Hindi 10th subjective chapter-4 स्वदेशी

Hindi 10th, subjective chapter-4 स्वदेशी

 

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                 लघु उत्तरीय प्रश्न उत्तर

1. कवि ने ‘डफाली’ किसे कहा है और क्यों?

उत्तर—–—डफाली’ वह है जो ‘डफ’ अर्थात् ताशा बजाता है। इसकी आवाज बड़ी तेज होती है और इसका लक्ष्य होता है शोर मचाना, ध्यान आकर्षित करना। कवि देखता है कि कुछ लोग शासकों की झूठी प्रशंसा लोगों का करने में दिन-रात लगे रहते हैं। उनके द्वारा किए जाने वाले गुणगान में रंचमात्र की भी सत्यता नहीं होती। वे छोटी-सी बात को बढ़ा-चढ़ा कर जोर-शोर से लोगों को सुनाते हैं। इनका लक्ष्य होता है अपने स्वामी को खुश करना या जिससे कुछ पाने की उम्मीद हो, उसे प्रसन्न करना। कवि ऐसे ही झूठे प्रशंसकों को, चाटुकारों को, डफाली कहता है।

2. ‘स्वदेशी’ कविता में किस बात पर दुख व्यक्त किया गया है ?

उत्तर – स्वदेशी कविता में भारत में भारतीयता के अभाव पर दुख व्यक्त किया गया है l

 

3. ‘प्रेमघन’ के आदर्श पुरुष कौन थे?

उत्तर- ‘प्रेमघन’ के आदर्श पुरुष भारतेन्दु हरिश्चन्द्र थे । –

4. ‘स्वदेशी’ शीर्षक कविता में कवि समाज के किस वर्ग की आलाचेना करता है और क्यों? 

उत्तर- ‘स्वदेशी’ कविता में ‘प्रेमघन’ भारतीय समाज के उस वर्ग की आलोचना करते हैं जो दिन-रात भारत के तत्कालीन गौरांग – प्रभुओं की • खुशामद करने और उनका गुणगान करने में लगे रहते थे, अपनी भाषा बोलने में, देसी वेश-भूषा पहनने में अपमान समझते थे और अपने देशवासियों से घृणा करते थे। कवि की आलोचना का उद्देश्य ऐसे लोगों में राष्ट्रीय भावना उत्पन्न करना था।

5. कवि प्रेमघन को भारत में भारतीयता क्यों नहीं दिखाई पड़ती ?

उत्तर – कवि प्रेमघन जब भारतभूमि पर दृष्टिपात करते हैं तो पाते हैं कि चारों ओर लोग अंग्रेजी वेश-भूषा में हैं, रहन-सहन, रीति-रिवाज भी लोगों का विदेशियों जैसा हो गया है, घर-द्वार भी लोग विदेशी-शैली के बनाने लगे हैं। लोगों को हिन्दी बोलने में शर्म और अंग्रेजी में संभाषण करने पर गर्व का बोध होता है। लोग हिन्दुस्तानी नाम से घृणा करते हैं। इस प्रकार, कवि को भारत में कहीं भारतीयता दिखाई नहीं पड़ती।

 

Long type Question

 

             दीर्घ उत्तरीय प्रश्न उत्तर

1. सबै बिदेशी वस्तु नर, गति रति रीत लखात । भारतीयता कछु न अब, भारत म दरसात ॥ मनुज भारती देखि कोड, सकत नहीं पहिचान । मुसलमान, हिन्दू किधौं, के हैं ये क्रिस्तान । निम्न पंक्तियों का अर्थ लिखें :

उत्तर—पाठ— स्वदेशी । कवि – बदरीनारायण चौधरी ‘प्रेमघन’। कवि जब भारत की स्थिति पर नजर डालता है तो दुखी हो जाता है। वह कहता है कि आज तो यहाँ विदेशी लोग, विदेशी रीति, विदेशी चाल-ढाल ही दिखाई देती है। भारतीयता नाम की चीज कहीं दिखाई नहीं पड़ती। और तो और, यह पहचान भी मुश्किल है कि कौन हिन्दू है, कौन मुसलमान और कौन ईसाई । यह स्थिति अत्यन्त चिन्ताजनक है।

2. जिनसों सम्हल सकत नहिं तनकी, धोती ढीली-ढाली । देस प्रबंध करिहिंगे वे यह, कैसी खाम खयाली || इस गद्यांश में कौन-सा भाव स्पष्ट होता है?

उत्तर—’स्वदेशी’ कविता के प्रस्तुत अंतिम दोहों में कवि बदरीनारायण चौधरी ‘प्रेमघन’ असमर्थ लोगों द्वारा शासन- सूत्र संभालने और शासकों की झूठ-मूठ प्रशंसा करने वालों का जिक्र करते हुए कहता है कि यह सोच कपोल कल्पना के अलावा कुछ नहीं है कि जो अपनी धोती नहीं संभाल सकते, वे देश के शासन का सुचारु रूप से संचालन करेंगे।

3. दास वृत्ति की चाह चहुँ दिसि चारहु बरन बढ़ाली । करत खुशामद झूठ प्रशंसा मानहुँ बने डफाली ॥ इस पद्यांश का भाव स्पष्ट करें।

उत्तर- यह पद्यांश ‘स्वदेशी’ कविता से अवतरित है। इसके रचनाकार ‘बदरी नारायण चौधरी प्रेमघन’ है।

इसका भाव यह है कि’ लोग अपनी गरिमा को भूल रहे हैं। सबके सब बदहाली है। अग्रेजों के गुणगान में लगे रहते हैं जैसे डफली लेकर भीख

नौकरी की चाह में इधर-उधर डोल रहे हैं। चारों दिशाओं में बदहाली ही

माँगनेवाला डफली बजाकर गाता चलता है।

4. मनुज भारती देखि कोड, सकत नहीं पहिचान – सप्रसंग व्याख्या कीजिए ।

उत्तर- प्रस्तुत पंक्ति ‘स्वदेशी’ शीर्षक रचना से ली गई है। इस पंक्ति में कवि ‘प्रेमघन’ ने भारत की एक विचित्र स्थिति का उल्लेख करते हुए कहा है कि आज देश में हालत यह है कि भारतीय की पहचान कठिन हो गई है। रहन-सहन, आचार-विचार, वेष-भूषा और भाषा में आमूल बदलाव आ गया है। वे सारी चीजें लुप्त हो गई हैं जो एक भारतीय की पहचान थीं। मसलन, भारतीय लिबास छोड़कर लोग कोट-पैंट पहनने लगे हैं, अंग्रेजों की तरह रहने लगे हैं और सबसे बड़ी बात देशी भाषा छोड़ विदेशी भाषा अंग्रेजी बोलने लगे हैं। देश के लोगों में पहचान का संकट खड़ा हो गया है।

5. ‘स्वदेशी’ के दोहे राष्ट्रीय भावना से ओत-प्रोत हैं। कैसे?

उत्तर – बदरीनारायण चौधरी ‘प्रेमघन’ कृत ‘स्वदेशी’ के दोहे राष्ट्र की सभ्यता, संस्कृति और राष्ट्रीयता के शनैः शनैः होते विलोपन से व्याकुल मन के चीत्कार हैं। लोगों की वेश-भूषा, रीति-गति को अंग्रेजीयत के रंग में रंगता कवि देखता है तो उसे पीड़ा होती है। अब तो भारतीयों की पहचान मुश्किल हो रही है – ‘ मनुज भारती देहिव कोऊ सकत नहीं पहिचान, मुसलमान, हिन्दू किंधौ, के हैं ये क्रिस्तान ।’

कवि यह देख भी दुखी होता है विदेशी विद्या ने देश के लोगों की सोच ही बदल दी है—

पढ़ि विद्या परदेस की, बुद्धि विदेसी पाय । चाल चलन परदेस की गई इन्हें अति भाय ॥

लगता है कि भारतीयता लेशमात्र की नहीं बची। लोग अंग्रेजी बोल रहे हैं, अंग्रेजी ढंग से रह रहे हैं। हिन्दुस्तानी नाम से ही और भारतीय वस्तुओं से घृणा करते हैं—

हिन्दुस्तानी नाम सुनि, अब ये सकुचि लजात। भारतीय सब वस्तु ही, सौं ये हाय घिनात ॥ कवि की राष्ट्रीयता पर चोट तब पड़ती है जब पाता है कि सभी वर्ण के लोग आत्म-सम्मान छोड़कर चाकरी के लिए लालायित हो रहे हैं, अंग्रेज हाकिमों की झूठी प्रशंसा कर रहे हैं। देश के नेता अपने कल्याण में लगे हैं। स्वार्थपरता के कारण उनकी संतति हाथ से निकल रही है। जब ये अपना घर ही नहीं संभाल सकते तो देश क्या संभालेंगे

जिनसों सम्हल सकत नहिं तनकी, धोती ढीली-ढाली । देस प्रबंध करिहिंगे वे यह, कैसी खाम खयाली । इस प्रकार, हम देखते हैं कि ‘स्वदेशी’ के दोहों में देश की दशा के चित्रण के व्याज से कवि ने लोगों में राष्ट्रीय भावना भरने की चेष्टा की है। अतएव, ये दोहे निश्चित तौर पर राष्ट्रीय भावना से ओत-प्रोत हैं- इनसे राष्ट्रभक्ति की प्रेरणा मिलती है।

6. नेताओं के बारे में कविवर ‘प्रेमघन’ की क्या राय है?

उत्तर—देश के नेताओं के बारे में कविवर ‘प्रेमघन’ की राय अच्छा नहीं है । वे कहते हैं कि नेताओं की अपनी चिन्ता अधिक और जनता की कम होती है। वे कहते हैं कुछ और करते हैं कुछ  । उनका जन-कल्याण कम, आत्म-कल्याण पर ध्यान अधिक होता है। नतीजा होता है कि प्रायः उनके बच्चे ही उनके वश में नहीं होती। ‘प्रेमघन’ कहते हैं कि जो अपने बच्चों को वश मे नहीं रख सकते, अपनी धोती नहीं संभाल सकते, वे नौकरशाहों को कैसे वश में रख सकेंगे? कानून का शासन कायम कर सकेंगे? उन पर विश्वास करना, धोखा खाना है।

7. ‘स्वदेशी’ शीर्षक की सार्थकता स्पष्ट कीजिए। उत्तर—किसी भी रचना की सार्थकता इस बात में निहित होती है कि वह

रचना का केन्द्रीय भाव व्यक्त करनेवाला, आकर्षक और संक्षिप्त है या नहीं? इस दृष्टि से विचार करने पर हम पाते हैं कि सभी दोहे देश-भावना को समेटे हुए हैं अर्थात् स्वदेशी विचारधारा को लेकर लिखे गए हैं। दूसरी बात यह है कि ‘स्वदेशी’ नामकरण भी उत्सुकता जगाता है कि आखिर यह ‘स्वदेशी’ है क्या चीज? तीसरी और अंतिम बात यह कि ‘स्वदेशी’ शीर्षक अत्यन्त संक्षिप्त अर्थात् छोटा है। इस प्रकार तीनों कसौटियों पर यह शीर्षक खरा उतरता है, अतएव यह शीर्षक सार्थक है।

7. ‘स्वदेशी’ कविता के सन्देश या मूल भाव पर प्रकाश डालिए

 उत्तर- ‘स्वदेशी’ के दोहों की रचना उस समय हुई थी जब देश परतंत्र था। उन दिनों ‘स्वदेशी’ शब्द ही राष्ट्रीयता एवं नवजागरण का प्रतीक था । स्वभावतः ‘स्वदेशी’ के दोहों की रचना के पीछे देश में फैले कुविचारों, रीतियों, नीतियों आदि को दूर कर लोगों में आत्म-सम्मान भरना एवं राष्ट्रीयता की भावना जागृत करना था। इसलिए कवि ने चुन-चुन कर उन विषयों पर दोहे लिखे हैं जिन्हें वह भारत और भारतीयता के विरुद्ध समझता है, यथा- लोगों का अंग्रेजी-प्रेम, रहन-सहन, वेष-भूषा और विदेशी वस्तुओं से लगाव आदि । इस प्रकार, ‘स्वदेशी’ के दोहों का मुख्य लक्ष्य है—भारत और भारतीय तथा भारतीय भाषा के प्रति प्रेम जागृत करना।

 

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