Class 12th, hindi पाठ- 12 हार जीत [ अशोक बाजपेयी ] SUBJECTIVE- प्रश्न उत्तर, inter hindi subjective- question answer,
Class 12th, hindi पाठ- 12 हार जीत [ अशोक बाजपेयी ] SUBJECTIVE- प्रश्न उत्तर, inter hindi subjective- question answer,
12. हार जीत [ अशोक बाजपेयी ]
कविता का सारांश
हिंदी साहित्य के प्रखर प्रतिभा संपन्न कवि अशोक वाजपेयी की हार-जीत कविता अत्यंत ही प्रामाणिक है। इसमें कवि ने युग-बोध और इतिहास बोध का सम्यक ज्ञान जनता को कराने का प्रयास किया है। इस कविता में जन-जीवन की ज्वलंत समस्याओं एवं जनता की अबोधता निर्दोष छवि को रेखांकित किया गया ? कवि का कहना है कि सारे शहर को प्रकाशमय किया जा रहा है और वे यानी जनता जिसे हम तटस्थ प्रजा भी कह सकते हैं उत्सव से सहभागी हो रहे हैं। ऐसा इसलिए वे कर रहे हैं कि ऐसा ही राज्यादेश है। तटस्थ प्रजा अंधानुकरण से प्रभावित है। गैर जवाबदेह भी है। तटस्थ जनता को यह बताया गया है कि उनकी सेना और स्थ विजय प्राप्त कर लौट रहे हैं लेकिन नागरिक में से अधिकांश को सत्यता की जानकारी नहीं है। उन्हें सही-सही बातों की जानकारी नहीं है। किस युद्ध में उनकी सेना और शासक शरीक हुए थे। उन्हें यह भी ज्ञात नहीं था कि शत्रु कौन थे। विडंबना की बात यह है कि इसके बावजूद भी वे विजय पर्व मनाने की तैयारी में जी-जान से लगे हुए हैं। उन्हें सिर्फ यह बताया गया है कि उनकी विजय हुई है। उनकी से आशय क्या है यानी उनकी माने किनकी ? यह एक प्रश्न उभरता है। यह भी स्थिति साफ नहीं है कि वे जश्न मनाने में इतना मशगूल है कि उन्हें यह भी सही-सही पता नहीं है कि आखिर विजय किसकी हुई सेना की, शासकीय नागरिकों की कितनी भयावह सोचनीय स्थिति हैं कि किसी के पास यह फुर्सत नहीं है कि वह पूछे कि आखिर ये कैसे और क्यों हुआ ? वे अपनी निजी समस्याओं में इतना खोए हुए है की मूल समस्याओं की ओर ध्यान ही नहीं आता, यह उनकी विवशता ही तो है। वह कौन-सी विवशता है यह श्री विवेचना का विषय है नागरिकों की यह भी सही-सही पता नहीं है कि युद्ध में कितने सैनिक गए थे और कितने विजय प्राप्त कर लौट रहे हैं। सोत रहने वालों વાળી મોં શહીદ્ર હ હૈ ૐની રાવી શ્રી દ્રારા હૈ વવિ ૩પસે ઝ્યિો પર ફતિહાસ ઔર તોીવન ની વાત સમસ્યાઓ હો મોર આપી વિશે माध्यम से सच्चाई से वाकिफ कराने का प्रयास किया है। कवि कहता है इन सारी बातों की जानकारी रखने वाला चाहे कोई साक्षी है तो वह है मशकवाলা| वह मशकवाला जिसका काम है मशक के पानी से सड़क को सींचना मशकवाला कह रहा है कि हम एक बार फिर हार गए हैं और गाजे-बाजे के साथ जीत नहीं हारकर लौट रही है? मूल बात की ओर कोई ध्यान नहीं दे रहा है विडंबना है कि मशकवाले की एकमात्र जिम्मेवारी सड़क सींचने पर की है सब लिखने या बोलने की नहीं जिनकी है वे सेना के साथ जीत कर लौट रहे हैं यह एक प्रश्नवाचक चिन्ह खड़ा करता है। प्रस्तुत कविता अत्यंत ही यथार्थपरक रचना है। कभी सच्चाई से वाकिफ कराना चाहता है वर्तमान में राष्ट्र और जन की क्या स्थिति है इस ओर हमारा ध्यान आकृष्ट किया है। उक्त गद्य कविता में कवि द्वारा प्रयुक्त शासक सेना नागरिक और मशकवाला शब्द प्रतिक प्रयोग है। शासक वर्ग अपनी दुनिया में रमा हुआ है उसमें उसके अन्य प्रशासकीय वर्ग भी सम्मिलित है नागरिकों की स्थिति बड़ी ही असमंजस वाली है मशकवाला पूरे घटनाक्रम की सही जानकारी रखता है लेकिन उस पर बंदिशें है कि वह सत्य से अवगत किसी को नहीं कराये | इसे सख्त हिदायत है न लिखने की न बोलने की उक्त कविता में कवि ने पूरे देश की जो वस्तुस्थिति है उससे अवगत कराने का काम किया है। राज्यादेश के कारण तटस्थ प्रजा जश्न मनाने में मशभूत है। प्रजा चेनता के अभाव में गैर जिम्मेवार भी है उसे यह भी ज्ञान नहीं है कि उसकी जिम्मेवारी कर्तव्य और अधिकार क्या है नागरिकों को पेट की चिंता है नागरिक स्वार्थ में अंधा है वे अपनी स्वार्थपरता में इतना अंधे हैं कि राष्ट्र की चिंता ही नहीं याद आती। यह एक प्रश्न खड़ा करता है हमारे राष्ट्र के समक्ष जबतक जनता सुशिक्षित प्रज्ञ एवं चेतना संपन्न नहीं होगी तब तक राष्ट्र विकसित और कल्याणकारी नहीं हो सकता। कवि कहना है कि आजादी के लिए जिन्होंने अपने को बलिवेदी पर चढ़ाया आज उनका इतिहास ही नहीं है। उनकी सूची अपूर्ण है उनकी शहादत को देश और शासक भूत गए हैं शहीदों की कुर्बानी के महत्व को तरजीव नहीं दी जाती है। उधर किसी का न ध्यान जाता है न श्रद्धा ही बड़ा ही त्रासद स्थिति है। श्रमिकों मजदूरों किसानों की दीन-दशा की ओर भी कवि ने ध्यान आकृष्ट किया है वे सड़क सींचते हैं यानी अपने श्रम द्वारा राष्ट्र की सेवा कर रहे हैं लेकिन आजादी के इतने दिनों बाद उनकी सामाजिक आर्थिक दशा सुधरी क्या वह जीवन बोध से अवगत हुए क्या अमर हुआ होता तो वे ऐसा नहीं करते यानी गैर जवाबदेही और अंधभक्त होकर शासनादेश के और विवेकपूर्ण आदेश को नहीं मानते। किसकी जीत हुई या हार यह भी सोचने की बात है चिंतन करने की बात है जीवन के यथार्थ और देश की वास्तविक समस्याओं की ओर से हमारा ध्यान हटकर झूतमुत के दिखावे, ठाकुरसुहानी बातों के द्वारा जन मनाने की तैयारी यह लोकतंत्र के लिए खिलवाड़ नहीं तो क्या है। देश की प्रजा राजनीतिक चेतना से चर्चित है। वह राजनैतिक अधिकारों की बातें क्या समझे યા ગામે કરો તો શસ્ત્ર વે સામે છ સૂક્ષ્મતા નહીં પ્રવોથતા સૉર જ્ઞાતા મેં પત રહી પ્રા રાત્ય રો ધોરણો દૂર હૈં। ૫ાર કરો ાનીતિ કી રાહી શિક્ષા મિતતી તો वह जिम्मेवारी से भागना नहीं तथा हार को हार कहनी जीत नहीं कहती। यानी सत्य के लिए संघर्ष करनी आंदोलन करनी अपने अधिकारों के लिए सचेत रहती। अपनी अबोधता और विवशता के कारण ही वह दूसरे क्षेत्रों में दखल नहीं देती। इस कविता में देश के नेताओं के चरित्र को भी उद्धाटित किया गया है। नेताओं के चारित्रिक गुणों का पर्दाफाश किया जाता है। लड़ाई के मैदान से वे लौटे हैं लेकिन सेना के साथी | इसका तात्पर्य है कि सेना सच बोलकर भेद नहीं खोत दे कि वे हार कर लौट रहे हैं और झूठी प्रशंसा में जीत का प्रचार कर रहे हैं। उक्त गद्य कविता में कवि का कहना है कि देश की वास्तविक स्थिति से अवगत नहीं कराया जा रहा है। झूठे प्रचारतंत्र के द्वारा यह शासन चल रहे हैं। मशकवाला बुद्धिजीवी वर्ग का प्रतीक है। बुद्धिजीवियों के आगे भी संकट है क्या वे सत्य के उद्घाटन में स्वयं को सक्षम पाते हैं? कोई प्रकार की बंदिशें है सत्य कहने, लिखने की। जनता मूकदर्शक बनकर सही स्थितियों को देख रही है किंतु उसे ज्ञान ही नहीं है कि ऐसा क्यों हो रहा है क्योंकि अपनी विवशता में वह अभिशन है। घोर दुर्व्यवस्था, प्रपंच, झूठे आडम्बरों एवं दकियानूसी बातों में समय व्यतीत हो रहा है। लोक जीवन में अराजकता अशिक्षा बेकारी बेरोजगारी प्रवाह रूप से परिव्याप्त है। उसे और किसी का भी ध्यान नहीं आ रहा है। शासक वर्ग को इन समस्याओं से निजात दिलाने के लिए न कोई उपाय है और न वे हृदय से इसे चाहते हैं। वे तो अपनी शान-शौकत जय-जयकार में लीन है। प्रजा मौन है बुद्धिजीवी विवश है लोकतंत्र खतरे में है। राष्ट्रीय चेतना सुषुप्तावस्था में हैं। संस्कृति और राजनीतिक संकट के आवरण में देश गिरा हुआ है अनेक सामाजिक विसंगतियों एवं समस्याओं से जन- जलवन त्रस्त है कवि व्याघ्र है, चिंतित है इन समस्याओं से कैसे मुक्ति मिलो
सब्जेक्टिव-
1. उत्सव कौन और क्यों मना रहे हैं?
उत्तर- किसी शहर विशेष में रहने वाले सामान्य नागरिक उत्सव मना रहे हैं। उनके उत्सव मनाने के कारण निम्नलिखित है- 1. कुछ लोगों द्वारा यह बता दिया गया है कि उनकी सेना ने विजय प्राप्त कर ली है और वह युद्ध
क्षेत्र में वापस आ रही है।
2. उन्हें इस युद्ध की वास्तविक स्थिति का ज्ञान नहीं है ।
3. उन्हें युद्ध में मारे गए लोगों के विषय में कुछ भी पता नहीं है
। 4. सच बोलने वाले अपनी जिम्मेदारी का उचित निर्वहन नहीं कर रहे
2. नागरिक क्यों व्यस्त है ? क्या उनकी व्यस्तता जायज है ?
उत्तर- नागरिक इसलिए व्यस्त है क्योंकि-
1. उन्हें उत्सव मनाने के लिए कई प्रकार की तैयारियां करनी है।
2. उन्हें विजयी भाव प्रदर्शित करते हुए विजयी सेना तथा शासक का स्वागत करना है। 3. उन्हें युद्ध में गए लोगों की संख्या का पता है पर लौट कर आने वालों का ठीक-ठीक पता नहीं है। अर्थात युद्ध में कितने लोग मारे गए इसकी जानकारी उन्हें नहीं है उन्हें तो बस सुखद परंतु असत्यपूर्ण समाचार ही ज्ञात हुआ है।
उनकी व्यस्तता जायज नहीं है क्योंकि उन्हें वास्तविक स्थिति का पता नहीं है उन्हें नहीं पता है कि वास्तव में उनकी जीत नहीं बल्कि हार हुई है।
3. किसकी विजय हुई सेना की, कि नागरिकों की? कवि ने यह प्रश्न क्यों खड़ा किया यह विजय किनकी हैं आप क्या सोचते हैं बताएं?
उत्तर- किसी की विजय नहीं हुई विजय प्रतिपक्ष की हुई कवि ने देश की वस्तुस्थिति से अवगत कराया है। कवि के विचारों पर चिंतन करते हुए यही बात समझ में आती है कि झूठ मुठ • आश्वासनों एवं भुलावे में हमें रखा गया है यथार्थ का ज्ञान हमें नहीं कराया जाता यानी सत्य से दूर रखने का प्रयास शासन की ओर से किया जा रहा है।
4. सड़कों को क्यों सींचा जा रहा है?
उत्तर- सड़कों को इसलिए सींचा जा रहा है ताकि उनकी धूल गुबार समाप्त हो सके और युद्ध क्षेत्र से छत्र चंवर और गाजे बाजे के साथ जो विजयी राजा आ रहे हैं उन पर धूल न उड़े। उन्हें पहले जैसा बनाया जा सके अर्थात युद्ध के कारण उनकी टूटी-फूटी हालत में सुधार लाया जा सके।
5. बूढ़ा मशकवाला क्या कहता है और क्यों कहता है?
उत्तर- बूढ़ा मशकवाला कहता है कि-
1. एक बार फिर हमारी हार हुई है। 2. गाजे-बाजे के साथ विजय नहीं हार लौट रही है।
3. ऐसी विजय पर खुश होकर जश्न मनाने का कोई औचित्य नहीं है।
वह ऐसा इसलिए कहता है क्योंकि-
1. बूढ़ा अनुभवी व्यक्ति है उसे जीवन के यथार्थ का अनुभव है।
2. उसे पता है कि समाज में घृणा द्वेष हत्या लूटपाट दंगे आतंकवाद आदि मानवता के विनाश के •कारण बने हुए हैं। इन पर विजय पाए बिना विजय का जश्न मनाना अनुचित है। 3. लोगों को मारने वालों की कोई जानकारी न देकर वास्तविक स्थिति पर पर्दा डाला जा रहा है।
4. उसकी बातों में सच्चाई तो है पर उसे कोई सुनना नहीं चाहता है।
6. बूढ़ा मशकवाला किस जिम्मेवारी से मुक्त है सोचिए अगर वह जिम्मेवारी उसे मिलती तो क्या
होता ?
उत्तर- बूढ़ा मशकवाला देश की राजनीति से वंचित है अगर उसे जिम्मेवारी मिली होती तो हार को हार कहता जीत नहीं कहता। वह सत्य प्रकट करता उसे तो मात्र सड़क सींचने का काम सौंपा गया है यही उसकी जिम्मेवारी है सत्य लिखने और बोलने की मनाही हैं इसलिए वह मौन है और अपनी सीमाओं के भीतर ही जी रहा हैं। वह विवश हैं विकल है फिर भी दूसरे क्षेत्र में दखल नहीं देना केवल सींचने से ही मतलब रखता है इसमें बौद्धि वर्ग की विवशता झलकती है। अगर उसे सत्य कहने और लिखने की जिम्मेवारी मिली होती तो राष्ट्र की यह स्थिति नहीं होती झूठी बातों • और झूठी शान में जश्न नहीं मनाया जाता जीवन के हर क्षेत्र में अमन चैन शिक्षा-दीक्षा विकास की धारा बहती | अबोधता और अंधकार में प्रजा विवश बनकर नहीं जीती।
7. गद्य कविता क्या है इसकी क्या विशेषताएं हैं?
उत्तर- दैनदिन जीवन अनुभवों की धरती से बोलचाल बातचीत और सामान्य मनः चिंतन के रूप में उगा हुआ विवरणधर्मी और चौरस कविता गद्य कविता है इस कविता की विशेषताएं यह होती हैं कि सबसे पहले यह कविता विचार कविता होती है एक-एक शब्द के कई अर्थ परत दर परत खुलते जाते हैं इस प्रकार की कविता में जीवनानुभव की बात भोगे हुए यथार्थ मानो साम दिखलाई पड़ती है क्योंकि यह वर्णनात्मक होती है इनकी भाषा बोल चाल से सम्पृक्त होने के कारण उसमें स्थानीयता का गहरा रंग भी झलकता है।
ऑब्जेक्टिव-
1. हार जीत किस प्रकार की रचना है ?
उत्तर- गद्य गीत
2. हार जीत शीर्षक कविता के रचयिता कौन है?
उत्तर- अशोक वाजपेयी
3. अशोक वाजपेयी का जन्म कब हुआ था ?
उत्तर- 16 जनवरी 1941
4. अशोक वाजपेयी का जन्म स्थान कहां है?
उत्तर- दुर्ग छत्तीसगढ़
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