरीकों का प्रयोग कर किसी संगठन की कार्यप्रणाली को आसान एवं प्रभावी बनाया जा सकता है। यह बिना पर्यवेक्षण के उत्पादन, विक्रय एवं लाभ को भी बढ़ाता है।
3. विक्रय कार्य/व्यवसाय में संलग्न व्यक्ति हेतु तथा अपने ग्राहक (Client) को प्रभावित करने हेतु अच्छे मौखिक संचार की आवश्यकता होती है।
4. एक उद्यमी एवं शोध छात्र को अपने व्यवसाय या अनुसंधान प्रस्ताव को तैयार करने, प्रस्तुत करने एवं फण्ड प्राप्त करने में प्रभावी संचार कौशल मदद करता है।
5. एक संगठन में बेहतर निर्णय लेने की योग्यता हेतु संचार कौशल मदद करता है। जब सूचना, आँकड़े एवं तथ्य प्रभावपूर्ण तरीके से प्रेषित नहीं किये जाते, तो ये निर्णय लेने की प्रक्रिया को बाधित करते हैं। इसीलिये संचार सूचना, आंकड़े तथा तथ्यों को सही समय पर संगठन के उपयुक्त अधिकारी/प्राधिकृत व्यक्ति तक पहुँचना आवश्यक होता है।
6. प्रभावी संचार किसी संगठन में संघर्ष, विवाद एवं असहमति बहुत शीघ्र समाप्त करने में मदद करता है।
* 4. संचार के कार्य
संचार निम्नलिखित मूलभूत कार्य करता है-
1. सूचना कार्य (Information function)- संचार प्रक्रिया का मूलभूत कार्य आम आदमी, शैक्षिक क्रिया-कलाप, व्यवसाय क्षेत्र तथा व्यावसायिक संगठनों को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से विश्वसनीय व अद्यतन सूचना उपलब्ध कराना है।
2. आज्ञाकारी या निर्देशात्मक कार्य (Command or Instructive function)- किसी परिवार, शैक्षिक संस्थान, संगठन आदि में जो पदानुक्रम में ज्येष्ठ हैं, उन्हें अपने अधीनस्थों को, कि वे क्या करें? कैसे करें? तथा कब करें? आदि संचार के द्वारा बता सकते हैं। संचार का आज्ञाकारी या निर्देशात्मक कार्य अनौपचारिक संगठनों की तुलना में औपचारिक संगठनों में अधिक दृष्टिगत होता है।
3. प्रभाव या प्रेरक कार्य (Influence or Persuasive function)- बलों (Berlo) 1960 के अनुसार संचार का मूल उद्देश्य लोगों को प्रभावित करना है।
5. संचार प्रक्रिया के तत्व
संचार प्रक्रिया: संचार सामाजिक अंतः क्रिया की एक प्रक्रिया है। अध्ययन एवं अध्यापन (Learning and teaching) भी संचार प्रक्रिया है। संचार निरंतर, अन्तर्सम्बन्धी, एक-दूसरे पर निर्भर, चक्रीय, परिवर्तनशील एवं द्विदिशीय प्रक्रिया है।
संचार प्रक्रिया में कई प्रमुख तत्व शामिल होते हैं:
प्रेषक : वह व्यक्ति या संस्था जो संदेश भेजता है।
संदेश :
वह सूचना, विचार या सोच जो संप्रेषित की जा रही है।
एनकोडिंग : संदेश को ऐसे प्रारूप में परिवर्तित करने की प्रक्रिया जिसे प्रेषित किया जा सके (जैसे, शब्द, प्रतीक, इशारे)।
चैनल : वह माध्यम जिसके माध्यम से संदेश भेजा जाता है (जैसे, बोले गए शब्द, लिखित पाठ, ईमेल)। –
प्राप्तकर्ता : वह व्यक्ति या संस्था जो संदेश प्राप्त करता है।
डिकोडिंग: प्राप्त संदेश की व्याख्या करने या उसका अर्थ निकालने की प्रक्रिया।
फीडबैक (प्रतिपुष्टि) प्राप्तकर्ता से प्रेषक को दिया जाने वाला प्रत्युत्तर या प्रतिक्रिया, जो यह इंगित करती है कि संदेश समझा गया या नहीं, या उसे किस प्रकार ग्रहण किया गया।
शोर : कोई भी बाहरी कारक या अवरोध जो संदेश को विकृत या बाधित कर सकता है (जैसे, पृष्ठभूमि ध्वनियाँ, गलतफहमी)।
प्रभावी संचार इन तत्वों के स्पष्ट संप्रेषण और सटीक समझ पर निर्भर करता है।
6. संचार की बाधायें
संचार की निम्नलिखित बाधायें हैं :
1. तकनीकी (Technical)- इस समस्या का सम्बन्ध शोर की समस्या (Problem of noise) के परिणाम से है, जिससे संदेश के परिगमन एवं उसके विश्लेषण में अशुद्धि उत्पन्न होती है। निश्चित अवांक्षित तत्व प्रक्रिया में रेंगते हैं जो इस समस्या हेतु जिम्मेदार होते हैं, जैसे धुंधला चित्र, परिगमन में त्रुटि से संदेश का विरूपित होना आदि।
2. अर्थ सम्बन्धी (Semantic)- इसके अन्तर्गत शब्दों व वाक्यों के अर्थ सम्बन्धी समस्यायें होती हैं। यद्यपि एक साधारण शब्द के कई अर्थ हो सकते हैं, जो संदेश की गलत व्याख्या/समझ हेतु उत्तरदायी हो सकते हैं।
3. प्रभावशाली समस्यायें (Influencial Problems)- इन समस्याओं का सम्बन्ध संदेश भेजने की सफलता से है जो श्रोता के व्यवहार में इच्छित परिवर्तन हेतु जिम्मेदार होते हैं, क्योंकि सभी प्रकार के संचार का मुख्य उद्देश्य श्रोता के व्यवहार को प्रभावित करना है।
4. भौतिक समस्यायें (Physical Problems)- इस प्रकार की समस्यायें वक्ता के भाषण और आवाज से सम्बन्धी होती हैं। अवांक्षित शारीरिक हाव-भाव, मंच का डर या संदेश का बाधित परिगमन आदि ऐसी समस्यायें हैं।
5. मनोवैज्ञानिक समस्यायें (Psychological Problems)- इन समस्याओं का सम्बन्ध वक्ता का श्रोता की भाषा से जुड़ाव बना सकने में असफल होना, श्रोताओं के सामने स्पष्ट व्यक्तिगत अनुभव रखने की अयोग्यता, आदि।
6. सांस्कृतिक समस्यायें (Cultural Problems)- इस प्रकार की समस्यायें संचार तन्त्र के तरीके से है जो संस्कृति, नीति/आचार-सम्बन्धी आदि जैसी होती हैं।
7. मौखिक संचार (Oral or Spoken Communication)
मौखिक संचार सूचना व विचारों के हस्तांतरण की ऐसी प्रक्रिया है, जिसमें एक व्यक्ति या समूह अपने मुख से बोले कहे गये शब्दों को दूसरे तक हस्तांतरित करता है।
उदाहरण- आमने-सामने की बातचीत/संवाद (Face to face conversations), टेलीफोन संवाद, साक्षात्कार, भाषण, गोष्ठियाँ, कांफ्रेंस आदि। चूंकि मौखिक संवाद आमने-सामने की स्थिति (प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष) में होता है। अतः यह सबसे तेज संचार का तरीका है।
चूँकि मौखिक संचार बोलने एवं सुनने के रूप में होता है, अतः यह समय बचाता है तथा खर्च घटाता है।
किन्तु मौखिक संचार लम्बे संचार संदेश के हस्तांतरण हेतु उपयुक्त नहीं होता है।
8. लिखित संचार (Written Communication)
लिखित प्रतीकों के माध्यम से संदेश पहुँचाने की प्रक्रिया लिखित संचार कहलाती है। अन्य शब्दों में, दो या दो से अधिक व्यक्तियों के बीच लिखित शब्दों से हुआ किसी संदेश का आदान-प्रदान लिखित संचार कहलाता है।
लिखित संचार के महत्वपूर्ण माध्यम हैं-पत्र, मेमो, नोट्स, नोटिस, बुलेटिन, परिचालित पत्र, मैनुअल, फैक्स, टेलीग्राम, ई-मेल, बनावट (डिजाइन), चित्र (पिक्चर) / इमेज, आरेख आदि।
लाभ (Advantages)
1. लिखित संचार उच्चस्तरीय अधिकारियों को अपने अधीनस्थों हेतु शक्तियाँ और अधिकारिता का प्रतिनिधि बनाने में मदद करता है।
2. इस संचार व्यवस्था में सूचना स्थायी रूप से अभिलिखित हो जाती है। इस प्रकार सूचना के नष्ट होने या बदलने या अशुद्ध अर्थ होने की सम्भावना नहीं रहती है।
3. लिखित संचार संगठन के क्रिया-कलाप नियंत्रित करने में मदद करता है। लिखित अभिलेखों को नियंत्रण के औजार के रूप में प्रयोग किया जा सकता है।
4. लिखित संचार भविष्य के संदर्भ या कानूनी अभिलेख के रूप में अभिरक्षित/संरक्षित किया जा सकता है।
5. यह समय और धन के अपव्यय को रोकता है। प्रेषक और प्राप्तकर्ता दोनों आपस में बिना मिले ही अपने विचारों का आदान-प्रदान कर सकते हैं।
6. लिखित संचार एक ही समय में विभिन्न स्थानों पर बहुत से लोगों के बीच संचार सम्पर्क होने में मदद करता है।
7.- यह सांख्यिकीय आंकड़ों/सूचनाओं के हस्तांतरण हेतु उपयुक्त है।
9. वर्णन प्रविधि (Descriptive Technique)
वर्णन प्रविधि संप्रेषण का एक कौशल है जिसमें व्यक्ति किसी वस्तु, स्थान, अथवा व्यक्ति के बारे में विवरण देता है यह प्रविधि व्यक्ति की विचारशीलता, भावनाएं तथा ध्यान को प्रतिबिंबित करता है। इस प्रविधि का उद्देश्य पाठक के मन में एक अनुभूति या चित्र जागृत करना है। अच्छा वर्णन विवरणशीलता सुस्पष्टता और संवेदनशीलता से भरा होता है। इसमें प्राकृतिक तत्वों के समर्थन के लिए अन्य भावनात्मक या संवेदात्मक तत्व शामिल होते हैं। यह प्रविधि पाठक को समय और स्थान के अनुसार उसे अनुभव प्रदान कर उसे संतुष्टि देती है।
10. परिचर्चा विधि (Conversation Method)
परिचर्चा को समूह चर्चा भी कहते हैं। अंग्रेजी में इसे Discussion तथा Conversation कहते हैं। इस विधि का आशय है कि किसी विषय को मथना ताकि उस विषय का ठीक से परीक्षण कर निष्कर्ष पर पहुँच जाए। इस विधि में दो व्यक्ति या दो से अधिक व्यक्ति आमने-सामने बैठकर अपने विचारों का मुक्त रूप से आदान-प्रदान करते हैं, फिर वे किसी निर्णय पर पहुंचते हैं। यह वाद-विवाद से अलग एक सकारात्मक प्रक्रिया है। इसमें सभी सदस्यों की सक्रिय सहभागिता होती है। यह मुक्त तथा निर्दोष संचार की उत्तम व्यवस्था है।
परिचर्चा विधि का मुख्य उद्देश्य वार्तालाप द्वारा किसी समस्या का समाधान निकालना है। इस विधि की खास विशेषता यह है कि इसमें प्रयुक्त व्यक्तियों में से एक नेता की पहचान हो सकती है। यह जटिल समस्याओं के समाधान हेतु विभिन्न उपाय बताता है। किंतु इस विधि का दोष यह है कि इसमें निर्णय लेने में देरी होती है। इस विधि में व्यक्तिगत टकराव की भी संभावना रहती है।
11. साक्षात्कार (Interview) का महत्व / गुण
साक्षात्कार का महत्व अथवा गुण निम्न प्रकार है :
(1) सूचनाओं के संकलन का माध्यम (Media of Data Collection) – साक्षात्कार पद्धति सूचनाओं के संकलन का एक महत्वपूर्ण माध्यम है। इसके माध्यम से सूचनाओं व तथ्यों को प्रत्यक्ष रूप से संकलित किया जाता है।
(2) अमूर्त घटनाओं का अध्ययन (Study of Abstract Events)- इस पद्धति द्वारा अदृश्य व अमूर्त घटनाओं का भी अध्ययन किया जा सकता है। व्यक्तिगत भावनाओं, विचार व धारणाओं का निर्धारण करने में साक्षात्कार पद्धति पूर्ण सहायक सिद्ध हुई है।
(3) भूतकालीन घटनाओं का अध्ययन (Study of Past Events) – भूतकालीन घटनाओं के अध्ययन में भी साक्षात्कार पद्धति का योगदान सराहनीय रहा है। साक्षात्कारदाता की आप बीती घटनाओं का अध्ययन करने के लिए साक्षात्कार आवश्यक है।
(4) विश्वसनीयता (Reliability) – अन्य पद्धतियों की तुलना में इस पद्धति में विश्वसनीयता अधिक रहती है, क्योंकि साक्षात्कारकर्ता स्वयं व्यक्तिगत रूप से साक्षात्कार के समय उपस्थित रहता है। उत्तरदाता जैसे ही अपने स्तर से अलग हटता है, साक्षात्कारकर्ता स्वयं अपने प्रयास से उत्तरदाता को भटकने नहीं देता और प्रश्न को सही एवं उपयुक्त उत्तर की ओर प्रेरित करता है।
(5) लोचपूर्ण (Flexible) – साक्षात्कार पद्धति पूर्णतया लोचपूर्ण है अर्थात् इनमें आवश्यकतानुसार कमी एवं वृद्धि की जा सकती है। प्रश्नों का क्रम भी पृथक् पृथक् व्यक्ति के लिए पृथक् पृथक् होता है। कभी-कभी तो उत्तरदाता की रुचि के आधार पर प्रश्नों के क्रम में परिवर्तन किया जा सकता है। यदि किसी प्रश्न के उत्तर पर सन्देह उत्पन्न होता है, तो उसे पुनः सत्यापित किया जा सकता है।
(6) विचारों का आदान-प्रदान (Exchange of Ideas)- इस पद्धति द्वारा साक्षात्कारकर्ता व उत्तरदाता दोनों के विचारों का आपसी आदान-प्रदान होता है, जिससे दोनों के मध्य मधुर सम्बन्ध स्थापित होने लगते हैं तथा दोनों को विषय के सम्बन्ध में पर्याप्त जानकारी प्राप्त हो जाती है। किसी भी प्रकार की शंका होनें पर उसका तत्काल समाधान किया जा सकता है।
(7) गहन अध्ययन की सम्भावना (Possibility of Intensive Study) – पारस्परिक सम्बन्धों के मधुर हो जाने पर साक्षात्कारकर्ता को उत्तरदाता से अनेक ऐसे गोपनीय महत्वपूर्ण तथ्य प्राप्त हो जाते हैं जिनकी साक्षात्कारकर्ता कभी कल्पना भी नहीं करता।
12. साक्षात्कार की सीमाएं (Limitations of Interview)
यद्यपि साक्षात्कार पद्धति के अनेक महत्वपूर्ण लाभ हैं, परन्तु फिर भी यह दोषमुक्त नहीं है। इस पद्धति में निम्न प्रमुख दोष हैं:
(1) महंगी पद्धति (Costly Method)- अन्य पद्धतियों की तुलना में साक्षात्कार पद्धति महंगी है। तथ्यों का संकलन करने के लिए अधिक धन, शक्ति व समय की आवश्यकता पड़ती है। कभी-कभी तो उत्तरदाता से प्राप्त होने वाले उत्तर अनुपयोगी होते हैं। इससे समय व घन दोनों व्यर्थ में ही नष्ट होते हैं। চায়ে জান আরুটিন মনে
(2) व्यक्तिगत अभिनति (Personal Bias)- प्रायः साक्षात्कारकर्ता ऐसे प्रश्नों का निर्माण करता है जिनके उत्तरों से उसके अपने विचार प्रमाणित होते हैं। कभी-कभी तो उत्तरदाता मनगढ़न्त बातों को ही बताने लगता है जिससे सामग्री की विश्वसनीयता कम होने लगती है। व्यक्तिगत साक्षात्कार होने के कारण उत्तरदाता साक्षात्कारकर्ता के विचारों व भावनाओं से अप्रभावित नहीं रहता। इसी कारण वही उत्तर देता है जो साक्षात्कारकर्ता को अच्छा लगे।
(3) अपूर्ण जानकारी (Incomplete Knowledge) – साक्षात्कारकर्ता भले ही कितना सहयोग दे, परन्तु फिर भी वह अपने व्यक्तिगत जीवन से सम्बन्धित घटनाओं की वास्तविक जानकारी स्पष्ट रूप से प्रदान नहीं करता। इससे जानकारी अधूरी रहती है।
(4) स्मरण शक्ति पर निर्भरता (Dependence on Memory) – साक्षात्कार के समय ही सूचनाओं को लिखना अथवा रिकार्ड करने से प्रश्नों व उत्तरों का क्रम टूटने की सम्भावना रहती है। साक्षात्कारकर्ता को सभी बातें मौखिक रूप से याद रखनी पड़ती हैं तथा वापस लौटकर विभिन्न सूचनाओं को विस्तार से लिखना पड़ता है। उसमें कभी-कभी महत्वपूर्ण बातें भी लिखने से छूट जाती हैं।
(5) अन्य सीमाएं (Other Limitations) – उपर्युक्त के अतिरिक्त साक्षात्कार बड़े अध्ययन क्षेत्र के लिए अनुपयुक्त होता है तथा सम्पर्क स्थापित कर साक्षात्कार करने में अनेकों कठिनाइयां आती हैं। हीन भावना भी साक्षात्कार सम्प्रेषण में बाधा उत्पन्न करती है।
13. साक्षात्कार अर्थ और चरण
साक्षात्कार संप्रेषण की एक तकनीक है जिसका प्रयोग किसी व्यक्ति के व्यवहार को देखने, उसके व्यक्तित्व को पहचानने तथा सामाजिक अन्तः क्रिया के परिणामों का अध्ययन करने के लिए किया जाता है। इस विधि में दो पक्ष प्रत्यक्ष संपर्क द्वारा संबंधित विषय पर बातचीत करते हैं तथा उत्तर-प्रतिउत्तर देते हैं। साक्षात्कार उद्देश्यपरक होता है तथा पूर्वनियोजित होता है। यह औपचारिक संप्रेषण का एक महत्वपूर्ण भाग है। साक्षात्कार के निम्नलिखित चरण है-
(1) साक्षात्कार के लिए तैयार करना
(2) साक्षात्कार के लिए आवेदन करना
(3) साक्षात्कारकर्ता द्वारा स्क्रीनिंग करना
(4) साक्षात्कारी (Interviewer) की योग्यता व अनुभव की जाँच करना
ही (5) चयनित उम्मीदवारों के साथ मुख्य साक्षात्कार आयोजित करना
(6) चयनित उम्मीदवारों को चयनित होने के लिए संदेश देना
(7) चयनित उम्मीदवार को आधिकारिक तौर पर नियुक्ति पत्र देना।
14. साक्षात्कारकर्त्ता (Interviewer) के कार्य एवं गुण
साक्षात्कारकर्त्ता वह व्यक्ति है जो साक्षात्कार लेता है। साक्षात्कारकर्त्ता का कार्य प्रश्नों को समझना उन्हें संबोधित करना और उनके विचारों और अनुभवों को समझना होता है। वे संवाद के माध्यम से जानकारी प्राप्त करते हैं और उनके सवालों का उत्तर देते हैं। अच्छे साक्षात्कारकर्त्ता समझदारी, सहानुभूति और सम्मान के साथ संवाद करते हैं। साक्षात्कारकर्त्ता का प्रमुख कार्य प्रश्न पूछना है लेकिन जो प्रश्न पूछा जाता है उसका सही उत्तर साक्षात्कारकर्त्ता के पास होना आवश्यक है। साक्षात्कारकर्ता को समझदार भी होना चाहिए। साक्षात्कारकर्त्ता संवादकर्ता के साथ संवाद करता है। साक्षात्कार का समापन भी वही करता है। सारतः साक्षात्कारकर्त्ता में निम्नलिखित गुणों का होना आवश्यक है।
(1) उसमें सुनने की क्षमता होनी चाहिए।
(2) उसे संवेदनशील और समझदार होना चाहिए।
(3) उसमें उपर्युक्त प्रश्न पूछने की क्षमता होनी चाहिए।
(4) उसमें साक्षात्कार के संगठन, प्रबंधन तथा निर्णयन की क्षमता होनी चाहिए।
15. संक्षिप्तीकरण का अर्थ और उपयोगिता
संक्षिप्तीकरण को संक्षेपीकरण तथा सारांशलेखन भी कहते हैं। यह एक संप्रेषण कौशल है। किसी घटना कहानी लेख दस्तावेज अध्याय आदि का संक्षिप्त रूप सारांश कहलाता है। व्यावसायिक संगठनों या अनुसंधान संस्थाओं में विभिन्न अवस्थाओं हेतु सारांश की आवश्यकता होती है। क्योंकि विशेषज्ञों के पास विषयवस्तु की विवेचन के लिए पर्याप्त समय नहीं होता है कि वे पूरी रिपोर्ट पढ़ सकें। अतः वे परिपूर्ण सारांश को पढ़ना पसंद करते हैं। अतः सारांश के मुख्य विचारों, शब्दों अथवा वाक्यांशों को रेखांकित कर देना चाहिए। गैर महत्वपूर्ण विचारों, चार्ट, आरेखों, आदि को छोड़ देना चाहिए। इस प्रक्रिया में संपूर्ण लेख का सारांश में एक तिहाई शब्दों का ही प्रयोग करना चाहिए। सारांश स्पष्ट, संक्षिप्त तथा निरर्थक बकवास से मुक्त होना चाहिए। किसी भी अनुसंधान अथवा जाँच प्रक्रिया में इस विधि की बहुत उपयोगिता है। इसमें विषय के केवल मूल बिंदुओं को ध्यान में रखना चाहिए।
16. नोट बनाने का अर्थ एवं प्रक्रिया
नोट बनाना, पैसेज, पैराग्राफ आदि जैसे सोर्सेज से महत्वपूर्ण डिटेल्स का रिकॉर्ड बनाने का एक प्रोसेस है। सोर्स लिखित दस्तावेज या मौखिक संचार भी हो सकता है। नोट बनाने का अर्थ है-महत्वपूर्ण जानकारी के सार को रिकॉर्ड करना।
नोट मेकिंग के अनेक फायदे हैं इससे हमारी धारणा शक्ति की वृद्धि होती है। यह अध्ययन का एक आवश्यक उपकरण है, यह संप्रेषण को मजबूत बनाती है। नोट मेकिंग से पूर्व विषय को दोहरा लें। नोट मेकिंग में हमेशा एक्टिव वॉयस का इस्तेमाल करना चाहिए।
नोट मेकिंग की कारनेल विधि सबसे उपयुक्त विधि है। इसमें बायीं तरफ कागज में कुछ मार्जिन छोड़ दिया जाता है जिसमें छोटे छोटे वाक्यों में प्रतीक चिन्हों का प्रयोग कर मुख्य शब्दों को लिखा जाता है। दूसरी विधि रूपरेखा विधि है। यह भी नोट मेकिंग की सुव्यवस्थित लेखा है इसमें भी बायें या दाहिने या नीचे नोट लिखा जाता है।
तीसरी विधि मानचित्र विधि है, यह कक्षा में नोट को सुसंगठित रूप से लिखने की तृष्यात्मक विधि है, यह विधि तब अधिक उपयोगी होती है जब विषयों के बीच संबंधों को समझना हो। चौथी विधि टेबुल चार्ट विधि है, इस विधि में आवश्यकतानुसार तीन या चार कॉलम बनाकर विभिन्न कॉलम लिखे जाते हैं। यह विधि ऐतिहासिक घटनाओं तथा ग्रामीण विकास कार्यक्रमों में – संप्रेषण लेखन की उपर्युक्त विधि है।
17. लेखन कौशल अथवा, लेखन नियम
लेखन कौशल का मतलब है अपने विचारों को लिखित शब्दों में व्यक्त करने के लिए पर्याप्त ज्ञान और क्षमता होना। अच्छे लेखन कौशल संचारकों को आमने-सामने या टेलीफोन वार्तालाप जैसे संचार के अन्य माध्यमों की तुलना में कहीं अधिक स्पष्टता के साथ अपने संदेश को अंधिक लोगों तक पहुँचाने की अनुमति देते हैं। याद रखें, प्रभावी लिखित संचार कोई आसान काम नहीं है क्योंकि इसके लिए वाक्य संरचना, शब्दावली, व्याकरण और अन्य बुनियादी लेखन कौशल का विस्तृत ज्ञान होना जरूरी है। लेकिन निरंतर अभ्यास से इसमें सुधार किया जा सकता है। उत्कृष्ट लेखन कौशल वाले लोग अपने लक्षित दर्शकों और विभिन्न स्थितियों के अनुसार अपने लहजे और शब्दों के चयन को निजीकृत कर सकते हैं। वे अपने विचारों को संप्रेषित करने और अपने पाठकों को जोड़े रखने के लिए साहित्यिक उपकरणों जैसी लेखन तकनीकों को प्राथमिकता देते हैं।
लेखन कौशल में निम्न बातों का ध्यान रखना जरूरी है-
1. सशक्त शब्दों का उपयोग अपेक्षित है।
2. लच्छेदार वाक्यों की अपेक्षा सीधे, सरल छोटे वाक्यों का प्रयोग उचित रहता है।
3. लेखन किसी वर्णन को साकार करने वाला होना चाहिए न कि केवल बताने वाला।
पाठक के समक्ष लेखन के माध्यम से शब्दचित्र उपस्थित हो जाना चाहिए।
4. कर्मवाच्य (Passive voice) के स्थान पर कर्तृवाच्य (Active voice) का उपयोग करना उचित है।
5. रूढ़ोक्तियों से बचना चाहिए।
6. रूपक और उपमाओं का प्रयोग सावधानी से किया जाना चाहिए।
लेखन कौशल के गुण-
1. लेखन, सुन्दर, स्पष्ट एवं सुडौल हो।
2. उसमें प्रवाहशीलता एवं क्रमबद्धता हो।
3. विषय (शिक्षण) सामग्री उपयुक्त अनुच्छेदों में विभाजित हो।
4. भाषा एवं शैली में प्रभावोत्पादकता हो।
5. भाषा व्याकरणसम्मत हो।
6. अभिव्यक्ति संक्षिप्त, म्पष्ट तथा प्रभावोत्पादक हो।
18. सार्वजनिक भाषा
अथवा, सम्भाषण कौशल (Public Speaking)
सार्वजनिक रूप से बोलना वह प्रक्रिया है जिसमें श्रोताओं को सूचित एवं प्रभावित किया जाता है। सार्वजनिक बोलचाल इसलिए बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि इससे संप्रेषण कौशल की वृद्धि होती है, यह आत्म-विश्वास को बढ़ावा देता है, यह व्यक्ति के विषय-संबंधित ज्ञान को प्रदर्शित करता है, अच्छे सार्वजनिक बोलचाल से अनुयायियों की संख्या बढ़ती है। अतः यह लोगों को प्रभावित एवं प्रेरित करने का एक तरीका है। यह संप्रेषण का एक कौशल है जिसे सीखा जा सकता है जिसके लिए अभ्यास की आवश्यकता होती है। राजनीतिक क्षेत्र में हम देखते हैं कि राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने अपने 100 वर्षों के इतिहास में अनेक राजनेताओं को सार्वजनिक बोलचाल या भाषण देने की क्षमता में पारंगत बनाया जिनमें अटल बिहारी वाजपेयी तथा नरेन्द्र मोदी का नाम अग्रगण है। सार्वजनिक भाषण गतिशील होते हैं. संक्षिप्त होते हैं. श्रोताओं को रुचिकर होते हैं, प्रमाणिक आकड़ों के साथ होते हैं।
19. वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग (Video Conferencing)
वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के द्वारा दो या दो से अधिक व्यक्ति विश्व के किसी भी भाग में बैठकर श्रव्य-दृश्य साधनों के माध्यम से आपस में अन्तक्रिया (Interaction) कर सकते हैं, अर्थात् आसानी से एक-दूसरे से बातचीत कर सकते हैं।
वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग कम्युनीकेशन की एक आधुनिक एवं नई टेक्नोलॉजी है। इसमें कई दूर सम्प्रेषण (Remote communication) तकनीकियों का उपयोग किया जाता है। वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग अन्य दूर सम्प्रेषण विधियों से अलग है, क्योंकि जहाँ दूर सम्प्रेषण तकनीकों में केवल ध्यनि को ही एक स्थान से दूसरे स्थान पर संचारित किया जाता है, वहीं वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग से आवाज के साथ चित्र भी दिखाई देते हैं। वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग में ऐसा लगता है कि जैसे दो व्यक्ति आमने-सामने बैठकर ही बातें कर रहे हों।
इस तकनीक से विश्व के किसी भी स्थान से वैज्ञानिकों/अध्यापकों के मध्य सम्प्रेषण, संगोष्ठी और चर्चाओं का आयोजन किया जा सकता है। वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग द्वारा दूरस्थ क्षेत्रों में स्थित छात्र आपस में तथा वैज्ञानिकों या विशेषज्ञों या अध्यापकों से भी आसानी से सम्प्रेषण कर सकते हैं। छात्र अपनी बनाई हुई कलाकृतियों, शिक्षण नमूनों आदि को दूसरे छात्रों को दिखा सकते हैं।
वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग का प्रयोग ई-लर्निंग में भी सफलतापूर्वक किया जा सकता है। वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के द्वारा ई-लर्निंग के छात्र आपस में सम्प्रेषण भी कर सकते हैं तथा शिक्षकों व विशेषज्ञ से वार्तालाप भी कर सकते हैं। अनेकों ई-लर्निंग टूल्स ऑनलाइन उपलब्ध हैं।
वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के कई लाभ भी हैं, लेकिन फिर भी इस तकनीक के कुछ दोष हैं। वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग एक महंगी विधि है। इसमें महंगे इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों का होना आवश्यक होता है। अतः धन की समस्या इस तकनीक के मार्ग में बहुत बड़ी बाधा है।
20. इंटरनेट शिष्टाचार (Netiquettes)
‘नेटिकेट’ शब्द नेट और शिष्टाचार से मिलकर बना है। इस प्रकार नेटिकेट इंटरनेट पर सम्मानजनक और उचित संचार के लिए आचरण के नियमों का वर्णन करता है। नेटिकेट को अक्सर इंटरनेट के लिए शिष्टाचार के रूप में संदर्भित किया जाता है।
नेटिकेट ऑनलाइन विनम्र और सम्मानजनक व्यवहार के लिए अनौपचारिक दिशा-निर्देशों
और परंपराओं के समूह को संदर्भित करता है।
इसमें निम्नलिखित सिद्धांत शामिल हैं:
सम्मानजनक संचार स्पष्ट और विचारशील भाषा का प्रयोग करें, आपत्तिजनक या आक्रामक टिप्पणियों से बचें।
भाषा का उचित प्रयोग उचित व्याकरण और वर्तनी का प्रयोग करें; अशिष्ट भाषा या संक्षिप्त भाषा का अत्यधिक प्रयोग करने से बचें, जिससे अन्य लोग भ्रमित हो सकते हैं।
गोपनीयता : बिना अनुमति के व्यक्तिगत जानकारी साझा न करके दूसरों की गोपनीयता का सम्मान करें।
स्पैम से बचें अनचाहे संदेश भेजने या दोहराव वाली सामग्री पोस्ट करने से बचें।
रचनात्मक प्रतिक्रिया आलोचनात्मक या नकारात्मक होने के बजाय सकारात्मक, सहायक तरीके से प्रतिक्रिया दें।
स्त्रोतों का हवाला देना किसी लेखक के काम को साझा करते या संदर्भित करते समय मूल लेखक को श्रेय दें।
नेटिकेट का पालन करने से सम्मानजनक और उत्पादक ऑनलाइन वातावरण बनाए रखने – में मदद मिलती है।
21. प्रतिवेदन लेखन/रिपोर्ट-लेखन के तत्व
(Elements of Report Writing)
अंग्रेजी के ‘रिपोर्ट’ (Report) शब्द के पर्याय प्रतिवेदन का अर्थ है-सम्यक् जानकारी वृहत् हिंदी शब्दकोश के अनुसार “किसी घटना, कार्य योजना आदि के संबंध में छानबीन, पूछताछ आदि करने के बाद तैयार किया गया विवरण जो किसी अधिकारी या सभा आदि के सामने प्रस्तुत करना हो, प्रतिवेदन कहलाता है।
वास्तव में, ‘प्रतिवेदन’ एक प्रकार का लिखित विवरण होता है जिसमें किसी कार्य के विभिन्न तथ्यों का लेखा-जोखा प्रस्तुत किया जाता है। ‘प्रतिवेदन’ के माध्यम से किसी भी कार्यक्रम, घटना, समारोह, संगोष्ठी, उद्घाटन, समापन, बैठक आदि में हुए कार्यकलापों का विवरण लोगों के समक्ष प्रस्तुत किया जा सकता है।
प्रतिवेदन के अंग (तत्व) प्रतिवेदन के निम्नलिखित अंग होते हैं-
1. प्राधिकार- इसके अंतर्गत उस आदेश का उल्लेख किया जाता है जिसके तहत प्रतिवेदन तैयार किया जाना है।
2. विषय सूची प्रत्येक प्रतिवेदन का कोई न कोई विषय अवश्य होता है। प्रतिवेदन लेखक को विषय से संबंधित समस्त प्रमुख बातों का ज्ञान होना जरूरी है।
3. सूचनाओं का संकलन- विषय से संबंधित सभी सूचनाएँ और प्रमुख जानकारियों का एकत्रित किया जाना प्रतिवेदन लेखन के लिए सहायक होता है।
4. तथ्यों का विश्लेषण- सूचनाएँ एवं तथ्य एकत्रित कर लेने के बाद उनका अध्ययन एवं विश्लेषण करना जरूरी होता है।
5. निष्कर्ष- जो भी तथ्य और सूचनाएँ लेखक ने एकत्रित की हैं, उनके आधार पर निष्कर्ष निकालना होता है और उन सभी को निष्कर्ष के शीर्षक के अंतर्गत प्रस्तुत करना होता है। उदाहरण के लिए, यदि एक टीम दंगाग्रस्त क्षेत्र में सर्वे के लिए जाती है और घटना का प्रतिवेदन प्रस्तुत करने से पूर्व उसे दंगा होने के कारणों को भी प्रस्तुत करना होगा।
6. संस्तुति या सुझाव अपने निष्कर्षों के आधार पर प्रतिवेदन लेखक उस विषय से संबंधित अपनी संस्तुति भी प्रस्तुत करता है। संस्तुतियों में उन बातों की ओर संकेत किया जाता है जिनसे भविष्य में समस्याओं को कम किया जा सके।
22. प्रतिवेदन लेखन (Report Writing) के गुण/विशेषताएँ
प्रतिवेदन लेखन के गुण निम्नलिखित है :
(i) स्पष्टता- जिस विषय पर तथा जिस उद्देश्य को लेकर ‘प्रतिवेदन’ लिखा जाए, उससे संबंधित सब बातें प्रतिवेदन में स्पष्ट रूप से आनी चाहिए।
(ii) शुद्धता – प्रतिवेदन में तथ्यों को बिना तोड़े-मरोड़े शुद्ध रूप में प्रस्तुत किया जाना चाहिए जिससे कि प्रतिवेदन के आधार पर सही निर्णय लिया जा सके।
(iii) संपूर्णता विषय से संबंधित समस्त जानकारियाँ यदि प्रतिवेदन में आ गई हैं तो वह ‘संपूर्ण’ कहा जा सकता है।
(iv) संक्षिप्तता-प्रतिवेदन तथ्यपरक हो। अनावश्यक विस्तार या जानकारी से बचना चाहिए।
(v) रोचकता – रोचकता प्रतिवेदन को पढ़ने के लिए बाध्य करती है।
(vi) भाषा- प्रतिवेदन की भाषा पाठक के अनुरूप होनी चाहिए।
(vii) निर्वैयक्तिकता- ‘प्रतिवेदन’ को निर्वैयक्तिक बनाने के लिए अन्य पुरुष सर्वनामों का प्रयोग किया जाना चाहिए। प्रतिवेदन लिखते समय ‘मैं’ शैली का प्रयोग कदापि न किया जाए।
23. प्रतिवेदन के प्रकार (Types of Report)
प्रतिवेदन के प्रमुख प्रकार निम्नलिखित हैं-
1. शिकायती प्रतिवेदन किसी कार्यालय. या संस्था में जब किसी अधिकारी या कर्मचारी को कोई आज्ञा या आदेश दिया जाता है या निर्णय सुनाया जाता है और यह आदेश या निर्णय यदि उस कर्मचारी के विरुद्ध होता है तो वह कर्मचारी या कर्मचारी यूनियन द्वारा उनके हितों पर हुए आघात के विरुद्ध शिकायत के रूप में लिखा जाता है। इस तरह के प्रतिवेदनों द्वारा न्यायोचित माँग की जाती है तथा उचित निर्णय लिए जाने की अपील की जाती है।
2. गोपनीय प्रतिवेदन गोपनीय प्रतिवेदन सरकारी कार्यालयों में सुधार लाने के लिए या व्यवस्था को ठीक प्रकार से चलाए जाने के लिए, अधीनस्थ कर्मचारियों एवं अधिकारियों के कार्य-व्यवहार, आचरण, चाल-चलन के संबंध में वित्तीय वर्ष की समाप्ति पर लिखा जाता है और उच्चाधिकारियों के समक्ष प्रस्तुत किया जाता है। वस्तुतः इस तरह के प्रतिवेदन पूरे वर्ष में कर्मचारी अधिकारियों के कार्यकलापों तथा उनके उचित अनुचित व्यवहार का ब्योरा होता है। ‘गोपनीय प्रतिवेदन’ को अंग्रेजी में ‘Confidential Report’ कहते हैं।
3. वार्षिक या विवरणात्मक प्रतिवेदन- इस तरह के प्रतिवेदन विभिन्न कार्यालयों, संस्थाओं,
निगमों में होने वाली विविध बैठकों की कार्यवाही का ऐसा रूप होता है जो ‘कार्यवृत्त’ (minutes) में होकर भी निर्णय के रूप में कर्मचारियों को सूचित करने के लिए तैयार किया जाता है।
24. क्रॉस-कल्चर सम्प्रेषण (Cross Cultural Communication)
क्रॉस-संस्कृति एक अवधारणा है जो विभिन्न राष्ट्रों, विभिन्न पृष्ठभूमियों और विभिन्न जातियों के व्यापारिक लोगों के बीच मतभेदों और उनके पाटने के महत्व को पहचानती है।
वैश्वीकरण के साथ, नये बाजारों को खोलने और बनाये रखने में व्यावसायिक सफलता के लिए क्रॉस संस्कृति शिक्षा अत्यन्त महत्वपूर्ण है।
विदेश में काम करने वाले व्यावसायियों को प्रभावी होने के लिए शैली और सार में सूक्ष्म अन्तर सीखने की जरूरत है।
कर्मचारी अपने व्यावसायिक और शैक्षणिक संगठनों में क्रॉस सांस्कृतिक प्रशिक्षण प्राप्त कर सकते हैं।
कई कम्पनियाँ जो अपने उत्पादों और सेवाओं के लिए बाजार का विस्तार करना चाहती हैं वे कर्मचारियों को अन्य संस्कृति के लोगों के साथ प्रभावी ढंग से संवाद करने के लिए प्रशिक्षण के लिए पर्याप्त संसाधन प्रदान करती हैं।
जब किसी अन्तर्राष्ट्रीय कम्पनी के कर्मचारी दूसरे देश में स्थानान्तरित होते हैं तो उस देश की संस्कृति के पहलुओं में महारथ हासिल करने की आवश्यकता होती है। उन्हें न केवल भाषा को समझना और बोलना सीखना होता है बल्कि उनके सामाजिक मानदंडों को भी अपनाना पड़ता है। आज विदेशों में प्रबंधकीय समताओं के कार्यरत कर्मचारियों के लिए क्रॉस संस्कृति शिक्षा को अनिवार्य माना जाता है।
25. श्रव्य संकेत (Audio Sign)
इसको ध्वनि संकेत भाषा भी कहा जाता है। मानव सभ्यता के प्राचीनकाल से ही ध्वनि संकेतों द्वारा सम्प्रेषण किया जाता है। खुशी, गम, हर्ष, विजय, युद्ध एवं भय के लिए अति प्राचीन काल से ध्वनि संकेतों का प्रयोग किया जाता है जो परम्परागत ढंग से आज भी किया जाता है।
ध्वनि उत्पन्न करने के लिए ढोल, नगाड़ों एवं अन्य वाद्य यन्त्रों की सहायता ली जाती है। आधुनिक समय में भी किसी व्यावसायिक कार्यालय, कारखाने आदि के दैनिक क्रियाकलापों के संचालन के लिए ध्वनि संकेत भाषा अपरिहार्य है। जैसे-अधिकारी द्वारा अपने चपरासी (Peon) को बुलाने के लिए घण्टी (Bell) का प्रयोग तथा कारखानों में पारी (Shift) शुरू होने, समाप्त होने, भोजनावकाश के लिए हूटर सायरन सीटी का प्रयोग होता है।
26. अन्तर्राष्ट्रीय संचार (International Communication)
वर्तमान समय में उदारीकरण एवं भूमण्डलीकरण के कारण व्यावसायिक क्रियाएँ एवं संस्थान केवल क्षेत्रीय सीमा तक ही सीमित नहीं रह गए हैं बल्कि ये राष्ट्रीय सीमाओं को पार करके विश्व स्तर पर कार्य करते हैं। आधुनिक संचार साधनों के कारण विश्व छोटा होकर एक ‘सांसारिक गाँव’ बन गया है जो भिन्न-भिन्न सम्प्रदायों और संस्कृतियों को एक ताने बाने में जोड़ता है। जब एक देश के व्यक्तियों/संस्थानों द्वारा किसी दूसरे देश के व्यक्तियों/संस्थानों के साथ सम्पर्क किया जाता है, तो इसे ही अन्तर्राष्ट्रीय संचार कहते हैं।
अन्तर्रार संचार में सांस्कृतिक भिन्नता एवं भाषा की भिन्नता के कारण अत्यधिक कठिनाइयों का वमना करना पड़ता है। अन्तर्राष्ट्रीय संचार के लिये एक देश को दूसरे देश की संस्कृति एवं भाषा को जानना आवश्यक होता है तथा साथ ही उस संस्कृति और भाषा के अनुसार अपने को परिवर्तित करने की भी आवश्यकता होती है। आज व्यावसायिक संगठन का स्वरुप बहुत बड़ा हो गया है तथा एक संगठन में विभिन्न सांस्कृतिक पृष्ठभूमि के व्यक्ति कार्यरत होते हैं जिनसे संचार करने के लिये हमें उनकी संस्कृति को समझना आवश्यक हो जाता है। अन्तर्राष्ट्रीय सम्प्रेषण क्रिया की सार्थकता के लिये आवश्यक है कि एक सन्देश प्राप्तकर्ता सन्देश को न केवल प्रेषण के अर्थों में समझे बल्कि प्रेषक को राष्ट्रीय व सांस्कृतिक पृष्ठभूमि को भी समझ सके। अतः आवश्यकता इस बात की है कि अन्तर्राष्ट्रीय सम्प्रेषण को भिन्न-भिन्न सांस्कृतिक पृष्ठभूमि के व्यक्तियों की आशाओं व आवश्यकताओं के अनुरुप औचित्यपूर्ण व प्रभावी बनाया जा सके। अतः अन्तर्राष्ट्रीय संचार के लिये सर्वप्रथम संस्कृति को समझना आवश्यक है।
27. प्रस्तुतिकरण कौशल (Presentation Skills)
प्रस्तुति कौशल से तात्पर्य उन क्षमताओं और तकनीकों से है जिनका उपयोग दर्शकों तक सूचना को प्रभावी ढंग से पहुँचाने के लिए किया जाता है। इसमें सामग्री को स्पष्ट रूप से व्यवस्थित करना, दर्शकों को आकर्षित करना, दृश्य सहायता का प्रभावी ढंग से उपयोग करना और सामग्री को आत्मविश्वास से प्रस्तुत करना शामिल है। अच्छे प्रस्तुति कौशल में दर्शकों की ज़रूरतों को समझना, किसी भी चिंता को प्रबंधित करना और संदेश को बढ़ाने के लिए शारीरिक भाषा और मुखर विविधता का उपयोग करना भी शामिल है। कुल मिलाकर, मजबूत प्रस्तुति कौशल यह सुनिश्चित करने में मदद करते हैं कि संदेश प्रभावी ढंग से संप्रेषित हो और सकारात्मक प्रभाव छोड़े।
अच्छे प्रस्तुति कौशल हेतु व्यवस्था और आत्मविश्वास की जरूरत होती है। सेमिनार प्रस्तुतिकरण में, सेमिनार गोष्ठी में, साथियों या ग्राहकों के साथ परिचर्चा में अच्छी प्रस्तुति देना आवश्यक होता है। प्रस्तुति कौशल निम्नलिखित कार्यस्थानों या पेशेवर परिस्थितियों के दौरान मददगार होगा-1.. साक्षात्कार के समय। 2. आमने-सामने की मुलाकात या बैठक सभा के दौरान । 3. नये लागों से मिलते वक्त, लोगों से सम्बन्ध बनाते समय। 4. अपने साथियों एवं सहकर्मियों से बातचीत के दौरान। 5. ग्राहकों हेतु उत्पाद विक्रय के लिये प्रस्तुति देना। 6. सेमिनार या कांफ्रेंस में प्रस्तुति देना। 7. प्रशिक्षण कार्यक्रम में प्रस्तुति देना। 8. व्यवसायियों की सभा में वक्तव्य / उद्बोधन देना।
28. व्यावसायिक संप्रेषण में भाषा का महत्व
व्यावसायिक संप्रेषण में भाषा का उपयोग अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि यह प्रभावी संवाद और संदेशों के सही संप्रेषण को सुनिश्चित करता है। व्यावसायिक संप्रेषण में उपयोग की जाने वाली भाषा स्पष्ट, संक्षिप्त, और उद्देश्यपूर्ण होनी चाहिए। इसमें शब्दों का चयन सावधानीपूर्वक करना आवश्यक है ताकि संदेश गलत तरीके से न लिया जाए।
व्यवसायिक संप्रेषण में भाषा का महत्व :
1. स्पष्टता (Clarity): संदेश को सरल और स्पष्ट शब्दों में व्यक्त करें ताकि प्राप्तकर्ता उसे आसानी से समझ सके।
2. संक्षिप्तता (Conciseness): अनावश्यक शब्दों से बचें और संदेश को संक्षेप में प्रस्तुत करें।
3. व्यवसायिकता (Professionalism): भाषा में शालीनता और आदर बनाए रखें,
खासकर जब आप ईमेल, रिपोर्ट, या प्रस्तुति तैयार कर रहे हों।
4. उद्देश्ययरकता (Purposefulness): हर शब्द और वाक्य का उद्देश्य स्पष्ट होना चाहिए, ताकि संदेश सही ढंग से प्राप्त हो और उसके अनुसार कार्य किया जा सके।
5. अनुकूलन (Adaptability): अपने संदेश को प्राप्तकर्ता के अनुसार अनुकूलित करें, जैसे कि वरिष्ठ अधिकारियों, सहकर्मियों, या ग्राहकों के लिए अलग-अलग तरीके से संप्रेषण करना।
6. सांस्कृतिक समझ (Cultural Understanding): विभिन्न सांस्कृतिक संदर्भों में
भाषा का सही उपयोग करने की क्षमता होनी चाहिए ताकि किसी भी सांस्कृतिक संवेदनशीलता का ध्यान रखा जा सके।
इन तत्वों का सही उपयोग व्यावसायिक संप्रेषण में न केवल प्रभावी संवाद को सुनिश्चित करता है, वल्कि बेहतर व्यावसायिक संबंधों का निर्माण भी करता है।
29. सांस्कृतिक आघात
सांस्कृतिक आघात (Cultural Shock) एक मनोवैज्ञानिक और भावनात्मक अनुभव है, जिसे व्यक्ति तब महसूस करता है जब वह एक नए और अपरिचित सांस्कृतिक वातावरण में प्रवेश करता है। यह अनुभव सामान्यतः तब होता है जब कोई व्यक्ति अपने मूल देश या क्षेत्र से बाहर जाकर किसी दूसरी संस्कृति में रहता है, चाहे वह पढ़ाई के लिए हो, काम के लिए हो या स्थायी रूप से रहने के लिए। सांस्कृतिक आघात को समझने और उससे निपटने की प्रक्रिया व्यक्तिगत विकास और सामाजिक समझ के लिए महत्वपूर्ण हो सकती है।
सांस्कृतिक आघात उस मानसिक और भावनात्मक अवस्था को दर्शाता है जिसमें एक व्यक्ति खुद को नई संस्कृति के बीच में अलग-थलग और असहज महसूस करता है। यह स्थिति तब उत्पन्न होती है जब व्यक्ति नई संस्कृति के रीति-रिवाजों, भाषा, सामाजिक मानदंडों और मूल्यों के बीच खुद को असहज महसूस करता है।
30. दस्तावेजीकरण
दस्तावेजीकरण (Documentation) एक प्रक्रिया है जिसमें किसी परियोजना, प्रक्रिया, या सॉफ्टवेयर के बारे में जानकारी को स्पष्ट और संरचित रूप में रिकॉर्ड किया जाता है। इसका मुख्य उद्देश्य उपयोगकर्ताओं, डेवलपर्स, और अन्य संबंधित व्यक्तियों को उस परियोजना या प्रक्रिया को समझने और उसका उपयोग करने में सहायता करना है।
दस्तावेजीकरण में आमतौर पर निम्नलिखित शामिल हो सकते हैं:
1. प्रयोगकर्ता मार्गदर्शिका (User Guide): उपयोगकर्ताओं को सॉफ्टवेयर या सिस्टम का उपयोग करने के लिए निर्देश देती है।
2. तकनीकी दस्तावेज़ (Technical Documentation): सॉफ्टवेयर आर्किटेक्चर, कोड,
एपीआई, और अन्य तकनीकी विवरणों का वर्णन करती है, ताकि डेवलपर्स उसे समझ सकें और उसका विकास या संशोधन कर सकें।
3. प्रक्रिया दस्तावेज़ (Process Documentation): इसमें कार्य प्रवाह, प्रक्रिया का चरण-वार विवरण, और प्रक्रिया के विभिन्न हिस्सों को कैसे निष्पादित किया जाए, इसकी जानकारी होती है।
4. प्रोजेक्ट दस्तावेज़ (Project Documentation): परियोजना के लक्ष्यों, समयसीमा, संसाधनों, और परियोजना के दौरान उपयोग की जाने वाली विधियों का वर्णन करती है।
दस्तावेजीकरण को नियमित रूप से अपडेट करना महत्वपूर्ण है, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि यह समय के साथ प्रासंगिक और सटीक बनी रहे।
Confirm Question Pepper By Madhav sir
Q. 1. व्यावसायिक संप्रेषण क्या है ? व्यावसायिक संप्रेषण से अपना परिचय दीजिए। (What is business communication? Give an introduction about business communication.)
Ans. सम्प्रेषण (Communication) शब्द अंग्रेजी के ‘Common’ शब्द से बना है जिसकी उत्पत्ति लैटिन शब्द ‘Communicare’ से हुई है, जिसका शाब्दिक अर्थ है एक समान। सम्प्रेषण वह साधन है जिसमें संगठित क्रिया द्वारा तथ्यों, सूचनाओं, विचारों, विकल्पों एवं निर्णयों का दो या अधिक व्यक्तियों के मध्य अथवा व्यावसायिक उपक्रमों के मध्य आदान-प्रदान होता है। सन्देशों का आदान-प्रदान लिखित, मौखिक अथवा सांकेतिक हो सकता है। माध्यम बातचीत, विज्ञापन, रेडियो, टेलीविजन, समाचारपत्र, ई-मेल, पत्राचार आदि कुछ भी हो सकता है। सम्प्रेषण को सन्देशवाहन, संचार अथवा संवहन आदि समानार्थी शब्दों से पुकारा जाता है।
सम्प्रेषण एक वाक्-प्रक्रिया है जिसके अन्तर्गत व्यक्ति अपने विचारों अथवा भावनाओं को व्यक्त करता है। दूसरे शब्दों में, यह दो या दो से अधिक व्यक्तियों के बीच विचारों, भावनाओं अथवा सूचनाओं का आदान-प्रदान करने की प्रक्रिया है। सम्प्रेषण के माध्यम से वक्ता अपने विचारों को व्यक्त करता है और श्रोता उन विचारों को ग्रहण करता है।
सम्प्रेषण भाषा का प्रमुख कार्य है। विचारों का आदान-प्रदान भाषा के माध्यम से होता है। भाषा के इसी कार्य को सम्प्रेषण कहते हैं। सम्प्रेषण दो या दो से अधिक व्यक्तियों के मध्य प्रेषित होता है। यह लिखित, मौखिक, सांकेतिक या चित्रात्मक माध्यम से हो सकता है।
संप्रेषण हेतु संदेश का होना आवश्यक है। संदेश में पहला पक्ष प्रेषक (संदेश भेजनेवाला) और दूसरा पक्ष प्रेषणी (संदेश पाने वाला) होता है।potes parte
– सम्प्रेषण उसी समय पूर्ण होता है जब संदेश मिल जाता है। साथ ही उसका प्रत्युत्तर भी मिलना आवश्यक है। निष्कर्षतः कह सकते हैं कि सम्प्रेषण एक आशय जनक प्रक्रिया है जिसमें वक्ता अपने विचारों को व्यक्त करता है और श्रोता उन विचारों को ग्रहण करता है।
संप्रेषण या संचार विभिन्न मार्गों से गुजरता हुआ एक-दूसरे तक पहुँचता है। इस प्रक्रिया में विभिन्न कठिनाइयाँ या बाधाएँ भी आती हैं। परिणामस्वरूप प्रेषित संदेश या तो गलत हो जाता है या अपूर्ण रूप से ग्रहण किए जाने के कारण बड़ी त्रासद स्थितियों का भी सामना करना पड़ जाता है।
व्यवसाय में सम्प्रेषण (संचार) माध्यम की अपनी एक विशेष भूमिका है। कोई भी व्यापारी, व्यवसायी अथवा उद्योगपति सम्प्रेषण की विभिन्न प्रक्रियाओं में भाग लेता है। वह विभिन्न प्रकार की व्यापारिक जानकारी अलग-अलग माध्यमों से ज्ञात करता है। अपने व्यापार के बारे में लोगों को जानकारी देता है। इस जानकारी को देने के लिए अपने Network का सहारा लेता है, आदि-आदि। यह सारा कार्य सम्प्रेषण के माध्यम से ही सम्पादित कर पाता है। सम्प्रेषण के अभाव में वह आप की दुनिया में लगभग कोई कार्य सुचारु रूप से सम्पादित नहीं कर पाता है।
आधुनिक व्यावसायिक युग में व्यापार अथवा उपक्रम की सफलता का मूल तत्व न केवल सम्प्रेषण बल्कि ‘प्रभावी सम्प्रेषण’ के कारण ही सम्भव है। सम्प्रेषण ही वह साधन है |
Q.2. साक्षात्कार से क्या समझते हैं? एक साक्षात्कारक के क्या गुण होने चाहिए? एक साक्षात्कारी के लिए किन-किन दिशा निर्देशों का पालन करना आवश्यक है? (What do you mean by an Interview? What should be the qualities of a good Interviewer (conductor)? What are the guide lines for an Interviewee ?)
Ans. साक्षात्कार सम्प्रेषण प्रक्रिया का एक महत्वपूर्ण अंग है। साक्षात्कार प्रक्रिया में दो व्यक्तियों (पक्षों) के मध्य व्यक्तिगत सम्पर्क स्थापित होता है जिनको साक्षात्कारक (Interviewer) एवं साक्षात्कारी (Interviewee) कहते हैं। साक्षात्कार शब्द की उत्पत्ति फ्रेंच शब्द Entrevoir से हुई है जिसका शाब्दिक अर्थ झलक ‘to glimpse’ अथवा एक-दूसरे को परखना ‘to see each other’ से होता है। साक्षात्कार प्रक्रिया के दौरान साक्षात्कारक एवं साक्षात्कारी (सूचनादाता) से आमने-सामने का प्रत्यक्ष सम्पर्क स्थापित किया जाता है। साक्षात्कार के दौरान प्रश्नों के द्वारा महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त की जाती है। साक्षात्कार औपचारिक सम्प्रेषण प्रक्रिया की एक विशिष्ट विधा है। विभिन्न विद्वानों ने साक्षात्कार को निम्न प्रकार परिभाषित किया है :
वी. एम. पामर के अनुसार, “साक्षात्कार दो व्यक्तियों के मध्य पायी जाने वाली एक विशेष सामाजिक परिस्थिति है। जिसमें एक मनोवैज्ञानिक प्रक्रिया के अन्तर्गत दोनों व्यक्ति परस्पर उत्तर-प्रतिउत्तर करते हैं।”
एच. पी. यंग के अनुसार, “साक्षात्कार क्षेत्रीय कार्य की एक विशेष तकनीक है जिसका प्रयोग किसी व्यक्ति अथवा व्यक्तियों के व्यवहार को देखने, उनके कथनों को लिखने व सामाजिक अथवा अन्तःक्रिया के स्पष्ट परिणामों का अध्ययन करने के लिए किया जाता है।”
Q.3. TED टॉक क्या है और यह संचार और पेशेवर जीवन में कैसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है? TED टॉक के मुख्य तत्वों और उनके प्रभावों की चर्चा करें।
(What is TED Talk and how does it play an important role in communication and professional life? Discuss the main element and impact of a TED Talk.)
Ans. TED टॉक एक ऐसा’ मंच है जहां विचारशील और प्रेरणादायक वक्ता अपने अनुभवों, ज्ञान, और विचारों को संक्षिप्त और प्रभावशाली रूप में प्रस्तुत करते हैं। TED का मतलब है “Technology, Entertainment, Design” यानी “तकनीक, मनोरंजन, डिज़ाइन”। हालांकि, समय के साथ, TED टॉक के विषयों की विविधता बढ़ गई है, और आज TED टॉक में विज्ञान, शिक्षा, व्यवसाय, कला, वैश्विक मुद्दों, और व्यक्तिगत विकास जैसे कई महत्वपूर्ण विषयों पर बात की जाती है। यह मंच वैश्विक स्तर पर विचारों के आदान-प्रदान और नवाचार को बढ़ावा देने के लिए जाना जाता है।
TED टॉक की सबसे प्रमुख विशेषता यह है कि इसे 18 मिनट या उससे कम समय में प्रस्तुत किया जाता है। यह सीमा वक्ताओं को अपने विचारों को सटीक और स्पष्ट रूप में व्यक्त करने के लिए प्रेरित करती है। समय की इस सीमा के कारण, वक्ताओं को अपने संदेश को संक्षिप्त और आकर्षक बनाने की आवश्यकता होती है, जिससे श्रोताओं पर गहरा प्रभाव पड़ता है।
संचार और पेशेवर जीवन में TED टॉक की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। पेशेवर जीवन में, संचार एक महत्वपूर्ण कौशल है, और TED टॉक इस कौशल को निखारने का एक उत्कृष्ट साधन है। TED टॉक के माध्यम से, वक्ता यह सीखते हैं कि कैसे जटिल विचारों को सरल और प्रभावी तरीके से प्रस्तुत किया जाए। यह कौशल न केवल व्यक्तिगत विकास के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि पेशेवर जीवन में भी अत्यंत उपयोगी है, जहां स्पष्ट और प्रभावी संचार सफलता की कुंजी होती है।
TED टॉक के मुख्य तत्वों में शामिल हैं:
1. स्पष्ट संदेश : TED टॉक का सबसे महत्वपूर्ण तत्व उसका संदेश होता है। वक्ता को यह सुनिश्चित करना होता है कि उनका संदेश स्पष्ट और समझने योग्य हो। इसके लिए आवश्यक है कि विचारों को सरलता से प्रस्तुत किया जाए और श्रोताओं के लिए संबंधित और प्रेरणादायक हो।
2. कहानी कहने का कौशल TED टॉक में अक्सर वक्ता अपनी बात को समझाने के लिए कहानियों का सहारा लेते हैं। कहानियां श्रोताओं को जोड़े रखती हैं और संदेश को प्रभावशाली * बनाती हैं। एक अच्छी कहानी श्रोताओं के दिल में गहरी छाप छोड़ सकती है और विचारों को उनके साथ जोड़ सकती है।
3. व्यक्तिगत अनुभव : TED टॉक में वक्ता अक्सर अपने व्यक्तिगत अनुभवों को साझा करते हैं, जो श्रोताओं को प्रेरित करता है और उन्हें संबंधित महसूस कराता है। व्यक्तिगत अनुभव के आधार पर प्रस्तुत किया गया विचार अधिक प्रामाणिक और प्रभावी होता है।
4. दृश्य सामग्री का उपयोग TED टॉक में दृश्य सामग्री का उपयोग भी प्रमुख रूप से किया जाता है। चित्र, ग्राफिक्स, और स्लाइड्स के माध्यम से जटिल जानकारी को सरलता से समझाया जा सकता है। यह न केवल श्रोताओं को जानकारी को समझने में मदद करता है, बल्कि प्रस्तुति को भी आकर्षक बनाता है।
Q.04. वार्षिक रिपोर्ट क्या है? एक कम्पनी के वार्षिक रिपोर्ट का सारांश आप कैसे तैयार करेंगे? वार्षिक रिपोर्ट में कौन-कौन से तत्व शामिल होते हैं? (What is annual report ? How do you summarize a company’s annual
report? What elements are included in the annual report?) Ans. वार्षिक रिपोर्ट पिछले वर्ष के दौरान कम्पनी की गतिविधियों का विवरण देने वाली एक व्यापक रिपोर्ट है। वार्षिक रिपोर्ट एक व्यापक रिपोर्ट है जिसमें पिछले वर्ष के दौरान कम्पनी की गतिविधियों का विवरण दिया जाता है। इसका उद्देश्य शेयरधारकों या संभावित निवेशकों जैसे उपयोगकर्ताओं को कंपनी के संचालन और वित्तीय प्रदर्शन के बारे में जानकारी प्रदान करना है।
वार्षिक रिपोर्ट व्यापक दस्तावेज है जो पाठकों को पिछले वर्ष में कंपनी के प्रदर्शन के ‘बारे में जानकारी प्रदान करने के लिए डिजाइने की गई हैं। रिपोर्ट में प्रदर्शन हाइलाइट्स, सीइओ का एक पत्र, वित्तीय जानकारी और भविष्य के वर्षों के लिए उद्देश्य और लक्ष्य जैसी जानकारी शामिल है। वार्षिक रिपोर्ट के कई उपयोगकर्ता हैं, जिनमें शेयरधारक और संभावित निवेशक, कर्मचारी और ग्राहक शामिल हैं।
वार्षिक रिपोर्ट अपने पाठकों के लिए महत्त्वपूर्ण मात्रा में जानकारी प्रदान करती है जो पिछले वर्ष में कम्पनी के समग्र प्रदर्शन का एक अच्छा अवलोकन प्राप्त करने में सक्षम होंगे। यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि कई वार्षिक रिपोर्ट बड़ी मात्रा में बाद वाली पारंपरिक रिपोर्ट नहीं है; कई कम्पनियाँ अक्सर बहुत सारे ग्राफिक्स और छवियों को शामिल करती हैं, जिसके परिणामस्वरूप एक आकर्षक दस्तावेज बनता है।
वार्षिक रिपोर्ट की संरचना निःसन्देह प्रत्येक कम्पनी के अनुसार अलग-अलग होगी, लेकिन अधिकांश वार्षिक रिपोर्ट में आम तौर पर निम्नलिखित तत्व शामिल होंगे;
(i) अध्यक्ष या सीईओ का एक पत्र
(ii) पिछले वर्ष के प्रदर्शन पर प्रकाश डाला गया
(iii) वित्तीय विवरण
(iv) भविष्य के वर्षों के लिए प्रदर्शन और दृष्टिकोण।
सीईओ का पत्र शेयरधारकों को संबोधित है और पिछले वर्ष में कम्पनी के प्रदर्शन का सारांश प्रदान करता है। सीईओ आमतौर पर कम्पनी की उपलब्धियों को उजागर करने के लिए अपने पत्रों पर बहुत समय बिताते हैं, क्योंकि इसका प्रदर्शन उस उद्योग के सापेक्ष होता है जिसमें यह काम करता है। पत्र में शेयरधारकों के लिए रूचि की जानकारी का उल्लेख होने की संभावना है क्योंकि वे रिपोर्ट के प्राथमिक पाठक हैं।
वार्षिक रिपोर्ट आमतौर पर कम्पनी की कुछ प्रमुख उपलब्धियों को उजागर करने के लिए एक अनुभाग समर्पित करती है, जैसे कि विशेष पहल, प्राप्त लक्ष्य, या कंपनी या उसके कर्मचारियों द्वारा प्राप्त पुरस्कार। अनुभाग का मुख्य लक्ष्य यह सुनिश्चित करना है कि शेयरधारक कम्पनी में अपने निवेश से संतुष्ट हैं और संभावित निवेशकों को भी ऐसा करने के लिए राजी करें।
वित्तीय विवरण वार्षिक रिपोर्ट का एक प्रमुख घटक है और अपने उपयोगकर्ताओं को पिछले. वित्तीय वर्ष में इसके वित्तीय प्रदर्शन के विशिष्ट पहलुओं के सम्बन्ध में मात्रात्मक डेटा प्रदान करता हैं |
Q.05 . बायो डेटा (रिज्यूम) बनाना
बायो डेटा (रिज्यूमे) बनाने के लिए आप निम्नलिखित चरणों का पालन कर सकते हैं:
1. हेडिंग :
-नाम :
आपका पूरा नाम।
संपर्क जानकारी : फोन नंबर, ईमेल एड्रेस, और वर्तमान पता।
-फोटो (वैकल्पिक) : पासपोर्ट साइज फोटो।
2. लक्ष्य (Objective):
-इसमें आप अपनी करियर के उद्देश्य के बारे में लिख सकते हैं, जैसे कि आप किस प्रकार की नौकरी की तलाश कर रहे हैं और आप कंपनी को क्या योगदान दे सकते हैं।
3. शैक्षणिक योग्यता (Educational Qualifications) :
-यहाँ आप अपनी शिक्षा का विवरण देंगे, जिसमें पाठ्यक्रम का नाम, कॉलेज/विद्यालय का नाम, बोर्ड/विश्वविद्यालय का नाम, प्राप्त अंक/CGPA, और पास होने का वर्ष शामिल होता है।
उदाहरण:
-MBA, [कॉलेज को नाम], [विश्वविद्यालय का नाम] -2025
– BCA(Computer Science), [कॉलेज का नाम], [विश्वविद्यालय का नाम]-2025