Class 10,hindi subjective chapter 12 मेरे बिना तुम प्रभु’

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मेरे बिना तुम प्रभु’

1. शानदार लबादा किसका गिर जाएगा और क्यों? उत्तर- कवि कहता है कि ईश्वर ही मनुष्य का निर्माता माना जाता है। कहा जाता है कि मनुष्य के जीवन की डोर उसी ईश्वर के हाथ में है। उसकी कृपा-दृष्टि से ही मनुष्य को वह सब हासिल होता है, जो वह चाहता है। इस प्रकार, ईश्वर की शान-शौकत मनुष्य पर ही आधारित है। ईश्वर का शानदार चोंगा मनुष्य के कारण ही है। ऐसी स्थिति में कवि कहता है कि अगर मनुष्य न रहेगा तो शान किस पर दिखाया जाएगा? अर्थात् मनुष्य के अभाव में ईश्वर का शानदार लबादा, उसका आभा मण्डल, समाप्त हो जाएगा।

2. कवि रेनर मारिया रिल्के को किस बात की आशंका है? स्पष्ट कीजिए ।

उत्तर कवि जानता है कि ईश्वर की सत्ता मनुष्य के अस्तित्व पर ही आधारित है। उसकी भगवत्ता भक्त अर्थात् मनुष्य पर ही निर्भर करती है। ऐसी स्थिति में एक चिन्ता सताती है और वह यह कि अगर मनुष्य न रहा तो ईश्वर का क्या होगा? क्या और जीव ईश्वर की खोज करेंगे? संभवत: नहीं। और इस प्रकार, मनुष्य के साथ-साथ ईश्वर भी लुप्त हो जाएगा। यही आशंका कवि को सताती है और पूछता है मेरे बिना तेरा क्या होगा प्रभु ?

3. कवि अपने को जलपात्र और मदिरा क्यों कहता है ?

उत्तर जलपात्र में जल होता है और जल ही जीवन का आधार है। मदिरा से नशा होता है । कवि अपने को जलपात्र इसलिए कहता है कि ईश्वर की सत्ता ही ईश्वरत्व गढ़ता का आधार मनुष्य ही है। अगर मनुष्य न होगा तो ईश्वर भी न होगा क्योंकि मनुष्य को ही ईश्वर की जरूरत होती है और मनुष्य है। कवि अपने को ईश्वर की मदिरा इसलिए कहता है कि ईश्वर की सत्ता का आधार भी मनुष्य ही है । और सत्ता एक नशा है जिसमें अपने आपको सर्वोपरि मानने का भाव आता है। यही कारण है कि मनुष्य अपने को ईश्वर का जलपात्र और मदिरा कहता है।

4. ‘मेरे बिना तुम प्रभु’ कविता का केन्द्रीय भाव क्या है? उत्तर- ‘मेरे बिना तुम प्रभु’ कविता का केन्द्रीय भाव है – विराट् सत्य और मनुष्य एक-दूसरे पर निर्भर हैं।

5. रिल्के ने किन क्षेत्रों में यूरोपीय साहित्य को प्रभावित किया? उत्तर – रिल्के ने अपने भाव-बोध, संवेदनात्मक भाषा और शिल्प से यूरोपीय साहित्य को प्रभावित किया।

 

6. रिल्के की कविताएँ कैसी हैं?

उत्तर- रिल्के की कविताओं में रहस्यवाद और आधुनिक भाव-बोध की

झलक मिलती है।

               दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

Long type question

‘मेरे बिन तुम प्रभु’

1. जब मेरा अस्तित्व न रहेगा, प्रभु तब तुम क्या करोगे? L जब मैं तुम्हारा जलपात्र, टूटकर बिखर जाऊँगा? # जब मैं तुम्हारी मदिरा सूख जाऊँगा या स्वादहीन हो जाऊँगा?

मैं तुम्हारा वेश हूँ, तुम्हारी वृद्धि हूँ मुझे खोकर तुम अपना अर्थ खो बैठोगे?

इस पद्यांश का भाव स्पष्ट करें।

उत्तर – यह पद्यांश “मेरे बिना तुम प्रभु” शीर्षक से अवतरित है। इस

इन पंक्तियों के माध्यम से कवि कहना चाहता है कि मनुष्य और ईश्वर

पाठ के रचनाकार रेनर मारिया रिल्के हैं। एक-दूसरे के अभिन्न हैं। मानव हैं तभी ईश्वर हैं। मनुष्य के बिना ईश्वर का भी अस्तित्व नहीं है।

2. मैं तुम्हारा वेश हूँ, तुम्हारी वृत्ति हूँ

मुझे खोकर तुम अपना अर्थ खो बैठोगे? – सप्रसंग व्याख्या कीजिए। उत्तर प्रस्तुत पंक्तियाँ यूरोप के चर्चित कवि रेनर मारिया रिल्के की ‘मेरे बिना तुम प्रभु’ से उद्धृत हैं। इन पंक्तियों में कवि मनुष्य और ईश्वर के संबंध की व्याख्या करता हुआ कहता है कि मनुष्य ही ईश्वर का वेश है, वही प्रभु का कर्म-स्वभाव या वृत्ति है अगर मनुष्य ही न रहेगा तो ईश्वर क्या करेगा, किस रूप में रहेगा ? ईश्वर का अर्थ खो जाएगा। कवि के कहने का तात्पर्य है कि मनुष्य और ईश्वर की अवधारणा परस्पर आश्रित है। भक्त के बिना ईश्वर निरुपाय और एकाकी है। कवि ने मनुष्य की श्रेष्ठता को स्वीकारा है तुलनीय हैं- ‘ साबार ऊपर मानुष सत्य ताहर ऊपर नाहिं । ‘

3. ‘मेरे बिना तुम प्रभु’ कविता का सारांश लिखिए। या, ‘मेरे बिना तुम प्रभु’ कविता में कवि ने कौन-कौन से प्रश्न उठाए हैं और किस निष्कर्ष में पहुँचा है? स्पष्ट कीजिए । या, ‘मेरे बिना तुम प्रभु’ के कथ्य को स्पष्ट करें। या, ‘मेरे बिना तुम प्रभु’ मनुष्य के नश्वर जीवन की महिमा बखान करती है। कैसे?

उत्तर मेरे बिना तुम प्रभु’ कविता में कवि ने बताया है कि भगवान् का अस्तित्व भक्त पर ही निर्भर है।

कवि कहता है कि हे प्रभु! जब में न रहूँगा तो तुम्हारा क्या होगा? तुम क्या करोगे? मैं ही तो तुम्हारा जलपात्र हूँ, जिससे तुम पानी पीते हो अगर टूट गया तो तुम्हें जिससे नशा होता है, भगवान होने का, अगर वही समाप्त हो गया तो क्या होगा? दरअसल मैं ही तुम्हारा आवरण हूँ, वृत्ति हूँ। अगर नहीं रहा तो तुम्हारी महत्ता ही समाप्त हो जाएगी। मेरे प्रभु! मैं न रहा तो तुम्हारा मंदिर-मस्जिद गिरजा कौन बनाएगा? कौन करेगा तुम्हारी पूजा अर्चना ? दरअसल, मैं ही जहाँ जाता हूँ, तुम जाते हो ।

कवि पुनः कहता है कि मुझसे ही तुम्हारी शोभा है मेरे बिना किस पर कृपा करोगे? कृपा करने का सुख कौन देगा? यह जो कहा जाता है कि सूरज का उगना – डूबना सब प्रभु की कृपा है, वह भी मैं कहता हूँ और तुम्हें सृष्टिकर्त्ता बताने-बनाने का कार्य भी मेरा ही है। मुझे तो आशंका होती है कि मैं न रहा तो तुम क्या करोगे? कवि के कहने का तात्पर्य यह है कि ईश्वर को मनुष्य ने ही स्वरूप दिया है, महिमा मंडित किया है, सर्वेसर्वा बनाया है। भगवान की भगवत्ता मनुष्य पर आधारित है। अर्थात् विराट् सत्य और मनुष्य एक दूसरे पर निर्भर करते हैं।

 

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