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5. (क) गुरु गोविन्द सिंह ने पटना सिटी जन्म लिया था। पटना सिटी में सभी सिख धर्म गुरु पधारे हैं। दसवें गुरु गोविन्द सिंह का गुरुद्वारा भी यही है । इसीलिए इस पवित्र स्थल का सिख सम्प्रदाय में बड़ा महत्त्व है ।
(ख) अलसकथा का संदेश है कि आलस्य एक महान् रोग है । आलसी का सहायक प्रायः कोई भी नहीं होता। जीवन में विकास के लिए व्यक्ति का कर्मठ होना अत्यावश्यक है। आलस्य शरीर में रहनेवाला महान् शत्रु है जिससे अपना, परिवार का और समाज का विनाश अवश्य ही होता है । यदि जीवन में विकास की इच्छा रखते हैं तब आलस्य त्यागकर उद्यम को प्रेरित हों ।
(ग) समाजरूपी गाड़ी पुरुषों एवं स्त्रियों के द्वारा चलती है। संस्कृत साहित्य में प्राचीन काल से ही साहित्य समृद्धि में स्त्रियों की भूमिका सराहनीय है। वैदिक युग में मन्त्रों के वाचक न केवल ऋषि अपितु ऋषिकाएँ भी हैं यमी, अपाला, इन्द्राणी, उर्वशी एवं मैत्रेयी स्त्रियों के मंत्रदर्शन आज के जाज्वल्यमान नक्षत्र की भाँति दीप्तिमान हैं । याज्ञवल्क्य की पत्नी ने स्वयं अपने पति से आत्म तत्त्व की शिक्षा ली है । जनक की सभा को बढ़ाने वाली गार्गी का नाम बड़े आदर से लिया जाता है। लौकिक साहित्य में भी विदुषी क्षमाराव अत्यन्त प्रसिद्ध हैं ।
(घ) संस्कार सोलह प्रकार के है। इन सोलह संस्कारों को मुख्य पाँच प्रकारों में बाँटा गया है— तीन जन्म से पूर्व वाले संस्कार, छह शैशव संस्कार, पाँच शिक्षा-संबंधी संस्कार, एक विवाह के रूप में गृहस्थ संस्कार तथा एक मृत्यु के बाद अन्त्येष्टि संस्कार ।
(ङ) रामप्रवेश का जन्म बिहार राज्य अन्तर्गत ‘भीखनटोला’ नामक गाँव में हुआ था। वे पुस्तकालयों में अनेक विषयों की पुस्तकों का अध्ययन किया करते थे । वे अध्ययन को छात्रों की पूजा मानते थे। अपने परिश्रम के परिणामस्वरूप केंद्रीय प्रशासनिक सेवा की परीक्षा में सर्वोच्च स्थान प्राप्त करने में वे सफल रहे
. (च) उन्नीसवीं शताब्दी ईस्वी में आविर्भूत समाजसुधारकों में स्वामी दयानन्द अतीव प्रसिद्ध हैं । इन्होंने रूढ़िग्रस्त समाज और विकृत व्यवस्था पर कठोर प्रहार करके आर्य समाज की स्थापना की, जिसकी शाखाएँ देश-विदेश में शिक्षासुधार के लिए भी प्रयत्नशील रही हैं । शिक्षाव्यवस्था में गुरुकुल पद्धति हैं का पुनरुद्धार करते हुए इन्होंने आधुनिक शिक्षा के लिए डी०ए० वी० विद्यालय जैसी संस्थाओं की स्थापना को प्रेरित किया था। इनका जीवन चरित्र प्रस्तुत पाठ में संक्षिप्त रूप से दिया गया है ।
(छ) ‘व्याघ्रपथिक कथा’ से हमें यह शिक्षा मिलती है कि मनुष्य को लोभ से आकृष्ट नहीं होना चाहिए तथा कदापि प्रलोभनों के चक्कर में नहीं पड़ना चाहिए।
(ज) ‘विश्वशान्ति : ‘ पाठ का मुख्य उद्देश्य है कि शांति से ही विश्व का कल्याण होगा । द्वेष, असहिष्णुता, अविश्वास, असंतोष, स्वार्थ आदि अनेक अवगुणों के कारण इस समय संसार में अशांति है। शांति भारतीय दर्शन का
मूल तत्त्व माना जाता है । इस पाठ का उद्देश्य दया, परोपकार, मित्रता भाव से शांति स्थापित करना है ।
(ङ) ‘भारतमहिमा’ पाठ से हमें संदेश मिलता है कि हमें भारतीय होने पर गर्व होना चाहिए। हम भारतीयों को हरि की सेवा करने का अवसर प्राप्त हुआ है साथ-साथ मोक्ष की प्राप्ति का भी अवसर प्राप्त हुआ है हमें सच्चा देशभक्त होना चाहिए और अन्य भारतीयों से मिल-जुलकर एवं प्रेमपूर्वक रहना चाहिए ।.
(ञ) इस पाठ में व्यासरचित महाभारत के उद्योग पर्व के अन्तर्गत आठ अध्यायों की प्रसिद्ध विदुरनीति से संकलित दस श्लोक है । महाभारत युद्ध के आरंभ में धृतराष्ट्र ने अपनी चित्तशान्ति के लिए विदुर से परामर्श किया था विदुर ने उन्हें स्वार्थपरक नीति त्याग पर राजनीति के शाश्वत पारमार्थिक उपदेश दिए थे । इन्हें ‘विदुरनीति’ कहते हैं । इन श्लोकों में विदुर के अमूल्य उपदेश भरे हुए हैं
(ट) ‘कर्ण की दानवीरता’ जगत प्रसिद्ध है, क्योंकि उसने अभेद्य कवच और कुंडल भी इंद्र को दान में दिया । कर्ण जानता था कि जब तक उसके पास कवच कुंडल विद्यमान हैं, तब तक उसका कोई कुछ भी नहीं बिगाड़ सकता । कर्ण को यह आभास हो गया कि कृष्ण ने इंद्र के माध्यम से कवच और कुंडल माँगा है। कृष्ण चाहते थे कि पाण्डव विजयी हो । यह जानते हुए भी कर्ण ने कवच और कुंडल का दान किया । इसलिए उसकी दानवीरता विश्वप्रसिद्ध है ।
(ठ) इस पाठ ” गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानी” कहकर कवि ने माता पार्वती से प्रार्थना की है कि हे जगन्माता भवानी इस संसार में मेरा कोई नहीं है। एकमात्र तुम्हीं मेरा सहारा हो, तुम्हीं उद्धारकर्त्ता हो ।
(ड) प्राचीन भारत में अनेक वैज्ञानिक ऋषि थे। जिन्होंने विज्ञान संबंधी रचनाएँ लिखीं। आयुर्वेद शास्त्र में चरक विरचित ‘चरक संहिता’ एवं सुश्रुतकृत ‘सुश्रुत संहिता’ अति प्रसिद्ध है । इनमें रसायन विज्ञान एवं भौतिक विज्ञान का भी वर्णन है । आर्यभट्ट का आर्यभट्टीय अतिप्रसिद्ध ग्रन्थ है जिसमें अनेक विषयों का वर्णन है। कृषि विज्ञान के रचयिता महर्षि पराशर हैं । इसमें पराशर हैं। इसमें वैज्ञानिक कृषि का वर्णन है। इस प्रकार भारतीय वैज्ञानिक शास्त्रकार किसी भी क्षेत्र में अन्य देशों से कम नहीं है ।
(ढ) महात्मा बुद्ध के अनुसार वैर की भावना को मित्रता, दया के द्वारा शांति संभव है ।
(ण) वसुधैव कुटुम्बकम् की अवधारणा इसलिए आवश्यक है कि अगर देश जात, पात एवं ऊँच-नीच जैसे आक्रामक दंशों को झेलता रहा तो हम शांति से नहीं रह पायेंगे । इसलिए जरूरी है कि सारा संसार ही अपना परिवार समझा जाए ।
(त) आत्मा अणु से भी सुक्ष्म है और वह प्राणी के हृदय रूपी गुफा में रहती है।
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