BA 3rd Sem Geography MJC 3 Questions Papper 2025 | CBCS UG 3rd Sem geography MJC/MIC/MDC-3 Guess Question Pepper By Madhav sir
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BA 3rd Sem Geography MJC 3 Questions Papper 2025 | CBCS UG 3rd Sem geography MJC/MIC/MDC-3 Guess Question Pepper By Madhav sir
Confirm Subjective Questions Papper
Q.1. आर्थिक भूगोल पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखें।
Ans. किसी प्रदेश के प्राकृतिक वातावरण का प्रभाव वहाँ निवास करने वाले मनुष्यों के आर्थिक व्यवसायों, सामाजिक संगठन तथा ‘संस्कृति पर पड़ता है। मानव भी प्राकृतिक वातावरण के साधनों का उपयोग करके अपनी आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक व्यवस्थायें निश्चित करता है। अतः पृथ्वी पर जो कुछ भी मानव संम्बन्धी क्रिया कलाप देखे जाते हैं उन सबका अध्ययन ही मानव भूगोल में किया जाता है।
मानव भूगोल के सांस्कृतिक पक्ष, जनसंख्या पक्ष, सामाजिक पक्ष और राजनीतिक पक्ष को ध्यान रखते हुये इसे सांस्कृतिक भूगोल, आर्थिक भूगोल, जनसंख्या भूगोल, सामाजिक भूगोल और राजनीतिक भूगोल की उपशाखाओं में बाँटकर अध्ययन किया जाता है।
आर्थिक भूगोल में प्राकृतिक संसाधनों के दोहन, वस्तुओं के उत्पादन, विनिर्माण उद्योगों की स्थिति और वितरण तथा अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार एवं संचार का अध्ययन किया जाता है। कृषि भूगोल, – औद्योगिक भूगोल, परिवहन भूगोल, वाणिज्य भूगोल और संसाधन भूगोल का अध्ययन भी आर्थिक भूगोल की उपशाखा के अधीन किया जाता है।
अर्थशास्त्र व भूगोल दोनों की गिनती सामाजिक विज्ञानों में की जाती है। वे एक दूसरे से घनिष्ठ रूप से संबंधित हैं। भूगोल मानव के प्राकृतिक व सांस्कृतिक वातावरण का अध्ययन करता है जबकि अर्थशास्त्र मानव की आर्थिक क्रियाओं का हिसाब-किताब प्रस्तुत करता है। दोनों ही विज्ञानों का केन्द्र बिन्दु मानव है जो कि एक सामाजिक तत्व है। मानव की आर्थिक क्रियाओं पर प्राकृतिक वातावरण का सीधा प्रभाव पड़ता है। मैदानी भागों के निवासी खेती करते हैं जबकि घास के मैदानों में पशुचारण प्रमुख आर्थिक क्रिया पाई जाती है। तटीय क्षेत्रों के निवासी मत्स्य कर्म में लगे मिलते हैं। भूगोल के अध्ययन से केवल इस बात का बोध हो जाता है कि अमुक क्षेत्र के निवासी की आजीविका का प्रधान स्रोत क्या है? लोग कृषि कर रहे हैं या लकड़ी काटते हैं, जंगलों से फल व लकड़ी एकत्रित करते हैं, मछली पकड़ते हैं या उद्योग, व्यापार, परिवहन, वाणिज्य जैसी किस-किस क्रिया में संलग्न हैं।
Q.2. “लोगों का आर्थिक उत्थान मानव विकास का सही प्रतिनिधित्व करता है” इस कथन की व्याख्या कीजिए।
Ans. किसी देश की अर्थव्यवस्था, वहाँ के विकास स्तर की सूचक होती है। आर्थिक दृष्टि से सम्पन्न देशों का विकास स्तर ऊँचा होता है जबकि निर्धन देश विकास की आरम्भिक अवस्था में ही होते हैं। आर्थिक विकास का अध्ययन निम्न प्रकार किया जा सकता है –
(i) प्रति व्यक्ति आय सामान्यतः अधिक विकसित देशों में प्रति व्यक्ति आय अधिक होती है और कम विकसित देशों में प्रति व्यक्ति आय कम होती है। विकसित देशों में श्रमिक अधिक धन अर्जित करतें हैं, वहाँ वस्तुओं का उपभोग अधिक होता है और क्रय शक्ति बढ़ती है। कम विकसित देशों में इन वस्तुओं का अभाव होता है। राष्ट्रसंघ की मानव विकास रिपोर्ट 2001 के अनुसार, विश्व के 48 देशों में उच्च मानव विकास है। इनमें अधिकांश देश यूरोप उत्तरी अमेरिका तथा ओशनिया में है। कुल मिलाकर 36 सबसे कम विकसित देश हैं। जिनमें अधिकांश देश अफ्रीका तथा एशिया के हैं।
(ii) उत्पादकता : विकसित देशों में अधिकांश लोग द्वितीयं एवं तृतीय व्यवसायों में संलग्न रहते हैं और उन देशों में उत्पादकता अधिक होती है।
Q.03. चलवासी चरवाहों के जीवन में आप क्या परिवर्तन पाते हैं?
Ans. आधुनिक युग में चलवासी चरवाहों के जीवन में महत्वपूर्ण परिवर्तन देखने को मिलते हैं। पिछली एक शताब्दी के दौरान उत्तरी अमेरिका, दक्षिणी अमेरिका, दक्षिणी अफ्रीका तथा आस्ट्रेलिया में चलवासी पशुचारण का स्थान व्यापारिक पशुपालन ने ले लिया है। दक्षिण यूरोप के वृहत मैदान तथा रूस के स्टेपीज में चलवासी पशुचारण के क्षेत्रों में स्थायी कृषि होने लगी है। कुछ देशों की सरकारें चलवासी पशुचारकों को स्थायी रूप से बसाने का प्रयत्न कर रही हैं। उदाहरणार्थ किरगीज, कजाक तथा उजबेक गणराज्यों में सिंचाई की व्यवस्था करके कपास की कृषि की जा रही है। चलवासी पशुचारण के कुछ क्षेत्रों में उद्योग भी स्थापित हो रहे हैं और ये लोग उद्योगों के पास पक्के मकानों में रहने लगे हैं। भारत के विभिन्न राज्यों में चलवासी चरवाहों को स्थायी रूप से बसाने के लिए प्रयास किये जा रहे हैं। इस प्रकार चलवासी पशुचारकों के जीवन में अनेक परिवर्तन हुए हैं।
Q.04. गहन निर्वाह कृषि से क्या समझते हैं?
Ans. गहन निर्वाह कृषि मानसून एशिया के घने बसे देशों में की जाती है। गहन निर्वाह कृषि के निम्न प्रकार हैं-
(i) चावल प्रधान गहन निर्वाह कृषि इसमें चावल प्रमुख फसल होती है। अधिक जनसंख्या घनत्व के कारण खेतों का आकार छोटा होता है एवं कृषि कार्य में कृषक का सम्पूर्ण परिवार लगा रहता है। भूमि का गहन उपयोग होता है एवं यंत्रों की तुलना में मानव श्रम का अधिक महत्व होता है। उर्वरता बनाये रखने के लिए पशुओं के गोबर की खाद एवं हरी खाद का उपयोग किया जाता है। इस कृषि में प्रति इकाई उत्पादन अधिक होता है। परन्तु प्रति कृषक उत्पादन कम होता है।
(ii) चावल रहित गहन निर्वाह कृषि मानसून एशिया के अनेक भागों में उच्चावच, जलवायु, मृदा तथा अन्य भौगोलिक कारकों की भिन्नता के कारण धान की फसल उगाना प्रायः सम्भव नहीं है। उत्तरी चीन, मंचूरिया, उत्तरी कोरिया एवं उत्तरी जापान में गेहूँ सोयाबीन, जौ एवं सोरपम बोया जाता है। भारत में सिंध-गंगा के मैदान के पश्चिमी भाग में गेहूँ एवं दक्षिणी भाग में ज्वार-बाजरा प्रमुख रूप से उगाया जाता है।
Q.05. भूमध्य सागरीय कृषि का परिचय दें।
Ans. भूमध्य सागरीय कृषि का विस्तार भूमध्य सागर के समीपवर्ती क्षेत्र जो दक्षिणी यूरोप से उत्तरी अफ्रीका में ट्यूनीशिया से एटलांटिक तट तक फैला है। दक्षिणी कैलिफोर्निया, मध्यवर्ती चिली, दक्षिणी अफ्रीका का दक्षिणी पश्चिमी भाग एवं आस्ट्रेलिया के दक्षिण व दक्षिण पश्चिम भाग में है। खट्टे फलों की आपूर्ति करने में यह क्षेत्र महत्वपूर्ण है। भूमध्य सागरीय क्षेत्र की विशेषता अंगूर की कृषि है। इस क्षेत्र के कई देशों में अच्छे किस्म के अंगूरों से उच्च गुणवत्ता वाली मदिरा का उत्पादन किया जाता है। निम्नश्रेणी के अंगूरों को सुखाकर मुनक्का एवं किशमिश बनाई जाती है। अंजीर एवं जैतून भी यहाँ उत्पन्न होता है। शीतऋतु में जब यूरोप एवं संयुक्त राज्य अमेरिका में फलों एवं सब्जियों की मांग होती है तब इसी क्षेत्र से पूर्ति की जाती है।
Q.06. सहकारी कृषि से क्या समझते हैं?
Ans. जब किसानों का एक समूह अपनी कृषि से अधिक लाभ कमाने के उद्देश्य से स्वेच्छा से एक सहकारी संस्था बनाकर कृषि कार्य सम्पन्न करे, उसे सहकारी कृषि कहते
Q.7. भूमि की उपलब्धता एवं उत्पादों के आधार पर कृषि के प्रकारों का वर्णन करें। (Describe the types of agriculture on the basis of land availability and product.)
Ans. कृषि के विभिन्न प्रकारों के अनुसार पृथ्वी के धरातल को अनेक भागों में विभाजित किया जाता है, जैसे (i) वे प्रदेश जिनमें मुख्य रूप से कंवल पशुपालन किया जाता है, (ii) वे प्रदेश जिनमें खाद्यान्न उत्पन्न होता है, और (iii) वे प्रदेश जिनमें पशुपालन और कृषि उत्पादन पर समान रूप से बल दिया जाता है। इन भागों को पुनः अनेक उप-विभागों में विभाजित किया जा सकता है।
भूमि की उपलब्ध मात्रा के अनुसार कृषि के प्रकार (Types of Agriculture According to the Availability of Land)
1. गहरी कृषि (Intensive Cultivation): जिन देशों में जनसंख्या घनी होती है किन्तु कृषि के लिए भूमि का अभाव होता है, उनमें कृषि की जाती है। अधिक उत्पादन प्राप्त करने के लिए भूमि को अनेक बार जोता जाता है, उत्तम बीजों और खाद का प्रयोग अधिक मात्रा में और उचित समय में किया जाता है, निश्चित रूप से सिंचाई की व्यवस्था की जाती है, फसलों को हेर-फेर के साथ बोया जाता है और अधिक श्रमिकों का उपयोग किया जाता है। घने बसे देशों में कृषि के लिए नयी भूमि का मिलना सीमित होता है, अतः गहरी कृषि द्वारा ही उत्पादन बढ़ाया जाता है। चीन, जापान, ब्रिटेन, नीदरलैण्ड, जर्मनी, बेल्जियम आदि देशों में गहरी कृषि ही की जाती है।
2. विस्तृत खेती (Extensive Cultivation): इस प्रकार की कृषि उन देशों में की जाती है जहाँ उपलब्ध भूमि की मात्रा जनसंख्या के अनुपात में अधिक होती है। चूंकि कार्य करने के लिए श्रमिकों का अभाव होता है अतः सम्पूर्ण कृषि कार्य यन्त्रों द्वारा ही किया जाता है। संयुक्त राज्य अमेरिका, रूस, अर्जेण्टाइना, आस्ट्रेलिया, कनाडा और ब्राजील में कृषि का यही रूप पाया जाता है।
Q..08. कृषि उत्पादों के आधार पर कृषि के प्रकार
(Types of Agricultural Products on the basis of Crops)
1. बागाती कृषि (Plantation Farming): उष्ण कटिबन्धीय देशों में उपयुक्त जलवायु के कारण विशेष प्रकार की बागाती कृषि की जाती है जिसके लिए अधिक पूँजी, विशिष्ट श्रप एवं देख-रेख की आवश्यकता पड़ती है। पूँजी और प्रबन्ध यूरोपीय देशों से तथा श्रम स्थानीय निवासियों से प्राप्त कर वनों को साफ की गयी भूमि में गन्ना, चाय, रवड़, कहवा, कोको प्रभृति फसलें पैदा की जाती हैं। दक्षिण-पूर्वी एशिया, मध्य एवं दक्षिण अफ्रीकी देश, ब्राजील, पूर्वी आस्ट्रेलिया, फीजी, मॉरीशस आदि द्वीपों में इस प्रकार की कृषि की जाती है।
2. फलों की कृषि (Truck Farming): नगरों के समीपवर्ती क्षेत्रों में स्थानीय माँग को पूरा करने के लिए फल एवं सब्जियों का उत्पादन बड़े पैमाने पर किया जाता है। बाजारों की निकटता एवं यातायात की सुविधा के आधार पर ही कृषि की जाती है। संयुक्त राज्य अमेरिका को कैलिफोर्निया की घाटी, फ्लोरिडा, अटलांटिक तटीय राज्यों और पश्चिमी यूरोपीय देशों में नगरों के समीप अनेक प्रकार के फल एवं शाक-सब्जियाँ वड़े पैमाने पर पैदा की जाती हैं |
Q.09. अल्फ्रेड वेबर द्वारा प्रतिपादित औद्योगिक अवस्थिति सिद्धान्त का वर्णन करें। (Describe the industrial location theory propounded by Alfred Weber.)
Ans. उद्योग-धन्धे किसी भी देश के आर्थिक विकास में महत्वपूर्ण योगदान देते हैं। उद्योगों की स्थापना हेतु अल्फ्रेड वेबर का सिद्धान्त अत्यन्त उपयोगी है। अल्फ्रेड वेबर एक जर्मन अर्थशास्त्री थे। उद्योगों की अवस्थिति के सम्बन्ध में इनसे पूर्व भी जर्मन विद्वानों ने कुछ कार्य किया था किन्तु सम्यक् विवेचन वेबर महोदय ने ही 1909 में दिया, जब उनका सिद्धान्त “Uber den standon den Industries” नामक पुस्तक में प्रकाशित हुआ जिसका 1929 में “Theory of
Location of Industries” के नाम से फ्रेडरिक द्वारा अनुवाद किया गया। वेबर महोदय ने अपने सिद्धान्त के परिपालन में विभिन्न मान्यताओं का सहारा लिया है:
1. उद्योगों की स्थापना हेतु समान प्रदेश की कल्पना की जिसमें जलवायु, स्थलाकृति, मानव प्रजाति, जनसंख्या एवं तकनीकी आदि सर्वत्र एकरूपता वाले हों और एक ही राजनयिक प्रशासन के अन्तर्गत हो।
2. कच्ची सामग्री के स्रोत मालूम हैं तथा उनकी स्थिति का पूरा ज्ञान है इनमें कुछ सर्वत्र सुलभ होते हैं, जबकि कुछ केवल निश्चित क्षेत्रों में ही मिलते हैं।
3. बाजार की स्थिति एवं आकार ज्ञात है। बाजार एक-दूसरे से पृथक बिन्दु के रूप में है, इसे पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति माना गया है।
4. श्रम निश्चित स्थानों में ही मिलते हैं तथा वहाँ पूर्व निर्धारित मजदूरी पर वांछित मात्रा में उपलब्ध हैं।
5. परिवहन लागत केवल भार तथा दूरी के अनुपात में बढ़ता है।
वेबर ने अपने सिद्धान्त को समझाने के लिए पारिभाषिक शब्दों का प्रयोग किया जिनका विवरण निम्नानुसार है :
1. सर्वत्र सुलभ पदार्थ (Ubiquities): वे पदार्थ जो सर्वत्र प्राप्य हैं तथा जिनका सर्वत्र एक ही मूल्य चुकाना पड़ता है।
2. स्थानीय पदार्थ (Localized Materials): वे पदार्थ जो किसी स्थान या क्षेत्र विशेष में ही मिलते हैं।
3. शुद्ध पदार्थ (Pure Materials): वे पदार्थ जिनका वजन उत्पादन प्रक्रिया में कम नहीं होता है। उदाहरणार्थ-सूत से वस्त्र तैयार करने पर वजन में कमी नहीं आती।
4. सकल पदार्थ (Gross Materials): वे पदार्थ जिनका वजन उत्पादन प्रक्रिया में कम हो जाता है, जैसे गन्ना से चीनी बनाने पर भार या उत्पादन कम हो जाता है।
5. पदार्थ सूचकांक (Material Index) : कच्ची सामग्री तथा उससे निर्मित वस्तुओं के वजन के अनुपात को पदार्थ सूचकांक कहा जाता है। यदि निर्मित माल कच्चे माल के बराबर है तो सूचकांक एक होगा और यदि निर्मित माल कच्चे माल से कम है तो पदार्थ सूचकांक सदैव एक से अधिक होगा।
6. स्थानीयकरण भार (Locational Weight): परिवहन किये जाने वाले कुल पदार्थ एवं निर्मित वस्तु के भार को स्थानीयकरण भार कहा जाता है। सर्वत्र पदार्थों का प्रयोग करने वाले उद्योगों में यह भार । होता है क्योंकि इसमें निर्मित वस्तु का ही भार परिवहन करना पड़ता है किन्तु यदि शुद्ध पदार्थ से वस्तुनिर्मित है तो वस्तु के भार के बराबर ही कच्चे माल का परिवहन करना पड़ता है अतः इसका भार 2 होगा।
7. श्रम लागत सूचकांक (Index of Labour Cost): निर्मित वस्तु की प्रति इकाई तैयार करने में लगने वाली औसत श्रम लागत को श्रम लागत सूचकांक कहा जाता है।
8. श्रम गुणांक (Labour Coefficient): श्रम लागत सूचकांक एवं स्थानीयकरण भार के अनुपात को श्रम गुणांक कहा जाता है।
Q. 10. विश्व के प्रमुख मत्स्य क्षेत्रों का विवरण दें। (Describe the major fishing areas of the world.)
अथवा, विश्व के प्रमुख मत्स्य क्षेत्रों के विकास के लिए आवश्यक भौगोलिक दशाओं का वर्णन कीजिए।
अथवा, मानव की आर्थिक क्रियाओं में ‘मत्स्य उत्पादन’ की विवेचना कीजिए।
Ans. विश्व के मानव की आर्थिक क्रियाओं में मत्स्य उद्योग का प्रमुख महत्व है। इसके
प्रमुख कारण हैं कि पृथ्वी का अधिकांश भाग जल से आप्लावित तथा मछलियाँ उसके प्रमुख उत्पाद हैं। यों तो भूतल पर सर्वत्र ही समुद्र तटों, उथले एवं गहरे समुद्रों में कुछ न कुछ मछलियां पकड़ी जाती हैं लेकिन मछलियों का अधिकतम व्यापारिक एवं खाद्य रूप में उत्पादन विश्व के शीतोष्ण एवं शीत कटिबन्धीय प्रदेशों में होता है। मछली पकड़ने की भौगोलिक दशायें वास्तव में उत्तरी गोलार्द्ध में शीत एवं शीतोष्ण कटिबन्धीय देशों में उत्तम रूप में पायी जाती हैं। विश्व में मत्स्य प्राप्ति के प्रमुख क्षेत्र निम्नवत हैं-
(क) उत्तरी अटलांटिक महासागर के मत्स्य क्षेत्र-
1. उत्तरी-पश्चिमी यूरोपीय तट-क्षेत्र
2. उत्तरी-अमेरिका का उत्तरी-पूर्वी तट क्षेत्र
(ख) उत्तरी प्रशान्त महासागर के मत्स्य क्षेत्र-
1. उत्तरी अमेरिका का उत्तरी पश्चिमी तट-क्षेत्र
2. एशिया का उत्तरी-पूर्वी तट-क्षेत्र।
1. उत्तरी-पश्चिमी यूरोपीय तट क्षेत्र यह क्षेत्र विश्व का सबसे बड़ा मत्स्य उत्पादन क्षेत्र
है। इस क्षेत्र का विस्तार उत्तरी अन्तरीक्ष से लेकर उत्तरी सागर के तटों के सहारे जिब्राल्टर तक है। आइसलैण्ड द्वीप तथा ब्रिटेन का तट भी इस क्षेत्र के अन्तर्गत आते हैं। इस क्षेत्र में विश्व का सबसे प्रमुख मत्स्य भण्डार डॉगर बैंक स्थित है। यह एक उथला समुद्री बैंक है जो विश्व की सर्वश्रेष्ठ मछलियों का केन्द्र है। इसके अतिरिक्त विस्के की खाड़ी, बाल्टिक सागर, आयरिश सागर, श्वेत सागर तथा इंगलिश चैनल आदि महत्वपूर्ण क्षेत्र हैं। इस क्षेत्र में इंग्लैण्ड, आइसलैण्ड, नीदरलैण्ड, नावें, स्वीडेन, डेनमार्क, फ्रांस आदि देश मछलियाँ पकड़ते हैं। इस क्षेत्र में हेरिंग, हैक, हंडक, हैल्विट, कॉड, सील, स्केट, सारडाइन, सालमन, आयस्टर, लॉबस्टर, मैकरेल, प्लेस, प्रान
तथा टुना आदि मछलियाँ पकड़ी जाती हैं।
2. उत्तरी अमेरिका का उत्तरी-पूर्वी तट-क्षेत्र इस क्षेत्र का विस्तार न्यूफाउन्डलैण्ड से लेकर उत्तरी अमेरिका के पूर्वी तट के सहारे केरोलिना तट तक है। इस क्षेत्र का महाद्वीपीय मग्न तट विस्तृत और चौड़ा है जहाँ मछली पकड़ने के अनेक बैंक हैं। इनमें ग्रान्ड बैंक का नाम विशेष उल्लेखनीय है, जिसका क्षेत्रफल 96,200 वर्ग कि.मी. है। इसके अतिरिक्त जार्ज बैंक, सैंट पीरी बैंक, बैंकवेरी बैंक, सेबल्स टापू बैंक, ला हेव बैंक आदि भी अन्य प्रमुख बैंक हैं, जहाँ बड़े पैमाने पर मछली पकड़ने का कार्य किया जाता है। इस क्षेत्र में संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाडा, न्यूफाउण्डलैण्ड, ग्रीनलैण्ड आदि देश मछली पकड़ने का कार्य करते हैं। इस क्षेत्र में मैकवेल, मनहेडन्स, कॉड, शार्क, लॉब्स्टर, आयस्कर, हैडक, हैलीवट, सालमन, सारडाइन तथा रोज फिश आदि प्रमुख मछलियाँ पकड़ी जाती हैं।
3. उत्तरी अमेरिका का उत्तरी पश्चिमी तट-क्षेत्र इस क्षेत्र का विस्तार उत्तरी-अमेरिका
के पश्चिमी तट पर बेरिंग जलडमरूमध्य से लेकर कैलीफोर्निया के तट तक है। इस क्षेत्र में कनाडा तथा संयुक्त राज्य अमेरिका (अलास्का सहित) का प्रशान्त तटीय क्षेत्र सम्मिलित है। इस क्षेत्र में सालमान, टुना, हेरिंग, पिल्कार्ड, हैलीबट, कॉड आदि मछलियाँ पकड़ी जाती हैं। सालमन इस क्षेत्र की प्रमुख मछली है। सालमन प्रशान्त महासागर से संयुक्त राज्य अमेरिका की कोलम्बिया तथा कनाडा की फ्रेजर नदियों में अण्डे देने आती हैं, तो उन्हें पकड़ लिया जाता है।
Q.11. अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के बदलते प्रतिरूप पर प्रकाश डालिए अथवा, अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के प्रारूप पर प्रकाश डालें।
Ans. विश्व व्यापार में उत्तरोत्तर वृद्धि की प्रवृत्ति पाई जाती है, क्योंकि जैसे-जैसे विश्व के देशों में आर्थिक उन्नति हो रही है वैसे-वैसे व्यापार में बढ़ोत्तरी होती जा रही है। 1960 में विश्व का कुल व्यापार 2315 अरब अमेरिकी डॉलर के समतुल्य था, जो बढ़कर 1980 में 3883 अमेरिकी डॉलर के समतुल्य हो गया और 1990 में यह 6859 अरब अमेरिकी डॉलर के समतुल्य था। 2008 में यह बढ़कर 25108 अरब डॉलर के समतुल्य हो गया। स्पष्ट है कि विश्व व्यापार तेजी से वृद्धिमान रहा है।
अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार का स्वरूप : विश्व व्यापार उत्तरोत्तर बढ़ रहा है, क्योंकि विकसित
राष्ट्रों के साथ विकासशील राष्ट्र भी अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार में अपना योगदान निरन्तर बढ़ा रहे हैं। 1972 में कम्युनिस्ट देशों एवं पेट्रोलियम निर्यातक देशों के अतिरिक्त विश्व का व्यापार 840 अरब डालर से अधिक था, जिनमें सबसे अधिक योगदान विकसित देशों का था। 1972 के बाद विश्व व्यापार के प्रारूप में अनेक परिवर्तन देखने को मिलते हैं। सबसे बड़ा परिवर्तन निर्मित वस्तुओं के आयात में गिरावट है। अब विकासशील देश भी अपनी आवश्यकता की वस्तुओं का स्वयं निर्माण करने लगे हैं। इनके स्थान पर खनिज पदार्थों का व्यापार तेजी से बढ़ रहा है। वर्तमान समय में विश्व के व्यापार की प्रमुख विशेषता में विकसित राष्ट्रों द्वारा निर्मित वस्तु का निर्यात और कच्चा पदार्थ का आयात होता है|
Q.12. विश्व के लौह-इस्पात उद्योग का विवरण दीजिए। (Describe the Iron and Steel industry of the world.) अथवा, भारत एवं संयुक्त राज्य अमेरिका के लौह-इस्पात उद्योग की स्थिति, वितरण और उत्पादन का वर्णन करें।
Ans. 1856 में बेसेमर प्रक्रिया के आविष्कार के बाद इस्पात उद्योग में तीव्रता आई। 1870 में 5.6 लाख टन उत्पादन हुआ। विश्व आर्थिक मन्दी 1929 तक 1,283 लाख टन तक पहुँच गया। तदनन्तर मन्दी के प्रतिकूल प्रभाव के कारण उत्पादन गिर कर केवल 500 लाख टन वार्षिक परन्तु धीरे-धीरे आर्थिक राज्य, ब्रिटेन, जर्मनी, रूस आदि की युद्ध-जनित उत्पादन वृद्धि के कारण द्वितीय विश्व युद्धकाल में उत्पादन 1750 लाख टन हो गया। परन्तु युद्धोत्तर काल के प्रथम कुछ वर्षों में थोड़ा हास (1948-15.58 करोड़ टन) हुआ।
अब साठ से अधिक (1950 में 35, 1958 में 48 तथा 1967 में 55) देश इस्पात का उत्पादन करने लगे हैं। 32 देश 15 लाख टन से अधिक उत्पादन करते हैं। इनमें चीन, जापान संयुक्त राज्य अमेरीका, रूस, जर्मनी एवं द० कोरिया प्रथम कोटि के उत्पादक हैं जो विश्व का 60% उत्पादन करते हैं।
रूसी फेडरेशन अब संसार का चौथा वृहत्तम इस्पात उत्पादक देश है जिसने 1982 में 16
करोड़ टन परन्तु विघटन के बाद 2000 ई० में 5.9 करोड़ टन इस्पात तैयार किया। रूसी फेड में दो प्रमुख तथा एक दर्जन से अधिक गौण इस्पात के कारखाने हैं।
1. मध्य तथा दक्षिणी यूराल प्रदेश रूसी फेडरेशन का वृहत्तम उत्पादक प्रदेश है। यह यूराल पर्वत के दोनों पार्श्व-क्षेत्रों में फैला है। 1930 में लौह-प्रधान यूराल क्षेत्र तथा कोयला प्रधान कुजबास क्षेत्र (पश्चिमी साइबेरिया) को एक-सूत्री योजना के अन्तर्गत विकसित करने का निश्चय हुआ। यूराल प्रदेश में मैग्नीटोगोस्र्क, वेलोरेत्सक, चेल्याबिस्क, स्बर्डलोब्स्क, ‘आलापायेस्क’ निझनीतागिल, क्रैस्नोयूराल्सक तथा सर्वो आदि केन्द्रों में विशाल सम्बद्ध कारखाने हैं। इनके अतिरिक्त निझन्याया साल्दा, ऊफालाइ ज्लातूस्त, ऊराजोव्का, आशा लिस्बा आदि केन्द्रों में कारखाने स्थित हैं।
2. मध्य-स्थित (मास्को) प्रदेश मास्को का इस्पात उद्योग बाजारोन्मुख है और उत्तर-पूर्व में ब्रिस्क से दक्षिण में गोर्की तक विस्तृत है। यहाँ विशाल नगरों के इंजीनियरिंग उद्योग में इस्पात की प्रचुर माँग रहती है, साथ ही उनसे काफी स्क्रैप भी प्राप्त होता है। अतः पूरे क्षेत्र में स्थानीय लौह पर आधारित ढलवाँ लोहा (प्रमुख केन्द्र तला, लिपेत्स्क आदि) की अपेक्षा स्क्रैप के आधार पर इस्पात अधिक बनता है जिसके प्रमुख केंन्द्र मास्को, इलैक्ट्रोस्तोल तथा विस्का आदि हैं।
यूक्रेन : यहाँ तीन प्रमुख इस्पात क्षेत्रों का विकास हुआ (क) डोंनबास क्षेत्र, (ख) नीपर क्षेत्र तथा (ग) कर्च झाडानोव क्षेत्र।
3. कुजनेत्स्क बेसिन : इसका विकास स्थानीय कोयले के विशाल भण्डार तथा यूराल से आयात लौह-खनिज के आधार पर हुआ। अब क्षेत्रीय तथा बैकाल झील के समीप आबाकान क्षेत्र से लौह प्राप्त होता है। नोवोकुजनेत्स्क के दक्षिण लौह तथा चूना पत्थर की खदानें हैं, नोवोसिविस्र्क तथा स्टालिस्क केन्द्रों में वृहत् सम्बद्ध कारखाने हैं। मैजुल्स्कयी, ऊसा, जुरोचक तथा कामेन अन्य केन्द्र हैं। जल शक्ति तथा ताप-शक्ति का प्रचुर विकास हुआ है
Q.13. विश्व में दुग्ध उत्पादन क्षेत्रों का वर्णन करें। (Describe the milk production regions in the world.)
Ans. विश्व में व्यापारिक दुग्ध उत्पादन के क्षेत्र निम्नलिखित हैं-
उत्तरी अमेरिका की दुग्ध पेटी: इस प्रदेश की सीमायें विभिन्न प्राकृतिक तत्वों से निर्धारित होती है। उत्तरी सीमा 110 दिन पाला रहित दर्शाने वाली रेखा तथा ग्रीष्म ऋतु की औसत कम से कम 63% तापमान से होती है। दक्षिणी सीमा पर ग्रीष्म ऋतु का औसत तापमान 70°F होता है तथा बलुई भूमि के स्थान पर अधिक उपजाऊ भूमि मिलने लगती है जिससे पशुपालन की अपेक्षा मिश्रित खेती अधिक लाभदायक होती है। पश्चिम में प्रेयरी क्षेत्र में वर्षा 50 सेमी से कम हो जाती है वहाँ दुग्ध पशुपालन समाप्त होने लगता है क्योंकि इससे कम वर्षा में दूध देने वाले पशुओं को अधिक कठिनाई होने लगती है। पूरब में यह कृषि व्यवसाय अन्धमहासागर तट तक पहुँच जाता है। इस दुग्ध पशुपालन प्रदेश के अन्दर विविध प्राकृतिक तथा मानवीय तत्वों का संयोग इस व्यवसाय के अधिक अनुकूल पड़ता है। 50 सेमी से 125 सेमी की वार्षिक औसत वर्षा में जिनका 60 से 80 प्रतिशत गर्मी में ही प्राप्त होता है चरी तथा घास उगाना आसान होता है। तापमान 63″ फारेनहाइट से 73° फारेनहाइट होने के कारण गर्मी साधारण पड़ती है और गायें अधिक दूध देती हैं। साथ ही जंगल, झील, झरने तथा नदियों से भरे होने के कारण किसान पशुओं पर समुचित ध्यान देते हैं। धरातल अधिकांश उबड़-खाबड़ तथा मिट्टी अनुपजाऊ हैं, अतः भूमि का सबसे अच्छा उपयोग दुग्ध पशुपालन के रूप में हो जाता है। इसी प्रदेश में संयुक्त राज्य की 60% नगरों में बसने वाली जनसंख्या और रेलमार्गों एवं सड़कों का घना बिछा है। दूध ढोने वाली गाड़ियों को यात्री-गाड़ियों को रोक कर आगे ले जाया जाता है। रैफ्रीजरेटर आदि की सुविधाएँ उपलब्ध हैं तथा दूध संग्रह एवं वितरण की सुव्यवस्थित केन्द्र समुचित संख्या में विकसित हुए हैं। दुग्ध उत्पादन तथा मक्खन-पनीर आदि बनाने के लिए स्वास्थ्यकर तथा तेजी से सूक्ष्मतम कार्य करने के लिए विविध प्रकार के स्वचालित यंत्रों की व्यापक व्यवस्था हुई है।
अधिकांश श्रम भूस्वामी ही करता है, अतः फार्म भी इसी कारण अन्य कृषि प्रदेशों की तुलना में छोटे-छोटे हैं। चरी के अतिरिक्त किसान कुछ फल सब्जियाँ, चुकन्दर तथा कुछ फार्मो पर यदि प्राकृतिक दशायें अनुकूल होती हैं तो पशुओं को खिलाने के लिए अन्न भी पैदा करते हैं |
Q.14. दुग्धोत्पादन कृषि की विशेषताओं, उत्पादन और वितरण का विवरण दीजिए। (Describe the characteristics, production and distribution of dairy farming.) अथवा, दक्षिणी महाद्वीपों में दुग्ध उत्पादन व्यवसाय का एक भौगोलिक विवरण दीजिए।
Ans. दूध एक अमृतोपम पेय पदार्थ है, जिसका प्रयोग पूरे विश्व में किया जाता है। सभ्यता के विकास के साथ-साथ अब विश्व के अनेक देश दुधारू पशुओं को बहुत सुव्यवस्थित ढंग से पालने लगे हैं। ये पशु मांस तथा दूध दोनों के लिए पाले जाते हैं। वर्तमान में दूध तथा दुग्ध पदार्थों का व्यापार प्रशीतलन व्यवस्था के कारण विश्वव्यापी हो गया है। दुग्ध पदाथों की माँग सभी देशों में है अतः यह उद्योग लगातार विकसित होता जा रहा है।
डेयरी उद्योग के लिए आवश्यक दशाएँ (Necessary Conditions for Dairy Industry)
1. दुधारू गायें : दुग्ध उद्योग के लिए पाला जाने वाला प्रमुख पशु गाय है। यूरोपीय देशों, संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाडा, पूर्व सोवियत संघ, दक्षिणी अमेरिकी देशों तथा न्यूजीलैण्ड में दूध के लिए विशेषकर गायें ही पाली जाती हैं। भारत तथा अफ्रीका में गायों के साथ-साथ भैंसे भी पालते हैं।
2. जलवायु : यह उद्योग शीतोष्ण कटिबन्धीय प्रदेशों में अधिक उत्तम होता है क्योंकि इन प्रदेशों में आर्द्र जलवायु वाले भागों में पशुओं के लिए उत्तम वातावरण उपलब्ध होता है जिससे पशु स्वस्थ तथा हृष्ट-पुष्ट रहते हैं। डेयरी उद्योग के लिए ग्रीष्मकाल में तापमान 27° सेण्टीग्रेड से अधिक ऊँचा न हो तथा वर्षा 50 से 75 सेण्टीमीटर उपयुक्त होती है। इस वर्षा से उत्तम चारा प्राप्त होता है।
यह उद्योग सामुद्रिक जलवायु वाले भागों में सफलतापूर्वक चलाया जाता है। पश्चिमी यूरोपीय देश, पूर्वी संयुक्त राज्य अमेरिका, अर्जेन्टाइना तथा न्यूजीलैण्ड आदि इस उद्योग के लिए उचित हैं। इस जलवायु में पशु वर्ष-पर्यन्त खुले में बने रहते हैं।
3. उत्तम चारा : डेयरी उद्योग के लिए उत्तम चारा अत्यावश्यक है। इस उद्योग के लिए सबसे सस्ता और अच्छा चारा घास है जिसे चरागाहों पर उगाया जा सकता है तथा शुष्क घास तथा साइलेज के रूप में फार्मों पर खिलाया जा सकता है। घास के अतिरिक्त जई, क्लोवर घास, गाजर, शलजम आदि भी पशुओं को खिलाई जाती है।
4. स्वच्छ जल : सामान्यतः प्रति औसत गाय के लिए 200 लीटर स्वच्छ जल की प्रतिदिन आवश्यकता होती है।
5. छोटे फार्म : डेयरी उद्योग के फार्म मांस उद्योग तथा भेड़ पालने वाले फार्मों की तुलना में छोटे होने चाहिए जिससे उनकी देखभाल भली प्रकार हो सके। बड़े फार्मों की अपेक्षा छोटे फार्मों की आर्थिक दशा अधिक अच्छी पायी जाती है।
6. बाजारों की निकटता डेयरी उद्योगों के लिए व्यापक बाजार निकट ही होना चाहिए जिससे तैयार माल की शीघ्र ही खपत हो जाये। ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में नगरीय क्षेत्रों में दुग्ध तथा दुग्ध निर्मित वस्तुओं की माँग अधिक रहती है।
7. उत्तम परिवहन डेयरी उद्योग के लिए परिवहन के उत्तम साधनों का होना भी अत्यावश्यक है। उत्तम परिवहन की व्यवस्था के अभाव में दुग्ध तथा इससे निर्मित वस्तुएँ समय से न पहुँचने के कारण खराब हो जाती हैं। अब प्रशीतकों द्वारा इन पदार्थों को बहुत दूर तक पहुँचाया जा सकता है। न्यूजीलैण्ड तथा पूर्वी आस्ट्रेलिया से ब्रिटेन तक तथा अर्जेन्टाइना से जर्मनी तक मक्खन भेजा जाता है जो कई महीनों तक खाने योग्य बना रहता है।
8. दूध की निरन्तर पूर्ति : इस उद्योग के लिए वर्ष पर्यन्त दूध की पूर्ति होती रहनी चाहिए। दूध की कमी होने पर यह उद्योग अधिक प्रभावित होता है। शीत ऋतु में घास के बर्फ से ढँक । जाने से ऐसे चारे को उत्पन्न किया जाता है जो शीत ऋतु में पनप सके, जिसे खाकर पशु निरन्तर दूध की पूर्ति करते रहें।