Hindi 10th, subjective chapter-6 जनतंत्र का जन्म
लघु उत्तरीय प्रश्न उत्तर |
Short Question
1. कवि की दृष्टि में आज के देवता कौन हैं और वे कहाँ मिलेंगे ?
उत्तर – कवि की दृष्टि में आज के देवता आमलोग, किसान, मजदूर हैं,और वे गाँवों में मिलेंगे।
2. ‘जनतंत्र का जन्म कविता में किसका जयघोष है?
उत्तर – जनतंत्र का जन्म’ शीर्षक कविता में भारत में जनतंत्र की स्थापना का जयघोष है।
3. दिनकर किस भाव -धारा के कवि हैं?
उत्तर—दिनकर प्रवहमान भाव-धारा के प्रमुख कवि हैं।
4. “देवता मिलेंगे खेतों में खलिहानों में” पंक्ति के माध्यम से कवि किस देवता की बात करता है और क्यों?
उत्तर – कवि दिनकर के अनुसार जनतंत्र में प्रजा ही, जनता ही, सब-कुछ होती है। वह राजा होती है। उसी के नाम पर, उसी के हित के लिए, उसके द्वारा अधिकार – प्रदत्त लोग शासन करते हैं। इस प्रकार, प्रजा ही राजा है, जनतंत्र का देवता है। और चूँकि प्रजा किसान और मजदूर है, अतः कवि कहता है कि जनतंत्र के देवता राजप्रासादों, मंदिरों में नहीं मिलेंगे। ये मिलेंगे खेतों में, खलिहानों में, सड़कों पर ।
5. कविवर दिनकर ने जनता के स्वप्न का किस तरह चित्र खींचा है?
[ उत्तर – कविवर दिनकर ने भारतीय जनता की शक्ति और क्रांतिकारी स्वरूप को प्रस्तुत किया। वर्षों क्या, सौ वर्षों क्या, हजार वर्षों से गुलामी रूपी काला बादल अंधकार फैलाए हुए था, अब समाप्त हुआ। आसमान की खिड़कियाँ उसके हुंकार से टूटनेवाली है। क्योंकि स्वतंत्र भारत का जो स्वप्न जनता ने देखा है, वह वर्षों की कालिमा को तार-तार कर आजादी का प्रकाश फैला चुका
6. विराट जनतंत्र का स्वरूप क्या है? कवि किनके सिर पर मुकुट धरने की बात करता है और क्यों?
उत्तर- विराट जनतंत्र का स्वरूप है बड़ी संख्या में लोगों का इसमें सम्मिलित होना । जिन देशों में जनतंत्र है उनमें भारत सबसे बड़ा अर्थात् विराट् है । कवि, किसी एक व्यक्ति नहीं, जनता के माथे पर मुकुट रखने की बात कहता है। चूँकि जनतंत्र में जनता में ही राष्ट्र की प्रभुता निहित होती है, प्रत्येक व्यक्ति सरकार के निर्माण में साझीदार होता है, इसलिए कवि मानता है कि प्रत्येक नागरिक सत्ताधारी है, शासक है, इसलिए जनता के सिर पर मुकुट रखने की बात करता है।
7. जनता की भृकुटि टेढ़ी होने पर क्या होता है ?
उत्तर—जनता की भृकुटी ढेढ़ी होने पर क्रांति होती है, राज्यसत्ता बदल जाती है।
8.जनतंत्र में किसका राज्याभिषेक होता है?
उत्तर – जनतंत्र में जनता का राज्याभिषेक होता है। वही स्वामी होती है।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न उत्तर |
Long type question
1. ‘जनतंत्र का जन्म’ कविता का सारांश लिखिए।
या, ‘जनतंत्र का जन्म कविता का भावार्थं लिखें।
या, ‘जनतंत्र का जन्म’ में व्यक्त विचारों को स्पष्ट कीजिए। या, ‘जनतंत्र का जन्म’ कविता में कवि ने जनता की स्थिति और उसकी शक्ति का अहसास कराया है। कैसे?
उत्तर- राष्ट्रीय चेतना के उद्घोषक राष्ट्रकवि दिनकर देश में जनतंत्र की स्थापना की घोषणा करते हैं सदियों गुलामी झेलने के पश्चात् जनतंत्र आ रहा हैं, समय की पुकार सुनो और सिंहासन छोड़ो, जनता खुद आ रही है सिंहासनारूढ़ होने
हाँ, वही जनता जो अबोध मिट्टी की मूरत सी जाड़ा पाला सहती और मुँह नहीं खोलती । वही जनता जिसके बारे में कहा जाता है कि वह बहुत कष्ट सहती है, वह क्या कहती है, यह जानना चाहिए। फूल सी जनता जिसे तोड़कर डाली में सजा लिया जाता रहा है या वह दुधमुंही बच्ची जिसे चंद खिलौनों
से बहला लिया जाता रहा है, वही जनता आ रही है।
. लोग नहीं जानते कि जनता की भृकुटि टेढ़ी होती है तो ऐसे भूचाल आते हैं कि बड़े-बड़े राजमहल ध्वस्त हो जाते हैं, उसके क्रोध की आँधी में जाने कितने ताज हवा में गुम हो जाते हैं। जनता को कोई रोक नहीं सकता। जनता स्वयं समय की धारा बदल देती है।
सदियों सहस्राब्दियों के अंधकार की छाती चीर जनता के सपनों का मूर्त जनतंत्र आ गया है। अब एक नहीं तैंतीस कोटि लोगों को सिंहासन की जरूरत है। अब राजा का नहीं, प्रजा का राज चलेगा समान हक होगा। राज्य होगा मेहनतकशों और मजदूरों का किसानों, हलवाहों का
अब देश की जनतांत्रिक व्यवस्था में राज- दंड फावड़े और हल होंगे, श्रम राष्ट्र का प्रतीक होगा। अब उनका स्वर्ण श्रृंगार होगा, जो धूल धूसरित धूल-धूसरित हैं। समय की यही पुकार है। समय के रथ की घर्घर ध्वनि सुनो और उस पर सवार आ रही जनता के लिए सिंहासन खाली करो ।
जनता की रोके राह, समय में ताव कहाँ? वह जिधर चाहती, काल उधर ही मुड़ता है।
2. हुंकारों से महलों की नींव उखड़ जाती, साँसों के बल से ताज हवा में उड़ता है;इस पद्यांश का भाव अपने शब्दों में लिखें
उत्तर- प्रस्तुत पद्यांश जनतंत्र का जन्म पाठ से उद्धृत है। इसके लेखक रामधारी सिंह दिनकर हैं। कवि जनता के भोले-भोले स्वरूप के पश्चात् उसकी शक्ति का उल्लेख करते हुए कहता है कि जनता सामान्यतः शांत ही रहती है किन्तु अन्याय और अत्याचार की जब हद होने लगती है तो जनता क्रुद्ध हो जाती है और क्रुद्ध होकर जब हुंकार भरती है, दहाड़ती है, तो उस हुंकार से अत्याचार के संस्थान भरभरा कर गिर पड़ते हैं, वह राजाओं के ताज उतार हवा में उड़ा देती है। जनता के क्रोध का सामना करना किसी के वश की बात नहीं। वह समय की धारा बदल देती है, वह जो चाहती है, वही होता है। कहने का तात्पर्य , यह कि जब जनता जागती है, तो क्रांति होती है और राज व्यवस्था बदल जाती है । इसलिए जनता पर जुल्म नहीं करना चाहिए।
3. सदि “हुँकारों मुड़ता है सप्रसंग व्याख्या कीजिए। ..मुड़ता हैं’
उत्तर- कवि जनता के भोले-भाले स्वरूप के पश्चात् उसकी शक्ति का उल्लेख करते हुए कहता है कि जनता सामान्यतः शांत ही रहती है किन्तु अन्याय और अत्याचार की जब हद होने लगती है तो जनता क्रुद्ध हो जाती है और क्रुद्ध होकर जब हुंकार भरती है, दहाड़ती है, तो उस हुंकार से अत्याचार के संस्थान भरभरा कर गिर पड़ते हैं, वह राजाओं के ताज उतार हवा में उड़ा देती है जनता के क्रोध का सामना करना किसी के वश की बात नहीं वह समय की धारा बदल देती है. वह जो चाहती है, वही होता है। कहने का तात्पर्य यह है कि जब जनता जागती है, तो क्रांति होती है और राज-व्यवस्था बदल जाती है। इसलिए, जनता पर जुल्म नहीं करना चाहए ।
4. सदियों की ठंढी बुझी राख सुगबुगा उठी, मिट्टी सोने का ताज पहन इठलाती है। सप्रसंग व्याख्या कीजिए।
उत्तर – प्रस्तुत पद्यावतरण हमारी पाठ्य पुस्तक में संकलित, रामधारी सिंह दिनकर की ‘जनतंत्र का जन्म’ शीर्षक कविता से उद्धृत है। कविता की इन दो प्रारम्भिक पंक्तियों में कवि कहता है कि सदियों से स्वतंत्रता की बुझी राख में छिपी चिंगारी, चमक उठी अर्थात् स्वतंत्रता की माँग प्रस्तुत हुई, फलस्वरूप भारत की धूल धूसरित जनता के माथे पर सत्ता का स्वर्णिम मुकुट रखा गया है। जनता प्रसन्नता और सुख का अनुभव कर रही है।
5. ‘जनतंत्र का जन्म’ कविता के आधार पर स्पष्ट कीजिए कि दिनकर राष्ट्रवाद या जनवाद के श्रेष्ठ कवि हैं।
उत्तर- दिनकर जवानी, जोश, विद्रोह और क्रांति के शलाका कवि हैं। इनकी कविता में भूकम्प की हलचल, बरसात की गंगा का वेग और बला का ओज है। उनके मन को पराधीनता सालती है, जनता का दर्द पीड़ा देता है, अत्याचार से उनके मन में शोले भड़कते हैं।
दिनकर जनता को ठगने वालों को अच्छी तरह पहचानते हैं। ‘जनता, बड़ी वेदना सहती है’ के पीछे की मंशा उनसे छिपी नहीं है। वे उन्हें सावधान करते है कि जनता को भोली न समझें। जब जनता क्रुद्ध होती है, जागती है तो उसकी
हुँकारों से महलों की नींव उखड़ जाती, साँसों के बल से ताज हवा में उड़ता है,
दिनकर यह भी बता देते हैं कि ‘जनता की रोके राह समय में ताव कहाँ वह जिधर चाहती, काल उधर ही मुड़ता है। ‘
दिनकर के लिए राष्ट्र सर्वोपरि है। वे जानते हैं कि राष्ट्र का भला तभी होगा जब जनता स्वयं शासन सूत्र संभाले। इसीलिए जब जनतंत्र की स्थापना होती है तो उनकी प्रसन्नता का ठिकाना नहीं रहता
सबसे विराट जनतंत्र यहाँ का आ पहुँचा, तैंतीस कोटि-हित सिंहासन तैयार करो।
दिनकर की दृष्टि में जन ही देवता है, अतः ये देवता अब मंदिरों और महलों में नहीं मिलेंगे खेतों में खलिहानों में। इसलिए दिनकर कहते हैं कि इनकी राह के रोड़े न बनो, इनका रास्ता
छोड़ो, इनके लिए सिंहासन खाली करो। यही समय की पुकार है’ सिंहासन खाली करो कि जनता आती है। ‘ इस प्रकार, स्पष्ट है कि रामधारी सिंह राष्ट्रवाद या जनवाद के श्रेष्ठ कवि हैं।
6. ‘जनतंत्र का जन्म’ का मूल भाव क्या है? संक्षेप में स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर- दिनकर राष्ट्रीयता की प्रवाहमान धारा और जन-जन के जागृत कवि हैं। इसीलिए पराधीनता की काली रात के अवसान पर जब राष्ट्र-क्षितिज पर जनतंत्र का उदय होता है तो वे इसका उद्घोष करते हैं। वे कहते है, यह समय की माँग है कि जनता राजा हो । जनता की शक्ति को कम नहीं आँकना चाहिए। वह भोली-भाली भले है किन्तु जब कुपित होती है तो उसके आक्रोश की आँधी में बड़े-बड़े साम्राज्य उखड़ जाते हैं। एक बार जनता जो ठान लेती है, वह पूरा करके ही रहती है। अतएव, जनता का सम्मान करना चाहिए। उसकी समृद्धि और सुख के प्रयत्न से ही शांति रहेगी। जनता ही जनार्दन है। इन्हीं भावों को कवि ने ‘जनतंत्र का जन्म’ की काव्य पंक्तियों में पिरोया है।
Hindi 10th, subjective chapter-6 जनतंत्र का जन्म
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