12th history 100% पूछने वाले प्रश्न 2023 ।। Biharboard inter history important subjective- question 2023
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12th history 100% पूछने वाले प्रश्न 2023 ।। Biharboard inter history important subjective- question 2023
Q.1. अकबरनामा पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखें।
Ans. अकबर के शासन काल का सबसे प्रसिद्ध इतिहासकार अबुल फजल था। उसने अकबरनामा लिखा। वह मुगलों की राजधानी आगरा में बड़ा हुआ। उसने विस्तृत अध्ययन कई भाषाओं जैसे अरबी, फारसी, यूनानी दर्शन और सूफी मत का भी किया। अकबर के इतिहास या आइने ए-अकबरी को तीन हिस्सों (जिल्दों) में बाँटा गया है। अकबरनामा का पहला भाग अकबर के जन्म से लेकर 15 सितंबर 1542 तक के मुगल इतिहास के बारे में लिखता है। इस भाग में उसने पृथ्वी की रचना और विभिन्न धार्मिक व्यक्तियों के विचारों में लिखा है। इस पुस्तक के दूसरे भाग में अकबर के जीवन और 46 वर्षों की उसकी आयु तक घटनाओं का विवरण दिया गया है। अकबरनामा का तीसरा भाग आइन-ए-अकबरी कहलाता है। यह भाग ही अकबरनामा का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण माना जाता है। विद्वान इसे अकबरनामा की आत्मा के रूप में स्वीकार करते हैं।
इस पुस्तक की भाषा फारसी है जो सरल लेकिन प्रभावशाली ढंग और शैली में लिखी गई है।“
Q2. कौटिल्य के अर्थशास्त्र पर टिप्पणी लिखें।
Ans. कौटिल्य ने अपनी पुस्तक में अर्थशास्त्र की परिभाषा देते हुए कहा है, जीविका को अर्थ कहते हैं और मनुष्य से युक्त भूमि का नाम भी अर्थ है। इस भूमि को प्राप्त करने और रक्षा के उपायों का निरूपण करनेवाला शास्त्र अर्थशास्त्र कहलाता है।” इसी प्रकार पुस्तक के प्रथम सूत्र में भी कौटिल्य ने अर्थशास्त्र को पृथ्वी की प्राप्ति और रक्षा से संबंधित शास्त्र कहा है।
इस परिभाषा के अनुसार कौटिल्य के अर्थशास्त्र के दो मुख्य उद्देश्य हैं। प्रथम यह शास्त्र
यह दर्शाने का प्रयास करता है कि शासक किस प्रकार पृथ्वी या राज्य की रक्षा कर सकता है। इसी रक्षा के उद्देश्य से अर्थशास्त्र राज्य के आंतरिक प्रशासन के विभिन्न पहलुओं की विवेचना करता है। द्वितीय, यह शास्त्र इस बात पर भी प्रकाश डालता है कि किस प्रकार शासक नई भूमि या पृथ्वी को अपने आधिपत्य में ला सकता है। कौटिल्य के अर्थशास्त्र में 15 अधिकरण, 150 अध्याय और 180 प्रकरण है। प्रथम पाँच अधिकरणों में राज्य के आंतरिक प्रशासन पर प्रकाश डाला गया है; 6 से 13 अधिकरणों में राज्य
के वैदेशिक संबंधों की विवेचना की गई है एवं शेष दो अधिकरणों में अन्यान्य विषयों की चर्चा
की गई है।
Q3. भारत छोड़ो आंदोलन की व्याख्या करें।
Ans. क्रिप्स मिशन की विफलता के बाद महात्मा गाँधी ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ अपना तीसरा बड़ा आंदोलन छेड़ने का फैसला लिया। अगस्त 1942 में शुरू हुए इस आंदोलन को “अंग्रेजों भारत छोड़ो” का नाम दिया गया था।
“भारत छोड़ो आंदोलन सही मायने में एक जनांदोलन था जिसमें लाखों आम हिंदुस्तानी शामिल थे। इस आंदोलन ने युवाओं को बड़ी संख्या में अपनी ओर आकर्षित किया। उन्होंने अपने कॉलेज छोड़कर जेल का रास्ता अपनाया।
1944 में जब द्वितीय विश्व युद्ध समाप्ति की ओर था तो गाँधीजी को रिहा कर दिया गया।
जेल से निकलने के बाद उन्होंने कांग्रेस और लीग के बीच फासले को पूर्णतयः समाप्त करने
अथवा कम करने के साथ कई बार बात की।
12th history 100% पूछने वाले प्रश्न 2023 ।। Biharboard inter history important subjective- question 2023
Q.4. स्वदेशी आन्दोलन पर टिप्पणी लिखें।
Ans. 1905 में लार्ड कर्जन ने बंगाल विभाजन की घोषणा की। विभाजन से पूर्व बंगाल में
असम, बिहार, उड़ीसा भी शामिल थे। इस विभाजन का कोई वैधानिक और सैद्धांतिक आधार नहीं था। विरोध के रूप में लोगों ने विदेशी माल के बहिष्कार का निर्णय लिया। इसे ही इतिहास में स्वदेशी आन्दोलन की संज्ञा दी गई है। सुरेन्द्र नाथ बनर्जी तथा विपिन चन्द्र पाल ने विभिन्न स्थानों पर सभाओं का आयोजन किया और जनता से विदेशी माल के बहिष्कार तथा स्वदेशी वस्तुओं के प्रयोग की अपील की। सार्वजनिक सभाओं में उपस्थित व्यक्तियों को स्वदेश-प्रत दिलाया जाता।
इसमें संदेह नहीं कि बंगाल के नेताओं और तरुणों की मनः स्थिति में एक महान परिवर्तन
हुआ। बहिष्कार तथा स्वदेशी आन्दोलन के विषय में पहले से ही सोचा जा रहा था। अब इनमें
अत्यधिक गति आ गई।
Q.5. भारतीय संविधान की प्रस्तावना को लिखें। Ans. भारत में गणतंत्रीय संविधान की प्रस्तावना निम्न प्रकार है-
“हम भारत के लोग, भारत को एक सम्पूर्ण प्रभुत्ता सम्पन्न लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने और इसके सभी नागरिकों को, सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय, विचार अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता, प्रतिष्ठा व अवसर की समता प्राप्त कराने के लिए तथा उन सब में व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता सुनिश्चित करने वाली बन्धुता बढ़ाने के लिए दृढ़ संकल्प होकर अपनी इस संविधान सभा में आज दिनांक 26 नवम्बर 1949 ई० को इस संविधान को अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मार्पित करते हैं।
संविधान 42वें संशोधन द्वारा प्रस्तावना में कुछ शब्द जोड़ दिए गए, जो इस प्रकार है-“सम्पूर्ण प्रभुत्व सम्पन्न लोकतंत्रात्मक गणराज्य के स्थान पर सम्पूर्ण प्रभुत्व सम्पन्न लोकतंत्रात्मक धर्मनिरपेक्षता समाजवादी गणराज्य’ (Sovereign Democratic Secular Socialist Republic) शब्द और ‘राष्ट्र की एकता के स्थान पर राष्ट्र की एकता और अखण्डता’ (Unity) and integrity of the Nation) शब्द जोड़ दिये गए। इस तरह ‘धर्म निरपेक्षता’ ‘समाजवाद’ और ‘राष्ट्रीय अखण्डता’ को मूल प्रस्तावना में
जोड़कर संविधान के उद्देश्यों को बिलकुल स्पष्ट कर दिया गया है।
Q.6. विजयनगर साम्राज्य की स्थापना किसने और कैसे की ?
Ans. 1236 ई में हरिहर ने हप्पी हस्तिनावती राज्य की नींव डाली। उसी वर्ष उसने विजयनगर का नवीन नगर बनाया। यहीं राज्य बाद में विशाल राज्यनगर राज्य बना और विजयनगर (विद्यानगर) उसकी राजधानी बना।
हरिहर प्रथम (1336-1356 ई.) इस राज्य का प्रथम शासक हुआ। उसकी पहली राजधानी अनेगोन्दी थी। सात वर्ष के पश्चात् उसने विजय नगर को राजधानी बनाया। 1356 ई. में हरिहर की मृत्यु हो गयी। हरिहर की मृत्यु के पश्चात् उसका भाई बुक्का सिंहासन पर बैठा। बुक्का ने अपने राज्य को सरदारों की स्वतंत्र प्रवृत्ति पर अंकुश लगाया, शासन का केन्द्रीयकरण किया और तमिलनाडु राज्य को विजयनगर राज्य में सम्मिलित कर लिया। उसने बारंगल के राजा से एक समझौता करके बहमनी शासक मुहम्मदशाह प्रथम पर दबाव डाला और उसने कृष्ण-तुंगभद्रा के दोआब की माँग की। उस समय से बहमनी और विजयनगर राज्यों का संघर्ष आरम्भ हुआ। उसने वेद और अन्य धार्मिक ग्रन्थ की नवीन टीकाएँ लिखवायी तथा तेलगु साहित्य को प्रोत्साहन दिया। 1377 ई. में बुक्का की मृत्यु हो गयी।
Q.7. चन्द्रगुप्त द्वितीय विक्रमादित्य की उपलब्धियों का वर्णन करें।
Ans. चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य की गणना भारत के महानतम सफल शासकों में की जाती है। वह एक साहसी, वीर तथा महान विजेता था। उसने अपने अयोग्य भाई रामगुप्त को हत्या करके गुप्त साम्राज्य की रक्षा की। शकों और वाहलोकों को पराजित करके अपने साम्राज्य को सीमाओं में वृद्धि की। मध्य प्रदेश के गणराज्यों तथा दक्षिण भारत के राज्यों को पराजित किया तथा पूर्व संधभक्ति का विनाश कर गुप्तों की प्रतिष्ठा में वृद्धि की।
चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य एक कुशल राजनीतिज्ञ था। उसने संबंधों द्वारा अपनी राजनीतिक स्थितियों को समृद्ध बनाया। उसने अपने उद्देश्य की पूर्ति हेतु नारी वेश धारण करके शक राजा की हत्या की तथा अपने बड़े भाई रामगुप्त की पत्नी व देवी से मिलकर षड्यन्त्रपूर्वक रामपुर का वध करके सिंहासन पर अधिकार कर लिया था। संक्षेप में वह महान् उद्देश्य की पूर्ति हेतु प्रत्येक साधन को अपना सकता था।
चन्द्रगुप्त एक योग्य तथा महान शासक था जिसने अपनी योग्यता द्वारा शासक को
प्रदान करके प्रजा को सुख प्रदान किया। फाहियान ने उसकी शासन व्यवस्था की मुक्त कंठ से
प्रशंसा की है। वह बड़ा ही न्यायप्रिय था। प्रजा उससे अधिक प्रेम करती थी।
Q.8. स्थायी बन्दोवस्त से कम्पनी को क्या लाभ हुए?
Ans. स्थायी बन्दोवस्त से ब्रिटिश शासन को निम्न लाभ हुए : 1. जमींदारों को एक निश्चित रकम चुकाने के बदले उन्हें भूमि का स्वामी स्वीकार का
लिया गया। 2. लगान निश्चित कर दिया गया जिसमें न वृद्धि हो सकती थी और न उसको कम ही
किया जा सकता था।
3. शांति व्यवस्था और न्याय से सम्बन्धित सभी कार्यों का उत्तरदायित्व जमींदारों से लेकर
सरकार को दे दिया गया।
4. जमींदार सिर्फ उतने समय तक भूमि के स्वामी थे, जब तक वे सरकार को लगान देते
रहे लगान न देने पर जमीन दूसरों को दे दी जा सकती थी। 5. कृषकों को पट्टे के द्वारा ही भूमि दी जाती थी और पट्टे में लगान की वृद्धि सरका
की स्वीकृति से ही की जा सकती थी। इस व्यवस्था से किसान जमींदारों की अराजकता कम हुई।
Q.9. गौतम बुद्ध के जीवन एवं उपदेशों का वर्णन करें।
Ans. गौतम बुद्ध बचपन से ही शांत, गंभीर एवं चिंतनशील प्रवृति के व्यक्ति थे| तरुण सिद्धार्थ का कोमल हृदय पीड़ित प्राणियों के दुख से द्रवित हो उठता था। इसी बीच उन्होंने बुढ़ापे, रोगी, मृतक और संन्यासियों से संबंधित चार हृदय विदारक दृश्य देखे। इन दृश्यों को देखकर सिद्धार्थ का दग्ध हृदय और भी बेचैन हो उठा तथा उनकी आत्मा सत्य की खोज के लिए संसार के सभी दुखों के निवारण हेतु दृढ़ प्रतिज्ञ हो गई। अतः वे 25 वर्ष की अल्पायु में ज्ञान की तलाश में निकल पड़े।
ज्ञान पाने के बाद उन्होंने निम्न उपदेश दिया- 1. संसार में सर्वत्र दुख ही दुख है। 2. दुछ का कारण है। 3. दुख का निरोध किया जा सकता है और 4. दुख निरोध के मार्ग है। संसार में सर्वत्र दुख ही दुख है का निरूपण करते हुए बतलाया कि मनुष्यों का जन्म, वृद्धावस्था तथा मृत्यु के कारण दुख होता है। रोग
बौद्ध दर्शन का दूसरा आर्य सत्य दुख के कारण अर्थात दुख समुदाय को स्पष्ट करते ह युद्ध ने अहंकार, तृष्णा, क्रोध आदि को इसका जड़ माना है।