Class 12th, hindi पाठ- 6 तुमुल कोलाहल कलह में [ जयशंकर प्रसाद ] SUBJECTIVE- प्रश्न उत्तर, inter hindi subjective- question answer,,

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Class 12th, hindi पाठ- 6 तुमुल कोलाहल कलह में [ जयशंकर प्रसाद ] SUBJECTIVE- प्रश्न उत्तर, inter hindi subjective- question answer,,

 

06. तुमुल कोलाहल कलह में [ जयशंकर प्रसाद ]

कविता का सारांश

प्रस्तुत कविता तुमुल कोलाहल कलह में शीर्षक कविता में छायावाद के आधार कवि श्री जयशंकर प्रसाद के कोलाहलपूर्ण कलह के उच्च स्तर से व्यथित मन की अभिव्यक्ति है। बिंदु कवि निराश तथा हतोत्साहित नहीं है।

कवि संसार की वर्तमान स्थिति से क्षुब्ध अवश्य है किंतु उन विषमताओं एवं समस्याओं में भी उन्हें आशा की किरण दृष्टिगोचर होती है। कवि की चेतना विकल होकर नींद के पूल को ढूंढने लगती है। उस समय बहुत थकी-सी प्रतीत होती है किंतु चंदन की सुगंध से सुवासित शीतल पवन उसे संबल के रूप में सांत्वना एवं स्फूर्ति प्रदान करती है। दुःख में डूबा हुआ अंधकारपूर्ण मन जो निरंतर विषाद से परिवेष्टित है। प्रातः कालीन खिले हुए पुष्पों के सम्मिलन से उल्लसित हो उठा है। व्यथा का घोर अंधकार समाप्त हो गया है। कवि जीवन की अनेक बाधाओं एवं विसंगतियों का भुक्तभोगी एवं साक्षी है। कवि अपने कथन की सम्पुष्टि के लिए अनेक प्रतीकों एवं प्रकृति का सहारा लेता है। यथा मरू- ज्वाला, चातकी, घटियां पवन को प्राचीर झुलसा विश्व दिन, कुसुम ऋतु रात, नीरधर अश्रु-सर मधु मन्द – मुकलित आदि।

इस प्रकार कवि ने जीवन के दोनों पक्षों का सूक्ष्म विवेचन किया है। यह अशांति और असफलता अनुपयुक्तता तथा अराजकता से विचलित नहीं है।

सब्जेक्टिव-

1. हृदय की बात का क्या कार्य है ?

उत्तर- चाहती है। ऐसे विषादपूर्ण समय में श्रद्धा वंदन के सुगंध से सुवासित हवा बनकर चंचल मन को इस कोलाहलपूर्ण वातावरण में श्रद्धा जो वस्तुतः कामायनी है अपने हृदय का सच्चा मार्गदर्शक बनती है। कवि का हृदय कोलाहलपूर्ण वातावरण में जब थककर चंचल चेतनाशून्य अवस्था में पहुंचकर नींद की आगोश में समाना सांत्वना प्रदान करती है। इस प्रकार कवि को अवसाद एवं अशांतिपूर्ण वातावरण में भी उज्जवल भविष्य सहज ही दृष्टिगोचर होता है।

2. कविता में उषा की किस भूमिका का उल्लेख है ?

उत्तर-छायावादी कवि जयशंकर प्रसाद द्वारा रचित तुमुल कोलाहल कलह में शीर्षक कविता में उषा काल की एक महत्वपूर्ण भूमिका का उल्लेख किया गया है। उषाकाल अंधकार का नाश करता है। उषाकाल के पूर्व संपूर्ण विश्व अंधकार में डूबा रहता है उषाकाल होते हुए सूर्य की

रोशनी अंधकार रूपी जगत में आने लगती है सारा विश्व प्रकाशमय हो जाता है सभी जीव जंतु अपनी गतिविधियां प्रारंभ कर देते हैं। जगत में एक आशा एवं विश्वास का वातावरण प्रस्तुत हो जाता है उषा की भूमिका का वर्णन कवि ने अपनी कविता में की है।

3. चातकी किसके लिए तरसती है?

 उत्तर- चातकी एक पक्षी है जो स्वाति की बूंद के लिए तरसती है। चातकी केवल स्वाति का जल ग्रहण करती है। वह सालोंभर स्वाति के जल की प्रतीक्षा करती रहती हैं और जब स्वाति का बूंद आकाश से गिरता है तभी वह जल ग्रहण करती है। इस कविता में यह उदाहरण संकेतिक है दुखी व्यक्ति सुख प्राप्ति को आशा में चातकी के समान उम्मीद बांधे रहते हैं। कवि के अनुसार एक न एक दिन उनके दुखों का अंत होता है।

4. बरसात की सरस कहने का क्या अभिप्राय है?

उत्तर- बरसात जलों का राजा होता है। बरसात में चारों तरफ जल ही जल दिखाई देते हैं। पेड़ पौधे हरे भरे हो जाते हैं लोग बरसात में आनंद एवं सुख का अनुभव करते हैं उनका जीवन सरस हो जाता है। अर्थात जीवन में खुशियां आ जाती है खेतों में सब फसल लहराने लगते हैं किसानों के लिए समय तो और भी खुशियां लानेवाला होता है इसलिए कवि जयशंकर प्रसाद ने बरसात को सरस कहां है।

5. सजल जलजात का क्या अर्थ है ?

उत्तर- सजल जलजात का अर्थ जल भरे (रस भरे) कमल से हैं मानव जीवन आंसुओं का सराबोर है। • उसमें पुरातन निराशारूपी बादलों की छाया पड़ रही हैं उस चातकी सरोवर में ऐसा एक ऐसा जल से पूर्ण कमल है जिस पर और मंडराते हैं और जो मकरंद (मधु) से परिपूर्ण है।

6. काव्य सौंदर्य स्पष्ट करें ? पवन की प्राचीर में रुक, जला जीवन जा रहा झुक, इस झूलसते विश्व वन की, मैं कुसुम ऋतुराज रे मन !

उत्तर- जयशंकर प्रसाद द्वारा रचित यह पद्यांश छायावादी शैली का सबसे सुंदर आत्मगान है। इसकी भाषा उच्च स्तर की है। इसमें संस्कृतनिष्ठ शब्दों का अधिक प्रयोग हुआ है यह गद्यांश सरल भाषा में न होकर संकेतिक भाषा में प्रयुक्त है। प्रकृति का रोचक वर्णन इस पद्यांश में किया गया है इसमें रूपक अलंकार का प्रयोग हुआ है जैसे विश्व वन (वनरूपी विश्व) इसमें अनुप्रास अलंकार का भी प्रयोग हुआ है। अनुप्रास अलंकार के कारण पद्यांश में अद्भुत सौंदर्य आ गया है। जहां मरू ज्वाला धधकती, चातकी कन को तरसती, उन्हें जीवन घाटियों की, मैं सरस बरसात रे मन !

 

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