Class 10,hindi subjective chapter 10 अक्षर – ज्ञान’
लघु उत्तरीय प्रश्न उत्तर |
‘
1. अनामिका की रचनाएँ किसलिए जानी जाती हैं?
उत्तर —- अनामिका की रचनाएँ समसामयिक बोध और समाज के वंचितों
के प्रति सहानुभूति के लिए जानी जाती हैं।
2. कवयित्री की दृष्टि में विफलता के आँसू क्या हैं?
उत्तर—’ कवयित्री की दृष्टि में विफलता के आँसू सृष्टि की विकास- कथा
के प्रथमाक्षर हैं।
3. कविता में ‘क’ का विवरण स्पष्ट करें।
उत्तर- अक्षर ज्ञान कविता में कवयित्री ने छोटे बच्चे द्वारा प्रारम्भिक अक्षर बोध को सकार रूप में चित्रित करते कहता है कि ‘क’ लिखने में अभ्यास-पुस्तिका का चौखट छोटा पड़ जाता है। कर्म पथ भी इसी प्रकार प्रारम्भ में फिसलन भरा होता है। ‘क’- कबूतर में चंचलता है। बालक भी चंचल होता है। इस प्रकार ‘क’ अक्षर व्यापकता पूर्ण है।
4. बेटे के आँसू कब आते हैं और क्यों? या सृष्टि-विकास की कथा क्या है?
अथवा, कवियित्री के अनुसार बेटे को आँसू कब आता है और क्यों ?
उत्तर- बेटा अक्षर – ज्ञान की सीढ़ियाँ चढ़ता हुआ, धीरे-धीरे जब ‘ङ’ लिखना चाहता है तो परेशानी में पड़ जाता है। ‘ड’ की टेढ़ी-मेढ़ी बनावट उससे सधती नहीं। ‘ड’ को माँ और बिन्दु (.) को उसकी गोद में बैठा मान लेने पर भी वह लिखने में सफल नहीं होता । वह अनवरत कोशिश करता किन्तु कामयाब नहीं होता और उसकी आँखों से आँसू निकल आते हैं। किन्तु है उसकी असफलता के आँसू उसमें हताशा नहीं, उत्साह पैदा करते हैं और यह उत्साह ही सृष्टि – विकास की कथा है।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न |
Long type question
→
1. ‘ अक्षर – ज्ञान’ कविता किस तरह सांत्वना देती और आशा जगाती है? विचार करें।
उत्तर— कवयित्री अनामिका की ‘अक्षर ज्ञान’ कविता समसामयिक मानव-बोध का संक्षिप्त मगर प्रभावशाली दस्तावेज है। कवयित्री ने ‘अक्षर – ज्ञान ‘ के आरम्भ के बिम्ब से आरम्भ कर सृष्टि – विकास की कथा के आरम्भ से इसे जोड़ दिया है। उसका उद्देश्य है सृष्टि के विकास में मानव की स्थिति का उद्घाटन करना ।
कवयित्री कहती है कि माँ ने बेटे को चौखट या स्लेट देकर लिखने की प्रक्रिया आरम्भ कराई। उसने बेटे की अक्षर यात्रा को सहज करने के लिए तरह-तरह के उपक्रम किए। लड़के ने लिखना शुरू किया, उलटी-सीधी रेखाओं के माध्यम से वह आगे बढ़ा और ‘ङ’ पर आकर थमक गया। संघर्ष कठिन हो गया। असफलता पर उसके आँसू निकल गए। किन्तु उसने हार नहीं मानी ।
कवयित्री का कहना है कि मानव जीवन की कथा भी ऐसी ही है। मनुष्य संसार में आता और शनै: शनै: अपने परिवेश से जुझता हुआ आगे बढ़ता है। इसी क्रम में एक पड़ाव ऐसा आता है जहाँ उसे आगे बढ़ने में अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। असफलता से उसकी आँखों में आँसू आ जाते हैं। किन्तु वह अपना प्रयत्न नहीं छोड़ता । आँसू उसे संघर्ष करने के लिए प्रेरित करते हैं और संघर्ष करने का उसका यह मुद्दा ही सृष्टि – विकास को आगे बढ़ाता है। मानव जीवन की यही प्रवृत्ति उसे श्रेष्ठ बनाती है। इस प्रकार, ‘ अक्षर – ज्ञान’ कविता संघर्ष के क्षणों में सांत्वना देती और
सुन्दर भविष्य की आशा जगाती है।
2. ‘अक्षर – ज्ञान’ में तीन उपस्थितियाँ हैं। स्पष्ट करें कि वे कौन-कौन- सी हैं?
उत्तर- अक्षर-ज्ञान’ कविता में तीन उपस्थितियाँ हैं। पहली उपस्थिति है माँ की पहल से बेटे के अक्षर ज्ञान के आरम्भ की। इसमें माँ बेटे को चौखटा देती और ‘क’ से कबूतर’, ‘ख’ से ‘खरगोश’, ‘ग’ से ‘गमला’ और ‘घ’ , से ‘घड़ा’ बताकर अक्षरारंभ कराती है। दूसरी उपस्थिति बालक द्वारा अक्षर लेखन की है जिसमें उसका ‘क’ कबूतर की तरह बड़ा होने के कारण चौखट में नहीं अँटता ‘ख’ भी खरगोश की तरह फुदक जाता है, गमला वाला ‘ग’ टूटता और ‘घड़ा’ वाला ‘घ’ लुढ़क जाता है। किन्तु ‘ङ’ पर आकर मामला अटक जाता है। नहीं सधता ‘ङ’ का ‘ड’ माँ है और बिन्दु (.) गोद में बैठा ‘बेटा’ बतलाने पर भी बात नहीं बनती। तीसरी उपस्थिति है ‘ङ’ न लिख पाने की बेवशी। बार-बार असफल रहने पर उसकी आँखों से आँसू निकल आते हैं। किन्तु ये आँसू उसे अपने कर्म अर्थात् लेखन कार्य से विरत नहीं करते। वह मजबूत इरादे से लगा रहता है। यह मजबूत इरादा, हासिल करने का संकल्प ही सृष्टि विकास की जड़ है कवयित्री का लक्ष्य इसी संघर्ष को – इंगित करना है।
3. ‘अक्षर ज्ञान’ कविता किस तरह सांत्वना देती और आशा जगाती है? विचार करें।
उत्तर-आधुनिक कवयित्री अनामिका की ‘अक्षर ज्ञान’ कविता समसामयिक मानवबोध की संक्षिप्त मगर प्रभावशाली दस्तावेज है। कवयित्री ने ‘अक्षर ज्ञान’ के आरम्भ के बिम्ब से आरम्भ कर सृष्टि विकास की कथा के आरम्भ से इसे जोड़ दिया है। कवयित्री का उद्देश्य अक्षर ज्ञान की कथा कहना नहीं है, उसका उद्देश्य सृष्टि का विकास में मानव की स्थिति का उद्घाटन करना।
कवयित्री कहती है कि माँ ने बेटे को चौखट या स्लेट देकर लिखने की प्रक्रिया आरम्भ कराई। उसने बेटे को अक्षर यात्रा को सहज करने के लिए तरह-तरह के उपक्रम किए। उसने बच्चे को बताया ‘क’ से कबूतर ‘ख’ से खरहा, ‘ग’ से गमला और ‘घ’ से घड़ा आदि। लड़के ने लिखना शुरू किया, उलटी सीधी रेखाओं के माध्यम से वह आगे बढ़ा और ‘ङ’ पर आकर थमक गया। संघर्ष कठिन हो गया। अनवरत लगा रहा, असफलता पर उसके आँसू निकल गए। किन्तु उसने हार नहीं मानी।
कवयित्री का कहना है कि मानव जीवन की कथा भी ऐसी ही है मनुष्य संसार में आता और शनैः-शनैः अपने परिवेश से जुझता हुआ आगे बढ़ता है, वह डगमगाता है, लटपटाता है। इसी क्रम में एक पड़ाव ऐसा आता है जहाँ उसे आगे बढ़ने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है असफलता से उसके आँखों में आँसू आ जाते हैं। किन्तु वह अपना प्रयत्न नहीं छोड़ता । आँसू उसे संघर्ष करने के लिए प्रेरित करते हैं और संघर्ष करने का उसका यह माद्दा ही सृष्टि – विकास को आगे बढ़ता है। मानव जीवन की यही प्रवृत्ति – उसे श्रेष्ठ बनाती है।
इस प्रकार, अक्षर ज्ञान’ कविता संघर्ष के क्षणों में सांत्वना देती और सुन्दर भविष्य की आशा जगाती है।
4. मां-बेटे सधते नहीं उससे और उन्हें लिख लेने की अनवरत कोशिश में उसके आ जाते हैं आँसू पहली विफलता पर छलके ये आँसू ही हैं शायद प्रथमाक्षर सृष्टि की विकास कथा के
पद्यांश का भावार्थ या संदेश लिखिए।
उत्तर – कवयित्री अनामिका ने अक्षर ज्ञान शीर्षक पाठ में कहा है कि ‘ङ’ बच्चा लिख नहीं पाता। न लिख पाने की असफलता से उसकी आँखों से आँसू निकलने लगते हैं। पुनः कवयित्री कहती है कि बेटे अर्थात् मनुष्य की यह असफलता मनुष्य को ज्ञान पाने की आकांक्षा से विरत नहीं करती अपितु पुनः प्रयत्न करने को प्रेरित करती है और उसके प्रयत्न से ही सृष्टि का विकास क्रम चलता है।
5. गमले – सा टूटता हुआ उसका ‘ग’
घड़े-सा लुढ़कता हुआ उसका ‘घ’- सप्रसंग व्याख्या कीजिए ।
उत्तर – प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘गोधूलि ‘, भाग-2, में संकलित कवयित्री अनामिका के ‘अक्षर-ज्ञान’ शीर्षक कविता से उद्धृत हैं। अनामिका समसामयिक बोध की कवयित्री हैं और संघर्ष में उनकी आस्था है। ‘अक्षर – ज्ञान’ के क्रम में आनेवाली बाधाओं और उलझनों के माध्यम से वह अपनी आस्था व्यक्त करती हैं।
कवयित्री कहती हैं कि माँ ने बेटे को अक्षर ज्ञान कराना आरम्भ किया – और अक्षर से संगत वस्तुओं की जानकारी दी, जैसे ‘क’ से कबूतर, ‘ख’ से खरहा, ‘ग’ से गमला और ‘घ’ से घड़ा। अब बेटे ने जो लिखाई शुरू की तो जैसे चलना सीखते समय बालक टलमलाता है, वैसे ही अक्षर की लकीरें इधर-उधर होने लगीं। ‘ग’ गमले की भाँति टूट गया और ‘घ’ घड़े की तरह लुढ़क गया । यहाँ कवयित्री का उद्देश्य यह दिखाना है कि किसी भी ज्ञानार्जन में शुरू-शुरू में कठिनाइयाँ आती हैं, आदमी बेचैन होने लगता है। किन्तु असफलता से घबड़ाना नहीं चाहिए, लगन से प्रयत्न करने पर समस्या हल हो जाती है। जीवन – क्षेत्र में यही मानकर चलना चाहिए। मानवता का विकास या सृष्टि का विकास इसी प्रकार होता है।
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