12th history आरंभिक राज्य और अर्थव्यवस्थाएँ all important subjective- question

12th history आरंभिक राज्य और अर्थव्यवस्थाएँ all important subjective- question

आर्टिकल में क्लास 12th के लिए हिस्ट्री पार्ट 2 का सभी महत्वपूर्ण सब्जेक्ट ही प्रश्न दिया गया है इससे अलग एक भी प्रश्न आपके बोर्ड परीक्षा में नहीं पूछा जाएगा यह हर साल की तरह इस साल भी प्रमाणित है

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12th history आरंभिक राज्य और अर्थव्यवस्थाएँ all important subjective- question

आरंभिक राज्य और अर्थव्यवस्थाएँ

Q. 1 कलिंग युद्ध का अशोक पर क्या प्रभाव पड़ा ?

Ans. अशोक ने अपने शासन के आठवें वर्ष 261 ई० पू० में कलिंग के राजा के विरुद्ध युद्ध लड़ा। इस युद्ध में लाखों लोग मारे गए और घायल हुए। इस युद्ध की विभीषिका ने अशोक को आन्दोलित कर दिया। फलत: उन्होंने अब युद्ध न करने की शपथ खाई। उसने भेरी घोष के स्थान पर धम्म घोष की नीति अपनाई । यही ‘धम्मघोष’ अशोक को प्राचीन इतिहास का महानतम शासक बनाया। कलिंग युद्ध के निम्नलिखित प्रभाव अशोक पर पड़े-

1. धर्म विजय : अशोक ने अपने कदम विश्व विजय के स्वप्न को तोड़कर धर्म विजय की ओर बढ़ाये। उसे अब प्रतीत हुआ कि विश्व की सबसे बड़ी विजय मानव-हृदय पर विजय प्राप्त करना है।

 

2. बौद्ध धर्म ग्रहण करना: कलिंग युद्ध ने अशोक की आँखें खोल दी। उसने बौद्ध धर्म ग्रहण कर लिया। यह भी संभव था कि यदि कलिंग युद्ध न होता तो वह बौद्ध धर्म ग्रहण न करता ।

3. जीवन शैली में परिवर्तन : कलिंग युद्ध से पूर्व अशोक ने अपने पूर्वजों की भाँति युद्ध लड़े, शिकार खेले, माँसाहार खाया और विलासिता का जीवन बिताया परंतु इस युद्ध ने उसकी जीवन धारा को ही बदल दिया। वह अहिंसा का पुजारी और दीन-दुखियों का रक्षक बन गया।

4. निर्बल सैनिक संगठन : युद्ध नीति का त्याग करने के साथ ही सेना का मनोबल गिर गया। मौर्य साम्राज्य के पतन के लिये सम्भवतः सेना काफी हद तक उत्तरदायी थी।

Q.2. गांधार कला की विशेषताओं का उल्लेख करें।

Ans. महायान बौद्ध धर्म के उदय के साथ गांधार कला का भी उदय हुआ । इनका विकास गांधार क्षेत्र (अविभाजित भारत का पश्चिमोत्तर क्षेत्र) में हुआ इसलिए इसे गांधार कला कहा गया। इस पर यूनानी कला शैली का प्रभाव है। इस कला में पहली बार बुद्ध और बोधिसत्व की मानवाकार मूर्तियाँ विभिन्न मुद्राओं में बनीं। मूर्तियों में बालों के अलंकरण पर विशेष ध्यान दिया गया। ये मूर्तियाँ सजीव प्रतीत होती हैं।

गांधार कला की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं- (a) गांधार कला की विषय-वस्तु भारतीय तथा तकनीक यूनानी है। (b) गांधार कला में निर्मित मूर्तियाँ साधारणतया स्लेटी पत्थर में है। (c) भगवान बुद्ध के बाल यूनान तथा राम की शैली में बनाये गये हैं। (d) मूर्तियों में शरीर के अंगों को ध्यानपूर्वक बनाया गया है। मूर्तियों में मोटे तथा सिल्वटदार वस्त्र प्रदर्शित किये गये हैं। (e) गांधार शैली में धातु कला तथा आध्यात्म कला का अभाव है। (f) गांधार शैली में बुद्ध अपोलो देवता के समान लगते हैं। यह सम्भवतः यूनानी प्रभाव के कारण है।

Q.3. महाजनपद से आप क्या समझते हैं ?

Ans. उत्तर वैदिक काल में जिन क्षेत्रीय राज्यों के उदय की प्रक्रिया आरम्भ हुई थी वह छठी सदी ई. पू. तक आते-आते बड़े राज्यों में बदल गई इन्हीं प्रभुता सम्पन्न राज्य को महाजनपद कहा गया है। बौद्ध ग्रन्थ अंगुतर निकाय के अनुसार 16 महाजनपद थे जो निम्नलिखित हैं- (i) काशी (ii) कोशल (iii) अंग (iv) मगध (v) वज्जि (vi) मल्ल (vii) चेदि (viii) वत्स (ix) कुरू (x) पांचाल (xi) मत्स्य (xii) शूरसेन (xiii) अश्मक (xiv) अवन्ति (xv) गांधार (xvi) कम्बोज । इन महाजनपदों में वज्जि और मल्ल गणराज्य थे और शेष में राजतंत्रात्मक प्रणाली

प्रचलित थी। इन महाजनपदों में सबसे शक्तिशाली मगध था। अधिकांश महाजनपदों पर राजा का शासन होता था, लेकिन गण और संघ के नाम से प्रसिद्ध राज्यों में कई लोगों का समूह शासन करता था, इस तरह का प्रत्येक व्यक्ति राजा या राजन कहलाता था।

Q.4. देश की एकता हेतु अशोक ने कौन-से तीन मार्ग अपनाए ?

Ans. (क) राजनैतिक एकीकरण (Political unity) : अशोक ने सम्पूर्ण देश को

एकता के सूत्र में बाँधने का प्रयास किया। केवल कलिंग ही एक ऐसा देश था, जो उसके अधीन न था। ई.पू. 261 में उसने कलिंग को भी जीत लिया। इसमें कोई सन्देह नहीं कि यह उसकी अंतिम विजय थी, परन्तु उसने राजनैतिक एकीकरण का अपना विचार पूरा किया।

(ख) एक भाषा और एक लिपि (One language and one script) : अशोक ने अपने अभिलेखों में एक भाषा (प्राकृत) और एक ही लिपि (ब्राह्मी लिपि) का प्रयोग किया, परन्तु आवश्यकता पड़ने पर उसने प्राकृत के साथ-साथ यूनानी तथा संस्कृत भाषा और ब्राह्मी लिपि के साथ खरोष्ठी अरेमाइक और यूनानी लिपियों का भी प्रयोग किया।

(ग) धार्मिक सहिष्णुता (Religious tolerance) : अशोक ने स्वयं बौद्ध धर्म ग्रहण कर लिया था, परन्तु उसने कभी भी दूसरे धर्म वालों पर इसे अपनाने का दबाव नहीं डाला।

 

 

अपने राज्य में रहने वाले विभिन्न धर्मों के मानने वालों को उसने अपने -अपने तरीकों से पूजा- अर्चना आदि करने की छूट दे दी थी।

Q.5. कौटिल्य के अर्थशास्त्र पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखें

Ans. अर्थशास्त्र नामक सुप्रसिद्ध ग्रन्थ की रचना चाणक्य ने की थी जिन्हें कौटिल्य अथवा

विष्णुगुप्त के नाम से भी जाना जाता है। इस प्रसिद्ध ग्रन्थ में 15 खण्ड, 150 अध्याय, 180 उपविभाग तथा 6000 श्लोक हैं। इस सुप्रसिद्ध ग्रन्थ की रचना ने यह सिद्ध कर दिया है कि भारतीय विद्वान प्रारम्भ से ही न केवल आध्यात्मिक प्रश्नों पर विचार करते आये हैं बल्कि उन्होंने • भौतिक विषयों पर भी विचार किया है। इस ग्रन्थ का महत्व प्लेटो और अरस्तु को महान कृतियाँ से कम नहीं है। विद्वानों ने इस ग्रन्थ की तुलना मैकियावेली के ग्रन्थ ‘दि प्रिंस’ से की है। कौटिल्य को भारत का मैकियावेली भी कहा जाता है।

Q.6. मौर्यकालीन इतिहास के प्रमुख स्रोतों का उल्लेख कीजिए

Ans. मौर्य वंश के इतिहास की जानकारी साहित्यिक और पुरातात्विक दोनों स्रोत से होती है। साहित्यिक स्रोतों में यूनानी यात्री मेगस्थनीज द्वारा लिखा गया वृत्तांत और कौटिल्य का अर्थशास्त्र महत्वपूर्ण है। इसके साथ परवर्ती जैन, बौद्ध, पौराणिक ग्रंथ तथा संस्कृत वाङमय से भी सहायता मिलती है। पुरातात्विक स्रोतों में अशोक के अभिलेख महत्वपूर्ण है। ये अभिलेख अशोक के विचारों की अच्छी जानकारी देते हैं। इसमें उसके धर्म के प्रचार का भी उल्लेख है।

Q.7. अशोक के धम्म के बारे में आप क्या जानते हैं?

Ans. अशोक का धर्म संकीर्णता से बहुत दूर और साम्प्रदायिकता से बहुत ऊपर उठा हुआ था। लेकिन अशोक के धार्मिक विचारों तथा सिद्धांतों में क्रमागत विकास हुआ था।

कलिंग युद्ध के पहले अशोक ब्राह्मण धर्म को मानने वाला था। वह माँस भी खूब खाता था। राजमहल में असंख्य पशु-पक्षियों का प्रतिदिन वध होता था। लेकिन कलिंग युद्ध के बाद उसके विचारों में महान् परिवर्तन हो गया। वह हिंसा को तिलांजलि देकर अहिंसा का सदैव के लिए अनन्य भक्त बन गया। इसके लिए उसने बाह्मण धर्म को छोड़ दिया और बौद्ध धर्म को

अपना लिया। अशोक ने अपने धर्म से साम्प्रदायिकता का अन्त कर अपने धर्म में विश्व के सभी

धर्मों के महत्वपूर्ण तत्वों को ग्रहण किया और इसको विश्व-धर्म में स्थान देने की कोशिश की।

धर्म की उन्नति : अशोक ने अपने धम्म की उन्नति के लिए इसका व्यापक प्रचार करवाया। इस उद्देश्य से उसने निम्नलिखित कार्य किए-

1. उसने धर्म के सिद्धांतों को शिलालेखों पर खुदवाया।

2. उसने धर्म महामात्रों की नियुक्ति की। ये कर्मचारी राज्य में घूम-घूमकर लोगों में धर्म के सिद्धांतों का प्रचार करते थे।

3. उसने धर्म के नियमों को स्वयं अपनाया ताकि लोग उनसे प्रभावित होकर इन नियमों को अपनाएँ । 4. उसने अपने सभी कर्मचारियों को लोगों के साथ अच्छा व्यवहार करने का आदेश दिया।

Q.8. मौर्यों के नगर प्रशासन के विषय में संक्षिप्त विवरण दें। Ans. मेगास्थनीज के वृतान्त से पता चलता है कि पाटलिपुत्र जैसे बड़े नगरों के लिए विशेष नागरिक प्रबंध की व्यवस्था की गई थी। इस नगर के लिए बीस सदस्यों की एक समिति थी, जो बोर्डो में विभक्त की गई थी। प्रत्येक बोर्ड में पाँच सदस्य होते थे। ये बोर्ड निम्नलिखित ढंग से अपना कार्य करते थे-

* पहले का कार्य कला कौशल की देखभाल करना, कारीगरों के सिर्फ वेतन नियत करना और दुःख में सहायता करना आदि था। दूसरे का कार्य विदेशियों की देखभाल करना, उनके लिए सुख सामग्री उपलब्ध कराना तथा उनकी निगरानी रखना आदि था। * तीसरे बोर्ड का कार्य जन्म-मरण का हिसाब रखना था ताकि कर लगाने तथा अन्य प्रबंध करने में सुविधा रहे। * चौथे का कार्य व्यापार का प्रबंध करना । पाँचवें का कार्य शिल्पालयों में बनी वस्तुओं की देखभाल · करना । * छठे बोर्ड का कार्य वस्तुओं की बिक्री पर लगे हुए विक्रय कर को एकत्र करना था।

 

Q.9. मौर्यकालीन कला एवं स्थापत्य का वर्णन करें।

Ans. इस युग के स्मारकों, स्तूपों आदि पर जो लेप (ओप) किया गया है वह आज भी यथावत है। भाव प्रकाशन तथा प्रदर्शन में पूर्ण समर्थता है। कठोर पाषाण को काटकर, छाँटकर -बनाये गये स्तम्भों की निर्माण शैली मौलिक है और इसके प्रतीक तथा अन्य चिह्न कलात्मक यथार्थता से ओत-प्रोत है। लोक कला की शैली प्रभावशाली, अभूतपूर्व और मौलिक है।

राजप्रासाद : पाटलिपुत्र में चन्द्रगुप्त मौर्य का राजप्रासाद वास्तुकला का बेजोड़ उदाहरण था। फाह्यान के अनुसार, यह प्रासाद मानव कृति न होकर देवों द्वारा निर्मित है। स्तूप : बौद्ध परम्परा के अनुसार अशोक ने 84,000 स्तूप बनवाये थे यह अतिशयोक्ति हो सकती है मगर ह्वेनसांग ने 80 स्तूपों को स्वयं अपनी आँखों से देखा था। साँची का स्तूप मौर्य

वास्तुकला का उत्कृष्ट उदाहरण है।

लोककला : मौर्ययुगीन लोककला का सर्वोत्तम उदाहरण विशाल यक्ष-यक्षणी की प्रतिमाएँ हैं। इनमें मथुरा जिले के परखम ग्राम से प्राप्त यक्ष मूर्ति ‘मणिभद्र’ एवं पटना के दीदारगंज से प्राप्त चवरधारिणी की यक्ष प्रतिमा महत्वपूर्ण हैं।

Q.10. चन्द्रगुप्त द्वितीय विक्रमादित्य की उपलब्धियों का वर्णन करें।

Ans. चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य की गिनती भारत के योग्य सम्राटों में की जाती है। अपने बाहुबल से गुप्त साम्राज्य का विस्तार कर उसकी अनन्त सेवा की जिसके फलस्वरूप गुप्त साम्राज्य की नींव कभी कमजोर नहीं हुई। वह एक बेजोड़ सेनानायक था। वह अपने देश में विदेशियों को देखना नहीं चाहता था। इसलिए उसने उनको यहाँ से खदेड़ दिया था।

कुटनीतिज्ञता के क्षेत्र में भी वह अद्वितीय था। वह अपने उद्देश्य की पूर्ति के लिए सुकर्म और कुकर्म कुछ भी नहीं समझता था। उसने एक नारी का वेश धारण कर शंक राजा की हत्या की और अपने ज्येष्ठ भ्राता रामगुप्त का वध कर मगध की गद्दी को प्राप्त किया तथा धुवदेवी को अपनी पत्नी बनाया। उसने अन्य देशों के साथ वैवाहिक संबंध स्थापित कर अपने साम्राज्य – को सुदृढ़ किया। उसके इन सभी कार्यों से यह पता चलता है कि वह उच्च कोटि का कूटनीतिज्ञ था। उसने एक अच्छे शासक के सभी गुण वर्त्तमान थे। उसकी शासन व्यवस्था बहुत अच्छी थी। वह न्याय प्रिय व्यक्ति था जिसके फलस्वरूप उसके साम्राज्य में शान्ति और सुव्यवस्था थी।

उसकी साहित्य तथा साहित्यकारों से विशेष प्रेम था। उसका राज दरबार विद्वानों से खचाखच भरा रहा था। विद्वानों और कलाकारों को वह हर तरह से मदद किया करता था। उसके नवरत्नों में भी कालीदास, भवभूति और धन्वन्तरी आदि विशेष रूप से प्रसिद्ध थे। उनके शासन काल में संस्कृत भाषा की बहुत उन्नति हुई।

Q. 11. चन्द्रगुप्त मौर्य की उपलब्धियों का संक्षिप्त विवरण दें।

Ans. चन्द्रगुप्त मौर्य ने चौथी शताब्दी ई० पू० में नन्द वंश के शासन का अंत कर मौर्य वंश की स्थापना की। यूनानी शासक सेल्यूकस को परास्त कर चंद्रगुप्त ने उत्तर-पश्चिम क्षेत्रों को साम्राज्य में मिलाया जो सिकन्दर द्वारा जीते गये थे। सेल्यूकस का दूत मेगास्थनीज लम्बे समय तक मौर्य दरबार में रहा। उसकी पुस्तक इण्डिका में तत्कालीन जीवन का समग्र चित्रण है। लगभग 218 ई० पू० में मैसूर के श्रवणबेलगोला में इसने अंतिम सांस ली।

चंद्रगुप्त मौर्य की सफल विजय :

1. पंजाव विजय (Victory of the Punjab): चंद्रगुप्त मौर्य ने सिकन्दर की मृत्यु के पश्चात् पंजाब को जीत लिया।

2. मगध की विजय (Victory of Magadh) : चंद्रगुप्त मौर्य ने कौटिल्य (चाणक्य) की सहायता से मगध के अंतिम राजा घनानंद की हत्या करके मगध को जीत लिया। 3. वंगाल विजय (Victory of Bengal): चंद्रगुप्त मौर्य ने पूर्वी भारत में बंगाल को

जीत कर अपने अधिकार में कर लिया।

 

4, दक्षिणी भारत पर विजय (Victory on South) : जैन साहित्य के अनुसार आधुनिक कर्नाटक तक उसने अपनी विजय पताका फहराई थी। Q.12.कनिष्क के उपलब्धियों पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।

Ans. कनिष्क कुषाण वंश का सबसे महानतम् शासक था, जो 78 ई. में सम्राट बना एवं 101 ई. तक शासन किया। कनिष्क के सम्राट बनने की तिथि से ही उपलब्धियों का दौर शुरू जाता है। शक् संवत की शुरुआत उसके गद्दी पर बैठने की तिथि (78 ई.) से ही मानी जाती है। कनिष्क भारत का पहला शासक था जिसने चीन पर आक्रमण करके उसके आर्थिक रूप है। महत्वपूर्ण क्षेत्र सिल्क रूट पर कब्जा किया था। कनिष्क बौद्ध धर्म का अनुयायी था। उसने अशोक की तरह ही एशिया एवं चीन में बौद्ध धर्म का प्रसार करवाया। कनिष्क के संरक्षण में ही कश्मीर के कुण्डलवन विहार में चतुर्थ बौद्ध संगीति का आयोजन किया था।

Q.13 सातवाहन राज्य के बारे में टिप्पणी लिखिए

Ans. लगभग 60 ई.पू. में सातवाहन राज्य की नींव सिमुक ने रखी थी। यह गोदावरी तथा

कृष्णा नदी के बीच का क्षेत्र था, जिसको अब आंध्र कहा जाता है। शातकर्णि प्रथम सातवा वंश का सबसे शक्तिशाली शासक था। उसने अश्वमेघ यज्ञ किया और पूरे दक्कन पर अपनी प्रभुसत्ता की घोषणा की। इस वंश का एक और प्रसिद्ध राजा गौतमीपुत्र शातकर्णी था, जिसने दूसरी शताब्दी ई. के आरंभिक काल में शासन किया। सातवाहन शासक अपने आपको ब्राह्मण कहते थे और विष्णुमत के अनुयायी थे। वे ब्राह्मणों को खुले दिल से दान देते थे। उन्होंने बौद्धमत को भी संरक्षण दिया। अमरावती के स्तूप तथा कार्ले के चैत्य इसी काल में बनवाये गये। साहित्यक दृष्टि से इस काल में प्राकृत भाषा का उदय हुआ । इस काल के सभी अभिलेख प्राकृत भाषा में है।

Q.14. समुद्रगुप्त को नेपोलियन से तुलना क्यों की जाती है ? दो कारण बताएँ

Ans. विसेण्ट स्मिथ महोदय ने समुद्रगुप्त की दिग्विजयों को देखते हुए उसकी तुलना फ्रांस के सम्राट नेपोलियन बोनापार्ट से की है। वस्तुतः उनकी तुलना सही है मगर यहाँ कालान्तर है। चूँकि समुद्रगुप्त का काल (350-375 ई०) नेपोलियन से 1400 वर्ष पूर्व का है अतः उन्हें कहना चाहिए कि नेपोलियन यूरोप का समुद्रगुप्त है।

Q.15. समुद्रगुप्त की उत्तर विजय समझावें

Ans. समुद्रगुप्त की प्रयाग प्रशस्ति के अनुसार उसने उत्तरी भारत (आर्यावर्त) के नौ शासकों को परास्त किया था। आर्यावर्त के अन्तर्गत पूर्वी समुद्र से लेकर पश्चिम समुद्र तक का क्षेत्र तथा हिमालय, विंध्याचल पर्वत के बीच का क्षेत्र आता है। ये उत्तरी भारत शासक थे- रूद्रदेव, मतिल, नागदत्त, चंद्रवर्मन, गणपतिनाग, नागसेन, अच्युत, नन्दी, बलवर्मा । Q.16. गुप्त काल की धार्मिक दशा का वर्णन कीजिए।

Ans. गुप्त काल के सभी सम्राट हिन्दू धर्म के अनुयायी थे, परन्तु वे अन्य धर्मों का भी आदर करते थे। इस काल में जैन धर्म और बौद्ध धर्म का प्रभाव कम हो गया था। इसके विपरीत हिन्दू धर्म विकास की चरम सीमा पर था। इस काल में हिन्दू मन्दिरों का निर्माण कराया गया। यज्ञ, हवन आदि पुनः होने लगे। ब्राह्मणों का सम्मान बहुत था । सम्राट की ओर से सभी धर्मों को पूर्ण स्वतंत्रता थी कि वे अपनी मनचाही विधि से पूजा अर्चना करें। पदों पर नियुक्तियाँ धर्म या • जाति के आधार पर न होकर योग्यता के आधार पर होती थीं। बौद्ध धर्म पतन की ओर जा रहा था। इसके प्रमुख कारण थे- राजकीय सहायता न मिलना एवं बौद्ध भिक्षुओं में भ्रष्टाचार का बोलबाला ।

Q.17. गुप्तकाल को प्राचीन भारत का स्वर्णयुग क्यों कहा जाता है ?

Ans. गुप्तकाल को प्राचीन भारत का स्वर्ण युग कहने का कारण निम्नलिखित हैं- • गुप्तकालीन समाज एक आदर्श समाज था। लोग सद्भावनापूर्वक रहते थे। * गुप्त राजाओं ने शकों को हराया और एक राष्ट्रीय साम्राज्य की स्थापना की।

 

• व्यापार और वाणिज्य की उन्नति हुई। चारों ओर धन और समृद्धि व्याप्त थी । * ललित कलाऍ मूर्तिकला और स्थापत्य कला का बहुत विकास हुआ। • कालिदास, विशाखदत्त, हरिसेन, भारवि और अमरसिंह इसी युग में हुए । * महान ज्योतिषी और गणितज्ञ धराहमिहिर और आर्यभट्ट भी इसी काल में हुए ।

* तक्षशिला, सारनाथ और नालन्दा के विश्वविद्यालयों में शिक्षा के लिए अन्य देशों से भी विद्यार्थी आते थे। लोगों का आदर्श जीवन था इन्हीं कारणों से गुप्तकाल को स्वर्ण युग कहा जाता है।

Q.18. छठी शताब्दी ई० पू० भारत की राजनीतिक स्थिति का वर्णन करें।

Ans. छठी शताब्दी ई० पू० में भारत में कोई सर्वोच्च सत्ता नहीं थी। सोलह बड़े-बड़े महाजनपद थे। इनके अतिरिक्त कई छोटे-छोटे राज्य थे, जिनके बारे में बहुत कम जानकारी उपलब्ध है। आर्य जनों या कबीलों के आधार पर संगठित थे। धीरे-धीरे वे कुछ निश्चित स्थानों पर बस गए। जिन क्षेत्र में जन बस गए, वे जनपद कहलाने लगे। छोटे-छोटे जनपदों को मिलाकर महाजनपदों

का निर्माण हुआ और ऐसे 16 महाजनपदों का उल्लेख हमें बौद्ध साहित्य अंगुत्तरनिकाय में मिलता है। अधिकांश महाजनपदों में राजतंत्र था। बाद में मगध सबसे शक्तिशाली राज्य हो गया।

Q.19. दो गुप्तकालीन मन्दिरों के नाम एवं स्थान को लिखें।

Ans. कला एवं स्थापत्य की दृष्टि से गुप्तोत्तर काल (600-1200 ई०) भी अद्वितीय थी।

गुप्तोत्तरकालीन कला एवं स्थापत्य को दो भागों में बाँटा जा सकता है- 1.600-900 ई० : इसके अन्तर्गत मुख्य रूप से मामल्लपुर के रथ मंदिर और मूर्तियाँ, एलोरा के कैलाश मंदिर एवं एलिफैण्टा के मंदिर आते हैं। 2.900-1200 ई० : इसमें खजुराहो (बुन्देलखण्ड), उड़ीसा, राजपूताना, चोल, पल्लव

वंशों द्वारा निर्मित मंदिर आते हैं।

Q.20. गुप्तकाल के विज्ञान और प्रौद्योगिकी पर प्रकाश डालें

Ans. गुप्तकाल में विज्ञान के क्षेत्र में अभूतपूर्व उन्नति हुई थी। गणित, रसायन विज्ञान, पदार्थ विज्ञान, धातु विज्ञान और ज्योतिष आदि की इस काल में काफी प्रगति हुई थी। दशमलव- भिन्न की खोज और रेखागणित का अभ्यास इसी काल की देन है। आर्यभट्ट इस युग के ख्याति- प्राप्त गणितज्ञ और ज्योतिषी थे। उनका ग्रहण के संबंध में विचार वास्तव में वैज्ञानिक है। उन्होंने यह सिद्ध कर दिया कि पृथ्वी अपनी धुरी पर घूमती है। चरक और सुश्रुत इस युग के प्रसिद्ध वैद्य थे। बराहमिहिर और ब्रह्मगुप्त इस काल के ज्योतिषज्ञ थे। ब्रह्म सिद्धांत ब्रह्मगुप्त की ही रचना थी। Q.21. अशोक के अभिलेखों का वर्णन करें।

Ans. अशोक के अभिलेख जनता की पालि और प्राकृत भाषाओं में लिखे हुए होते थे। इनमें ब्रह्मी-खरोष्ठी लिपियों का प्रयोग हुआ था। इन अभिलेखों में अशोक का जीवन-वृत्त, उसकी आंतरिक तथा बाहरी नीति एवं उसके राज्य के विस्तार संबंधी जानकारी हैं। इन अभिलेखों में सम्राट अशोक के आदेश अंकित होते थे।

अशोक के अभिलेख इतिहासकारों के लिए अमूल्य निधि है। इन स्तम्भों पर तीन प्रकार

के राज्यादेश मिले हैं-

(i) इनमें सबसे प्रसिद्ध सात स्तम्भ राज्यादेश (The Seven Pillars Edicts) है जो दिल्ली, मेरठ, इलाहाबाद, राजपुरवा (बिहार), लोरिया ऐराज (बिहार) आ स्थानों पर पाए गये हैं। इनमें अशोक के धर्म व नीति का वर्णन है।

(ii) दूसरी प्रकार के लेख लघु स्तम्भ राज्यादेश (The Minor Pillar Edicts) के नाम से प्रसिद्ध है। ये सारनाथ (बनारस), साँची (भोपाल), इलाहाबाद आदि स्थानों पर मिले हैं।

(iii) तीसरी प्रकार के तराई के स्तम्भ लेख (The Tarai Pillar Edicts) है जो रूमिन्दी और निगलिवा (नेपाल की तराई ) में पाये गये हैं। इनमें अशोक द्वारा महात्मा बुद्ध की जन्मभूमि देखने हेतु यात्रा का वर्णन है।।

 

 

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