Class 10th, संस्कृत पाठ-7 नीतिश्लोक के सभी महत्वपूर्ण प्रश् उत्तर,
प्रिय छात्रों इस पोस्ट में कक्षा 10 संस्कृत का पाठ सात नीति श्लोक का सभी महत्वपूर्ण प्रश्न उत्तर देखेंगे। इसी में से आप की बोर्ड परीक्षा में प्रश्न पूछे जाते हैं ।इसलिए इन सभी प्रश्नों को ध्यान से जरूर पढ़ें ।अगर question गलत लगे तो नीचे जाकर आप कमेंट भी करें।
Class 10th, संस्कृत पाठ-7 नीतिश्लोक के सभी महत्वपूर्ण प्रश्न उत्तर, ,
1. नीतिश्लोकाः के आधार पर मूढचेता नराधम के लक्षण लिखें।
उत्तर – बिना बोले प्रवेश करने वाला बिना पूछे बहुत बोलने वाला, अविश्वासी व्यक्ति नराधम है। ऐसे नराधम से सदा दूरी बनाकर रखनी चाहिए। ऐसा व्यक्ति धोखेबाज हो सकता है।
2. नीतिश्लोकाः पाठ का पाँच वाक्यों में परिचय दें। अथवा, शास्त्रकारा पाठ में किस विषय पर चर्चा की गई है।
उत्तर—इस पाठ में व्यासरचित महाभारत के उद्योग पर्व के अन्तर्गत आठ अध्यायों की प्रसिद्ध विदुरनीति से संकलित दस श्लोक हैं। महाभारत युद्ध के आरम्भ में धृतराष्ट्र ने अपनी चित्तशान्ति के लिए विदुर से परामर्श किया था। विदुर ने उन्हें स्वार्थपरक नीति त्याग कर राजनीति के शाश्वत पारमार्थिक उपदेशक दिये थे। इन्हें “विदुरनीति” कहते हैं। इन श्लोकों में विदुर के अमूल्य उपदेश भरे हुए हैं।
3. ‘नीतिश्लोकाः ‘ पाठ से किसी एक श्लोक को साफ-साफ शब्दों में लिखें।
उत्तर— षड् दोषाः पुरुषेणेह हातव्या भूतिमिच्छता ।निद्रा तन्द्रा भयं क्रोध आलस्यं दीर्घसूत्रता ।।
4. अपनी प्रगति चाहने वाले को क्या करना चाहिए?
उत्तर — अपनी प्रगति चाहने वाले को निद्रा, तन्द्रा, भय, क्रोध,आलस्य और दीर्घसूत्रता – इन छः दोषों को त्याग देना चाहिए।
5. आत्मा के स्वरूप का वर्णन करें।
उत्तर – प्राणियों की यह आत्मा अणु से भी से बड़ा रूप में है। जिसे वश में नहीं किया जा सकता। इस इन्द्रियों के प्रभाव से विद्वान शोक रहित होकर उस श्रेष्ठ परमात्मा को देखता है। सूक्ष्म और
6. नीतिश्लोकाः पाठ के आधार पर पण्डित के कौन-कौन से गुण हैं?
अथवा, पण्डित किसे कहा जाता है
उत्तर—नीतिश्लोकाः पाठ में पण्डित के गुण इस प्रकार हैं- (i) जिसका कार्य, शीत, उष्ण, भय, रति, समृद्धि अथवा असमृद्धि विघ्न नहीं होता, वह व्यक्ति पंडित है। (ii) सभी जीवों का तत्वज्ञ, कर्मों का योगज्ञ एवं सभी मानवों का उपाज्ञय व्यक्ति पण्डित कहलाता है।
7. नीतिश्लोकाः पाठ के आधार पर मूर्ख का लक्षण लिखें।
उत्तर—नीतिश्लोक के अनुसार जो बिना बुलाये प्रवेश करता है, बिना पूछे बहुत बोलता है। अविश्वसनीय व्यक्ति पर विश्वास करता है। वह मूर्ख हृदय वाला ही नराधम (अधम नर) व्यक्ति कहा जाता है।
8. नीतिश्लोकाः पाठ के अनुसार कौन-सा तीन वस्तु त्याज्य है?
अथवा, नरक के तीन द्वार कौन-कौन से हैं?
उत्तर—नरक का त्रिविध त्याज्य वस्तु काम, क्रोध एवं लोभ है। इसमें लिप्त रहने वाले का नाश हो जाता है। अपने को बचाने के लिए इन तीनों को जीवन से हटा देना चाहिए। इनके बिना हीं जीवन पथ पर शांति एवं सफलतापूर्वक चला जा सकता है।
9. इस संसार में कैसे लोग सुलभ और कैसे लोग दुर्लभ हैं?
उत्तर — इस संसार में प्रिय बोलनेवाले व्यक्ति आसानी से मिल जाते परन्तु अप्रिय ही सही उचित बोलने वाला और सुननेवाला दुर्लभ हैं ।
सप्तमः पाठः
नीतिश्लोकाः
( अयं पाठः सुप्रसिद्धस्य ग्रन्थस्य महाभारतस्य उद्योगपर्वणः अंशविशेष (अध्यायाः 33-40) रूपायाः विदुरनीतेः संकलितः। युद्धम् आसन्नं प्राप्य धृतराष्ट्रो मन्त्रिप्रवरं विदुरं स्वचित्तस्य शान्तये कॉश्चित् प्रश्नान् नीतिविषयकान् पृच्छति । तेषां समुचितमुत्तरं विदुरो ददाति। तदेव प्रश्नोत्तररूपं ग्रन्थरत्नं विदुरनीतिः । इयमपि भगवद्गीतेव महाभारतस्याङ्गमपि स्वतन्त्रग्रन्थरूपा वर्तते।)
पाठ परिचय- यह पाठ सुप्रसिद्ध ग्रंथ महाभारत के वन पर्व यानी उद्योग पर्व के अंश विशेष विदुर नीति से लिया गया है । युद्ध को निकट जानकर धृतराष्ट्र के श्रेष्ठ मंत्री भी तू अपने मन की शांति के लिए प्रश्नों का उत्तर देते हुए वह प्रश्न उत्तर रूपी ग्रंथ विदुर नीति की रचना की । यह भागवत गीता की तरह महाभारत का अंग होता हुआ कि स्वतंत्र ग्रंथ स्वरूप है
यस्य कृत्यं न विघ्नन्ति शीतमुष्णं भयं रतिः । समृद्धिरसमृद्धिर्वा स वै पण्डित उच्यते ||1||
सारांश- जिसके काम को सर्दी गर्मी है प्रेम समृद्धि या और समृद्धि बाधा ना डालें वह पुरुष पंडित कहे जाते हैं
तत्त्वज्ञः सर्वभूतानां योगज्ञः सर्वकर्मणाम् । उपायज्ञो मनुष्याणां नरः पण्डित उच्यते ||2||
सारांश- सभी जीवो के तत्व को जानने वाला अपने कर्मों के योग को जानने वाला मनुष्य के सभी उपाय को जानने वाले पुरुष पंडित कहे जाते हैं
अनाहूतः प्रविशति अपृष्टो बहुभाषते । अविश्वस्ते विश्वसिति मूढचेता नराधमः 113॥
सारांश- वह मनुष्य मूर्ख हृदय वाला एवं मनुष्य में नीच होते हैं जो बिना बुलाए प्रवेश करते हैं बिना पूछे बहुत बोलता है और अविश्वास पर विश्वास करते हैं
एको धर्मः परं श्रेयः क्षमैका शान्तिरुत्तमा । विद्यैका घरमा तृप्तिः अहिंसैका सुखावहा ॥4॥
सारांश- एक ही धर्म परम कल्याण, एक ही क्षमा उत्तम शांति ,एक ही विद्या परम तृप्ति और एक ही अहिंसा परम सुख देने वाली होती है
त्रिविधं नरकस्येदं द्वारं नाशनमात्मनः । कामः क्रोधस्तथा लोभस्तस्मादेतत् त्रयं त्यजेत् ॥5॥
सारांश– काम क्रोध और लोभ ये नरक के तीन द्वार हैं इसलिए स्वयं को ना करने वाले इन तीनों को त्याग देना चाहिए
षड् दोषाः पुरुषेणेह हातव्या भूतिमिच्छता ।
निद्रा तन्द्रा भयं क्रोध आलस्यं दीर्घसूत्रता ॥6॥
सारांश- धन एश्वर्य चाहने वाले पुरुष को निंद्रा, तंद्रा ,भय,क्रोध ,आलस्य और दीर्घसूत्रता ये छ: दोषों को त्याग देना चाहिए
सत्येन रक्ष्यते धर्मो विद्या योगेन रक्ष्यते । मृजया रक्ष्यते रूपं कुलं वृत्तेन रक्ष्यते 117 11
सारांश- सत्य से धर्म की रक्षा होती है योग से विद्या की रक्षा होती है उबटन से रूप की रक्षा होती है और चरित्र से कुल की रक्षा होती है
सुलभाः पुरुषा राजन् सततं प्रियवादिनः । अप्रियस्य तु पथ्यस्य वक्ता श्रोता च दुर्लभः ॥४॥
सारांश- हे राजन !; सदैव प्रिय बोलने वाले पुरुष सुलभ है, किंतु अप्रिय एवं उचित बोलने वाले और सुनने वाले दोनों दुर्लभ है
पूजनीया महाभागाः पुण्याश्च गृहदीप्तयः । स्त्रियः श्रियो गृहस्योक्तास्तस्याद्रक्ष्या विशेषतः ॥9॥
सारांश- Ghar Ki Lakshmi Ghar ki shobha yukt striyan pujniya Kahi gai hai isliye striyon ki Raksha Vishesh Roop se Karni chahie
घर की लक्ष्मी घर की शोभा युक्त स्त्रियां पूजनीय कही गई है इसलिए विशेष रूप से स्त्रियों की रक्षा करनी चाहिए
अकीर्ति विनयो हन्ति हन्त्यनर्थ पराक्रमः । हन्ति नित्यं क्षमा क्रोधमाचारो हन्त्यलक्षणम् ॥10॥
सारांश– विनय अपयश को मारता है, पराक्रम अनर्थ को मारता है ,क्षमा क्रोध को मारता है, और आचरण को कुलक्षण को मारता है।