Class 10 history chapter 1 यूरोप में राष्ट्रवाद Nationalism in Europe

Class 10 history chapter 1 यूरोप में राष्ट्रवाद Nationalism in Europe

 

 

 

 

1. राष्ट्रवाद :— राष्ट्रवाद एक विचारधारा है जो उन लोगों द्वारा व्यक्त की जाती है जो यह मानते हैं कि उनका राष्ट्र अन्य सभी से श्रेष्ठ है। श्रेष्ठता की ये भावनाएँ अक्सर साझा जातीयता, भाषा, धर्म, संस्कृति या सामाजिक मूल्यों पर आधारित होती हैं। विशुद्ध रूप से राजनीतिक दृष्टिकोण से, राष्ट्रवाद का उद्देश्य देश की लोकप्रिय संप्रभुता की रक्षा करना है – खुद पर शासन करने का अधिकार – और इसे आधुनिक वैश्विक अर्थव्यवस्था द्वारा उत्पन्न राजनीतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक दबावों से बचाना है।

 

2. यूरोप में राष्ट्रवाद का उदय: आज के यूरोपीय राष्ट्रों की बजाय उन्नीसवीं सदी के मध्य तक यूरोप कई क्षेत्रों में बँटा हुआ था जिन पर अलग-अलग वंश के लोगों का शासन हुआ करता था। उस जमाने में राजतंत्र का बोलबाला था। लेकिन उस जमाने में कुछ ऐसे तकनीकी बदलाव हुए जिनके परिणामस्वरूप समाज में गजब के परिवर्तन हुए। उन्हीं परिवर्तनों से लोगों में राष्ट्रवाद की भावना का जन्म हुआ।1789 में शुरु होने वाली फ्रांस की क्रांति के साथ राष्ट्रवाद के आंदोलन की शुरुआत हो चुकी थी। हर नई विचारधारा को अपनी जड़ें जमाने में एक लंबा समय लगता है। राष्ट्रवाद को अपनी जड़ें जमाने में लगभग एक सदी का समय लग गया। इस लंबी प्रक्रिया की परिणति के रूप में फ्रांस एक प्रजातांत्रिक देश के रूप में उभरा। फिर यह सिलसिला यूरोप के अन्य भागों में फैल गया। बीसवीं सदी की शुरुआत होते होते विश्व के कई भागों में आधुनिक प्रजातंत्र की स्थापना हुई।

 

3.yuरोपीय 5 से 1848 की अवधि- मेटरनिक युग के नाम से जानी जाती है। नेपोलियन बोनापार्ट की पराजय के बाद वियना कांग्रेस और उसके बाद की व्यवस्था की स्थापना मेटरनिक व्यवस्था के नाम से जानी जाती है। इसका उद्देश्य फ्रांस की क्रांति की देनों, प्रजातंत्रात्मक एवं राष्ट्रवादी भावना को कुचलना तथा पुरातन व्यवस्था की पुनर्स्थापना करना था।

 

4. वियना कांग्रेस :— नेपोलियन बोनापार्ट ने अपनी विजयों के द्वारा यूरोप के मानचित्र में जो परिवर्तन किए थे, उसका पुनर्निर्माण करने के लिए ऑस्ट्रिया की राजधानी वियना में यूरोप के प्रमुख राजनीतिज्ञों एवं प्रतिनिधियों का सम्मेलन बुलाया गया। इस सम्मेलन को ‘वियना कांग्रेस’ कहा जाता है।

 

5.1830 की जुलाई क्रांति (July Revolution) के कारण निम्नलिखित थे, जो इस प्रकार हैं :
A.राजा की निरंकुशता : सन् 1824 ई० में चार्ल्स दशम फ्रांस का राजा बना। वह स्वेच्छाचारी और निरंकुश था। वह संवैधानिक राजा के रूप में शासन करने को तैयार नहीं था। उसने कुलीनों, पादरियों और चर्च को विशेषाधिकार दिए। उदारवादियों का दमन किया गया। इससे चार्ल्स का विरोध बढ़ने लगा। B .पोलिगनेक का प्रधानमंत्री बनना : चार्ल्स ने सन् 1830 ई० में पोलिगनेक को प्रधानमंत्री नियुक्त किया। वह प्रतिक्रियावादी था। उसने लुई 18वें द्वारा स्थापित समान नागरिक संहिता को समाप्त कर दिया।
C. चार आज्ञप्तियाँ : चार्ल्स ने चार आज्ञप्तियाँ पारित किए। इनके अनुसार, प्रेस की स्वतंत्रता समाप्त कर दी गई, प्रतिनिधि सभा भंग कर दी गई, मतदान का अधिकार सीमित कर कुलीनों को लाभ पहुँचाया गया तथा नए चुनाव की घोषणा की गई।
—सन् 1830 ई० की जुलाई क्रांति का स्वरूप निम्नांकित हैं :
जुलाई 1830 में पेरिस (Paris) की जनता ने विद्रोह कर दिया। विद्रोह का नेतृत्व लफायते ने किया। सैनिक विद्रोह पर नियंत्रण नहीं कर सके। तीन दिनों तक राजशाही और जनता में संघर्ष होता रहा। बाध्य होकर चार्ल्स गद्दी छोड़कर इंगलैंड (England) चला गया। —सन् 1830 की जुलाई क्रांति (July Revolution) का परिणाम निम्नांकित हैं : चार्ल्स के चले जाने पर फ्रांस में बूर्बो वंश के स्थान पर आर्लेयंस के शासक लुई फिलिप को राजा बनाया गया। संवैधानिक राजतंत्र की स्थापना हुई। उदारवादियों और राष्ट्रवादियों की विजय हुई।

 

6. 1848 की क्रांति:– 1848 ई. की क्रान्ति का मुख्य कारण लुई फिलिप की आन्तरिक और बाह्य नीतियाँ थीं, जिनके कारण फ्रांस में उसका शासन अलोकप्रिय हो गया।लुई फिलिप का प्रधानमन्त्री गीजो भी रूढ़िवादी और अपरिवर्तनशील विचारधारा का कट्टर समर्थक था। वह श्रमिकों की दशा में सुधार लाने का विरोधी था और इसलिए उनके लिए कानून बनाना नहीं चाहता था।फलतः जनता में असंतोष व्याप्त हो गया अतः जनता ने 24 फरवरी 1848 को गीजो एवं लुई फिलीप के विरूद्ध विद्रोह कर दिया।
क्रांति के परिणाम:– 1848 की क्रांति का प्रभाव अधिक व्यापक रहा। मध्य यूरोप तो इससे अधिक प्रभावित हुआ, कि वियना कांग्रेस ने जो यूरोपीय व्यवस्था का ढाँचा तैयार किया था, उसकी नीवें हिलने लगी।1848 में यूरोप के अन्य राज्यों में क्रांति का कारण फ्रांस की ही क्रांति थी। इस क्रांति के बाद मैटरनिख युग का भी अंत हो गया।

 

7 इटली का एकीकरण:-–इटली का एकीकरण मेजिनी, काबूर और गैरीबाल्डी के सतत प्रयासों से हुआ था। * इटली के एकीकरण में काबूर का योगदान– काबूर का मानना था कि सार्डिनिया के नेतृत्व में ही इटली का एकीकरण संभव था ,उसने प्रयास आरंभ कर दिए। विक्टर एमैनुएल के प्रधानमंत्री के रूप में उसने इटली की आर्थिक और सैनिक शक्ति सुदृढ़ की। पेरिस शांति-सम्मेलन में उसने इटली । की समस्या को यूरोप का प्रश्न बना दिया। 1859 में फ्रांस की सहायता से ऑस्ट्रिया को पराजित कर उसने लोम्बार्डी पर अधिकार कर लिया। मध्य इटली स्थित अनेक राज्यों को भी सार्डिनिया में मिला लिया गया।*इटली के एकीकरण में गैरीबाल्डी का योगदान- उसका मानना था कि युद्ध के बिना इटली का एकीकरण नहीं होगा। इसलिए, उसने आक्रामक नीति अपनाई। ‘लालकुर्ती’ और स्थानीय किसानों की सहायता से उसने सिसली और नेपल्स पर अधिकार कर लिया। इन्हें सार्डिनिया. में मिला लिया गया। वह पोप के राज्य पर भी आक्रमण करना चाहता था, परंतु काबूर ने इसकी अनुमति नहीं दी।

8.जर्मनी ka  एकीकरण  :–शिक्षकों एवं विद्यार्थियों ने जर्मनी के एकीकरण के उद्देश्य से ‘ब्रूशेन शैफ्ट’ नामक सभा स्थापित की। वाइमर राज्य का येना विश्वविद्यालय राष्ट्रीय आंदोलन का केंद्र था। 1834 में जर्मन व्यापारियों ने आर्थिक व्यापारिक समानता के लिए प्रशा के नेतृत्व में जालवेरिन नामक आर्थिक संघ बनाया जिसने राष्ट्रवादी प्रवृत्तियों को बढ़ावा दिया। 1848 ई० में जर्मन राष्ट्रवादियों ने फ्रैंकफर्ट संसद का आयोजन कर प्रशा के राजा फ्रेडरिक विलियम को जर्मनी के एकीकरण के लिए अधिकृत किया लेकिन फ्रेडरिक द्वारा अस्वीकार कर देने से एकीकरण का कार्य रुक गया। फ्रेडरिक की मृत्यु के बाद विलियम प्रथम प्रशा का राजा बना। विलियम राष्ट्रवादी विचारों का पोषक था। विलियम ने जर्मनी के एकीकरण के उद्देश्यों को ध्यान में रखकर महान कूटनीतिज्ञ बिस्मार्क को अपना चांसलर नियुक्त किया। बिस्मार्क ने जर्मनी के एकीकरण के लिए “रक्त और लौह की नीति” का अवलंबन किया। इसके लिए उसने डेनमार्क, ऑस्ट्रिया तथा फ्रांस के साथ युद्ध किया। अंततोगत्वा जर्मनी 1871 में एकीकृत राष्ट्र के रूप में यूरोप के मानचित्र में स्थान पाया।

 

9. यूनान में राष्ट्रीयता का उदय:–यूनान का अपना गौरवमय अतीत रहा है। यनानी सभ्यता का साहित्यिक प्रगति, विचार. दर्शन. कला. चिकित्सा. विज्ञान आदि क्षेत्र की उपलब्धिया यूनानया के लिए प्रेरणास्त्रोत थे। परंत इसके बावजद भी यनान तर्की साम्राज्य क अधान था। फ्रांसीसी क्रांति से यनानियों में भी राष्टीयता की भावना की लहर जागा। फलतः तुका शासन से स्वयं को अलग करने के लिए आंदोलन चलाये जाने लगे। इसक लिए इन्होंने हितेरिया फिलाडक नामक संस्था की स्थापना ओडेसा नामक स्थान पर काा इसका उद्देश्य ती शासन को यनान से निष्काषित कर उसे स्वतंत्र बनाना था। क्राति के नेतृत्व के लिए यूनान में शक्तिशाली मध्यम वर्ग का भी उदय हो चुका था। यूनान में विस्फोटक स्थिति तब और बन गई जब तुर्की शासका द्वारा यूनाना स्वतंत्रता संग्राम में संलग्न लोगों को बरी तरह कचलना शरू किया। 1821 ई० में एलेक्जेंडर चिपसिलांटी के नेतत्व में यनान में विद्रोह शरू हो गया। अंतत: 1829 ई० में एड्रियानोपल की संधि द्वारा तुर्की की नाममात्र की अधीनता में यूनान को स्वायत्तता देने की बात तय हुई। फलतः 1832 में यूनान को एक स्वतंत्र राष्ट्र घोषित कर दिया गया। बवेरिया के शासक ‘ओटो’ को स्वतंत्र यूनान का राजा घोषित किया गया।
परिणाम- यूनानियों ने लंबे और कठिन संघर्ष के बाद ऑटोमन साम्राज्य के अत्याचारी शासन से मुक्ति पाई। यूनान के स्वतंत्र और संप्रभु राष्ट्र का उदय हुआ। यद्यपि गणतंत्र की स्थापना नहीं हो सकी परंतु एक स्वतंत्र राष्ट्र के उदय ने मेटरनिख की प्रतिक्रियावादी नीति को गहरी ठेस लगाई

 

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Class 10 history chapter 1 यूरोप में राष्ट्रवाद Nationalism in Europe

 

Q. 1 राष्ट्रवाद क्या है ?

Ans- राष्ट्रवाद किसी विशेष भौगोलिक संस्कृति या सामाजिक परिवेश में रहने वाले लोगों के बीच व्याप्त एक भावना है ,जो उनमें परस्पर प्रेम और एकता की भावना को स्थापित करती है । यह भावना आधुनिक विश्व में राजनीतिक पुनर्जागरण का परिणाम है ,इसे ही राष्ट्रवाद कहा जाता हैं।

Q. 2 इटली ,जर्मनी के एकीकरण में ऑस्ट्रिया की क्या भूमिका थी?

Ans – इटली तथा जर्मनी के एकीकरण में ऑस्ट्रिया सबसे बड़ी बाधा थी। एकीकरण के पीछे मूलतः राष्ट्रवादी भावना थी और ऑस्ट्रेलिया का  chancellor मेटरनिख घोर प्रतिक्रिया वादी था। उसने इटली तथा जर्मनी में एकीकरण हेतु होने वाले सभी आंदोलन अथवा प्रयासों को दबाया ,मेटरनिख की दमनकारी नीति के प्रतिक्रिया स्वरूप इटली तथा जर्मनी की जनता में राष्ट्रवाद की भावना बढ़ती गई। ऑस्ट्रेलिया में मैटरनिक के पतन के बाद इटली तथा जर्मनी के लोगों के एकीकरण के मार्ग के सबसे बड़ा बाधा समाप्त हुआ।  पुनः भारी उत्साह के साथ एकीकरण का प्रयास किया और अंत में सफलता पाई।

Q. 3 मैजिनी कौन था?

Ans मैजिनी इटली में राष्ट्रवादियों के गुप्त दल कार्बोनरी का सदस्य था । वह सेनापति के साथ-साथ गणतांत्रिक विचारों के समर्थक साहित्यकार भी था। 1830 ईस्वी में नागरिक आंदोलन द्वारा मैजिनी ने उत्तरी और मध्य इटली में एकीकृत गणराज्य स्थापित करने का प्रयास किया ।इसमें असफल रहने पर उसे इटली में पलायन करना पड़ा। 1848 ईस्वी में मेटरनिख के पराजय के बाद मैजिनी ने पुनः इटली आकर इटली के एकीकरण का प्रयास किया। इस बार भी वह असफल रहा और उसे पलायन करना पड़ा। 

Q. 4 गैरीबाल्डी के कार्यों की चर्चा करे?

Ans. इतिहास गैरीबाल्डी को इटली के एकीकरण के कर्म में दक्षिणी इटली के रियासतों का एकीकरण करने हेतु याद करता है।  प्रारंभ में वह मैजिनी के विचारों का  samerthek था, किंतु बाद में काबुर् से प्रभावित हो संवैधानिक राजतंत्र का पक्षधर बन गया। गैरीबाल्डी पैसे से नाविक था। उसने कर्मचारियों तथा स्वयं सेवकों की सशस्त्र सेना  का गठन कर इटली के प्रांत सिसली तथा नेपल्स पर आक्रमण कर विजय प्राप्त की। गैरीबाल्डी ने यहां विक्टर एमैनुअल् के प्रतिनिधि के रूप में सत्ता संभाली। तत्पश्चात गैरीबाल्डी विक्टर एमैनुअल् से मिला और दक्षिणी इटली के जीते गए संपूर्ण क्षेत्र एवं संपत्ति उसे सौप दी। गैरीबाल्डी ने विक्टर एमैनुअल् द्वारा दक्षिण क्षेत्र के शासक बनने के निमंत्रण को ठुकरा दिया और कृषि कार्य करना स्वीकार किया।

Q. 5 यूरोपीय इतिहास में घेटो का क्या महत्व है?

Ans. यह शब्द मध्य यूरोपीय देशों में यहूदी बस्ती के लिए प्रयोग किया जाता था। आज की भाषा में यह एक धर्म, प्रजाति या सामान पहचान वाले लोगों को दर्शाती है। घेटोकरण मिश्रित व्यवस्था के स्थान पर एक सामुदायिक व्यवस्था थी; जो सामुदायिक दंगों को देसी रूप देते थे।

Q. 6 जर्मनी के एकीकरण की बाधाई  क्या थीं?

Ans. जर्मनी के एकीकरण में निम्नलिखित प्रमुख बढ़ाएं थी-1. लगभग 300 छोटे बड़े राज्य, 2. इन राज्यों में व्याप्त राजनीतिक, सामाजिक तथा धार्मिक विष्मताए, 3. राष्ट्रवाद की भावना का अभाव, 4. ऑस्ट्रिया का हस्तक्षेप, तथा 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

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