Class 10th संस्कृत पाठ-1 मंगलम सभी महत्वपूर्ण प्रश्न उत्तर

Class 10th संस्कृत पाठ-1 मंगलम सभी महत्वपूर्ण प्रश्न उत्तर

 

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Class 10th संस्कृत पाठ-1 मंगलम सभी महत्वपूर्ण प्रश्न उत्तर

 

मंगलम पाठ 1

मंगलम पाठ के लेखक महर्षि वेदव्यास जी हैं इस पाठ में आत्मा के गुण रहस्य को बताया गया है । बता दें मंगलम पाठ में 5 मंत्र संकलित है। इसका अर्थ जल्द ही अपडेट किया जा रहा है । जो आपको नीचे देखने को मिलेगा। 

 

 

1. नदी और विद्वान् में क्या समानता है?

समुद्र उत्तर—जिस प्रकार नदियाँ बहती हुई अपने वास्तविक नाम को त्यागकर में मिल जाती है। उसी प्रकार विद्वान व्यक्ति अपने नाम को छोड़कर उस दिव्य श्रेष्ठ पुरुष (ब्रह्मा) को प्राप्त कर लेता है।

2. महान् लोग संसाररूपी सागर को कैसे पार करते हैं? .

उत्तर – महान लोग अपने को अज्ञानी तथा अन्य विद्वान को जानी समझकर संसार रूपी सागर से पार कर जाते हैं। अर्थात् महान व्यक्ति अपने नाम को छोड़कर उस दिव्य श्रेष्ठ पुरुष (ब्रह्म) को प्राप्त कर लेता है।

3. मङ्गलम् पाठ का पाँच वाक्यों में परिचय दें। अथवा, ‘मंगलम्’ पाठ के आधार पर सत्य का स्वरूप बतायें।

उत्तर—इस पाठ में चार मन्त्र क्रमशः ईशावास्य, कंठ, मुण्डक तथा श्वेताश्वतर नामक उपनिषदों से संकलित है। ये मङ्गलाचरण के रूप में पठनीय हैं। वैदिकसाहित्य में विशुद्ध आध्यात्मिक ग्रन्थों के रूप में उपनिषदों का महत्त्व है। इन्हें पढ़ने से परम सत्ता के प्रति श्रद्धा उत्पन्न होती है, सत्य के अन्वेषण की प्रवृत्ति होती है तथा आध्यात्मिक खोज की उत्सुकता होती है। । उपनिषद् ग्रन्थ विभिन्न वेदों से सम्बद्ध हैं।

 

पूरे पाठ के सारांश यहां देखें  यानि पांचो मंत्र का अर्थ

 

प्रथमः पाठः

          मङ्गलम्

 

[ उपनिषदः वैदिकवाङ्मयस्य अन्तिमे भागे दर्शनशास्त्रस्य सिद्धान्तान् प्रकटयन्ति। सर्वत्र परमपुरुषस्य परमात्मनः महिमा प्रधानतथा गोयते। तेन परमात्मना जगत् व्याप्तमनुशासितं चास्ति। स एव सर्वेषां तपसां परमं लक्ष्यम्। अस्मिन् पाठे परमात्मपरा उपनिषदां पद्यात्मका: पञ्च मन्त्रा: संकलिताः सन्ति। ]

 

पाठ परिचय- यह पाठ उपनिषद के वैदिक वाक्य में के अंतिम भाग दर्शनशास्त्र से लिया गया है। इसमें सभी महान पुरुष के आत्मा की महिमा को बताया गया है जो जगत में व्याप्त है इस पाठ में उस  परमात्मा पुरुष के लिए पांच मंत्र संकलित है। इस पाठ के लेखक महर्षि वेदव्यास जी हैं

 

1.हिरण्मयेन पात्रेण सत्यस्यापिहितं मुखम् । तत्त्वं पूषन्नपावृणु सत्यधर्माय दृष्टये ॥

 

हिंदी अनुवाद- हे सूर्य ! सत्य का मुख  सोने के आवरण से ढका हुआ है मुझे उस सत्य धर्म के प्राप्ति के लिए उस आवरण को हटा दें

ध्यान रखें यह मंत्र ईशावास्योपनिषद से लिया गया

 

2.अणोरणीयान् महतो महीयान्

आत्मास्य जन्तोर्निहितो गुहायाम्। तमक्रतुः पश्यति वीतशोको

धातुप्रसादान्म हिमानमात्मनः॥

(कठ० 1.2.20)

हिंदी अनुवाद प्राणियों के हृदय रूपी गुफा में यह आत्मा निहित है जो सूक्ष्म से सूक्ष्म और महान से महान है विद्वान लोग अपने इंद्रियों से उस परमात्मा को देखते हैं और शोक रहित होते हैं सत्य की जीत होती है और असत्य की जीत नहीं होती है

 

3.सत्यमेव जयते नानृतं

सत्येन पन्था विततो देवयानः । येनाक्रमन्त्यृषयो ह्याप्तकामा यत्र तत् सत्यस्य परं निधानम् ॥

(मुण्डक० 3.1.6,

हिंदी अनुवाद सत्य से देव लोक का मार्ग विस्तारित है जिसके द्वारा मोक्षार्थी ऋषि लोग उस सत्य को प्राप्त करते हैं जहां सत्य का विशाल भंडार है

 

4.यथा नद्यः स्यन्दमानाः समुद्रे

ऽस्तं गच्छन्ति नामरूपे विहाय। तथा विद्वान् नामरूपाद् विमुक्तः परात्परं पुरुषमुपैति दिव्यम् ॥

(मुण्डक० 3.2.8)

 

हिंदी अनुवाद जिस प्रकार प्रवाहित होती हुई नदियां अपने नाम और रूप को छोड़कर समुद्र में जाकर मिल जाती है उसी प्रकार विद्वान लोग अपने नाम और रूप को त्याग कर एक दिव्य स्वरूप परमात्मा पुरुष को प्राप्त करते हैं

 

 

वेदाहमेतं पुरुषं महान्तम् आदित्यवर्ण तमसः परस्तात्

तमेव विदित्वाति मृत्युमेति

नान्यः पन्था विद्यतेऽवनाथ ॥

हिंदी अनुवाद हे सूर्य ! मैं अंधकार स्वरूप हूं अर्थात मैं अज्ञानी हूं, दूसरे लोग प्रकाश स्वरूप है अर्थात वह ज्ञानी है ऐसा ही महान पुरुष मानते हुए  मृत्यु को पार कर जाते हैं इससे अलग रास्ता परमात्मा को प्राप्ति के लिए नहीं है। 

 

 

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