Creating Writing SEC 1 Download PDF | BA/Bsc/Bcom 1st Sem Creating Writing Question Pepper Download PDF
नमस्कार साथियों अगर आपको ग्रेजुएशन फर्स्ट सेमेस्टर के छात्र हैं, और आपका भी विषय क्रिएटिव राइटिंग है, तो आप इस आर्टिकल को पूरा देख सकते हैं | इस आर्टिकल में क्रिएटिंग राइटिंग पर पूरा तरह से पोस्ट लिखा गया है ,
Creating Writing क्वेश्चंस का पीडीएफ भी नीचे दिया गया है| जिसको आप लोग डाउनलोड भी कर सकते हैं| इसके अलावा नीचे क्वेश्चंस दिया गया और महा मैराथन क्लास दिया गया है भारत के किसी भी यूनिवर्सिटी से हैं, जहां पर 4 वर्षीय स्नातक कोर्स चल रहा है |वहां के सभी विद्यार्थियों के लिए सिलेबस Same होता है ,जो प्रश्न इसमें दिया गया है वही सारे प्रश्न आपके यूनिवर्सिटी में पूछा जाएगा|
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BA/Bsc/Bcom 1st Semester Exam Details
Class | CBCS 1st Sem |
Questions Type | Objective with Subjective With Answer |
Exam Type | Regular / ex regulator |
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1. निगमन-आगमन तर्क
तर्कशास्त्र ही वह विषय है, जिसमें सही अनुमान के नियम बताये जाते हैं। इसमें हम सही अनुमान के नियमों का ही अध्ययन करते हैं। तर्कशास्त्र का लक्ष्य है अनुमान में सत्यता की प्राप्ति और भूलों का निवारण। इसलिए तर्कशास्त्र को सही अनुमान के सिद्धान्तो या नियमों का व्यवस्थापक विज्ञान कहा जाता है। विज्ञान इसे इसलिए कहते हैं कि इसमें अनुमान-सम्बन्धी बातों का एक व्यवस्थित ढंग से अध्ययन किया जाता है। किसी भी निश्चित पदार्थ का एक व्यवस्थित ढंग से जिसमें अध्ययन किया जाय, वही विज्ञान कहा जाता है। सारांश यह हुआ कि सही अनुमान के नियमों का अध्ययन करना ही तर्कशास्त्र का मुख्य लक्ष्य है।
तर्कशास्त्र में अनुमान की क्रिया से नहीं, अपितु उसके परिणाम में हमारा सम्बन्ध है। यह सही अनुमान के नियमों का निरूपण करता है। यह ऐसे नियमों का पता लगाता है जिनके पालन से अनुमान में सत्य की प्राप्ति होती है। इसलिए इसे यथार्थ विचार के नियामक सिद्धान्तो का विज्ञान कहा गया है।
अनुमान मनुष्य के ज्ञान का एक साधन है। आगमन तर्कशास्त्र का उद्देश्य है अनुमान-सम्बन्धी सत्य प्राप्त करना; पर सत्य के दो रूप होते है: आकारिक (formal) और वस्तुपरक (Material)। अनुमान दो प्रकार के हैं-निगमन और आगमन; अनुमान का अध्ययन पूर्ण नहीं होगा जब तक आगमन का अध्ययन नहीं किया जाय। निगमन-विधि द्वारा अनुमान के केवल आकार की परीक्षा की जाती है। अनुमान की वस्तुपरकता की परीक्षा आगमन के द्वारा ही सम्भव है। फिर प्रत्येक निगमनात्मक न्याय में एक सामान्य वाक्य की आवश्यकता होती है, ऐसे वाक्य न अनुभव द्वारा, न स्वयंसिद्ध वाक्यों द्वारा न विश्लेषात्मक वाक्यों के रूप में और हो सकते हैं। अतः आगमन आवश्यक है। न निगमन-विधि द्वारा ही प्राप्त
2. रेडियो पत्रकारिता
पत्रकारिता समस्त घटनाओं एवं गतिविधियों का विश्लेषण कर समाजीकरण में और एक सही समाज निर्माण में सहायक बनती है। वह विविध संस्कृतियों, उपसंस्कृतियों, प्रथाओं, मान्यताओं और प्रतिमानों से जनता को परिचित कर सांस्कृतिक विकास के प्रवाह में क्रम एवं नैरंतर्य लाती है। सामान्यतः समस्त संचार माध्यम चाहे वे पत्र-पत्रिकाएँ हों या आकाशवाणी, दूरदर्शन अथवा फिल्म जगत् हो, सभी एक व्यापक क्रांति के द्योतक है। लेकिन जिस रद्दोबदल, आंदोलन जनविद्रोह के लिए पत्रकारिता भूमिका निभाती है, वह प्रशंसनीय है। यही वजह है कि आकाशवाणी, दूरदर्शन, वीडियो कैसेट, फिल्म जैसे समस्त माध्यमों के समुचित होने पर भी पत्रकारिता का महत्त्व अक्षुण्ण है।
एक पत्रकार सर्वप्रथम विषय की गहनता को समझता है, और उसके बारे में उचित जानकारी प्राप्त करता है। इसके पश्चात वह पाठक की मानसिकता को समझता है उसके उपरान्त विषयानुकूल भाषा का चयन करता है। पत्रकारीय भाषा में भाव-प्रवाह और स्वाभाविकता का विशेष महत्त्व होता है। आज के व्यस्तता भरे जीवन में भाषा की स्पष्टता का होना अति आवश्यक माना गया है। इसके लिए पत्रकारिता में शुद्ध शब्दों का प्रयोग करना चाहिए तथा शब्दों की वर्तनी के प्रति भी सतर्कता बरतनी चाहिए। पत्रकारीय भाषा, भाषा विज्ञान के व्याकरणिक नियमों के साथ चलती है, क्योंकि इसका प्रचलन समाज के समक्ष एक भाषा को दिशा प्रदान करने वाला होता है।
3. बाल पत्रकारिता
बाल पत्रकारिता में बालकों से संबंधित साहित्य को अलग से पत्रिका में प्रकाशित किया जाता है। दैनिक पत्रों में रविवारीय अंक में बाल स्तम्भ छापा जाता है। इनमें बालकों से संबंधितः चित्रों के माध्यम से कार्टून कहानी होती है। नई दिल्ली से प्रकाशित होने वाली ‘चंपक’ और ‘नंदन’, ‘तितली’, ‘बाल भारती’ आदि पत्रिकाओं में बालकों के लिए अलग से सामग्री संकलन होता है। एक बाल लेख लिखने वाले को पहले बालकों के स्तर अर्थात् उनकी आयु का पता होना चाहिए। बालक भी अलग-अलग आयु वर्ग में विभिन्न तरह की कहानियाँ सुनना और पढ़ना पसंद करते हैं। 14-15 वर्ष से कम आयु के बच्चे काल्पनिक कहानियों को पसंद करते हैं, इससे अधिक उम्र के बच्च्चों को यह मालूम होता है कि परियाँ नहीं होती, खरगोश नहीं बोलते अतः उनकी कहानियाँ उनके स्तर के अनुसार शिक्षा प्रदान करने वाली होनी चाहिए।
4. वाणिज्य पत्रकारिता
विभित्र तरह के व्यापारों, शेयर बाजारों से जुड़ी हुई सूचनाएँ वाणिज्य पत्रकारिता के अन्तर्गत ‘ आती है। शेयर बाजार की रिपोर्ट सोने, चाँदी के भाव आदि वाणिज्य की पत्रिकाओं में और पत्रों में छपने वाली जानकारी होती है।
जनमत की सशक्त वैचारिक क्रांति को पत्र-पत्रिकाओं के माध्यम से अभिव्यक्त करना में पत्रकारिता के नाम से जाना जाता है। भारत में पत्रकारिता का इतिहास काफी पुराना है। कलकत्ता में 1780 में ‘बंगाल गजट’ नामक पहला पत्र प्रकाशित हुआ। इसके बाद अंग्रेजों द्वारा भारतीय समाचार पत्रों पर प्रतिबंध लगा दिया गया किंतु भारत की राष्ट्रीय और जागृति से परिपूर्ण विचारधारा को अंग्रेज अवरूद्ध नहीं कर सके ओर ‘उदंत मार्तंड’ नामक हिंदी का समाचार पत्र प्रकाशित हुआ। इसके बाद भारत में पत्र और पत्रिकाओं की लहर निरंतर तीव्र होती गई। सरस्वती पत्रिका, भारत मित्र, हिंदी केसरी, अभ्युदय, प्रताप आदि पत्रिकाओं ने राष्ट्रीय भावनाओं के प्रचार-प्रसार में आंदोलनकारी कार्य किया।
पत्रकारिता अभिव्यक्ति का वह सशक्त माध्यम है जिससे साहित्यकार और पत्रकार सभी जनता से जुड़ सकते हैं। पत्रकारिता लेखन में सर्जनात्मकता के लिए कुछ विशेष बातों का ध्यान रखने की आवश्यकता होती है। सर्वप्रथम पत्रकारिता देश के हर वर्ग से जुड़ने का माध्यम होता है अतः पत्र लेखकों को चाहिए कि वे उसमें सरल एवं सहज भाषा का प्रयोग करें। इनमें सूचना एवं जानकारी प्रसारित करने को प्रमुखता दी जाती है न कि साहित्यकार की कल्पनाशीलता को प्रसारित करने की।
पत्र-पत्रिकाओं में निस्पक्षता को महत्व दिया जाना चाहिए। एक पत्रकार के लिए पत्र सत्य को प्रकट करने का साधन होता है। इसमें उसे किसी व्यक्ति की व्यक्तिगत समस्याओं को नहीं उठाना चाहिए। इसके साथ ही किसी भी राजनैतिक दल को बहुत अधिक प्रशंसनीय और अन्य के लिए आलोचनात्मक शब्दों का प्रयोग नहीं किया जाना चाहिए।
पत्रकारिता में लेखक को सांस्कृतिक उत्थान को ध्यान में रखना चाहिए। पत्रकारिता प्रत्यक्ष रूप से जनता से जुड़ी होती है।
5. कविता और छंद
कविता लेखन में लय के साथ ही तुक और छंद का प्रयोग भी किया जाता रहा है। भाषा में संगीतात्मकता होती है। इसी कारण जहां छंद नहीं भी है, वहां भी लय के साथ तुक का प्रयोग किया जाता है। वस्तुतः ध्वनि और परिज्ञान के साथ कविता की लय जुड़ी होती है।
6. यात्रावृत्तांत
निबंध के समानांतर जो गद्य की अन्य विधाएं हैं उनमें भी लेखन के अनेक रूप मिलते हैं। यात्रावृत्त में यात्रा का वृत्तांत होता है। यदि लेखक किसी यात्रा पर निकलता है तो वह उस यात्रा का विवरण भी देता है। सामान्य व्यक्ति यह नहीं करता। यात्रावृत्त में उस स्थान या प्रकृति सौंदर्य और वस्तुओं के विवरण को महत्व दिया जाता है। वह तथ्यों को रोचक ढंग से व्यक्त करता है। वह सरल सहज शिल्प अपनाता है। आजकल यह विधा अत्यंत महत्वपूर्ण हो गई है। अब लोग अनेक स्थानों पर यात्रा करते हैं और उनका विवरण भी देते हैं। भारतेंदु हरिश्चंद्र ने ‘सरयू पार की यात्रा’ में अयोध्या की यात्रा का अत्यंत रोचक वर्णन किया है। इसमें व्यक्तिगत संवाद शिल्प अपनाया जाता है। यात्रा करते हुए कैम्प हरैया बाजार का वर्णन उन्होंने इस प्रकार किया है-“मेला देखते हुए रामघाट की सड़क पर गाड़ी से उतरे। वहां से पैदल धूप में गर्म रेती में सरजू किनारे गुदारा घाट पर पहुंचे। वहां से मुश्किल से नाव पर सवार होकर सरजू पार हुए।”
यात्रा वर्णन का आरंभ अत्यंत व्यक्तिगत शिल्प में होता है। कभी-कभी यात्रा के दौरान किसी सहयोगी के घर जाना होता है। तब उसका वर्णन भी किया जाता है। यात्रा की तारीखों को भी अंकित किया जाता है। यात्रा कब आरंभ हुई और कब समाप्त हुई इसका वर्णन भी किया जाता है।
7. रिपोर्ताज
रिपोर्ताज किसी घटना के कलात्मक प्रस्तुतीकरण को माना जाता है। जब किसी घटना को ज्यों का त्यों विवरणात्मक रूप में प्रस्तुत कर दिया जाता है तो उसे ‘रिपोर्ट’ का नाम दिया जाता है और जब लेखक अपनी रचनात्मकता से उस घटना को प्रभावशाली ढंग से चित्रित करता है तो वही घटना एक मनोरम रूप में पाठकों के समक्ष आती है। रिपोर्ताज के अंतर्गत निम्नलिखित
बातों को शामिल किया जाना चाहिए-
यथार्थ चित्रण : रिपोर्ताज में किसी घटना की प्रत्यक्ष अभिव्यक्ति करनी होती है। रचनाकार किसी उत्सव को, मेले को, बाढ़ को, हर सुख दुख को देखता है और उसका प्रभावशाली ढंग से वर्णन करता है इससे पाठक के मन और आँखों के सामने वह घटना प्रत्यक्ष हो उठती है।
प्रभावशीलता : रिपोर्ताज में लेखक को अपने लेखन कौशल से प्रभावशीलता डालनी पड़ती है अन्यथ वह मात्र घटना का ब्यौरेवार चित्रण रह जाता है। इसमें लेखक चित्रमयी भाषा शैली का ऐसा विशिष्ट संयोजन करता है कि पूरा दृश्य पाठक के सामने साकार हो उठता है।
समसामयिकता : रिपोर्ताज उसी समय के आसपास लिखे जाने चाहिए जिस समय वह घटना घटित हुई हो। इसके बाद उस घटना का उतना सजीव प्रभाव नहीं पड़ पाता। क्योंकि आज के समय में त्वरित गति से नवीन घटनाएँ घटती रहती है।
वैयक्तिकता : लेखक घटना से इतना जुड़ जाता है कि वह उसका एक अभिन्न अंग बन जाता है और उसे उसी का एक हिस्सा बनकर कुशलता से वर्णित करता है।
घटना से संबद्ध परिवेश: रिपोर्ताज में विवेचित की गई घटना से संबंधित परिवेश का प्रभावपूर्ण चित्रण करता है। इसमें लेखक असत्य नहीं किंतु कुछ अपने कल्पना कौशल का भी प्रयोग करता है।
8. वार्तालाप : अर्थ और विशेषता
वार्तालाप और बातचीत सामानार्थी शब्द है। दीनों में ही लोग एक दूसरे के साथ बाते करते है। लेकिन दोनों में अंतर यह है कि वार्तालाप अवसर विषयों को ज्यादा गहराई से छूने की कोशिश करता है जबकि बातचीत सामान्य होती है। वार्तालाप कभी-कभी महत्वपूर्ण विषयों पर होता है। जबकि बातचीत आमतौर पर दिनचर्या से जुड़ी होती है। वार्तालाप वाद-विवाद की एक प्रविधि है जो शिक्षण से संबंधित है। इसमें अध्यापक और छात्र परस्पर मिलकर किसी प्रक्रम पर स्वतंत्र रूप से आदान प्रदान करते हैं। वार्तालाप के तीन चरण है। पूर्व तैयारी, वाद विवाद, तथा मूल्यांकन। इन तीनों प्रक्रियाओं से गुजरने के बाद ही कोई वार्तालाप सार्थक मानी जाती है। सार्थक वार्तालाप हेतु निम्नलिखित बातों पर ध्यान देना आवश्यक है। वार्तालाप की यह विशेषता है कि इसमें कृत्रिमता का कोई स्थान नही रहता, विद्यार्थी और शिक्षक का पारस्परिक और स्वभाविक संबंध रहता है।
9. साहित्यिक रचना; आशय और प्रकार
साहित्यिक रचनाएँ से आशय है-रचनात्मक लेखन। साहित्य की अनेक विधाएँ है उनकी संरचना का रूप भी अलग-अलग है, प्रमुख साहित्यिक रचनाएँ है-कविता, गद्य, पद्य, उपन्यास, नाटक, कहानी, इत्यादी। कविता पद्य की भाषा में लिखी जाती है। नाटक में पद्य तथा गद्य दोनों भाषाओं का प्रयोग होता है। कथा साहित्य और गद्य की अन्य विधाओं में गद्य की भाषा प्रयोग में लायी जाती है। अब साहित्य की विधायें अनेक रूपों में प्रयोग में आती है जैसे मीडिया लेखन, फिल्म लेखन इत्यादि। सभी में परस्पर संबंध है। एक विधा में लिखी रचना को दूसरी विधा में रूपांतरित कर दिया जाता है। साहित्य पठ्य और दृश्य दोनों होने लगा है, यह दृश्य लेखन का ही युग है। टेलीविजन एवं इंटरनेट साहित्य की ही विधा मानी जाती है। अब साहित्य केवल भाव संपदा तक ही सीमित नही है उसका परिवेश अत्यंत व्यापक है। साहित्य की रचना मनुष्य के अंर्तजगत से होती है। लेकिन उसकी अभिव्यक्ति रचनात्मक लेखन से होती है अतः कोई भी रचनात्मक लेखन साहित्यिक रचना है।
10. कविता अर्थ एवं उद्देश्य
कविता को अंग्रेजी में पोएट्री या पोएम कहते हैं हिन्दी में इसे काव्य तथा पद्य भी कहते हैं। कविता की भाषा काव्यात्मक होती है। इसका उद्देश्य आनंद प्रदान करना होता है। कविता में रस, ध्वनि, छंद, अलंकार, लय, ताल, राग इत्यादी तत्व पाये जाते हैं। कविता की अभिव्यक्ति में भाषा के माध्यम से कुशलता पायी जाती है। कविता में संवेदना और प्रतिभा को आंतरिक आकर्षण से जोड़ा जाता है। कविता एक जीवित संसार है, जो भाषा की प्रक्रिया में व्यक्त होती है। कविता अंर्तमन की गहराई को छूती है। कविता में केवल विचार से ही काम नहीं होता अपितू अनुभूति का भी सहारा लेना पड़ता है। कविता एक संश्लिष्ट साहित्य की रचना है जिसमें तर्क कार्य नहीं करता। कविता का प्रमुख उद्देश्य रस उत्पन्न करना होता है। कविता में सबसे अधिक तूक प्रणाली है।
11. प्रिन्ट मीडिया में रचनात्मक लेखन के प्रकार
जनसंचार दो प्रकार का होता है- (1) प्रिन्ट मीडिया तथा (2) इलेक्ट्रॉनिक मीडिया। प्रिन्ट मीडिया में पत्रकारिता रचनात्मक लेखन का प्रमुख प्रकार है। श्रेष्ठ पत्रकारिता में साहित्यिक गुण विद्यमान रहते हैं। सर्वोत्तम साहित्य भी सूचना देने का कार्य करते हैं। यात्रा वृतांत प्रिन्ट मीडिया का दूसरा प्रमुख स्वरूप है। पर्यटन हो या तीर्थ यात्रा दोनों की प्रवृति प्रगति और मनुष्य को निकटता का अवसर देता है। वैश्वीकरण के युग में यात्रा वृतांत का और भी महत्व बढ़ गया है। यात्रा वृतांत कोई सामान्य लेख नही होता अपितु इसमें आत्मीयता और दार्शनिकता का पूट भी होता है जो पाठक को तन्मयता देता है। किसी बड़े व्यक्ति का साक्षात्कार या भेंट वार्ता प्रिन्ट मीडिया
12. विज्ञापन में रचनात्मक लेखन
विज्ञापन को अभिव्यक्ति की सबसे. रचनात्मक विधा माना जाता है। इसका कारण यह है कि विज्ञापन का एक निश्चित उद्देश्य होता है। वह उद्देश्य होता है आधे या एक मिनट के दृश्य में या महज कुछ शब्दों के माध्यम से किसी वस्तु की खूबी को इस तरह बताना कि पाठकों या देखनेवालों को न सिर्फ उसके बारे में पता चल जाये, वह उसे खरीदने की दिशा में भी प्रवृत्त हो। इसी कारण ज्याँ बौद्रीआ विज्ञापन को वस्तुओं की भाषा कहता है। विज्ञापन के रचनात्मक होने का एक कारण यह भी है कि उसका सम्बन्ध एक ही साथ संस्कृति, पत्रकारिता, संचार, अर्थशास्त्र, समाजशास्त्र आदि सबसे होता है।
विज्ञापन का सीधा सम्बन्ध ग्राहकों से होता है और उसकी सबसे बड़ी उपलब्धि यही समझी जाती है कि वह उत्पाद को ग्राहकों तक महज कुछ शब्दों में ही पहुँचा दे। वह भी इस तरह कि विज्ञापन को पढ़ने या देखने के बाद पाठक या दर्शक उसके उपयोग के बारे में सोचने लगे। विज्ञापन की सबसे बड़ी सफलता यही होती है कि प्रयोग विज्ञापन लिखने या तैयार करने में चाहे जो भी किए जाएँ उसका सन्देश पारदर्शी होना चाहिए।
रचनात्मकता का सबसे बड़ा गुण यह माना जाता है कि उसमें नवीनता होनी चाहिए। नवीनता का अर्थ यह नहीं है कि हर बार कोई नया विचार सामने लाया जाए, उसका तात्पर्य अभिव्यक्ति- कौशल की नवीनता से भी होता है। विज्ञापन को इस अर्थ में भी सर्वाधिक सशक्त रचनात्मक माध्यम माना जाता है, क्योंकि इसमें नयी से नयी अभिव्यक्ति पर जोर होता है। बिना इस मूल उद्देश्य से भटके कि उसका काम उपभोक्ताओं तक माल पहुँचाना है, अभिव्यक्ति के नये-नये लहजे विज्ञापन-जगत इजाद करता रहता है। इसी रूप में विज्ञापन को कला माना जाता है।
13. फीचर लेखन के गुण (विशेषतायें)
वृत्त-लेख या सामयिक विषयों पर लेखन को फीचर लेखन कहते हैं। कोई भी प्रधान लेख जो किसी प्रकरण सम्बन्धी विषय पर प्रकाशित होता है फीचर अथवा वृत्त-लेख कहलाता है।
वृत्त-लेख अथवा फीचर-लेखन सामान्य लेख से अधिक कठिन है। तथ्य, आँकड़े सामने हो तो लेख लिखना आसान हो जाता है। फीचर लिखने के लिए खास तैयारी की जरूरत है। लेख शिक्षा देता है तो फीचर मनोरंजन करने के साथ-साथ सामयिक जीवन, उसकी समस्याओं और स्थितियों पर गहरायी से दृष्टिपात करने की प्रेरणा भी देता है। लेख जानकारी बढ़ाने और तर्क-वितर्क का नतीजा है। तो फीचर में अपनी मानसिकता और समझ के अनुसार किसी विषय या व्यक्ति का चित्रण रहता है। इसमें हास्य-व्यंग्य और कल्पना का विशेष योगदान है। लेख ज्ञान-गम्भीर हो सकता है, साहित्यिक गुण गम्भीर शैली में लिखा जाता है। फीचर के लिए ज्ञान की गठरी मारक सिद्ध हो सकती है। हल्के-फुल्के अन्दाज में, साधी सरल भाषा में कहने की प्रवृत्ति इसमें जीवन्तता लाती है। कहने का अन्दाज ऐसा हो कि दिल में हिलोरें उठें, विचार में आन्दोलन हो। वृत्त लेख लिखते समय अपना पाण्डित्य, कहाँ छपना है, पाठक कौन होगा इत्यादि बातों को भूल कर सहजभाव से तनाव मुक्ति होकर लिखें।
लिखते समय विचारों को बिन्दुवार क्रमशः और तारतम्य से लिखें। भटकाव न हो, एक विचार-बिन्दु को पूरा करने के बाद ही विचार के अगले बिन्दु अथवा नये विचार को छुएँ। एक ही वृत्त लेख में सब कुछ कहने के प्रलोभन से बचना चाहिए। समस्या का कौन-सा पहलू आप उठा रहे हैं? उसमें क्या कहना है, इस सम्बन्ध सामग्री और रूपरेखा पहले से तैयार करें-बाद में लिखना प्रारम्भ करें।
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