Bihar Board Exam 2023 ।। Social science question paper with solution download pdf 2023
पिया छात्रों की साइकिल के माध्यम से हम आप सभी को बिहार बोर्ड मैट्रिक परीक्षा 2023 के लिए संभावित प्रश्न बताने वाले हैं जो बिल्कुल रूप से टकराएगा आप लोग को बता दें अगर आप मेरे द्वारा बताए गए सभी प्रश्न को विश्वास से अगर देख लेते हैं और पढ़ लेते हैं तो यकीन मानिए आप परीक्षा में वह कर सकते हैं जो आप पहले नहीं सोचे होंगे यानी आप सबसे बेहतर अंक ला सकते हैं । जितना आप सोचे भी नहीं होगी क्योंकि सारे प्रश्न आपके एग्जाम से पूछे जाएंगे । मेरे द्वारा बताए गए अब आप सभी प्रश्न का पीडीएफ डाउनलोड कर सकते । नीचे देख सकते हैं।
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Bihar Board Exam 2023 ।। Social science question paper with solution download pdf 2023
Bihar Board Exam 2023 ।। Social science question paper with solution download pdf 2023
सब्जेक्टिव का उत्तर
1. नेपोलियन के समय इटली और जर्मनी मात्र एक ‘भौगोलिक अभिव्यक्ति’ थे। नेपोलियन ने अनजाने में ( अप्रत्यक्ष रूप से) इटली एवं जर्मनी के छोटे-छोटे विभाजित प्रांतों का एकीकरण कर दिया था। दोनों राज्यों को एक संगठित राजनीतिक रूप देने का प्रयास किया दोनों देशों में राष्ट्रीयता की भावनाओं को जागृत किया। नेपोलियन ने समानता एवं भ्रातृत्व पर आधारित नवीन समाज का निर्माण इन देशों में कर दिया । इस दृष्टिकोण से हम नेपोलियन को क्रांति का वास्तविक अग्रदूत कह सकते हैं जिसने यूरोप के दो राष्ट्रों को संगठित होने के लिए प्रेरणा दी।
2. समाजवाद, धन और सम्पत्ति के वितरण में समाज के सब सदस्यों को समान मानने की राजनीतिक विचारधारा है। साम्यवाद कार्ल मार्क्स और फेडरिक एंगल्स द्वारा प्रतिपादित तथा साम्यवादी घोषणापत्र में वर्णित समाजवाद की चरम परिणति है। इसके रचनात्मक स्तर पर एक समतामूलक वर्गविहीन समाज की संस्थापना की जाएगी। इसमें अधिकार एवं कर्त्तव्य में आत्मार्पित सामुदायिक सामंजस्य स्थापित होगा ।
3. वियतनामियों की रसद सप्लाई मार्ग हो ची मिन्ह मार्ग था । वस्तुतः हो ची मिन्ह मार्ग हनोई से चलकर लाओस, कम्बोडिया के सीमा क्षेत्र से गुजरता हुआ दक्षिणी वियतनाम तक जाता था जिससे सैकड़ों कच्ची पक्की सड़कें निकलकर पूरे वियतनाम से जुड़ी थीं। अमेरिका सैकड़ों बार इसपर बमबारी कर चुका था। परन्तु, वियतनाम एवं उसके समर्थित लोग तुरंत उसकी मरम्मत कर लेते थे। इसी मार्ग पर नियंत्रण के चक्कर में अमेरिका ने लाओस कम्बोडिया पर आक्रमण भी कर दिया था। परन्तु तीनतरफा संघर्ष से उसे वापस होना पड़ा था ।
4. 1919 के ‘भारत सरकार अधिनियम’ में यह व्यवस्था की गई थी कि दस वर्ष के बाद एक ऐसा आयोग नियुक्त किया जाएगा जो इस बात
की जाँच करेगा कि इस अधिनियम में कौन कौन से परिवर्तन संभव हैं। अत: ब्रिटिश प्रधानमंत्री ने समय से पूर्व सर जॉन साइमन के में 8 दिसम्बर, 1927 ई. को ‘साइमन कमीशन’ की स्थापना की। इसके सभी 7 सदस्य अंग्रेज थे इस कमीशन का उद्देश्य सांविधानिक सुधार के प्रश्न पर विचार करना था। इस कमीशन में किसी भी भारतीय को शामिल नहीं किया गया जिसका कारण यह भी था कि भारत के स्वशासन के संबंध में निर्णय विदेशियों द्वारा किया जाना था। 3 फरवरी, 1928 ई. को बम्बई पहुँचने पर कमीशन का स्वागत हड़तालों, प्रदर्शनों और काले झंडों से हुआ तथा ‘साइमन, वापस जाओ’ के नारे लगाए गए। साइमन कमीशन की नियुक्ति से भारतीयों दलों में व्याप्त आपसी फूट एवं मतभेद की स्थिति से उबरने एवं राष्ट्रीय आंदोलन को उत्साहित करने में सहयोग मिला।
5.
आर्थिक रूप से विकासशील देशों के लिए कुटीर उद्योग एक महत्त्वपूर्ण दिशा तय करता है। कुटीर एवं लघु उद्योग देश के गाँवों में भी रोजगार उपलब्ध कराकर लोगों की आर्थिक स्थिति मजबूत करता है। कृषक भी कुटीर उद्योग के माध्यम से अपनी मूल कार्य को करते हुए अपनी आय को बढ़ा सकता है।
6. आधुनिक शहरों में एक ओर जहाँ पूँजीपति वर्ग का अभ्युदय हुआ तो दूसरी ओर श्रमिक वर्ग का सामंती व्यवस्था के अनुरूप विशेषाधिकार प्राप्त वर्ग के द्वारा सर्वहारा वर्ग का शोषण आरंभ हुआ, जिसके परिणामस्वरूप शहरों में दो परस्पर विरोधी वर्ग उभरकर सामने आए। शहरों में फैक्टरी प्रणाली की स्थापना के कारण कृषक वर्ग जो भूमिविहीन वर्ग थे, शहरों में बेहतर रोजगार के अवसर को देखते हुए भारी संख्या में शहरों की ओर उनका पलायन हुआ। इस प्रकार, शहरों में श्रमिक वर्ग का दबाव काफी बढ़ गया।
7.
शहरों का सामाजिक जीवन आधुनिकता के साथ अभिन्न रूप से जोड़ा जाता है। वास्तव में, यह एक दूसरे की अन्त: अभिव्यक्ति है । शहरों को आधुनिक व्यक्ति का प्रभाव क्षेत्र माना जाता है । सघन जनसंख्या के यह स्थल जहाँ कुछ मानीषियों के लिए अवसर प्रदान करता है वही यथार्थ में यह अवसर केवल कुछ व्यक्तियों को ही प्राप्त होता है। परंतु इन बाध्यताओं के बावजूद शहर ‘समूह पहचान’ के सिद्धांत को आगे बढ़ाते हैं जो कई कारणों से जैसे प्रजाति, धर्म, नृजातीय, जाति प्रदेश तथा समूह शहरी जीवन का पूर्ण प्रतिनिधित्व करते हैं। वास्तव में, कम स्थान में अत्यधिक लोगों का जमाव; पहचान को और तीव्र करता है तथा उनमें एक ओर सह अस्तित्व की भावना उत्पन्न करता है तो दूसरी ओर प्रतिरोध का भाव। अगर एक ओर सह-अस्तित्व की भावना है तो दूसरी ओर पृथक्करण की प्रक्रिया
शहरों में नए सामाजिक समूह बने सभी वर्ग के लोग बड़े शहरों की ओर बढ़ने लगे। शहरी सभ्यता ने पुरुषों के साथ महिलाओं में भी व्यक्तिवाद की भावना को उत्पन्न किया एवं परिवार की उपादेयता और स्वरूप को पूरी तरह बदल दिया। जहाँ पारिवारिक सम्बन्ध अब तक बहुत मजबूत थे वहीं ये बंधन ढीले पड़ने लगे। महिलाओं के मताधिकार आंदोलन या विवाहित महिलाओं के लिए सम्पत्ति में अधिकार आदि आंदोलनों के माध्यम से महिलाएँ लगभग 1870 ई- के बाद से राजनीतिक गतिविधियों में हिस्सा ले पाई। समाज में
महिलाओं की स्थिति में भी परिवर्तन आए। आधुनिक काल में, महिलाओं ने समानता के लिए संघर्ष किया और समाज को कई रूपों में परिवर्तित करने में सहायता दी। ऐतिहासिक परिस्थितियाँ महिलाओं के संघर्ष के लिए कहीं सहायक सिद्ध हुई हैं तो कहीं बाधक उदाहरण के लिए, द्वितीय विश्वयुद्ध के समय पाश्चात्य देशों में महिलाओं ने कारखानों में काम करना प्रारंभ किया। एक दूसरा उदाहरण है, जहाँ महिलाएँ अपनी अस्मिता में परिवर्तन लाने में सफल हुई वह क्षेत्र था, उपभोक्ता विज्ञापन | विज्ञापनों ने उपभोक्ता के रूप में महिलाओं को संवेदनशील बनाया।
शहरी जीवन से समाज में नए-नए वर्गों का उदय हुआ। व्यवसायी वर्ग, मध्यम वर्ग, पूँजीपति वर्ग तथा श्रमिक वर्ग ।
8. मुद्रण क्रांति के कारण छापाखानों की संख्या में वृद्धि हुई जिसके परिणामस्वरूप पुस्तक निर्माण में अप्रत्याशित वृद्धि हुई मुद्रण क्रांति ने आम लोगों की जिन्दगी ही बदल दी। आम लोगों का जुड़ाव सूचना, ज्ञान, संस्था और सत्ता से नजदीकी स्तर पर हुआ। फलतः, लोक-चेतना एवं दृष्टि में बदलाव संभव हुआ।
मुद्रण क्रांति के फलस्वरूप किताबें समाज के सभी तबकों तक पहुँच गई। किताबों की पहुँच आसान होने से पढ़ने की एक नई संस्कृति विकसित हुई, एक नया पाठक वर्ग पैदा हुआ तथा पढ़ने से उनके अंदर तार्किक क्षमता का विकास हुआ। पठन-पाठन से विचारों का व्यापक प्रचार-प्रसार हुआ तथा तर्कवाद और मानवतावाद का द्वार खुला धर्म-सुधारक मार्टिन लूथर ने रोमन कैथोलिक चर्च की कुरीतियों । की आलेचना करते हुए अपनी पंचानबे (95) स्थापनाएँ लिखीं। लूथर. के लेख आम लोगों (स्वतंत्र विचारों के पोषक) में काफी लोकप्रिय हुए। कैथोलिक चर्च की सत्ता एवं उसके चरित्र पर लोगों द्वारा प्रश्न-चिह्न उठाए जाने लगे। फलस्वरूप चर्च में विभाजन हुआ और प्रोटेस्टेंट धर्म-सुधार आंदोलन की शुरूआत हुई। इस तरह, छपाई से. नए बौद्धिक माहौल का निर्माण हुआ एवं धर्म सुधार आन्दोलन के नए विचारों का फैलाव बड़ी तेजी से आम लोगों तक हुआ। अब अपेक्षाकृत कम पढ़े-लिखे लोग धर्म की अलग-अलग व्याख्याओं से परिचित हुए । कृषक से लेकर बुद्धिजीवी तक बाइबिल की नई-नई व्याख्या करने लगे। अब गाँव के गरीब भी सस्ती किताबों, चैपबुक्स, पंचांग, विन्तियोधिक ब्ल्यू एवं इतिहास आदि की किताबों को पढ़ना शुरू किए । वैज्ञानिक और दार्शनिक बातें भी आम जनता की पहुँच से बाहर नहीं रहीं। न्यूटन, रामसपेन, वाल्तेयर और रूसो की पुस्तकें भारी मात्रा में छपने और पढ़ी जाने लगीं।
9. सामाजिक विभाजन अधिकांशतः जन्म पर आधारित होता है। सामान्य तौर पर अपना समुदाय हमारे वश में नहीं होता । हम सिर्फ इस आधार पर किसी खास समुदाय के सदस्य हो जाते हैं कि हमारा जन्म उस समुदाय के एक परिवार में हुआ होता है। सामाजिक विभिन्नताएँ लोगों के बीच बँटवारे का एक बड़ा कारण बन जाती है। लेकिन, यही विभिन्नताएँ कई बार अलग-अलग तरह के लोगों के बीच पुल का भी काम करती है। विभिन्न सामाजिक समूहों के लोग अपनी समूहों के सीमाओं से परे भी समानताओं और असमानताओं का अनुभव करते हैं।
10. सूचना के अधिकार का मुख्य उद्देश्य दस्तावेजों की प्रतिलिपि की प्राप्ति है। यह कानून लोगों को जानकार बनाने और लोकतंत्र के रखवाले के तौर पर सक्रिय करने का अच्छा उदाहरण है।
11. पंचायती राज— पंचायती राज का अर्थ है— ग्रामीण क्षेत्रों के लिए त्रिस्तरीय स्थानीय संस्थाओं का गठन-ग्राम स्तर पर ग्राम पंचायत, प्रखंड स्तर पर पंचायत समिति तथा जिला स्तर पर जिला परिषद शासन के विकेंद्रीकरण के सिद्धांत को लागू करने के उद्देश्य से भारत में पंचायती राज की स्थापना की गई है ।
12. लोगों का ऐसा समूह जो अपनी माँगों की ओर सरकार का ध्यान दिलाने के लिए सरकार पर अप्रत्यक्ष रूप से दबाव डालने के लिए संगठन बनाता है, ‘दबाव समूह’ कहलाता है। यह समूह लोगों को जानकार बनाने और लोकतंत्र के रखवाले के तौर पर सक्रिय करने का अच्छा उदाहरण साबित हुआ
13. किसी भी देश के राष्ट्रीय विकास में राजनीतिक दलों की मुख्य भूमिका होती है। दरअसल राष्ट्रीय विकास के लिए राजनीतिक दल जनता को जागरूक बनाते हैं। जागरूक समाज और राज्य में एकता एवं राजनीतिक स्थायित्व का होना आवश्यक है। इस सभी कामों में राजनीतिक दल ही मुख्य भूमिका निभाते हैं।
सवाल यह है कि सरकार की ओर से जो जनसेवा का कार्य होता है, उससे जनता संतुष्ट है या नहीं। सरकार यह मानकर चलती है कि जितना काम किया गया है, वह पर्याप्त है। लेकिन, सदैव ऐसा , नहीं होता। यदि संतुष्ट हो जाने योग्य बात है, तब भी विरोधी दल उसमें कमी निकालते हैं और जनता को बताते हैं कि उतना काम या वैसा काम हुआ ही नहीं, जितना काम या जैसा काम होना चाहिए था।
स्पष्टतः यहाँ राजनीतिक दल बँटे नजर आते हैं। शासक दल जहाँ जिस बात को सही ठहराते हैं, वहीं विरोधी दल उसे गलत सिद्ध करते 1 हैं, इन विरोधाभासी बातों से सरकार को सतर्क होने का मौका मिलता है और जो भी विकासात्मक काम वह कराती है, वह पुख्ता होता है और समय पर होता है। इन बातों से जनता को सजग रहने की प्रेरणा मिलती है।
राजनीतिक दल विभिन्न समूहों का नेतृत्व करते हैं। उन सभी समूहों को संतुष्ट रखने की जिम्मेदारी उस दल विशेष की ही होती है जनता और सरकार में किसी विवाद के उत्पन्न होने पर उसे राजनीतिक दल ही निपटाते हैं। राजनीतिक दल किसी प्राकृतिक आपदा के समय सहायता का काम भी करते हैं। इस काम में जो दल जितना आगे रहता है, उसकी साख उतनी ही अधिक होती है। इस प्रकार, राजनीतिक दल राष्ट्रीय विकास में अपना सहयोग देते हैं।
14. नगर निगम नागरिकों की स्थानीय आवश्यकता एवं सुख-सुविधा के लिए अनेक कार्य करता है। नगर निगम के प्रमुख कार्य निम्नलिखित हैं :
(i) नगर क्षेत्र की नालियाँ, पेशाबखाना, शौचालय आदि का निर्माण करना एवं उनकी देखभाल करना ।
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