Sociology MJC 1 Viral Question Pepper | BA 1st Sem Exam 2024-28
LNMU BA 1st Sem Exam 2024-28
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साथियों परीक्षा में जाने से पहले दी गई कुछ जानकारी को आप जरूर अच्छी तरह से समझ लें|
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Exam Date | 16 January |
Shift Name | 2nd Shift |
Timing | 1; 00 – 5:00 शाम तक |
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Q.1. भारतीय संस्कृति की प्रमुख विशेषताओं पर प्रकाश डालें।
Ans. भारतीय संस्कृति में प्रतीकों का खास स्थान रहा है। समाज की सामाजिक व्यवस्था वहाँ की संस्कृति के अनुसार होती है। समाज की संस्कृति का विकास वहाँ की भौगोलिक, सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक दशा के अनुसार होता है। टायलर की प्रसिद्ध परिभाषा के अनुसार, “संस्कृति वह जटिल समग्रता है जिसमें ज्ञान, विश्वास, कला, नैतिक आधार, कानून और अन्य क्षमताओं और आदतों का समावेश है, जो मानव समाज का सदस्य होने के नाते प्राप्त करता है।”
भारतीय संस्कृति की निम्नलिखित विशेषताएँ पायी जाती हैं-
(i) प्राचीनता : भारतीय संस्कृति विश्व की प्राचीन संस्कृतियों में एक है।
(ii) धर्म की प्रधानंता : भारतीय संस्कृति आदि काल से धर्म-प्रधान रही है। आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक तथा अन्य सभी क्षेत्रों में धर्म का प्रभाव स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। खान-पान, विवाह, पारिवारिक संबंध, सामाजिक संस्तरण, व्यवसाय, वैयक्तिक दिनचर्या इत्यादि सभी धर्म के अधीन रहे हैं।
(iii) उदारता तथा सहिष्णुता आदिकाल से भारत में समय-समय पर विभिन्न धर्मों, संस्कृतियों, प्रजातियों, भाषाओं आदि के लोग आते रहे हैं। भारतीय संस्कृति ने सभी को अपने अंदर आत्मसात कर लिया। वे सभी संस्कृतियाँ भारतीय संस्कृति में इस प्रकार समा गयी है कि उनका अपना कोई अलग अस्तित्व ही नहीं रहा।
(iv) सामूहिकता : भारतीय संस्कृति में सामूहिक हित पर ज्यादा जोर दिया जाता है न कि व्यक्तिगत हित पर। इसके चलते भारतीय संस्कृति में सामूहिक भावना का महत्व तथा व्यक्तिवादी भावना का अभाव रहा है।
(v) विविधता में एकता : भारत एक विशाल देश है। उसके भिन्न-भिन्न क्षेत्रों में अनेक भाषा- भाषी, धर्मों, सम्प्रदायों तथा प्रजातियों के लोग रहते हैं, परन्तु इस सांस्कृतिक विविधता में भी एक मूलभूत एकता विद्यमान है। विविधता में एकता भारतीय संस्कृतिं की एक प्रमुख विशेषता रही है।
Q.2. भौतिक और अभौतिक संस्कृति में अन्तर करें।
>Ans. भौतिक और अभौतिक संस्कृति में प्रमुख अन्तर निम्नलिखित हैं-
भौतिक संस्कृति
1. भौतिक संस्कृति में मूर्तता का गुण होता है।
2. भौतिक संस्कृति में सम्मिलित पदार्थों की स्पष्ट माप की जा सकती है।
3. भौतिक संस्कृति का मूल्यांकन इसकी उपयोगिता द्वारा संभव है।
4. इसका विकास एक निश्चित दिशा में आगे की ओर होता है।
5. यह सरल होती है। इसे पदार्थों के आधार पर व्यक्ति सरलता से समझ लेता है।
अभौतिक संस्कृति
अभौतिक संस्कृति में अमूर्तता का गुण होता है।
इसमें विचार, विश्वास आदि शामिल हैं जिनकी स्पष्ट माप करना संभव नहीं है। अभौतिक संस्कृति का मूल्यांकन उपयोगिता द्वारा नहीं किया जा सकता।
इसमें विकास की कोई निश्चित दिशा नहीं होती है।
यह अत्यन्त जटिल होती है। इसे समझना कठिन है।
Q.3. भारतीय समाज की विशेषताओं का वर्णन करें।
Ans. भारतीय समाज की चार विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
1. वर्ण व्यवस्था : वर्ण के बारे में ऋग्वेद के ‘पुरूषसूक्त’ से एक मंत्र मिलता है, इसके
अनुसार ईश्वर ने चार वर्णों की सृष्टि की। विराट स्वरूप पर आत्मा के सुख रूप ब्राह्मण हैं, बाहुओं से क्षत्रिय की उत्पत्ति हुई, जंघाओं से वैश्यों की उत्पत्ति हुई। शूद्र लोग विराट रूप भगवान के चरणों से जन्मे । आरंभ में संभवतः श्रम विभाजन तथा सत्ता विभाजन के सिद्धांतों के आधार पर ही चार सामाजिक श्रेणियां विकसित हुई होंगी।
2. आश्रम व्यवस्था : व्यक्ति की आयु 100 मानकर इसे चार आश्रमों में विभक्त किया गया-ब्रह्मपर्याश्रम, गृहस्थाश्रम, गृहस्थ, वानप्रस्थ तीनों आश्रमों को निभाता हुआ व्यक्ति संन्यास आश्रम का जीवन बिताता है एवं मोा की प्राप्ति करता है।
3. जाति व्यवस्था : भारतीय समाज में अनगिनत जातियाँ तथा उपजातियाँ पाई जाती हैं जिनमें सभी जातियों का सामाजिक स्तर ऊंचा नीचा पाया जाता है। जाति की सदस्यता व्यक्ति के जन्म के आधार पर मिलती है।
4. पुरुषार्थ : पुरुषार्थ चार माने गये हैं धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष। इन चारों को पुरषार्थ माना गया है और हिन्दू जीवन का सार माना गया है, पुरुषार्थ मानव व्यवहार को नियंत्रित करते हैं।
Q.4. समुदाय किसे कहते हैं?
Ans. ‘समुदाय’ शब्द को अंग्रेजी में ‘Community’ कहते हैं। ‘Community’ शब्द का निर्माण दो शब्दों से मिलकर हुआ है ‘Com और ‘Munis’। ‘Com’ का अर्थ है ‘एक साथ’ (together) तथा ‘Munis’ का अर्थ है ‘सेवा करना’ (to serve)। इस प्रकार ‘कम्युनिटी’ शब्द का शाब्दिक अर्थ ‘एक साथ सेवा करना’ (to serve together) है। 1. जिन्सवर्ग (Ginsberg) के अनुसार– “समुदाय का अर्थ सामाजिक प्राणियों का वह
समूह समझना चाहिए जो एक सामान्य जीवन व्यतीत करता हो। उस सामान्य जीवन में अनेक निर्माण करने वाले तथा उसके करणामस्वरूप अनेक विभिन्न और जटिल संबंध समाविष्ट होते हैं।”
Q.5. समुदाय की प्रमुख विशेषताओं की चर्चा करें
Ans. 1. समुदाय की कुछ सामान्य विशेषताएँ अथवा समानताएँ होती हैं जिनमें भाषा, रीति-रिवाज एवं वेशभूषा आदि का महत्वपूर्ण स्थान होता है।
2. प्रत्येक समुदाय का कुछ न कुछ नाम अवश्य होता है। उदाहरण के लिये सिन्ध प्रान्त के लोगों को सिन्धी अथवा केरलवासियों को मलयाली कहा जाता है।
3. समुदाय एक प्राकृतिक समूह होता है उसकी गणना या निर्माण मनुष्य अपनी इच्छा अथवा आवश्यकता के बल पर नहीं कर सकता कता है बल्कि व्यक्ति का स्वयं का जन्म किसी स्वाभाविक रूप में निर्मित समुदाय के अन्तर्गत ही होता है।
4. किसी मानव समूह के किसी विशिष्ट भू-भाग में निवास करने पर उसे समुदाय कहा जाता है।
Q.6. ग्रामीण समुदाय (Rural Community)
Ans. ग्रामीण समुदाय कृषि पर आधारित व्यक्तियों का एक सरल समुदाय है। ग्रामीण समुदाय परस्पर संबंधित तथा असंबंधित व्यक्तियों का एक ऐसा समूह है जो परस्पर एक-दूसरे से घनिष्ठ रूप से जुड़ा होता है। ये अधिक विस्तृत एक बहुत बड़े घर या परस्पर निकट स्थित घरों में कभी नियमित तो कभी अनियमित रूप से रहते हैं। वह मूलतः अनेक कृषि योग्य खेतों में सामान्य तौर पर खेती करता है, मैदानी भूमि को आपस में बाँट लेता है और आसपास पड़ी बेकार भूमि पर अपने पशुओं को चराता है जिस पर निकटवर्ती समुदायों की सीमाओं तक वह अपने अधिकार का दावा करता है।
Q.7. समाजशास्त्र का अर्थ क्या है ?
Ans. आज हम समाजशास्त्र को एक विकसित विज्ञान के रूप में देख रहे हैं, जिसका इतिहास उतना पुराना नहीं है। सर्वप्रथम 1838-39 में ऑगस्त कॉम्टे ने सोसियोलॉजी (sociology) शब्द का प्रयोग किया। ये फ्रांसीसी दार्शनिक थे। Sociology शब्द में दो शब्द है- Socious और Logus | Socious लैटिन भाषा का शब्द है। Logus ग्रीक भाषा से लिया गया शब्द है। Socious का अर्थ है ‘समाज’ और Logus का अर्थ है- शास्त्र या विज्ञान। इस प्रकार sociology शब्द का अर्थ हुआ समाज का शास्त्र या समाज का विज्ञान। चूँकि कॉम्टे ने इस विज्ञान का पहले-पहल नामकरण किया इसलिए उन्हें ‘संमाजशास्त्र का जनक’ कहा जाता है। पहले अनेक विद्वानों ने इसपर आपत्ति की, परंतु इंग्लैंड-निवासी हर्बर्ट स्पेन्सर नामक विचारक ने इसका पुरजोर समर्थन किया जिसका विकसित रूप हम आज देख रहे हैं।
>Q.8. समाजशास्त्र तथा मानवशास्त्र में अंतर
Ans. (i) समाजशास्त्र में सामाजिक संबंधों तथा सामाजिक व्यवस्था के अध्ययन पर अधिक बल दिया जाता है। मानवशास्त्र में संस्कृति के अध्ययन पर बल दिया जाता है।
(ii) समाजशास्त्र प्राचीन तथा आधुनिक जटिल समाजों का समान रूप से अध्ययन करता है। मानवशास्त्र की अधिक रुचि आदिम समाजों तथा संस्कृतियों के अध्ययन में रही है।
(iii) समाजशास्त्र में सूचनाएँ एकत्र करने के लिए अनेक प्रविधियों (साक्षात्कार, अवलोकन, प्रश्नावली आदि) का प्रयोग किया जाता है। मानवशास्त्र में केवल सहभागी अवलोकन पर ही अधिक बल दिया जाता है।
(iv) समाजशास्त्र में वर्तमान समाज की समस्याओं की जानकारी के साथ उनके व्यावहारिक पक्ष पर भी ध्यान दिया जाता है। मानवशास्त्र का दृष्टिकोण शुद्ध ज्ञान प्राप्त करने पर जोर देता है।
Q.9. “समाज सामाजिक संबंधों का एक जाल है।” स्पष्ट करें।
Ans. सुप्रसिद्ध समाजशास्त्री मैकाइवर ने कहा है कि “समाज सामाजिक संबंधों का
एक जाल है।” सामाजिक संबंधों के परिणामस्वरूप ही समाज बसमाज सामाजिक संबंधों का अभाव में समाज की कल्पना नहीं की जा सकती। ये सामाजिक संबंध व्यक्तियामाजिक संबंधों के के फलस्वरूप स्थापित होते हैं। समाज में विभिन्न व्यक्ति अपनी-अपनी परिस्थितियों के क्रिया कार्य करते हैं और किसी कार्य के प्रति अपने व्यवहारों को व्यक्त करते हैं। व्याधतियों के अनुकूल तथा प्रतिक्रियाओं के परिणामस्वरूप जो संबंध निर्मित होते हैं उन्हें ही सामाजिक संबंध कहते हैं। इस प्रकार समाज के सभी सदस्य एक-दूसरे से संबंधित हो जाते हैं कि उनके जीवन में सामाजिक संबंधों का एक ताना-बाना देखने को मिलता है। यही ताना-बाना सामाजिक जीवन मैं पारस्परिक संबंधों के एक जटिल जाल की सृष्टि करता है। समाजशास्त्र इसे ही समाज कहता है। हम अपनी आवश्यक्ताओं का उदाहरण लें। हमारी अनेक आवश्यकताएँ है जिनकी पूर्ति हम स्वयं नहीं कर सकते। अतः, हम दूसरों के सहयोग की भी अपेक्षा करते हैं। इस तरह आवश्यकताओं की पूर्ति के आधार पर भी समाज के सदस्य एक-दूसरे से संबंधित हो जाते हैं। ऐसे अनगिनत संबंधों का समाज एक जाल है। इसीलिए, ऐसा माना जाता है कि संबंधों का यह जाल ही समाज का निर्माण करता है। सामाजिक संबंधों की यह विशेषता होती है कि वे अमूर्त होते हैं तथा बराबर परिवर्तनशील है।
Q.10. समिति और समाज (Association and Society) में अंतर बताइए।
Ans. 1. समिति-व्यक्तियों के समूह को समिति कहते हैं। समाज-सामाजिक संबंधों के जाल को समाज कहते हैं।
2. समिति की अवधारणा मूर्त है। समाज एक अमूर्त अवधारणा है।
3. समिति जानबूझकर संगठित की जाती है। समाज स्वतः विकसित होता है।
4. समिति अस्थायी होती है। समाज एक स्थायी संकल्पना है।
5. समिति का प्रमुख आधार सहयोग होता है। समाज में सहयोग के साथ संघर्ष का तत्व भी विद्यमान रहता है।
6. समिति के विशेष उद्देश्य होते हैं। समाज के सामान्य उद्देश्य होते हैं।
Q.11. समिति (Association) क्या है ?
Ans. ऐसे लोगों के समूह को समिति कहते हैं जो किसी विशेष उद्देश्य या कुछ विशेष उद्देश्यों की पूर्ति के लिए संगठित होते हैं। मनुष्य की अनेक आवश्यकताएँ हैं। । उसके विकास के समक्ष अनेक लक्ष्य है। उनकी पूर्ति के लिए वह या तो अपनी शक्ति पर निर्भर होकर प्रयास करता है अथवा अन्य लोगों के साथ सहयोग के आधार पर अपने लक्ष्य की पूर्ति करने का उपक्रम करता है। सहयोग के आधार पर जब लोग अपने किन्हीं खास उद्देश्यों की पूर्ति के लिए पारस्परिक संबंध स्थापित करते हैं तब समिति का निर्माण होता है। इस प्रकार का संगठन मनुष्य सोच-विचार कर संगठित करता है। इस प्रकार समिति का अभिप्राय सहयोग पर आधारित एक ऐसे संगठित समूह से है जिसके द्वारा मनुष्य अपने विशिष्ट प्रयोजन की पूर्ति करने का प्रयास करता है।
Q.12. संस्था (Institution) क्या है ?
Ans. समिति और संस्था को बहुधा लोग एक ही समझाते हैं। लेकिन, ऐसी बात नहीं है। संस्था का अर्थ कार्य करने के सुनिश्चित ढंग से है। मनुष्य अपने हितों की पूर्ति के लिए विभिन्न प्रकार की समितियाँ संगठित करता है। ऐसी समितियों के कार्य करने के अपने-अपने तरीके होते हैं, अपने-अपने ढंग होते हैं। प्रत्येक समिति या संघ में मनुष्य को निर्धारित कार्यों को संपन्न करना पड़ता है। ऐसी निर्धारित, सर्वमान्य कार्यप्रणाली या कार्यविधि को हम संस्थां कहते
Q.13. प्राथमिक समूह का सामाजिक महत्व (Social importance of Primary Group)
Ans. प्राथमिक समूह अत्यन्त महत्वपूर्ण होते हैं। श्री कूले के अनुसार ये समूह व्यक्ति के अनुभव में भी सर्वप्रथम स्थान रखते हैं और समाज के विकास में भी। यह बात निम्नलिखित विवेचना से और भी स्पष्ट हो जायेगी-
1. प्राथमिक समूह हमारे सम्पूर्ण व्यक्तित्व की रचना करते हैं। इनका प्रभाव बच्चे के जन्म से ही प्रारमभ हो जाता है। सबसे पहले बच्चा परिवार में रहता है और वहीं से भाषा, सामाजिक आचार व आदर्श, रीति-रिवाज आदि सीखता है। वहीं रक्त, माँस, हड्डी का पुतला वह बच्चा धीरे-धीरे एक सामाजिक प्राणी में बदल जाता है। मनुष्य के व्यक्तित्व का आधार प्राथमिक समूह ही बनाते हैं।
2. ये सामाजिक व्यवहारों के उचित मान का (Proper Standard) का निर्माण करते हैं।
3. प्राथमिक समूह हमारे व्यवहारों व कार्यों पर नियंत्रण रखते हैं।.
4. प्राथमिक समूह मानव में अनेक अच्छे गुणों को उत्पन्न करते हैं।
5. प्राथमिक समूह हमको आंतरिक संतोष (Inner Satisfaction) प्रदान करते हैं।.
6. प्राथमिक समूह व्यक्ति को पशुता से मानवता की ओर ले जाते हैं।
Q.14. द्वितीयक समूह (Secondary group) क्या है ?
Ans. बीयस्टेंड ने कहा है कि “वे सभी समूह द्वितीयक है जो प्राथमिक नहीं है।” इस प्रकार, प्राथमिक समूहों के विपरीत समूह को द्वितीयक समूह कहा जा सकता है। वस्तुतः द्वितीयक समूहों में घनिष्ठता, निकटता, अपनत्व आदि का अभाव पाया जाता है। तात्पर्य यह कि जिन विशेषताओं को हम प्राथमिक समूह में पाते हैं, वे विशेषताएँ द्वितीयक समूह में नहीं मिलती। इसी को स्पष्ट करते हुए ऑगबर्न एवं नीमकॉफ ने लिखा है कि “द्वितीयक समूह उन्हें कहते हैं जिनमें प्राप्त अनुभवों में घनिष्ठता का अभाव होता है। आकस्मिक संपर्क ही द्वितीयक समूह का सारतत्व है।” द्वितीयक समूह के उदाहरण-राष्ट्र, सेना, राजनीतिक दल, श्रम-संगठन, बड़े व्यापारिक संगठन, वर्ग, विश्वविद्यालय आदि।
Q.15. अंत: समूह (In-group) क्या है ?
Ans. अंतः समूह का संबंध व्यक्ति की मनोवृत्ति से होता है। व्यक्ति जब किसी समूह से संबंध जोड़ लेता है तब वह समूह के विरुद्ध कुछ सुनता नहीं चाहता। ऐसे समूह में हम- भावना होती है। ऐसे समूह में गाँव, जाति, धार्मिक समूह आते हैं। एक गाँव के लोगों में हम- भावना होती है। अंतः समूह में जितने भी सदस्य होते हैं वे अपने व्यक्तिगत हित या स्वार्थ पर जोर नहीं देते। सभी समूह के स्वार्थ की पूर्ति के लिए, सबके लाभ के लिए मिल-जुलकर काम करते हैं।. रेल में यात्रा करते समय एक व्यक्ति देखता है कि बिना टिकट यात्रा करनेवाला कोई पकड़ा गया है जो उसके लिए अजनबी है। तब यात्रा करनेवाला परेशान नहीं होता, लेकिन जब वह देखता है कि उसके गाँव या जाति का कोई पकड़ा गया है तो वह परेशान हो जाता है और उसको छुड़ाने के लिए पैसे खर्च करता है। यह इसलिए कि वह उसके अंतः समूह का सदस्य है।
Q.16. वाह्य समूह (Out group) क्या है ?
Ans. यह समूह ‘दूसरों का समूह’ (others group) है। उसके प्रति मन में न तो ‘हम की भावना’ होती है और न सहयोग व सहानुभूति की। उसके सुख-दुःख के साथ व्यक्ति का का जीवन सामान्य रूप से चल जाता है|
Q.17. अंतः समूह और बाह्य समूह में अंतर
Ans. 1. समनर के विचार का अगर विश्लेषण करें तो स्पष्ट होगा कि अंतः समूह का आधार जहाँ ‘हम-भावना’ (we-feeling) है, वहाँ बाह्य समूह के मूल में ‘वे-भावना’ (they- feeling) है। अंतः समूह के बीच निरंतर निकट संपर्क एवं घनिष्ठ संबंध होता है जिसके कारण इनमें ‘हम-भावना’ पाई जाती है, लेकिन अंतः समूह का आकार सीमित नहीं रहता। परिवार से विश्व-समूह तक हम सभी अंतः समूह के सदस्य हैं यदि हममें पारस्परिक हम-भावना है। अंतः समूह का मौलिक तत्व है हम-भावना, न कि आकार।
2. अंतः समूह और बाह्य समूह में सदस्यों के बीच सामाजिक दूरी का भेद होता है। अंतः समूह के सदस्य भौगोलिक दृष्टि से एक स्थान के निवासी होते हैं। इस क्षेत्र के निवासियों के लिए दूसरे क्षेत्र के निवासी बाह्य समूह के सदस्य हुए। लेकिन, दोनों क्षेत्रों के लोग अपने एक देश के सदस्य हों और आपस में हम-भावना हो तो यह भेद दूर हो जाता है।
3. वस्तुतः अंतः समूह एवं बाह्य समूह के बीच ‘हम’ (we) और ‘वे’ (they) का भेद होता है। ‘हम’ और ‘वे’ की भेद-भावना हमारे मन में जड़ जमा लेती है। इसलिए, घनिष्ठ संपर्क, एक स्थान (एक गाँव), समान धर्म एवं राष्ट्र समूह को अपना अंतः समूह समझते हैं जबकि दूसरे स्थान (गाँव), दूसरे धर्म, दूसरे राष्ट्र के लोग बाह्य समूह के माने जाते हैं।
4. यही कारण है कि अंतः समूह के सदस्यगण अपनी बाह्य समूह के सदस्यों के प्रति कभी-कभी विरोधी या विपरीत धारणाएँ बना लेते हैं। ये गलत धारणाएँ कभी-कभी हमारे मन में इतना जड़ जमा लेती है कि इनके कारण प्रायः युद्ध, दंगे तथा हिंसा की घटनाएँ घट जाती हैं।
Q.18. प्राथमिक समूहों (Primary groups) के लक्षण/विशेषताएँ
<Ans.1. प्राथमिक समूह में आमने-सामने का घनिष्ठ संबंध होता है।
2. प्राथमिक समूह का गठन किसी विशेष उद्देश्य से नहीं किया जाता। वस्तुतः, प्राथमिक समूहों के सदस्य एक-दूसरे से एक सामान्य आधार पर मिलते हैं। वे किसी विशेष हित या उद्देश्य से एक-दूसरे से नहीं जुड़े होते।
3. प्राथमिक समूहों का आकार छोटा होता है, चूँकि सीमित संख्या में ही लोग इसके सदस्य होते हैं। कूले का कहना है कि प्राथमिक समूह में दो से बीस सदस्य होते हैं।
4. प्राथमिक समूहों के सदस्यों के एकसमान उद्देश्य होते हैं।
5. प्राथमिक समूहों के सदस्यों के संबंध आरोपित नहीं होते, बल्कि स्वतः स्फूर्त होते हैं।
प्राथमिक समूह अन्य समूहों की तुलना में अधिक स्थायी होता है। प्राथमिक समूह समाज- संरचना की महत्वपूर्ण इकाई है जिसका प्रभाव मनुष्य के सामाजिक जीवन के विकास पर जीवनपर्यन्त देखा जा सकता है।
Q.19. प्राथमिक एवं द्वितीयक समूहों में अंतर
<span;>Ans. प्राथमिक और द्वितीयक समूह अलग-अलग तथा एक-दूसरे के विपरीत धारणाएँ हैं। इन दोनों में निम्नांकित प्रमुख अंतर है-1. प्राथमिक समूहों में संबंध प्रत्यक्ष तथा आमने-सामने के होते हैं। द्वितीयक समूहों के संबंध अप्रत्यक्ष तथा अवैयक्तिक होते हैं।
Q.20. संस्कृति (Culture) क्या है ?
Ans. विभिन्न समाजशास्त्रियों ने संस्कृति को अपने-अपने रूप में परिभाषित किया है। टॉयलर (Taylor) के अनुसार, “संस्कृति वह जटिल सममता है, जिसमें आन, विश्वास, कला, आचार, कानून, प्रथा और ऐसी ही दूसरी क्षमताओं और आदतों का समावेश रहता है, जिसे मानव समाज के सदस्य होने के रूप में प्राप्त करता है।” मैकाइबर तथा पेज के अनुसार, “संस्कृति हमारे नित्य-प्रतिदिन के रहन-सहन, साहित्य, धर्म, कला, मनोरंजन तथा आनंद में पाए जानेवाले विचारों के ढंग में हमारी प्रकृति की अभिव्यक्ति है।” इस परिभाषा से स्पष्ट है कि संस्कृति बहुत व्यापक है जो हमारे जीवन के सभी क्षेत्रों से संबद्ध है। यह प्रत्येक समाज में रहन-सहन, धर्म, आनंद प्राप्ति के तरीकों, कला आदि का एक विशिष्ट तरीका होता है, अर्थात दैनिक जीवन में आनेवाली सभी वस्तुओं का समावेश संस्कृति में ही होता है। यह अर्जित व्यवहारों की एक व्यवस्था है जिसका प्रयोग किसी समाजविशेष द्वारा होता है। संस्कृति में समस्त रीति- रिवाज, प्रथाएँ, रूढ़ियाँ आदि आ जाते हैं।
Q.21. औपचारिक तथा अनौपचारिक नियंत्रण (Formal and Informal Control) में अन्तर
Ans. हम औपचारिक व अनौपचारिक नियंत्रण में अग्रलिखित अन्तरों का उल्लेख कर सकते हैं
1. औपचारिक नियंत्रण का स्रोत मुख्यतः राज्य या सरकार होती है, जबकि अनौपचारिक नियंत्रण का स्रोत स्वयं समाज, समुदाय या समूह होता है।
2. औपचारिक नियंत्रण से संबंधित व्यवहार संहिताओं या नियमों को राज्य अथवा अन्य प्रशासनिक संगठनों द्वारा बनाया जाता है, जबकि अनौपचारिक नियंत्रण में ये नियम समाज या समुदाय के होते हैं।
3. औपचारिक नियंत्रण में नियमों को जान-बूझकर एवं सुपरिभाषित रूप में चलाया जाता है, जबकि अनौपचारिक नियंत्रण में नियम सामाजिक अन्तः क्रियाओं के दौरान आप-से- आप पनपते हैं।
4. औपचारिक नियंत्रण में संबंधित सदस्यों पर बाध्यतामूलक दबाव डाला जाता है अर्थात् सदस्यों के लिए अनिवार्य होता है कि वे नियमों का पालन करें अन्यथा दण्ड को भोगें परन्तु अनौपचारिक नियंत्रण में इस प्रकार क कोई बाध्यता या अनिवार्यता नहीं होती है। सदस्य अपनी खुशी से सामाजिक नियमों कापालन करते हैं।
5. औपचारिक नियंत्रण में नियमों को न मानने पर राज्य या अन्य किसी प्रशासनिक संगठन द्वारा व्यक्ति को निश्चित दण्ड देने की व्यवस्था होती हे परन्तु अनौपचाश्ति नियंत्रण में इस प्रकार की कोई व्यवस्था नहीं होती-अधिक से अधिक उसकी सामाजिक निन्दा की जाती है अथवा उसे जाति या समुदाय से निकाल दिया जाता है।
6: औपचारिक नियंत्रण परिवर्तनशील होता है और इसके अन्तर्गत नियमों को सामाजिक आवश्यकताओं के अनुसार तुरन्त बदल दिया जा सकता है परन्तु अनौपचारिक नियंत्रण रूढ़िवादी होता है और इसके नियमों को बदलना यदि असम्भव नहीं तो कठिन अवश्य होता है। इनमें परिवर्तन बहुत कम अथवा बहुत धीरे-धीरे होता है।
7. औपचारिक नियंत्रण में शारीरिक दण्ड, मृत्युदण्ड, जुर्माना, उत्पीड़न आदि के द्वारा
Q.20. संस्कृति तथा व्यक्तित्व
Ans. संस्कृति तथा व्यक्तित्व में संबंध बहुत गहरा होता है। क्रच एवं क्रेचफिल्ड के अनुसार, “संस्कृति तथा व्यक्तित्व में संबंध एक तरफा नहीं है, अपितु प्रभाव की सीमाएँ दोनों ओर स्पष्ट देखी जा सकती है। संस्कृति व्यक्तित्व को व्यापक रूप से प्रभावित करती है और इस प्रकार समाज के स्थायित्व एवं संस्कृति की निरंतरता को प्रोत्साहन देती है ,जबकि दूसरी तरफ व्यक्ति भी संस्कृति को प्रभावित करता है जिससे सामाजिक परिवर्तन की संभावना बढ़ती है।” इस संबंध में लिंटन (Linton) का विचार है कि बच्चे के समाजीकरण करने की विशिष्ट विधियों द्वारा संस्कृति किसी समाज में रहनेवाले सदस्यों के व्यक्तित्व को अत्यधिक प्रभावित करती है। यह प्रभाव केवल बचपन तक ही सीमित नहीं रहता, बल्कि जीवनभर संस्कृति व्यक्तित्व को प्रभावित करती है।
इस संबंध में रूथ बेनेडिक्ट (Ruth Benedict) का कहना है कि शिशु जिन प्रथाओं के बीच जन्म लेता है वे शुरू से ही उसके अनुभवों तथा व्यवहारों को ढालते हैं। बच्चा बोलना सीखते ही संस्कृति का छोटा प्राणी बन जाता है। संस्कृति की आदतें उसकी आदतें, संस्कृति के विश्वास उसके विश्वास तथा संस्कृति की असमानताएँ उसकी असमानताएँ बन जाती हैं।
वस्तुतः क्रच एवं क्रेचफिल्ड के विचार के अनुसार मनुष्य एवं संस्कृति दोनों में पारस्परिक आदान-प्रदान का संबंध है।
Q.21. सांस्कृतिक विलंबना (Cultural lag)।
Ans. प्रसिद्ध समाजशास्त्री ऑगबर्न ने सांस्कृतिक विलंबना सिद्धांत का प्रतिपादन किया है। इन्होंने सांस्कृतिक पिछड़ेपन के आधार पर सामाजिक परिवर्तन की व्याख्या की है इस संबंध में इन्होंने कहा है कि संस्कृति के दो पहलू हैं- (क) भौतिक संस्कृति, जिसमें कागज, कपड़ा, मशीन, औजार तथा उपयोग की सभी छोटी-बड़ी वस्तुएँ शामिल हैं तथा (ख) अभौतिक संस्कृति, जिसमें भाषा, प्रथा, धर्म, नैतिकता, कानून आदि शामिल हैं। इनके अनुसार प्रत्येक समाज में ये दो प्रकार की संस्कृतियाँ होती हैं। दोनों संस्कृतियों में समान गति से परिवर्तन या विकास होता है तो सांस्कृतिक विलंबना नहीं होती, लेकिन यदि दोनों संस्कृतियों में एक आगे बढ़ जाती है और दूसरी पीछे रह जाती है तो पीछे रहनेवाली संस्कृति को सांस्कृतिक विलंबना या सांस्कृतिक पिछड़ापन कहते हैं। ऑगबर्न ने बताया कि प्रत्येक समाज में भौतिक संस्कृति विकास करके आगे बढ़ जाती है तथा अभौतिक पीछे रह जाती है। इसके फलस्वरूप समाज में परिवर्तन होने लगता है। उदाहरण के लिए, आज समाज में रेल, मोटर, सिनेमा, हवाई जहाज, कारखाने आदि का उपयोग भौतिक संस्कृति का आगे बढ़ाना है, लेकिन इसी गति से हमारी भाषा, धर्म, प्रथा, परंपरा, अर्थात् अभौतिक संस्कृति के पहलू में परिवर्तन नहीं हुआ। यह पीछे रह गई है। जिससे सामाजिक परिवर्तन को बल मिला है।