UG 1st Semester Mil-Hindi AEC 1 Download PDF | BA/Bsc/Bcom 1st Sem Mil- Hindi Question Pepper Download PDF

UG 1st Semester Mil-Hindi AEC 1 Download PDF | BA/Bsc/Bcom 1st Sem Mil- Hindi Question Pepper Download PDF

नमस्कार दोस्तों आप सभी का स्वागत है , एक नए Article आर्टिकल में, दोस्तों अगर आप भी फर्स्ट सेमेस्टर में हैं,और आपका MIL Hindi विषय है तो हिंदी विषय का प्रश्न पत्र डाउनलोड कर सकते हैं| इस आर्टिकल की मदद से वैसे आप सभी विषय का प्रश्न पत्र आराम से डाउनलोड कर सकते हैं |

इस आर्टिकल की मदद से इसके नीचे आपको हिंदी का पीडीएफ दिया गया है|  इसके अलावा नीचे क्वेश्चंस भी दिया गया है इसे आप लोग आसानी से अपने मोबाइल फोन में डाउनलोड कर सकते हैं, तो अभी आप लोग इसे डाउनलोड कीजिए नीचे लिंक दिया गया है |इसके अलावा भी अन्य विषय का भी आपके यहां पर क्वेश्चंस मिल जाएगा जिसको आप लोग डाउनलोड कर सकेंगे|

 

 

 

 BA/Bsc/Bcom 1st Sem Mil- Hindi Question Pepper Download PDF

 

नीचे जो प्रश्न दिया गया है दोस्तों सभी को आपको एक बार निश्चित रूप से ध्यान से पढ़ लेना है ,कुछ भी बात आपको याद में आ जाता है ,थोड़ा सा भी दिमाग रह जाता है ,तो वही बात आप परीक्षा में लिख देंगे क्योंकि प्रश्न बिल्कुल रूप से आएगा |

 

BA/Bsc/Bcom 1st Semester Exam Details

Class CBCS 1st Sem 
Questions TypeObjective with

Subjective With Answer

Exam TypeRegular / ex regulator
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बिल्कुल 100% प्रश्न यही से पूछेगा यहां से बाहर नहीं पूछेगा ऑब्जेक्टिव के लिए ऊपर पीडीएफ डाउनलोड कीजिए ओरिजिनल Question मिलेगा|

 

 

 

 

 

 

Shorts + Long Question 

प्रश्न-1. ध्वनि की परिभाषा दें एवं इसके प्रकारों का वर्णन करें। अथवा, ध्वनि का वर्गीकरण एवं आधार स्पष्ट करें।

उत्तर-वागिद्रियों द्वारा उच्चरित वर्ण अथवा शब्दसमूह को ध्वनि कहते हैं जैसे-अ, आ, इ, ई, राम, मोहन आदि वर्ण या शब्द जब उच्चरित होते हैं, तब ये ध्वनियाँ कहलाती हैं। इनके लिखित रूप को ‘वर्ण’ कहते हैं। इसे ‘ध्वनि-चिन्ह’ भी कहा जाता है। ध्वनि बोलने और सुनने में आती है, लेकिन वर्ण लिखने, पढ़ने और देखने में आता है। इसलिए, भाषा से सम्बन्धित ध्वनियाँ ही ‘वर्ण’ हैं।

वर्ण उस मूल ध्वनि को कहते हैं, जिनके खंड न हो सकें। जैसे अ, इ, क, ख, प, म,

दू इत्यादि। ध्वनि के दो भेद हैं- (1) अघोष वर्ण और

(2) घोष वर्ण।

1. अघोष वर्ण-नाद (ध्वनि) की दृष्टि से जिन व्यंजन वर्णों में स्वरतंत्रियाँ परस्पर झंकृत नहीं होती हैं, उन्हें अघोष वर्ण कहते हैं।

जैसे-क, ख, च, छ, ट, ठ, त, थ, प, फ, श, ष सां

2. घोष वर्ण- जिन व्यंजनवर्णों में स्वरतंत्रियाँ परस्परं झंकृत होते हैं, वे घोष वर्ण हैं। जैसे-

(i) प्रत्येक वर्ग का तीसरा, चौथा और पाँचवां वर्ण-

ग, घ, ङ/ जं, झ, ञ/ड, ढ, ण/द, ध, न/ब, भ, म।

(ii) सारे स्वरवर्ण- अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ए, ऐ, ओ और औ।

(iii) सारे अन्तःस्थ वर्ण-य, र, ल, वा

‘ड’ तथा ‘ढ’ हिन्दी की विशेष ध्वनियाँ हैं, जिनके उच्चारण में विशेष सावधानी की आवश्यकता है। संस्कृत में ‘ड’ तथा ‘ढ’ ही होते हैं, ‘ड़’ और ‘ढ़’ नहीं। जैसे पीड़ा, वीड़ा, जड़ता इत्यादि।

प्रश्न-2. हिन्दी में उच्चारण का क्या अर्थ है? इसके महत्त्व का विवेचन करें।

उत्तर-हिन्दी भाषा में उच्चारण का बड़ा महत्त्व है। सामान्यतः यह देखा गया है कि जो व्यक्ति शुद्ध बोल नहीं सकता, वह शुद्ध भाषा लिखने में भी असमर्थ रहता है। स्पष्ट है कि

उच्चारण वर्ड (Spelling) में अटूट सम्बन्ध है। नीचे इसी उच्चारण-संबंधी विशेष अशुद्धियों और

उसके निदान पर प्रकाश डाला गया है :

मात्रा की दृष्टि से स्वर दो प्रकार के हैं-हस्व और दीर्घ। हस्व का अर्थ ‘छोटा’ होता है और दीर्घ का बड़ा। चूँकि ह्रस्व स्वर छोटा होता है, इसलिए इसके उच्चारण में कम समय (बल) देना पड़ता है, जबकि दीर्घ में अधिक समय (बल) देना पड़ता है। जैसे-

ह्रस्व अ, इ, उ, अब, कल ,किल, चिर, शुक

दीर्घ आ , ई, ऊ,आब,काल,कील,चीर

3. प्रश्न-02. भारत की राजभाषा हिन्दी की समस्याओं का विवेचन करें।

अथवा, राजभाषा हिन्दी की विशेषताओं एवं वर्तमान स्थिति की चर्चा करें

अथवा, राजभाषा से क्या तात्पर्य है? क्या हिन्दी भारत की राजभाषा बन जाने की क्षमता रखती है?

उत्तर-समस्त राष्ट्र की मानी जाने वाली भाषा ही राष्ट्रभाषा कहलाती है। जब कोई बोल विभाषा का रूप धारण कर क्रमशः साहित्यिक रचना का माध्यम बनकर लोकप्रिय हो जाती है तब्ब वही भाषा समग्र राष्ट्र के विचार-विनिमय का माध्यम बनकर राष्ट्रभाषा के पद पर प्रतिष्ठित हो जात है। हिन्दी भारत की राष्ट्रभाषा है क्योंकि वह जन-जन का कण्ठहार बन चुकी है। इतना ही नहीं यह देश की संस्कृति एवं देश के आदर्शों तथा देशवासियों की आकांक्षाओं को अभिव्यक्ति करती है और राजभाषा प्राचीन शब्दावली में प्रयुक्त की जानेवाली दरबारी भाषा ही आधुनिक शब्दावली में राजभाष की संज्ञा से अभिहित होती है। राजकीय कार्य-संचालन के लिए प्रयोग की जाने वाली भाषा ह ‘राजभाषा‘ कहलाती है। प्रत्येक स्वतंत्र राष्ट्रभाषा ही प्रायः उसकी राजभाषा कहलाती है क्योंकि उस के माध्यम से वहाँ का राजकाज सम्पन्न होता है। दरअसल राजकीय कार्यालयों, लेखों औ पत्र-व्यवहार के साथ-साथ राजाज्ञाएँ जिस भाषा में प्रसारित होती हैं वही भाषा राजभाषा कहलाती है

यद्यपि प्राचीन काल से लेकर आज तक हिन्दी को भारत की जनता का प्रेम प्राप्त रहा और जिसको शासन का संरक्षण भी प्राप्त रहा है तथापि हिन्दी का यह दुर्भाग्य है कि आजतक उसको राज्याश्रय कभी भी प्राप्त नहीं हुआ। इसका एकमात्र कारण अंग्रेजी-भक्ति है जो हिन्द को राजभाषा के पद पर प्रतिष्ठित नहीं होने दे रही है।

 

प्रश्न- 3. गेहूँ और गुलाब में अधिक उपयोगी कौन है?

उत्तर- बेनीपुरी जी के अनुसार गेहूँ शरीर का घोतक है और गुलाब आत्मा का घोतक है। यदि इस सिद्धांत को माना जाए तो जीवन के लिए गेहूं और गुलाब दोनों आवश्यक है। शरीर निर्वहन के लिए गेहूँ की आवश्यकता होती है किन्तु आत्म शान्ति के लिए गुलाब की आवश्यकता पड़ती है। फिर भी शरीर के संचालन के लिए गेहूँ अत्यावश्यक है। गेहूँ मनुष्य के लिए मूलभूत आवश्यकता है और गुलाब मनुष्य की मानसिक आनन्द की प्राप्ति के लिए आवश्यक है। जानवरों के लिए केवल गेहूँ की आवश्यकता है क्योंकि पशु विवेकशील प्राणी नहीं है। मनुष्य विवेकशील प्राणी है अतः उसे गेहूँ और गुलाब दोनो की आवश्यकता है।

प्रश्न-4. जायसी का संक्षिप्त परिचय प्रस्तुत करें।

उत्तर – जायसी प्राचीन हिंदी साहित्य के सूफी कवि है उन्होंने अपने महाकाव्य पद्मावत में लौकिक कहानी के आधार पर ईश्वरीय प्रेम का विवेचन किया है। जायसी का पद‌मावत ठेठ अवधी में लिखा गया है। इस महाकाव्य में जन-जन की भाषा है। इस महाकाव्य में ग्रामीण जीवन के शब्द मिलतें है। इस महाकाव्य में सभी रसों एवं छंदों की व्याप्ति हुई है। जायसी “प्रेम की पीर” के कवि है। उन्होने चित्तौड़ के राजा रतन सेन की प्रेम साधना तथा रानी पद्मावती के प्रेम समर्पण का जो चित्रण किया है वह हिन्दी साहित्य में अनूठा हैं। अपने रचना के माध्यम से कवि ने अपने को आने वाली पीढ़ी द्वारा याद किए जाने की इच्छा रखी है।

प्रश्न-5. कबीर की साखी का परिचय दें।

अथवा, कबीर के कवि रूप को उद्घाटित कीजिए।

उत्तर- कबीरदास हिन्दी साहित्य के अन्यतम कवि है। उन्होंने अपने ज्ञान एवं अनुभव के आधार पर हजारों साखियों का निर्माण किया उन साखियों के माध्यम से उन्होंने गुरु महिमा, ईश्वर महिमा, तथा मानव प्रेम का परिमार्जन किया। उनकी साखियाँ सत्य की अभिव्यक्ति है जिसमें कबीर का प्रत्यक्ष ज्ञान ही बोलता है। कबीर की साखियाँ सहज है। उनकी साखियों में कबीर का विद्रोही तथा समाज सुधारक एवं प्रगतिशील कवि का रूप उद्घाटित हुआ है। कबीर की साखियों की अभिव्यंजना शैली जन-जीवन को प्रेरित करने वाली है उनकी साखियों में ज्ञान, बुद्धि तथा काव्य शक्ति के गुणों का समन्वय है।

प्रश्न-6. तुलसीदास की भक्ति भावना।

उत्तर- तुलसीदास पुष्टि मार्ग के अद्वितीय कवि है? उनके इष्ट देव राम है जिनके जीवन संघर्ष पर आधारित उनका महाकाव्य ‘रामचरितमानस’ है। भारतीय जनमानस में अध्यात्म और भक्ति की जो पियुष धारा प्रवाहित हो रही है उसका स्त्रोत वेदों उपनिषदों के अतिरिक्त रामचरितमानस भी है। भक्त तुलसी ने रामचरित्र, सीताचरित्र तथा हनुमान चरित्र को न केवल अपनी कविताओं का विषय बनाया अपितु उन्होंने प्रबन्ध और मुक्तक शैली में अवधी और बज्रभाषा को स्वीकार करते हुए जनमानस को रामभक्ति का रस पिलाया। वस्तुतः रामचरित्र मानस के सात काण्ड तुलसी के भक्ति के सात सोपान है। जिनके चिन्तण मनन से राम भक्ति प्राप्त होती है।

प्रश्न-7. रामधारी सिंह दिनकर के बारे में संक्षेप में लिखें।

उत्तर- रामधारी सिंह दिनकर का जन्म 1908 ई० में बिहार के सिमरिया गाँव में हुआ था। अभाव एवं संघर्षों से जुझते हुए दिनकर जी एक शिक्षक, एक अध्यापक, एक कुलपति एवं राष्ट्रकवि भी थे|

प्रश्न-8. देवनागरी लिपि के विकास का वर्णन करें।

उत्तर- देवनागरी लिपि का विकास एक लम्बी और समृद्ध इतिहास से जुड़ा हुआ हैं। इस लिपि का प्रारंभ उत्तर भारत में हुआ था और इसे लगभग 1100 ई० पू० में विकसित किया गया था। यह संस्कृत और हिंदी के साथ-साथ अन्य भारतीय भाषाओं के लिए भी प्रयोग किया जाता है। देवनागरी लिपि का विकास सांस्कृतिक, सामाजिक, और राजनीतिक संदर्भों में भारतीय इतिहास से संबंधित है। इस लिपि का उपयोग आज भी विभिन्न भारतीय भाषाओं में होता है, और यह एक महत्वपूर्ण भारतीय सांस्कृतिक विरासत का हिस्सा है।

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 243 के अनुसार हिंदी भारत की राजभाषा है और इसकी लिपि देवनागरी लिपि है। हिंदी में देवनागरी लिपि का प्रयोग आकस्मिक घटना नहीं है। अपितु यह एक सूदीर्घ प्रक्रिया का परिणाम है। संवैधानिक स्वीकृति मिलने के बाद हिंदी के मानकीकरण में रूपों की विविधता आई हैं, इस कारण देवनागरी लिपि का प्रयोग बहुत व्यापक हो गया है। संस्कृत, नेपाली, मराठी, पंजाबी तथा गुजराती भाषा में भी इस लिपि का व्यापक प्रयोग हो रहा है।

प्रश्न-9. रामचरितमानस का संक्षेप में वर्णन करें

उत्तर – भारतीय जनमानस अध्यात्म और भक्ति की जिस पीयूष धारा से सिंचित होता आया है उसका स्रोत यदि वेद एवं उपनिषदों से उद्भूत है तो जनसाधारण में भक्ति के प्रचार-प्रसार का श्रेय स्वामी रामानन्द के बाद हिन्दी में सूर, तुलसी आदि कवियों को ही है। भक्त तुलसी ने रामचरित और रामभक्ति को न केवल अपनी कविता का विषय बनाया अपितु उन्होंने क्रमशः प्रबंध और मुक्तक शैली के लिए अवधी और ब्रजभाषा स्वीकार कर दोनों पर अपने असाधारण प्रभुत्व द्वारा हिन्दी की शक्ति और क्षमता पर अखंड विश्वास जाग्रत किया।

रामचरित पर भक्ति का रंग चढ़ाकर तुलसी ने रामचरितमानस को इतना सुन्दर और प्रभावशाली रूप दिया कि राम का आदर्श चरित, जिसमें सुख-दुख के अनेक प्रसंग आते हैं, अत्यंत मानवीय रूप में अंकित हुआ। प्रत्येक मर्मस्पर्शी प्रसंग का सजीव सरस-स्वाभाविक वर्णन, काव्यांगों की अभिव्यक्ति, प्रवाहपूर्ण ललित भाषा सबने मिलकर मानस को ऐसा हृदयग्राही रूप दिया है कि यह ग्रंथ हिन्दी पाठकों का कंठहार बन गया है जिसका सबसे बड़ा प्रमाण यह है कि सदियों से जनसाधारण की जिह्वा पर मानस के दोहे, चौपाइयों की पंक्तियाँ घिसती आ रही हैं।

शक्ति, शील और सौन्दर्य के अप्रतिम कवि तुलसी ने जीवन के विविध पक्षों के प्रति अपनी जिस सूक्ष्म दृष्टि का परिचय दिया है उससे उनके दृष्टि-विस्तार का तो पता चलता ही है भारत की समग्र जनता का लोकप्रिय कवि होने का गौरव भी उन्हें इसी कारण प्राप्त है।

रामचरितमानस’ की कल्पना गोस्वामी जी ने मानसरोवर के रूप में की है, जिसके जल तक पहुँचने के लिए सप्तसोपान सात सीढ़ियों के समान हैं

“सप्त प्रबन्ध सुभग सोपाना।

ज्ञान नयन निरषत मन माना।”

वस्तुतः मानस के सप्तसोपान उसके सात कांड-बालकांड, अयोध्याकांड, अरण्यकांड, किष्किन्धा कांड, सुन्दरकांड, लंका काण्ड और उत्तर कांड ही हैं जो भक्ति के ही सोपान हैं जिन्हें देखने के लिए ज्ञान-दृष्टि अपेक्षित है। तात्पर्यतः मानस के सात कांडों में बद्ध कथाओं के परायण-मनन से ही रामभक्ति की प्राप्ति संभव है। समग्रतः मानस रामभक्ति का अविरल स्रोत है।

प्रश्न-10. ‘अंधेर नगरी’ नाटक का संक्षेप में वर्णन करें।

उत्तर – ‘अंधेर नगरी’ का कथानक लघुनाटक के अनुरूप ही अत्यंत संक्षिप्त है। यद्यपि पात्रों की संख्या अधिक दिखायी देती है किन्तु सारे पात्रों में प्रमुखता जिन पात्रों को प्राप्त होती है उनमें

प्रश्न-11. दिनकर क काव्य के प्रमुख रसों का वर्णन करें।

उत्तर- रामधारी सिंह दिनकर के काव्य में प्रमुख रसों की व्यापकता और गहराई होती है। वे अपने काव्य में वीर रस को उच्च स्थान देते हैं, जो वीरता साहस और पराक्रम के भावों को प्रकट करता है। उनकी कविताओं में प्रेम और श्रृंगार भी अहम भूमिका निभाते हैं, जो संबंधों की मिठास और रोमांच को दर्शाते हैं। उनकी कविताओं में रसों की विविधता और गहराई को अनुभव किया जा सकता है।

प्रश्न-12. मुहावरा और कहावत में अंतर स्पष्ट करें।

उत्तर- मुहावरा और कहावत दोनों ही भाषा के एक प्रकार है, लेकिन उनके अंतर में कुछ विशेष बातें होती हैं। मुहावरा एक वाक्यांश होता है जो वाक्य को रुचिकर बनाता है जबकि कहावत एक विशेष सत्यानुवाद होता है जो जीवन के अनुभव से सिखाई गई बातों को व्यक्त करता है। अधिकांश कहावतें अधिक उत्तम रीति रिवाजों या जीवन के अनुभवों के साथ संबंधित होती है, जबकि मुहावरे वाक्य के विशेष परिस्थितियों या भाषाई अभिप्रायों को व्यक्त करने के लिए प्रयोग किए जाते हैं।

 

प्रश्न-13. अनुवाद सिद्धांत को परिभाषित करें।

 

उत्तर- अनुवाद् सिद्धांत भाषाओं के वाक्यांशो या पाठों को एक भाषा से दूसरी भाषा में स्थानांतरित करने के नियमों और तत्वों का अध्ययन करता है। यह समझने में मदद करता है कि भाषा का अर्थ और भाव कैसे संवेदनशीलता से एक भाषा से दूसरी भाषा में परिभाषित किया जा सकता है। अनुवाद के कुछ मुख्य सिद्धांत निम्नलिखित है-

 

(i) अर्थानुवाद- इसमें प्राथमिक ध्यान अद्यतित वाक्यांश के अर्थ पर दिया जाता है।

 

(ii) व्याकरणानुवाद- इसमें भाषाई और व्याकरणिक नियमों का पालन करते हुए अनुवाद किया जाता है।

 

(iii) प्रायोजनानुवाद- इसमें उद्देश्य और संदेश को स्थानांतरित किया जाता है बिना मूल भाषा के अनुवाद के साथ परिभाषित किए जाने का।

 

(iv) संवेदनानुवाद- इसमें मूल भाव, भावना और महत्व को ध्यान में रखते हुए अनुवाद किया जाता है।

 

प्रश्न-14. छायावाद का स्वरूप स्पष्ट करें।

उत्तर- “छायावाद की पद्धति कबीर आदि की निर्गुण निराकार व्यंजनाओं से भिन्न तो है ही, सूफियों की पद्धति से भी पृथक है।” “नयी छायावादी काव्यधारा का भी एक आध्यात्मिक पक्ष है, परन्तु उसकी मुख प्रेरणा धार्मिक न होकर मानवीय और सांस्कृतिक है। उसे हम बीसवीं शताब्दी की वैज्ञानिक और भौतिक प्रगति की प्रतिक्रिया भी कह सकते हैं।”

 

छायावाद भारतीय आध्यात्मिकता की नवीन परिस्थिति के अनुरूप स्थापना करता है। जिस प्रकार मध्ययुग का जीवन भक्ति काव्य में व्यक्त हुआ, उसी प्रकार आधुनिक जीवन की अभिव्यक्ति इस काव्य में हो रही है।” वाजपेयी जी भक्तिकालीन कवियों तथा भक्ति काव्य से छायावाद का अन्तर स्पष्ट करते हुये लिखते हैं कि “जहाँ पूर्ववर्ती भक्तिकाव्य में जीवन के लौकिक और व्यावहारिक पहलुओं को गौण स्थान देकर उनकी उपेक्षा की गई थी, वहाँ छायावादी काव्य प्राकृतिक सौंदर्य और सामयिक जीवन परिस्थितियों से ही मुख्यतः अनुप्राणित है।

 

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