Class 12th, hindi पाठ- 9 जन-जनका चेहरा एक | गजानन माधव मुक्तिबोध SUBJECTIVE- प्रश्न उत्तर, inter hindi subjective- question answer,

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09.जन-जनका चेहरा एक | गजानन माधव मुक्तिबोध |

कविता का सारांश

जन जन का चेहरा एक शीर्षक कविता में यशस्वी कवि मुक्तिबोध ने अत्यंत सशक्त एवं रोचक ढंग से विश्व के विभिन्न जातियों एवं संस्कृतियों के बीच एकरूपता दर्शाते हुए प्रभावोत्पादक मनोवैज्ञानिक संश्लेषण किया है। कवि के अनुसार संसार के प्रत्येक महादेश प्रदेश तथा नगर के लोगों में एक सी प्रवृत्ति पायी जाती है। विद्वान कवि की दृष्टि में प्रकृति समान रूप से अपनी ऊर्जा प्रकाश एवं अन्य सुविधाएं समस्त प्राणियों को वह चाहे जहां निवास करते हो उनकी भाषा एवं संस्कृति जो भी हो बिना भेदभाव किए प्रदान कर रही हैं। कवि की संवेदना प्रस्तुत कविता में स्पष्ट मुखरित होती हैं।

ऐसा प्रतीत होता है कि कवि शोषण तथा उत्पीड़न का शिकार जनता द्वारा अपने अधिकारों के संघर्ष का वर्णन कर रहा है। यह समस्त संसार में रहने वाली जनता के शोषण के खिलाफ संघर्ष को रेखांकित करता है। इसलिए कवि उनके चेहरे की झुर्रियों को एक समान पाता है। कवि प्रकृति के माध्यम से उनके चेहरे की झुर्रियों की तुलना गलियों में फैली हुई धूप से करता है। अपने अधिकारों के लिए संघर्षरत जनता की बंधी हुई मुडियों में हद – संकल्प की अनुभूति कवि को हो रही है। गोलाकार पुरुषों के चतुर्दिक जन-समुदाय का एक दल हैं। आकाश में एक भयानक सितारा चमक रहा है और उसका रंग लाल है लाल रंग हिंसा हत्या तथा प्रतिरोध की ओर संकेत कर रहा है। जो दमन अशांति एवं निरंकुश पाशविकता का प्रतीक है। सारा संसार इसे त्रस्त हैं। यह दानवीय कुकृत्यों की अंतहीन गाथा है। नदियों की तीव्र धारा में जनता की जीवन-धारा का बहाव कवि के अंर्तमन की वेदना के रूप में प्रकट हुआ है। जल का अविरत कल-कल करता प्रवाह वेदना के गीत जैसे प्रतीत होते हैं। प्रकारान्तर में यह मानव मन की व्यथा-कथा जिसे इस संकेतिक शैली में व्यक्त किया गया है। जनता अनेक प्रकार के अत्याचार, अन्याय तथा अनाचार से प्रताड़ित हो रही है। मानवता के शत्रु जनशोषक दुर्जन लोग काली काली छाया के समान अपना प्रसार कर रहे हैं। अपने कुकृत्यों तथा अत्याचारों का काला दुर्ग खड़ा कर रहे हैं। गहरी काली छाया के समान दुर्जन लोग अनेक प्रकार के अनाचार तथा अत्याचार कर रहे हैं उनके कुकृत्यों की काली छाया फैल रही हैं ऐसा प्रतीत होता है कि मानवता के शत्रु इन दानवों द्वारा अनैतिक एवं अमानवीय कारनामों का काला दुर्ग काले पहाड़ पर अपनी काली छाया प्रसार कर रहा है। एक और जल शोषण शत्रु खड़ा है दूसरी और आशा की उल्लासमयी लाल ज्योति से अंधकार का विनाश करते हुए स्वर्ग के समान मित्र का घर है। संपूर्ण विश्व में ज्ञान एवं चेतना की ज्योति में एकरूपता है। संसार का कण-कण उसके तीव्र प्रकाश से प्रकाशित है। उसके अंतर से प्रस्फुटित क्रांति की ज्वाला अर्थात प्रेरणा सर्वव्यापी तथा उसका रूट भी एक जैसा हैं। सत्य का उज्जवल प्रकाश जन-जन के हृदय से व्याप्त है तथा अभिवन साहस का संसार एक समान हो रहा है क्योंकि अंधकार को चीरता हुआ मित्र का स्वर्ग है।

प्रकाश की शुभ ज्योति का रूप एक है। वह सभी स्थान पर एक समान अपनी रोशनी बिखेरता है। क्रांति से उत्पन्न ऊर्जा एवं शक्ति भी सर्वत्र एक समान परिलक्षित होती है। सत्य का दिव्य प्रकाश भी समान रूप से सबको लाभान्वित करता है। विश्व के असंख्य लोगों की वेदना में भी कोई अंतर नहीं है इसका कारण है कि समस्त जनता का चेहरा एक है। भिन्न भिन्न संस्कृतियों वाले विभिन्न महादेशों की भौगोलिक एवं ऐतिहासिक विशिष्टताओं के बावजूद, वे भारत वर्ष की जीवन शैली से प्रभावित है क्योंकि यहां विश्व बंधुत्व भूमि है जहां कृष्ण की बांसुरी बजी थी तथा कृष्ण ने गायें चराई थी। पूरे विश्व में दानों एवं दुरात्मा एकजुट हो गए हैं। दोनों की कार्य शैली एक है। शोषक होने तथा चोर सभी का लक्ष्य एक ही है इन तत्वों के विरुद्ध छेड़ा गया युद्ध की शैली भी एक है। सभी जनता के समूह के मस्तिष्क का चिंतन तथा हृदय के अंदर की प्रबलता में भी एकरूपता हैं। उनके हृदय की प्रबल ज्वाला की प्रखरता भी एक समान है। क्रांति का सृजन तथा विजय का देश के निवासी का सेहरा एक है। संसार के किसी नगर प्रांत तथा देश के निवासी का चेहरा एक है तथा वे एक ही लक्ष्य के लिए संघर्षरत है। सारांश यह है कि संसार में अनेकों प्रकार के अनाचार शोषण तथा दमन समान रूप से अनवरत जारी है। उसी प्रकार जनहित के अच्छे कार्य भी समान रूप से हो रहे हैं। सभी की आत्मा एक है उनके हृदय का अंतः स्थल एक हैं। इसलिए कवि का कथन हैसंग्राम का घोष एक, जीवन संतोष एक, क्रांति का निर्माण को विजय का चेहरा एक चाहे जिस देश, प्रांत, पुर का हो, जन जन का चेहरा एका

सब्जेक्टिव-

1. जन जन का चेहरा एक से कवि का क्या तात्पर्य है ?

उत्तर- जन जन का चेहरा एक कविता अपने में एक विशिष्ट एवं व्यापक अर्थ समेटे हुए हैं। कवि पीड़ित संघर्षशील जनता की एकरूपता तथा समान चिंतनशीलता का वर्णन कर रहा है। कवि की संवेदना विश्व के तमाम देशों में संघर्षरत जनता के प्रति मुखरित हो गई है जो अपने मानवोचित अधिकारों के लिए कार्यरत है एशिया यूरोप अमेरिका अथवा कोई भी अन्य महादेश या प्रदेश में निवास करने वाले समस्त प्राणियों के शोषण तथा उत्पीड़न के प्रतिकार का स्वरूप एक जैसा है। उनमें एक अदृश्य एवं अप्रत्यक्ष एकता है उनकी भाषा संस्कृति एवं जीवन शैली • भिन्न हो सकती है किंतु उन सभी के चेहरों में कोई अंतर नहीं दिखता अर्थात उनके चेहरे पर हर्ष एवं विषाद आशा तथा निराशा की प्रतिक्रिया एक जैसी होती है समस्याओं से जूझने का स्वरूप एवं पद्धति भी समान है।

कहने का तात्पर्य है कि यह जनता दुनिया के समस्त देशों में संघर्ष कर रही है। अथवा इस प्रकार कहां जाए कि विश्व के समस्त देश प्राण तथा नगर सभी स्थान के प्रत्येक व्यक्ति के चेहरे एक समान है उनकी मुखाकृति में किसी प्रकार की भिन्नता नहीं है। आशय स्पष्ट है विश्व •बंधुत्व एवं उत्पीड़ित जनता जो सतत् संघर्षरत है कवि उसी पीड़ा का वर्णन कर रहा है।

2. बंधी हुई मुट्ठियों का क्या लक्ष्य है ?

उत्तर- विश्व के तमाम देशों में संघर्षरत जनता की संकल्पशीलता ने उसकी मुट्ठियों को जोश में बांध दिया है कभी ऐसा अनुभव कर रहा है मानो समस्त जनता अपने लक्ष्य की प्राप्ति के लिए संपूर्ण ऊर्जा से लबरेज अपनी मुट्ठियों द्वारा संघर्षरत है। प्राय देखा जाता है कि जब कोई व्यक्ति क्रोध की मनोदशा में रहता है अथवा किसी कार्य को संपादित करने की दृढ़ता तथा प्रतिबद्धता का भाव जागृत होता है। तो उसकी मुट्ठियों बंध जाती है। की भुजाओं में नवीन स्फूर्ति का संचार होता है यहां पर बंधी हुई मुट्ठियों का तात्पर्य गाड़ी के प्रति दृढ़ संकल्पनाशीलता तथा अधीरता (बेताबी) से है। जैसा इन पंक्तियों में वर्णित है जोश में यों ताकत में बंधी हुई मुट्ठियों का लक्ष्य एक

3. कवि ने सितारे को भयानक क्यों कहा है सितारे का इशारा किस ओर है?

उत्तर- कवि ने अपने विचार को प्रकट करने के लिए काफी हद तक प्रवृत्ति का भी सहारा लिया है कवि विश्व के जन-जन की पीड़ा शोषण तथा अन्य समस्याओं का वर्णन करने के क्रम में अनेकों दृष्टांतों का सहारा लेता है। इस क्रम में वह आकाश में भयानक सितारे की ओर इशारा करता है वह सितारा जलता हुआ है और उसका रंग लाल है प्राय: कोई वस्तु आग की ज्वाला में जलकर लाल हो जाती है लाल रंग हिंसा खून तथा प्रतिशोध का परिचायक है। इसके साथ ही यह • उत्पीड़न दमन अशांति एवं निरंकुश पाशविकता की ओर भी संकेत करता है।

जलता हुआ लाल की भयानक सितारा एक उद्दीपित उसका विकराल से इशारा एक उपरोक्त पंक्तियों में एक लाल तथा भयंकर सितारा द्वारा विकराल सा इशारा करने की कवि की कल्पना

है। आकाश में एक लाल रंग का सितारा प्रायः दृष्टिगोचर होता है। मंगल संभवत कवि का संकेत उसी और हो क्योंकि उस तारा की प्रकृति भी गर्म है कवि ने जलता हुआ भयानक सितारा जो लाल हैं- इस अभिव्यक्ति द्वारा संकेतिक भाषा में उत्पीड़न दमन एवं निरंकुश शोषकों द्वारा जन जन के कष्टों का वर्णन किया है इस प्रकार कभी विश्व की वर्तमान विकराल दानवी प्रकृति से संवेदनशील हो गया प्रतीत होता है।

4. नदियों की वेदना का क्या कारण है ?

उत्तर- नदियों की वेगावती धारा में जिंदगी की धारा के बहाव कवि के अंत: मन की वेदना को प्रतिबिंबित करता है कवि को उनके कल कल करते प्रवाह में वेदना की अनुभूति होती है। गंगा इरावती नील अमेज़न नदियों की धारा मानव मन की वेदना को प्रकट करती है जो अपने मानवीय अधिकारों के लिए संघर्षरत है। कजनता को पीड़ा तथा संघर्ष को जनता से जोड़ते हुए बहती हुई नदियों में वेदना के गीत कवि को सुनाई पड़ते हैं।

5. दानव दुरात्मा से क्या अर्थ है ?

उत्तर- पूरे विश्व की स्थिति अत्यंत भयावह दारूण तथा अराजक हो गई हैं। दानव और दुरात्मा का अर्थ है- जो अमानवीय कृत्यों में संलग्न रहते हैं जिनका आचरण पाशविक होता है उन्हें दानव कहा जाता है। जो दुष्ट प्रकृति के होते हैं तथा दुराचारी प्रवृत्ति के होते हैं उन्हें दुरात्मा कहते हैं। वस्तु था दोनों में कोई भेद नहीं है एक ही सिक्के के दो पहलू होते हैं यह सर्वत्र पाए जाते हैं।

6. ज्वाला कहां से उठती हैं कवि ने इसे अतिक्रुद्ध क्यों कहा है?

उत्तर- ज्वाला का उद्गम स्थान मस्तक तथा हृदय के अंदर की उष्मा है। इसका अर्थ क्या होता है कि जब मस्तिष्क में कोई कार्य योजना बनती है तथा हृदय की गहराई में उसके प्रति तीव्र उत्कंठा की भावना निर्मित होती है वह एक प्रज्वलित ज्वाला का रूप धारण कर लेती है। •अतिकुद्ध का अर्थ होता हैं अत्यंत कुपित मुद्रा में आक्रोश की अभिव्यक्ति कुछ इसी प्रकार होती है। अत्याचार शोषण आदि के विरुद्ध संघर्ष का आहवान हृदय की अतिक्रुद्ध ज्वाला की मनः स्थिति में होता हैं।

7. समूची दुनिया में जन जन का युद्ध क्यों चल रहा है?

उत्तर- संपूर्ण विश्व में जन जन का युद्ध जन मुक्ति के लिए चल रहा है शोषक खूनी चोर तथा अन्य अराजक तत्वों द्वारा सर्वत्र व्याप्त असंतोष तथा आक्रोश की परिणति जन जन के युद्ध अर्थात जनता द्वारा छेड़े गए संघर्ष के रूप में हो रहा है।

8. कविता का केंद्रीय विषय क्या है ?

उत्तर- कविता का केंद्रीय विषय पीड़ित और संघर्षशील जानता है वह शोषण उत्पीड़न तथा अनाचार के विरुद्ध संघर्षरत है अपने मानवोचित अधिकारों तथा दमन की क्रूरता के विरुद्ध यह उसका युद्ध का उदघोष है। क्या किसी एक देश की जनता नहीं है दुनिया के तमाम देशों में संघर्षरत जन-समूह है जो अपने संघर्षपूर्ण प्रयास से न्याय शांति सुरक्षा बंधुत्व आदि की दिशा में प्रयासरत हैं। संपूर्ण विश्व की इस जनता में अपूर्व एकता तथा एकरुकता है। 

9. प्यार का इशारा और क्रोध का दुधारा से क्या तात्पर्य हैं ?

उत्तर- गंगा इरावती नील अमेज़न आदि नदियां अपने अंतर में समेटे हुए अपार जल राशि निरंतर प्रवाहित हो रही है। उनमें वेग है शक्ति है तथा अपनी जीव धारा के प्रति एक बेचैनी है प्यार भी हैं क्रोध भी है प्यार एवं आक्रोश का अपूर्व संगम है उनमें एक करुणाभरी ममता है तो अत्याचार शोषण एवं पाशविकता के विरुद्ध दोधारी आक्रामकता भी हैं प्यार का इशारा तथा क्रोध की दुधारा का तात्पर्य यही है।

10. पृथ्वी के प्रसार को किन लोगों ने अपनी सेनाओं से गिरफ्तार कर रखा है?

उत्तर- पृथ्वी के प्रसार को दुराचारियों तथा दानवी प्रकृति वाले लोगों ने अपनी सेनाओं द्वारा गिरफ्तार किया है उन्होंने अपने काले कारनामों द्वारा प्रताड़ित किया है। उनके दुष्कर्मों तथा अनैतिक कृत्यों से पृथ्वी प्रताड़ित हुई हैं। इस मानवता के शत्रुओं ने पृथ्वी को गंभीर यंत्रणा दी है।

11. अर्थ स्पष्ट करें ?

आशामयी लाल-लाल किरणों से अंधकार, चीरत सा मित्र का स्वर्ग एक,

जन जन का मित्र एक,

उत्तर- आशा से परिपूर्ण लाल-लाल किरणों से अंधकार को चीरता वह मित्र का एक स्वर्ग है वह जन जन का मित्र है कवि के कहने का अर्थ यह है कि सूर्य को लाल किरणें अंधकार का नाश करते हुए मित्र के स्वर्ग के समान है। समस्त मानव समुदाय का वह मित्र हैं।

विशेष अर्थ यह प्रतीत होता है कि विश्व के तमाम देशों में संघर्षरत जनता जो अपने अधिकारों की प्राप्ति न्याय शांति एवं बंधुत्व के लिए प्रयत्नशील है उसे आशा के मनोहारी किरणें स्वर्ग के आनंद के समान दृष्टिगोचर हो रही है।

2 .एशिया के यूरोप के अमेरिका के

भिन्न-भिन्न वास स्थान,

भौगोलिक ऐतिहासिक बंधनों के बावजूद, सभी ओर हिंदुस्तान सभी ओर हिंदुस्तान,

उत्तर- भौगोलिक तथा ऐतिहासिक बंधनों में बंधे रहने के बावजूद एशिया यूरोप अमेरिका आदि जो विभिन्न स्थानों से अवस्थित हैं केवल हिंदुस्तान के ही शोहरत है इसका आशय यह है कि एशिया यूरोप अमेरिका आदि विभिन्न महाद्वीपों में भारत की गौरवशाली तथा बहुरंगी परंपरा की धूम है सर्वत्र भारतवर्ष की सराहना है भारत विश्व बंधुत्व मानवता करुणा सच्चरित्रता आदि मानवोचित दोनों तथा संस्कारों की प्रणेता है। अतः संपूर्ण विश्व की जगह आशा तथा विश्वास के साथ इसकी ओर निहार रहे हैं।

 

 

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